रविवार, 1 मई 2016

सोलह वर्षोंवाले 12693 सत्संग-प्रवचन(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                      ।।श्रीहरिः।।

सोलह वर्षोंवाले 12693 सत्संग-प्रवचन

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके  लगातार सोलह वर्षोंवाले
12693 (बारह हजार छःह सौ तिरानबे) प्रवचनोंका विवरण इस प्रकार है-

सन् 1990 के 557 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1993 के 876 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1994 के 866 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1996 के 915 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2000 के 998 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2002 के 714 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2003 के 729 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2004 के 702 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2005 के 85 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

http://dungrdasram.blogspot.com/

सत्संग-सामग्री(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

                          ।।श्रीहरिः।।

सत्संग-सामग्री

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और

इससे पहलेके(1975 से 1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है।

( ऐसे पुराने प्रवचन और भी इकट्ठे किये जा रहे हैं,जिसके अभीतक सौ-सौ प्रवचनोंके छः(600) प्रवचन-समूह (शतक) बन चूके हैं और सातवाँ शतक चल रहा है,जिसमें 15 प्रवचनोंका संग्रह  हो चूका है तथा और भी प्रयास चल रहा है ) ।

इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके विषय भी लिखे हुए हैं।

सन 1990 से पहलेके हजारों प्रवचन तो अभी ओडियो कैसेटोंमें ही पङे हुए हैं,कम्प्यूटर आदिमें आये ही नहीं है, वो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं।उनके लिये तो जोरदार लगन और मेहनत आदिकी आवश्यकता है।

इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें कई भजन(संग्रह किये हुए 40 भजन) और कई प्रकारके कीर्तन(21 प्रकारके संकीर्तन) उपलब्ध हुए हैं।

उनके द्वारा नित्य-पाठ करनेके लिये शुरु करवाये हुए गीताजीके पाँच श्लोक भी उन्हीकी आवाजमें है।

उनके द्वारा गाया गया नानीबाईका मायरा(छः कैसेटोंवाला 48 विभागों (फाइलों)में है),

श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्-पाठ तथा उन्हीकी आवाजमें गीता-माधुर्य है (इसका 15 वाँ अध्याय पूरा उपलब्ध नहीं हुआ)।

इसी प्रकार, गीता-गान(प्रथम प्रकारका गीता-पाठ,सामूहिक गीता-पाठ, जो गीताजीका शुध्द उच्चारण सीखना चाहते हैं और गीताजी सीखना चाहते हैं  तथा गीताजीका गायन,गीत सुनना चाहते हैं , उनके लिये यह विशेष उपयोगी है।इसकी साफ आवाजके लिये  दुबारा रिकॉर्डिंग की गई है )।

गीता-पाठ(द्वितीय प्रकारका गीता-पाठ (जो श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके साथ-साथ गीता-पाठ करना चाहते हैं, उनके लिये यह विशेष उपयोगी है ),

गीता-व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तककी कैसेटोंका  सेट(124 फाइलोंमें)है, जिसमें व्याख्या करके  पूरी गीताजी समझायी गयी है),

मानसमें नाम-वन्दना {रामचरितमानसके नाम वन्दना प्रकरण (1।18-28) की जो नौ दिनोंतक व्याख्या की गई थी और जिसकी "मानसमें नाम-वन्दना" नामक पुस्तक बनी थी उसके  आठ प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे परन्तु उपलब्ध करीब आठ ही हुए)}।

"कल्याणके तीन सुगम मार्ग" नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा की गयी  व्याख्या   (सन् 29-1-2001 से 8-2-2001 तकके प्रवचन। यह वो पुस्तक है जिनकी व्याख्या स्वयं श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने की है)।

प्रश्नोत्तर (564)

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजसे कई लोग तरह-तरहके प्रश्न पूछा करते थे जिसके जवाब देकर श्री महाराजजी बङी सरलतासे उनको समझा देते थे।प्रश्नोंके उत्तर बङे सटीक होते थे और सुनकर हरेकको बङा सन्तोष होता था।ऐसे ही कुछ (564) प्रश्नोत्तर उनके प्रवचनोंमेंसे छाँटकर उन प्रवचनोंके अंश अलगसे इकठ्टे किये  गये हैं,जो बङे कामके हैं वो भी उपलब्ध है।

इकहत्तर(71) दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें  रोजाना प्रातः पाँच बजे नित्य-स्तुति और गीताजीके करीब दस-दस श्लोकोंका पाठ होता था तथा हरि:शरणम् 2 हरि:शरणम् 2 संकीर्तन होता था फिर श्री महाराजजी सत्संग सुनाते थे।जिस प्रकार उन दिनोंमें प्रातः 5 बजे नित्य-स्तुति,गीता-पाठ,सत्संग आदि होता था उसी प्रकारसे इकहत्तर दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका एक सेट (सत्संग-समूह) तैयार किया गया है, वो भी उपलब्ध है।

इनके सिवा उनके द्वारा बतायी गयी  अपने जीवन-सम्बन्धी कई बातें भी लिखकर संग्रहीत की गई है।

तथा उनके श्रीमुखसे सुनकर लिखी हुई अनेक सूक्तियाँ (751 कहावतें,दोहे, आदि) भी उपलब्ध है ।

इस प्रकार और भी अनेक कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है।हमारेको चाहिये कि शीघ्र ही उनसे लाभ लें।

ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क दी जा सकती है.

जो लेना चाहें,कृपया वो इस पते पर सम्पर्क करें-

-डुँगरदास राम, गाँव पोस्ट चाँवण्डिया, जिला नागौर, राजस्थान(भारत)।

मोबाइल नं० ये हैं- 9414722389  और ब्लाँगका नाम पता इस प्रकार है -

सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

इनके शिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी गीता साधक-संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु,एक संतकी वसीयत आदि करीब तीस पुस्तकें भी निःशुल्क दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट या मोबाइल पर भी पढ सकते हैं।

इस प्रकार यह शीघ्र-कल्याणकारी सामग्री हमारेको अपने पासमें रखनी चाहिये और यथाशीघ्र लाभ अवश्य लेना चाहिये।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके  लगातार सोलह वर्षोंवाले
12693 (बारह हजार छःह सौ तिरानबे) प्रवचनोंका विवरण इस प्रकार है-

सन् 1990 के 557 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1993 के 876 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1994 के 866 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1996 के 915 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(मसन् 2000 के 998 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(मसन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2002 के 714 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2003 के 729 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2004 के 702 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2005 के 85 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

http://dungrdasram.blogspot.com/

रविवार, 17 अप्रैल 2016

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।

                          ॥ श्री हरि: ॥ 

 

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके वर्तमान समयमें प्रतिदिन सबेरे पाँच बजते ही नित्य-स्तुति,प्रार्थना होती थी। फिर गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और पाठके बादमें हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन होता था.इन सबमें करीब अठारह या बीस मिनिट लगते थे।इतनेमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज पधार जाते थे और सत्संग (प्रवचन) सुनाते थे जो प्रायः छःह(6) बजेसे 13 या17 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-परोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक, सारगर्भित और अत्यन्त कल्याणकारी था। वो सब हम आज भी और उनकी ही वाणीमें सुन सकते हैं और साथ-साथ कर भी सकते हैं।

इस
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज-इकहत्तर दिनोंका  सत्संग-प्रवचन सेट)

में वो सहायक-सामग्री है,इसलिये यह प्रयास किया गया है।

सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें जैसे सत्संग होता था,वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें.इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्रा न जोङें।

नित्य-स्तुति प्रार्थना,गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ और हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन भी उनकी ही आवाजके साथ-साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।

प्रातः पाँच बजे श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकार्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति,प्रार्थना और दस श्लोक गीताजीके पाठ कर लेनेके बाद यह -हरिः शरणम् (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें ही) सुनें और साथ-साथ बोलें,इसके बाद सत्संग जरूर सुनें(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग सुनें) l

हरिःशरणम् (संकीर्तन) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- https://db.tt/0b9ae0xg

कई जने पाँच बजे सिर्फ प्रार्थना तो कर लेते हैं,परन्तु 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'का सत्संग नहीं सुनते;परन्तु जरूरी सत्संग सुनना ही है।

यह बात समझनी चाहिये कि प्रार्थना सत्संगके लिये ही होती थी।लोग जब आकर बैठ जाते तो पाँच बजते ही तुरन्त प्रार्थना शुरु हो जाती थी और उसके साथ ही दरवाजा बन्द हो जाता था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह जाते थे)।

और प्रार्थना,गीता-पाठ आदि करते, इतनेमें उनका मन शान्त हो जाता,उनके मनकी वृत्तियाँ शान्त हो जाती थी।उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था।

(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्संग सुननेसे वो भीतर(अन्तरात्मामें) बैठ जाता है)।

सत्संगके बाद भी  भजन-कीर्तन आदि कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं होता था,न इधर-उधरकी या कोई दूसरी बातें ही होती थी, जिससे कि सत्संगमें सुनी हुई बातें उनके नीचे दब जाय।

सत्संगके समय कोई थौड़ी-सी भी आवाज नहीं करता था।अगर किसी कारणसे कोई आवाज हो जाती तो बड़ी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।

पहले नित्य-स्तुति एक लम्बे कागजके पन्नेमें छपी हुई होती थी।प्रार्थनाके बादमें वो पन्ना लोग गोळ-गोळ करके समेट लेते थे।समेटते समय सत्संगमें उस पन्नेकी आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाजसे भी सुननेमें विक्षेप होता था।तब वो प्रार्थना पुस्तकमें छपवायी गई जिससे कि आवाज न हो और सत्संग सुननेमें विक्षेप न हो और एकाग्रतासे सत्संग सुनी जाय,सुननेका तार न टूटे,सत्संगका प्रवाह अबाध-गतिसे श्रोताके हृदयमें आ जाय और उसीमें भरा रहे।

सत्संग सुनते समय वृत्ति इधर-उधर चली जाती है तो सत्संग पूरा हृदयमें आता नहीं है।

सुननेसे पहले मनकी वृत्तियोंको शान्त कर लेनेसे बड़ा लाभ होता है।शान्तचित्तसे सत्संग सुननेसे समझमें बहुत बढिया आता है और लगता भी बहुत बढिया है।

सत्संग शान्तचित्तसे सुना जाय-इसके लिये पहले प्रार्थना आदि बड़ी सहायक होती थी।

इस प्रकार प्रार्थना आदि होते थे सत्संगके लिये।

इसलिये प्रार्थना आदिके बादमें सत्संग जरूर सुनना चाहिये।

सत्संग तो प्रार्थना आदिका फल है-

सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।
(रामचरित.बा.३)।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के समयमें जिस प्रकार सत्संग होता था उसी प्रकार हम आज भी कर सकते हैं।

इसके लिये जो एक प्रयास किया गया है,वो प्रयास है प्रार्थना,गीतापाठ सहित इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचनोंका सेट।

इकहत्तर दिनोंका इसलिये बनाया गया है कि इतने दिनोंमें पूरी गीताजीके पाठकी आवृत्ति हो जाती है,गीताजीका पूरा पाठ हो जाता है।

प्रतिदिन प्रार्थनाके बाद गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और वो करीब सत्तर इककहत्तर दिनोंमें पूरा हो जाता था।

(गीताजीके ७००-सातसौ श्लोकोंका दस-दसके हिसाबसे सत्तर दिन और एक दिन महात्म्य-आरती या अंगन्यास-करन्यास आदि।इस प्रकार इकहत्तर दिनोंमें प्रार्थना,प्रवचनों सहित गीताजीके पूरे पाठका समूह है)।

इसमें एक यह विलक्षणता है कि प्रार्थना,गीतापाठ,हरि:शरणम्(कीर्तन),प्रवचन-ये सब महाराजजीकी ही आवाजमें है।

यन्त्रके द्वारा इसको एक बार शुरु करदो-बाकी काम अपने आप हो जायेगा अर्थात् आप पाँच बजे प्रार्थना चालू करदो तो आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा और  उसके बाद हरि:शरणम् वाला कीर्तन आकर अपने-आप सत्संग-प्रवचन आ जयेगा।

इस प्रकार नित्य नये-नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे।इकहत्तर दिन पूरे होनेपर इसी प्रकार वापस शुरु कर सकते हैं और इस प्रकार ऊमर भर सत्संग किया जा सकता है।

इनके अलावा महाराजजीके नये प्रवचन सुनने हों तो प्रार्थना आदिके बाद पुराने,सुने हुए प्रवचनोंकी जगह नये प्रवचन लगाकर सुने जा सकते हैं।

उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ है।आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-

@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@

(-इकहत्तर दिनोंके  सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-)
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0

------------------------------------------------------------------------------------------------

पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

१.नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।

                              ।।श्रीहरिः।।

१.नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके वर्तमान समयमें प्रतिदिन सबेरे पाँच बजते ही नित्य-स्तुति,प्रार्थना होती थी। फिर गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और पाठके बादमें हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन होता था.इन सबमें करीब अठारह या बीस मिनिट लगते थे।इतनेमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज पधार जाते थे और सत्संग (प्रवचन) सुनाते थे जो प्रायः छःह(6) बजेसे 13 या17 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-परोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक, सारगर्भित और अत्यन्त कल्याणकारी था। वो सब हम आज भी और उनकी ही वाणीमें सुन सकते हैं और साथ-साथ कर भी सकते हैं।

इस
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज-इकहत्तर दिनोंका  सत्संग-प्रवचन सेट)

में वो सहायक-सामग्री है,इसलिये यह प्रयास किया गया है।

सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें जैसे सत्संग होता था,वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें.इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्रा न जोङें।

नित्य-स्तुति प्रार्थना,गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ और हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन भी उनकी ही आवाजके साथ-साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।

प्रातः पाँच बजे श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकार्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति,प्रार्थना और दस श्लोक गीताजीके पाठ कर लेनेके बाद यह -हरिः शरणम् (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें ही) सुनें और साथ-साथ बोलें,इसके बाद सत्संग जरूर सुनें(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग सुनें) l

हरिःशरणम् (संकीर्तन) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- https://db.tt/0b9ae0xg

कई जने पाँच बजे सिर्फ प्रार्थना तो कर लेते हैं,परन्तु 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'का सत्संग नहीं सुनते;परन्तु जरूरी सत्संग सुनना ही है।

यह बात समझनी चाहिये कि प्रार्थना सत्संगके लिये ही होती थी।लोग जब आकर बैठ जाते तो पाँच बजते ही तुरन्त प्रार्थना शुरु हो जाती थी और उसके साथ ही दरवाजा बन्द हो जाता था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह जाते थे)।

और प्रार्थना,गीता-पाठ आदि करते, इतनेमें उनका मन शान्त हो जाता,उनके मनकी वृत्तियाँ शान्त हो जाती थी।उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था।

(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्संग सुननेसे वो भीतर(अन्तरात्मामें) बैठ जाता है)।

सत्संगके बाद भी  भजन-कीर्तन आदि कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं होता था,न इधर-उधरकी या कोई दूसरी बातें ही होती थी, जिससे कि सत्संगमें सुनी हुई बातें उनके नीचे दब जाय।

सत्संगके समय कोई थौड़ी-सी भी आवाज नहीं करता था।अगर किसी कारणसे कोई आवाज हो जाती तो बड़ी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।

पहले नित्य-स्तुति एक लम्बे कागजके पन्नेमें छपी हुई होती थी।प्रार्थनाके बादमें वो पन्ना लोग गोळ-गोळ करके समेट लेते थे।समेटते समय सत्संगमें उस पन्नेकी आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाजसे भी सुननेमें विक्षेप होता था।तब वो प्रार्थना पुस्तकमें छपवायी गई जिससे कि आवाज न हो और सत्संग सुननेमें विक्षेप न हो और एकाग्रतासे सत्संग सुनी जाय,सुननेका तार न टूटे,सत्संगका प्रवाह अबाध-गतिसे श्रोताके हृदयमें आ जाय और उसीमें भरा रहे।

सत्संग सुनते समय वृत्ति इधर-उधर चली जाती है तो सत्संग पूरा हृदयमें आता नहीं है।

सुननेसे पहले मनकी वृत्तियोंको शान्त कर लेनेसे बड़ा लाभ होता है।शान्तचित्तसे सत्संग सुननेसे समझमें बहुत बढिया आता है और लगता भी बहुत बढिया है।

सत्संग शान्तचित्तसे सुना जाय-इसके लिये पहले प्रार्थना आदि बड़ी सहायक होती थी।

इस प्रकार प्रार्थना आदि होते थे सत्संगके लिये।

इसलिये प्रार्थना आदिके बादमें सत्संग जरूर सुनना चाहिये।

सत्संग तो प्रार्थना आदिका फल है-

सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।
(रामचरित.बा.३)।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के समयमें जिस प्रकार सत्संग होता था उसी प्रकार हम आज भी कर सकते हैं।

इसके लिये जो एक प्रयास किया गया है,वो प्रयास है प्रार्थना,गीतापाठ सहित इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचनोंका सेट।

इकहत्तर दिनोंका इसलिये बनाया गया है कि इतने दिनोंमें पूरी गीताजीके पाठकी आवृत्ति हो जाती है,गीताजीका पूरा पाठ हो जाता है।

प्रतिदिन प्रार्थनाके बाद गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और वो करीब सत्तर इककहत्तर दिनोंमें पूरा हो जाता था।

(गीताजीके ७००-सातसौ श्लोकोंका दस-दसके हिसाबसे सत्तर दिन और एक दिन महात्म्य-आरती या अंगन्यास-करन्यास आदि।इस प्रकार इकहत्तर दिनोंमें प्रार्थना,प्रवचनों सहित गीताजीके पूरे पाठका समूह है)।

इसमें एक यह विलक्षणता है कि प्रार्थना,गीतापाठ,हरि:शरणम्(कीर्तन),प्रवचन-ये सब महाराजजीकी ही आवाजमें है।

यन्त्रके द्वारा इसको एक बार शुरु करदो-बाकी काम अपने आप हो जायेगा अर्थात् आप पाँच बजे प्रार्थना चालू करदो तो आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा और  उसके बाद हरि:शरणम् वाला कीर्तन आकर अपने-आप सत्संग-प्रवचन आ जयेगा।

इस प्रकार नित्य नये-नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे।इकहत्तर दिन पूरे होनेपर इसी प्रकार वापस शुरु कर सकते हैं और इस प्रकार ऊमर भर सत्संग किया जा सकता है।

इनके अलावा महाराजजीके नये प्रवचन सुनने हों तो प्रार्थना आदिके बाद पुराने,सुने हुए प्रवचनोंकी जगह नये प्रवचन लगाकर सुने जा सकते हैं।

उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ है।आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-

@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@

(-इकहत्तर दिनोंके  सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-)
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0

------------------------------------------------------------------------------------------------

पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

2-
☆इकहत्तर दिनोंका "सत्संग-समूह"☆

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका सत्संग)।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज प्रतिदिन प्रातः
पाँच बजेके बाद सत्संग करवाते थे।

पाँच बजते ही गीताजीके चुने हुए कुछ श्लोकों द्वारा नित्य-स्तुति,प्रार्थना शुरू हो जाती थी,फिर गीताजीके(प्रतिदिन क्रमशः) दस-दस श्लोकोंका पाठ और हरि:शरणम् हरि:शरणम् ... आदिका संकीर्तन होता था।
ये तीनों करीब सतरह मिनटोंमें हो जाते थे।

इसके बाद(0518) श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज सत्संग सुनाते थे,जो बङा विलक्षण और अत्यन्त प्रभावशाली था।
उससे बङा भारी लाभ होता था।

प्रतिदिन गीताजीके करीब दस-दस श्लोकोंका पाठ करते-करते लगभग सत्तर-इकहत्तर दिनोंमें पूरी गीताजीका पाठ हो जाता था।

इस प्रकार इकहत्तर दिनोंमें नित्य-स्तुति और गीताजी सहित सत्संग-प्रवचनोंका एक सत्संग-समुदाय हो जाता था।
जिस प्रकार श्रीस्वामीजी महाराजके समय वो सत्संग होता था,वैसा सत्संग हम आज भी कर सकते हैं-

-इस बातको ध्यानमें रखते हुए एक इकहत्तर दिनोंके सत्संगका सेट(प्रवचन-समूह) तैयार किया गया है जिसमें ये चारों है(1-नित्य-स्तुति,2-गीताजीके दस-दस श्लोकोंका पाठ,3-हरि:शरणम्... संकीर्तन तथा 4-सत्संग-प्रवचन-ये चारों है)।

चारों एक नम्बर पर ही जोङे गये हैं;इसलिये एक बार चालू कर देनेपर चारों अपने-आप सुनायी दे-देंगे,बार-बार चालू नहीं करने पङेंगे।

इसमें विशेषता यह है कि ये चारों
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की  ही आवाज (स्वर)में है।

महापुरुषोंकी आवाजमें अत्यन्त विलक्षणता होती है,बङा प्रभाव होता है,उससे बङा भारी लाभ होता है। इसलिये कृपया इसके द्वारा वो लाभ स्वयं लें और दूसरोंको भी लाभ लेनेके लिये प्रेरित करें।।

कई अनजान लोग साधक-संजीवनी और गीताजीको अलग-अलग मान लेते हैं,उनको समझानेके लिये कि गीताजी साधक-संजीवनीसे अलग नहीं है,दोनों एक ही हैं,दो नहीं है-इस दृष्टिसे इसमें साधक-संजीवनीका नाम भी जोङा गया है, इससे साधक-संजीवनीका प्रचार भी होगा।

इसमें सुविधा के लिए प्रत्येक फाइल पर गीताजीके अध्याय और श्लोकोंकी संख्या लिखी गई है तथा 71 दिनोंकी संख्या भी लिखी गई है और बोली भी गई है।

यह (इकहत्तर दिनोंका "सत्संग-समूह") मोबाइलमें आसानीसे देखा और सुना जा सकता है तथा दूसरे यन्त्रों द्वारा भी सुना जा सकता है और मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव,सीडी प्लेयर,स्पीकर या टी.वी.के द्वारा भी सुना जा सकता है।

इस प्रकार हम घर बैठे या चलते-फिरते भी महापुरुषोंकी सत्संगका लाभ लै सकते हैं।

वो सत्संग नीचे दिये गये लिंक,पते द्वारा कोई भी सुन सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं -
नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गूगल ड्राइव)

http://dungrdasram.blogspot.com/