एक सज्जन पूछते हैं कि स्मार्त और वैष्णव किसको कहते हैं?
उत्तरमें निवेदन है कि-
स्मार्त एकादशी,स्मार्त जन्माष्टमी आदि वो होती है जो स्मार्त अर्थात् स्मृति आदि धर्म ग्रंथोंको माननेवालोंके अनुसार हो और वैष्णव एकादशी,वैष्णव जन्माष्टमी आदि वो होती है जो वैष्णव अर्थात् विष्णु भगवान और उनके भक्तोंको,संतोंको माननेवालोंके अनुसार हो।
( यह स्मार्त और वैष्णववाली बात श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई है)।
सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज वैष्णव एकादशी,वैष्णव जन्माष्टमी आदि मानते और करते थे।
एकादशी आदि व्रतोंके माननेमें दो धर्म है-एक वैदिक धर्म और एक वैष्णव धर्म।
(एक एकादशी स्मार्तोंकी होती है और एक एकादशी वैष्णवोंकी होती है।स्मार्त वे होते हैं) जो वेद और स्मृतियोंको खास मानते हैं,वे भगवानको खास नहीं मानते।वेदोंमें,स्मृतियोंमें भगवानका नाम आता है इसलिये वे भगवाको मानते हैं (परन्तु खास वेदोंको मानते हैं) और वैष्णव वे होते हैं जो भगवानको खास मानते हैं,वे वेदोंको,पुराणोंको इतना खास नहीं मानते जितना भगवानको खास मानते हैं।
( वैष्णव और स्मार्तका रहस्य समझनेके लिये परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका यह प्रवचन 19990809/1630 सुनें)।
(पता:-
https://docs.google.com/file/d/0B3xCgsI4fuUPTENQejk2dFE2RWs/edit?usp=docslist_api)।
वेदमत,पुराणमत आदिके समान एक संत मत भी होता है,जिसको वेदोंसे भी बढकर माना गया है।
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका ।
भए नाम जपि जीव बिसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू ।
सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥
ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें ।
द्वापर परितोषत प्रभु पूजें ॥
कलि केवल मल मूल मलीना ।
पाप पयोनिधि जन जन मीना ॥
नाम कामतरु काल कराला ।
सुमिरत समन सकल जग जाला ॥
राम नाम कलि अभिमत दाता ।
हित परलोक लोक पितु माता ॥
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू ।
राम नाम अवलंबन एकू ॥
कालनेमि कलि कपट निधानू ।
नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥
दोहा
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल ।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥२७॥
(रामचरितमा.१/२७)।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
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