सूक्ति-
७५१-
प्रहलाद कहता राक्षसों ! हरि हरि रटौ संकट कटै।
सदभाव की छौड़ौ समीरण विपतिके बादळ फटै।।
शब्दार्थ-
समीरण (समीर,हवा,आँधी)।
प्रसंग-
हिरण्यकशिपुने जब राक्षसोंको आदेश दिया कि प्रह्लादको मार डालो और उसकी आज्ञाके अनुसार वो प्रह्लादको मारने लगे तो भगवानने रक्षा करली,प्रह्लादको मारने दिया नहीं।राक्षस जब उसको मार नहीं पाये,तब हिरण्यकशिपुने कोप किया कि तुम्हारेसे एक बच्चा नहीं मरता है?(तुम्हारेको दण्ड दैंगे)।तब डरते हुए राक्षस काँपने लगे।उस समय प्रह्लादजी (हिरण्यकशिपुके सामने ही) राक्षसोंसे कहने लगे कि हे राक्षसों! तुम राम राम रटो,भगवानका नाम लो जिससे तुम्हारे संकट कट जायँ।
सद्भाव पैदा करो,जिससे तुम्हारी सब विपत्तियाँ नष्ट हो जायँ।
(इस प्रकार आया हुआ संकट कट जायेगा और आनेवाली विपत्तियाँ भी नष्ट हो जायेंगी)।
सद्भाव (जैसे, किसीको मारनेकी कौशीश मत करो,किसीका अनिष्ट मत चाहो,किसीको शत्रु मत समझो,सब जगह और सबमें भगवान परिपूर्ण हैं,सब रूपोंमें भगवान मौजूद हैं,इसलिये किसीसे डरो मत।सबका भला हो जाय,कल्याण हो जाय,सब सुखी हो जायँ,दुखी कोई भी न रहें)।
(ऐसे) सद्भाव रूपी आप हवा चलाओगे तो आपके विपत्तिरूपी बादल
नष्ट हो जायेंगे।
जैसे,बादल छाये हुए हौं और उस समय अगर हवा (आँधी) चल पड़े, तो बादल फट जाते हैं,बिखर जाते हैं और वर्षा टिक नहीं पातीं।
इसी प्रकार जब संकट छाये हुए हों और उस समय अगर राम राम रटा जाता है और सद्भावकी हवा छौडी (चलायी) जाती है तो विपत्तिके बादल फट जाते हैं,बिखर जाते हैं और विपत्ति टिक नहीं पातीं।राम राम रटनेसे सब संकट मिट जाते हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दु:ख भाग्भवेत्।।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html