||श्री हरिः||
÷सूक्ति-प्रकाश÷
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) सूक्ति-संख्या 81- 90 तक।
सूक्ति-81.
अकलसे खुदा पहचानो।
शब्दार्थ-
अकल(बुध्दि).खुदा(भगवान). (भगवद्आज्ञाका पता कैसे लगे? कि अकलसे खुदा पहचानो.भगवान सम्पूर्ण प्राणियोंके सुहृद हैं- सुहृदं सर्व भूतानाम्.(गीता 5/29) और महात्मा,भगवानके भक्त भी सम्पूर्ण प्राणियोंके सुहृद हैं-सुहृद:सर्व देहिनाम्। इसलिये जिसमें दूसरोंका हित हो,वो भगवानकी आज्ञा है-ऐसा समझो).
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.1991-07-31,8.30 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।
सूक्ति-82.
पारकी पूणीं कातणौ सीखणौं है.
शब्दार्थ- पारकी(पराई,दूसरोंकी).पूणी(ऊन कातनेसे पहले और चूँकेके बाद बनायी हुई ऊनकी पूळी). जैसे कोई कातनेके लिये मिली हुई दूसरोंकी ऊनसे कातनेका प्रयास करता है तो कातनेकी अटकल(विद्या) मुफ्तमें सीख जाता है,ऐसे ही मिली हुई शरीर आदि वस्तुसे (परहितके द्वारा) कल्याण करना सीखना है-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.1991-07-31,8.30 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।
सूक्ति-83.
आज कि काल परार कि पौर। आपाँ बाताँ कराँ औराँरी आपाँरी करसी कोइ और ।।
शब्दार्थ-
पौर(गई साल).परार(गई सालसे पहले बीती हुई साल).
सूक्ति-84.
लेताँ तो बदतो लेवै देताँ कसर पावरी। पीपा प्रत्यक देखिये बाजाराँमें बावरी।। शब्दार्थ- बदतो(बढकर,ज्यादा).प्रत्यक(प्रत्यक्ष,सामने).बावरी(जीव-हत्यारा, शिकारी).
सूक्ति-85.
कह,खाटू जास्याँ। कह,खाटू बड़ी जास्यो क (या) छोटी? कह,जास्याँ तो बड़ी ही जास्याँ,छोटी क्यूँ जास्याँ।।
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.1993-10-01.20.00 बजेके सत्संगसे) ।
शब्दार्थ-
खाटू(खाटू गाँव,'छोटी खाटू' और 'बड़ी खाटू' नामके दो गाँव). [जब एक साथ दो काम उपस्थित होते हैं तब ज्यादा लाभ वाला काम चुनना समझदारी कहलाता है]।
सूक्ति-86.
मड़ो भूत बाकळाँसूइँ राजी.
शब्दार्थ-
मड़ो(दुर्बल,भूख आदिसे दुखी).बाकळा(मोठोंको उबालकर बनायी हुई गूघरी). भूत(मरनेपर मिलनेवाली भूत-प्रेतकी योनिवाला प्राणी).
सूक्ति-87.
साध हजारी कापड़ो रतियन मैल सुहाय। साकट काळी कामळी भावै तहाँ बिछाय।।
शब्दार्थ-
साध(सज्जन पुरुष,सदाचारी,भला कहलानेवाला).साकट(संसारी,विषयी,विपरीतगामी,बदनाम).
सूक्ति-88.
धोयाँ उतरे है काँई? ( भगवानके तो हैं हम पहले से ही) धोयाँ उतरे है काँई?(नहीं उतरते,नहीं मिटते).
शब्दार्थ-
धोयाँ(धोनेसे).
सूक्ति-89.
रोजीनारी राड़ आपसरी आछी नहीं। बणै जहाँ तक बाड़ चटपट कीजै चकरिया।। श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दिये गये दि. (1997-07-31,20.00 बजेके सत्संग-प्रवचनसे)
शब्दार्थ-
चकरिया(चकरिया-कवि).राड़(लड़ाई,कहासुनी).बाड़(सुरक्षा,जिससे लड़ाई न हो-ऐसा उपाय,कहावत-राड़ आडी बाड़ भली).चटपट(जल्दी,तुरत).
सूक्ति-90.
अकलमें कुत्ता मूतग्या.
शब्दार्थ-
अकल(समझ,बुध्दि). (जब किसीकी बुध्दी भ्रष्ट हो जाती है या कोई नीच-कर्म करता है अथवा नीच-कर्मका समर्थन करता है,उसीको ठीक समझता और कहता है तब कहा जाता है कि इसकी बुध्दिमें कुत्ते पेशाब करके चले गये (अकलमें कुत्ता मूतग्या). ।।
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