रविवार, 4 अगस्त 2013

नित्य पठनीय पाँच श्लोक

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-

गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक
(गीता ४/६-१०)-

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरो$पि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||

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पता-सत्संग-संतवाणी. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संगका पता

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराजका सत्संग ( SATSANG GITA AADI -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ )और गीता-पाठ,गीता-गान(सामूहिक आवृत्ति),गीता-माधुर्य,गीता-व्याख्या(करीब पैंतीस दिनोंका सेट),नानीबाईका माहेरा,भजन,कीर्तन तथा नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग(-श्रध्देय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
71दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट),मानसमें नाम-वन्दना आदि आप यहाँके इस पतेसे प्राप्त करें- http://db.tt/v4XtLpAr

बुधवार, 31 जुलाई 2013

'कल्याण के तीन सुगम मार्ग'(पुस्तक-व्याख्या)- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज, बीकानेर २००१(2001)दिनांक-२९/१/२००१ से ८/२/२००१ तकके प्रवचन)|

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

२.सत्संग(नित्य-स्तुति आदि) - स्वामी रामसुखदासजी महाराज।

।। हरि: ॥ 

 

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके इकहत्तर

 दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट) ।। 

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके वर्तमान समयमें प्रतिदिन सबेरे पाँच बजते ही नित्य-स्तुति,प्रार्थना होती थी फिर गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और पाठके बादमें हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन होता था.

इन सबमें करीब अठारह या बीस मिनिट लगते थे.इतनेमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज पधार जाते थे और सत्संग (प्रवचन) सुनाते थे जो प्रायः छःह(6) बजेसे 13 या17 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-परोग्राम कम समयमें ही सारगर्भित और अत्यन्त कल्याणकारी था। वो सब हम आज भी और उनकी ही वाणीमें सुन सकते हैं और साथ-साथ कर भी सकते हैं।


इस
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@
नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके ७१दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।)में वो सहायक-सामग्री है,इसलिये यह प्रयास किया गया है।

सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें जैसे सत्संग होता था,वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें.इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्राम न  जोङें।। 


उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ है।आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-

@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@

(-इकहत्तर दिनोंके  सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-) 
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0
सीताराम सीताराम

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शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

गीता 'साधक-संजीवनी'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) समझकर-समझकर पढनेसे अत्यन्त लाभ |

प्रसिध्द संत, श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने श्रीमद्भगवद्गीता पर हिन्दी भाषामें एक सरल टीका लिखि है,जिसका नाम है- साधक-संजीवनी।इसका अनेक भारतीय भाषाओंमें और अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओंमें भी अनुवाद हो चूका है तथा प्रकाशन भी हो गया है।जिन्होने ध्यानसे मन लगाकर पढा है,वे इस विषयमें कुछ जानते हैं और जिनको गीताजीका वास्तविक अर्थ और रहस्य समझना हो,उनको चाहये कि वे एक बार इसको समझ-समझकर पढे लेवें।
 (यह साधक-संजीवनी ग्रंथ तथा उनके और भी ग्रंथ गीताप्रेस गोरखपुरसे पुस्तकरूपमें और इंटरनेट पर उपलब्ध है और ये कम्प्यूटर, टेबलेट,मोबाइल आदि पर पढने लायक अलगसे भी उपलब्ध है।)
कृपया साधक-संजीवनी गीता (लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) का समझ-समझ कर अध्ययन करें।
कई जने सोच लेते हैं कि रोजाना साधक-संजीवनीके एक श्लोककी पूरी व्याख्या पढ लेवें या पूरा एक पृष्ठ पढ लेवें ,यह बहुत बढिया है,परन्तु कभी-कभी जिस दिन समय कम रहता है और पूरी एक श्लोककी व्याख्या या पूरा पृष्ठ पढनेका आग्रह रहनेके कारण जल्दी-जल्दी पढकर पूरा करते हैं,तो कई बातें  पूरी समझे बिना ही रह जाती है;इस प्रकार पुस्तक तो पढकर पूरी कर लेते हैं,पर पूरी समझे बिना रह जाती है | ऐसा क्यों होता है कि पृष्ठ या व्याख्या पूरी करनेका आग्रह होनेसे;अगर इसकी जगह समय बाँधलक,तो समस्या हल हो जाती है ;अर्थात् १०-२० मिनिट या घंटा-आधाघंटा हमें तो समझनेमें लगाना है,चाहे एक दिनमें व्याख्या या पृष्ठ पूरा न हो;अगले दिन वहींसे आगे समझकर पढेंगे,कोई बात समझमें नहीं आई,तो दुबारा पढेंगे,तिबारा पढेंगे,पूर्वापरका ध्यान रखेंगे,और भी कुछ आवश्यक हुआ तो वो करेंगे| 
इस प्रकार समझकर पढनेसे बहुत लाभ होता है,गीताका रहस्य समझमें आने लगता है,फिर तो रुचि हो जाती है और प्रयास बढ जाता है,गीता समझमें आने लगती है और गीता समझमें आ जाती है,तो भगवत्तत्व समझमें आ जाता है;फिर तो कुछ जनना बाकी नहीं रहता,न पाना बाकी रहता है,न करना बाकी रहता है ; मनुष्यजन्म सफल हो जाता है|

जिनको गीताजी याद(कण्ठस्थ) करनी हो,वो पहले इस प्रकार साधक-संजीवनीसे श्लोक समझकर याद करेंगे, तो बड़ी सुगमतासे गीता याद हो जायेगी और जितनी बार श्लोकोंकी आवृत्ति करेंगे,उनके साथ-साथ अर्थ और भावोंकी भी आवृत्ति हो जायेगी | गीता याद करनेवालोंके लिये 'गीता-ज्ञान-प्रवेशिका'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) बहुत उपयोगी है;इसी प्रकार 'गीता-दर्पण'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) भी अत्यन्त लाभकारी है | 

'गीता-दर्पण' ग्रंथ कैसे प्रकट हुआ? कि
परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज गीता 'साधक-संजीवनी'की भूमिका लिखवा रहे थे,वो भूमिका संकोच करते-करते भी ( कि पहले भी 'साधक-संजीवनी' इतना बड़ा पौथा हो गया,वैसे ही यह न हो जाय)इतनी बड़ी हो गयी कि अलगसे 'गीता-दर्पण'नामक ग्रंथ छपाना पड़ा;इसमें गीताजीके शोधपूर्ण १०८ लेख है और पूर्वार्ध्द तथा उत्तरार्ध्द-दो भागोंमें विभक्त है, किसी गीता-प्रेमी सज्जनको श्री महाराजजी यह ग्रंथ देकर फरमाते थे कि कमसे-कम इसकी विषय-सूची तो देखना;
गीताजीके इस अद्वितीय-ग्रंथको एक बार जरूर पढना चाहिये,इसमें और भी कई बातें हैं|| 
यह ग्रंथ गीता-प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुआ है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है-
http://www.swamiramsukhdasji.org/

शेष भगवत्कृपा