रविवार, 17 अप्रैल 2016

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।

                          ॥ श्री हरि: ॥ 

 

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके वर्तमान समयमें प्रतिदिन सबेरे पाँच बजते ही नित्य-स्तुति,प्रार्थना होती थी। फिर गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और पाठके बादमें हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन होता था.इन सबमें करीब अठारह या बीस मिनिट लगते थे।इतनेमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज पधार जाते थे और सत्संग (प्रवचन) सुनाते थे जो प्रायः छःह(6) बजेसे 13 या17 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-परोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक, सारगर्भित और अत्यन्त कल्याणकारी था। वो सब हम आज भी और उनकी ही वाणीमें सुन सकते हैं और साथ-साथ कर भी सकते हैं।

इस
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज-इकहत्तर दिनोंका  सत्संग-प्रवचन सेट)

में वो सहायक-सामग्री है,इसलिये यह प्रयास किया गया है।

सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें जैसे सत्संग होता था,वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें.इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्रा न जोङें।

नित्य-स्तुति प्रार्थना,गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ और हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन भी उनकी ही आवाजके साथ-साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।

प्रातः पाँच बजे श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकार्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति,प्रार्थना और दस श्लोक गीताजीके पाठ कर लेनेके बाद यह -हरिः शरणम् (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें ही) सुनें और साथ-साथ बोलें,इसके बाद सत्संग जरूर सुनें(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग सुनें) l

हरिःशरणम् (संकीर्तन) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- https://db.tt/0b9ae0xg

कई जने पाँच बजे सिर्फ प्रार्थना तो कर लेते हैं,परन्तु 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'का सत्संग नहीं सुनते;परन्तु जरूरी सत्संग सुनना ही है।

यह बात समझनी चाहिये कि प्रार्थना सत्संगके लिये ही होती थी।लोग जब आकर बैठ जाते तो पाँच बजते ही तुरन्त प्रार्थना शुरु हो जाती थी और उसके साथ ही दरवाजा बन्द हो जाता था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह जाते थे)।

और प्रार्थना,गीता-पाठ आदि करते, इतनेमें उनका मन शान्त हो जाता,उनके मनकी वृत्तियाँ शान्त हो जाती थी।उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था।

(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्संग सुननेसे वो भीतर(अन्तरात्मामें) बैठ जाता है)।

सत्संगके बाद भी  भजन-कीर्तन आदि कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं होता था,न इधर-उधरकी या कोई दूसरी बातें ही होती थी, जिससे कि सत्संगमें सुनी हुई बातें उनके नीचे दब जाय।

सत्संगके समय कोई थौड़ी-सी भी आवाज नहीं करता था।अगर किसी कारणसे कोई आवाज हो जाती तो बड़ी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।

पहले नित्य-स्तुति एक लम्बे कागजके पन्नेमें छपी हुई होती थी।प्रार्थनाके बादमें वो पन्ना लोग गोळ-गोळ करके समेट लेते थे।समेटते समय सत्संगमें उस पन्नेकी आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाजसे भी सुननेमें विक्षेप होता था।तब वो प्रार्थना पुस्तकमें छपवायी गई जिससे कि आवाज न हो और सत्संग सुननेमें विक्षेप न हो और एकाग्रतासे सत्संग सुनी जाय,सुननेका तार न टूटे,सत्संगका प्रवाह अबाध-गतिसे श्रोताके हृदयमें आ जाय और उसीमें भरा रहे।

सत्संग सुनते समय वृत्ति इधर-उधर चली जाती है तो सत्संग पूरा हृदयमें आता नहीं है।

सुननेसे पहले मनकी वृत्तियोंको शान्त कर लेनेसे बड़ा लाभ होता है।शान्तचित्तसे सत्संग सुननेसे समझमें बहुत बढिया आता है और लगता भी बहुत बढिया है।

सत्संग शान्तचित्तसे सुना जाय-इसके लिये पहले प्रार्थना आदि बड़ी सहायक होती थी।

इस प्रकार प्रार्थना आदि होते थे सत्संगके लिये।

इसलिये प्रार्थना आदिके बादमें सत्संग जरूर सुनना चाहिये।

सत्संग तो प्रार्थना आदिका फल है-

सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।
(रामचरित.बा.३)।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के समयमें जिस प्रकार सत्संग होता था उसी प्रकार हम आज भी कर सकते हैं।

इसके लिये जो एक प्रयास किया गया है,वो प्रयास है प्रार्थना,गीतापाठ सहित इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचनोंका सेट।

इकहत्तर दिनोंका इसलिये बनाया गया है कि इतने दिनोंमें पूरी गीताजीके पाठकी आवृत्ति हो जाती है,गीताजीका पूरा पाठ हो जाता है।

प्रतिदिन प्रार्थनाके बाद गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और वो करीब सत्तर इककहत्तर दिनोंमें पूरा हो जाता था।

(गीताजीके ७००-सातसौ श्लोकोंका दस-दसके हिसाबसे सत्तर दिन और एक दिन महात्म्य-आरती या अंगन्यास-करन्यास आदि।इस प्रकार इकहत्तर दिनोंमें प्रार्थना,प्रवचनों सहित गीताजीके पूरे पाठका समूह है)।

इसमें एक यह विलक्षणता है कि प्रार्थना,गीतापाठ,हरि:शरणम्(कीर्तन),प्रवचन-ये सब महाराजजीकी ही आवाजमें है।

यन्त्रके द्वारा इसको एक बार शुरु करदो-बाकी काम अपने आप हो जायेगा अर्थात् आप पाँच बजे प्रार्थना चालू करदो तो आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा और  उसके बाद हरि:शरणम् वाला कीर्तन आकर अपने-आप सत्संग-प्रवचन आ जयेगा।

इस प्रकार नित्य नये-नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे।इकहत्तर दिन पूरे होनेपर इसी प्रकार वापस शुरु कर सकते हैं और इस प्रकार ऊमर भर सत्संग किया जा सकता है।

इनके अलावा महाराजजीके नये प्रवचन सुनने हों तो प्रार्थना आदिके बाद पुराने,सुने हुए प्रवचनोंकी जगह नये प्रवचन लगाकर सुने जा सकते हैं।

उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ है।आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-

@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@

(-इकहत्तर दिनोंके  सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-)
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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