दौ-दौ चौपाई एक अर्थमें
जिन्हकै रही भावना जैसी ।
प्रभु मूरति देखी तिन्ह तैसी ।।
एहि बीधि रहा जाहि जस भाऊ।
तेहि तस देखेउ कोसलराऊ।।
हरि ब्यापक सर्वत्र समाना ।
प्रेमते प्रगट होइ मैं जाना ।।
अग जग मय सब रहित बिरागी ।
प्रेमते प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ।।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के 28121993,800 बजेवाले सत्संगसे।
(इसमें एक निष्ठाका स्पष्ट स्वरूप बताया गया है) ।