नये संस्करण का नम्र निवेदन-
एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज ने बताया कि वे किस प्रकार (पहली बार) परमश्रद्धेय सेठजी श्री जयदयाल जी गोयन्दका से मिले।
दोनों महापुरुषों के मिलने की बात सुनकर हमें बहुत प्रिय लगी। ऐसी बातें श्री स्वामीजी महाराज ने अपने प्रवचनों में कभी-कभार ही कही है। इस बारे में लोग भी कम ही जानते हैं।
दोनों महापुरुषों के मिलन का यह प्रसंग जब मैंने लोगों को सुनाया तो उनको भी बहुत अच्छा लगा।
ऐसी बातें सुनाते हुए हमें सन्तोष नहीं हो रहा था कि कैसे ये बातें अधिक लोगों को जनावें। ऐसी बढ़िया बातें दूसरे लोग भी जानें, उनको भी संत-मिलन का आनन्द प्राप्त हो। लोग ऐसे महापुरुषों की वास्तविक बातें समझें, उनके ग्रंथ पढ़ें आदि कई विचार मन में आते रहे।
श्री स्वामीजी महाराज के बारे में जानने की लोगों के मन में उत्कण्ठा रहती है,लेकिन सही बातें मिलती नहीं।
आजकल तो लोग कल्पित और झूठी बातें कहने लग गये और सुननेवाले उन बातों को (बिना विचार किये) दूसरों को भी आगे सुनाने लग गये।
लोगों का ऐसा ढंग देखकर मन में आया कि ऐसे तो यह गलत-प्रचार हो जयेगा। सही बातें जानना मुश्किल हो जायेगा। श्री स्वामीजी महाराज की महानता को समझना कठिन हो जायेगा। लोग तो अपनी सांसारिक बुद्धि के अनुसार महापुरुषों को भी वैसे ही समझ रहे हैं। सच्चाई की खोज ही नहीं करते। इससे तो लोगों के मन में महापुरुषों के प्रति महत्त्व ही नहीं रह जायेगा।श्रद्धा बनेगी ही नहीं। लोग असली लाभ से वञ्चित रह जायेंगे आदि आदि।
फिर ऐसा प्रयास हुआ कि श्री स्वामीजी महाराज के श्रीमुख से सुनी हुई कुछ सही-सही बातें लिखदी गयीं और (इण्टरनेट पर, अपने ब्लॉग, सत्संग- सन्तवाणी में) प्रकाशित कर दी गयीं।
ऐसी बातों को पढ़कर कुछ सज्जनों के मन में आयी कि इन बातों की एक पुस्तक छपवायी जाय। उन्होंने प्रयास किया और भगवत्कृपा से इन बातों की एक पुस्तक ("महापुरुषोंके सत्संगकी बातें") छप गयी। साथ में कुछ उपयोगी लेख भी जोङे गये।
पुस्तक को लोगों ने बहुत पसन्द किया और उसको फिर से छपवाने की आवश्यकता हो गयी।
अबकी बार इसमें कुछ उपयोगी बातें और जोङदी गई हैं। आशा है कि लोग इनसे अधिक लाभ उठायेंगे।
निवेदक- डुँगरदास राम
(दि.३ अगस्त २०२१)।
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