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शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

कई लोग संतोंसे भी अपना स्वार्थ सिध्द करना चाहते हैं।

(सूक्ति-
१६५-

आप मरौ र ठरौ (पण) म्हारे जीवरो तो भलौ करो |

(आप चाहे मरौ या ठरौ , पर हमारे जीवका तो भला करो(कल्याण करो)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के 26/10/1993.3.00 बजेके सत्संगसे।

कथा-

एक खेती करनेवाली जाटनी थी । वो एक साहूकार (सेठ) के यहाँ काम करती थी ।
एक बार उसने देखा कि सेठके यहाँ सँत आये हैं। उनका बड़ा आदर किया गया है। गायका गौबर-गौमूत्र जलमें डालकर और उस पतले-पतले लेपसे मसौता लेकर सारा आँगन लीपा गया है।
सत्कार, पूजा आदि करके बड़े आदरसे भोजन परौसा गया है और घरवाले हवा कर रहे हैं।
यह देखकर जाटनीने पूछा कि आपलोग ये सब क्या कर रहे हैं?
तो घरवाले बोले कि हम अपने जीवका भला कर रहे हैं, संतोंकी सेवा करनेसे, संतोंका संग करनेसे-सत्संग करनेसे अपना(जीवात्माका) कल्याण होता है, मुक्ति होती है।
संत-महात्मा भी गीतीजीके पन्द्रहवें अध्यायका पाठ कर रहे हैं-

ॐ श्रीपरमात्मने नमः

*अथ पञ्चदशोऽध्यायः*

श्रीभगवानुवाच
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥१५- १॥

आदि पाठ पूरा करके (ब्रह्मार्पणम्…पत्रं पुष्पं फलं तोयम्…गीता(४/२४;९/२६;) आदि बोलकर भगवानके भोग लगा रहे हैं और प्रसाद पा रहे हैं)
प्रसाद पाकर 'जटाकटाह0'(श्री शिव ताण्डवस्तोत्रम्) आदि बोलकर, (आचमन आदि करके) संत-महात्मा वापस पधार गये।
वो जाटनी भी अपने घर आ गई।

एक दिन शीतकालमें उसके घरपर भी संत पधारे। तब उसने भी गौबर-गौमूत्रसे गाढा-गाढा आँगन लीपा (जिससे ठण्डी भी बढ गयी और संतोंको शीत लगने लग गई)।
बाकी काम करके जाटनी संतोंके हवा करने लगी (जिससे संतोंको ठण्ड ज्यादा लगने लग गई)।
संत बोले कि हमको ठण्डी लग रही है, ठण्डसे मर रहे हैं-शीयाँ मराँ हाँ । तो जाटनी बोली कि आप चाहे मरौ या ठरौ , पर हमारे जीवका तो भला करो(कल्याण करो)-थे मरौ र ठरौ, पण म्हारे जीवरो तो भलौ करो ।

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के

दि.19931026/3.00 बजेके सत्संग-प्रवचनके आधार पर

७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html