।। श्रीहरिः ।।
" महापुरुषोंके सत्संगकी बातें " नामक पुस्तक क्यों लिखी गई? इसका जवाब और कारण -
प्रश्न-
क्या श्री स्वामीजी महाराज की जीवनी लिखनी उचित है ?
उत्तर -
नहीं, उचित नहीं है;
प्रश्न-
तो आपने जो "महापुरुषोंके सत्संगकी बातें " नामक पुस्तक लिखी है क्या वो उनकी जीवनी नहीं है ?
उत्तर-
नहीं, वो जीवनी नहीं है, वो तो महापुरुषों के विषय में गलत बातें रोकने का एक प्रयास है, महापुरुषोंके विषय में सही बातें समझने के लिये, आवश्यकबातों का एक संग्रह है ,जो सत्संगियों के लिये बङे काम का है। क्या हमारे को इतना भी पता नहीं कि श्रीस्वामीजी महाराज ने अपनी जीवनी लिखने का निषेध किया है ? फिर हम निषेध वाला काम क्यों करते ? इससे कौन सा लाभ होता ?
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के द्वारा कही गयी जो बातें हमने इस पुस्तक में लिखी हैं , उन बातों को लिखने के लिये उन्होंने मना नहीं किया था , ये बातें तो लोगों के सामने उन्होंने स्वयं भी कही थी। लोगों की सुविधा के लिये एक लेख में ये बातें एक जगह और क्रमवार लिख देने से भले ही ये जीवनी की तरह दीख जाय , पर वास्तव में ये जीवनी के उद्देश्य से नहीं लिखी है।
ये बातें लोगों की गलतफहमियाँ मिटाने के लिये लिखी गई हैं। गलत जानकारी को अथवा अधूरी जानकारी को सही करने के लिये लिखी गई हैं। इसके शिवाय समझाने का दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं था। महापुरुषों के जीवन से सम्बन्धित किसी घटना को कोई गलत ढंग से पेश करे, तो उसको सही ढंग से बताने के लिये उस सच्ची घटना का वर्णन तो करना पङेगा न ! इसलिये झूठी बातों को रोकने लिये सच्ची बातों का वर्णन किया गया।
अगर कहो कि यह तो जीवनी ही हो गयी , ये काम ठीक नहीं है। तो सुनो ! आपका यह आरोप लगाना ठीक नहीं है ; क्योंकि इससे लोगों को जो महापुरुषोंकी सच्ची बातें मिलनेवाली हैं उनमें बाधा लगेगी।
जैसे गीता का प्रचार करनेवाला भगवान् का प्यारा होता है, उससे भगवान् खुश होते हैं और गीता- प्रचार में, भगवद् भक्ति में बाधा लगानेवाले पर भगवान् खुश नहीं होते । ऐसे आप सत्पुरुषों की बातों में बाधा लगाओगे तो क्या भगवान् आप पर खुश होंगे? भगवान् ने आपको विवेक दिया है, उसका सदुपयोग करोगे तो फ़ायदे में रहोगे।
इसके लिखने का मुुख्य कारण यह था कि स्वामीजी महाराज शुुुरु मेें श्रीसेठजी से किस प्रकार मिले , ऐसी महापुरुषों की बढ़िया बातें दूसरे लोगों को भी मिले।
ऐसी बातें सुनने का अवसर सत्संग करने वालों को भी कभी-कभी ही मिलता था। इसलिये इन बातों का ज्ञान हर किसी को नहीं है। भगवान् की कृपा से ही ये कुछ बातें मिली और लिखी गई है। मेरा विश्वास है कि श्रीस्वामीजी महाराज के सत्संग प्रेमियों को ये बातें प्रिय लगेंगी।
स्वामीजी महाराज श्रीसेठजी के जीवन की ऐसी अनेक घटनाओं का वर्णन करते थे, उनकी बातें बताते थे। परमश्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका ने अपनी जीवनी लिखने का निषेध किया है, पर ऐसी बातों के लिये निषेध नहीं किया है, अगर निषेध कर देते तो श्रीस्वामीजी महाराज उनकी बातें कभी नहीं बताते।
स्वामीजी महाराज ने बङे चाव से श्रीसेठजी की बातें बतायी हैं, जो इस पुस्तक ( " महापुरुषोंके सत्संगकी बातें " ) में लिखी है। उनकी ओडियो रिकोर्डिंग की तारीख भी इस पुस्तक में लिखी है , वो रिकोर्डिंग आज कोई भी सुन सकता है।
जैसे श्रीसेठजी की ऐसी बातें बताना मना नहीं है , ऐसे श्रीस्वामीजी महाराज की बातें बताना भी मना नहीं है।
श्रीस्वामीजी महाराज की कई पुस्तकों में उनकी बातों का वर्णन है। वे पुस्तकें उनकी जीवनी नहीं कही जा सकती, ऐसे ही यह पुस्तक भी उनकी जीवनी नहीं कही जा सकती।
इस प्रकार इस पुस्तक में श्रीस्वामीजी महाराज के विषय में बातें लिखने का जो काम किया गया है , वो ठीक है। इसके लिये मनाही नहीं थी ।
अगर हम ऐसे, सत्य बातों को बतायेंगे नहीं तो सत्य बातें छिप जायेंगी और असत्य बातों का प्रचार होगा, लोग उन असत्य बातों को ही कहते-सुनते रहेंगे, जिससे लोगों के कल्याण में बङी भारी हानि होगी। महापुरुषों का महान् प्रयास छिपा रह जायेगा।
आजकल कई लोग श्रीस्वामीजी महाराज के विषय में मनगढ़न्त , कल्पित और झूठी बातें करने लग गये हैं। उन बातों को सुनकर लोग बिना सोचे समझे आगे दूसरों को भी कहने लग गये। इस प्रकार भ्रम की बातें फैलने लगी है।
कोई कहते हैं कि वो अमुक के अवतार हैं, कोई कहते हैं कि अमुक महात्मा ही ये श्रीस्वामीजी महाराज हैं, कोई कहते हैं कि अमुक महात्मा के आशीर्वाद से इनका जन्म हुआ है, आदि आदि लोग कितनी भ्रान्तियाँ फेला रहे हैैं, शायद आपको पता नहीं है। मेरे सामने आयी हैैं ऐसी बातें।
श्रीस्वामीजी महाराज की कई पुस्तकों में उनकी बातों का वर्णन है। वे पुस्तकें उनकी जीवनी नहीं कही जा सकती, ऐसे ही यह पुस्तक भी उनकी जीवनी नहीं कही जा सकती।
इस प्रकार इस पुस्तक में श्रीस्वामीजी महाराज के विषय में बातें लिखने का जो काम किया गया है , वो ठीक है। इसके लिये मनाही नहीं थी ।
अगर हम ऐसे, सत्य बातों को बतायेंगे नहीं तो सत्य बातें छिप जायेंगी और असत्य बातों का प्रचार होगा, लोग उन असत्य बातों को ही कहते-सुनते रहेंगे, जिससे लोगों के कल्याण में बङी भारी हानि होगी। महापुरुषों का महान् प्रयास छिपा रह जायेगा।
आजकल कई लोग श्रीस्वामीजी महाराज के विषय में मनगढ़न्त , कल्पित और झूठी बातें करने लग गये हैं। उन बातों को सुनकर लोग बिना सोचे समझे आगे दूसरों को भी कहने लग गये। इस प्रकार भ्रम की बातें फैलने लगी है।
कोई कहते हैं कि वो अमुक के अवतार हैं, कोई कहते हैं कि अमुक महात्मा ही ये श्रीस्वामीजी महाराज हैं, कोई कहते हैं कि अमुक महात्मा के आशीर्वाद से इनका जन्म हुआ है, आदि आदि लोग कितनी भ्रान्तियाँ फेला रहे हैैं, शायद आपको पता नहीं है। मेरे सामने आयी हैैं ऐसी बातें।
जन साधारण के मन में कई ऐसे प्रश्न स्वाभाविक ही आते रहते हैं और वो किसी से पूछते भी हैं। इन बातों के जवाब भी लोग अपने हिसाब से देते रहते हैं ; परन्तु सही जवाब मिलना प्रायः कठिन रहता है। लोग मनगढ़न्त जवाब दे देते हैं और सुननेवाले उसको ही सही मान लेते हैं। सच्ची बात जानने के लिये कोशिश करनेवाले भी कम ही लोग होते हैं। कई लोगों को तो सही बातों का पता ही नहीं होता। कई लोग तो ऐसे होते हैं कि वो असत्य से भी परहेज़ नहीं करते , अपने मन से गढ़कर झूठी बात कह देते हैं और वो बात आगे चल पङती है।
इनके शिवाय और भी झूठी झूठी बातें लोग करने लग गये। ऐसी बातें यहाँ लिखना हम उचित नहीं समझते। कई झूठी बातें तो ऐसी हैं कि उनका जिक्र करना भी यहाँ उचित नहीं।
इनके शिवाय और भी झूठी झूठी बातें लोग करने लग गये। ऐसी बातें यहाँ लिखना हम उचित नहीं समझते। कई झूठी बातें तो ऐसी हैं कि उनका जिक्र करना भी यहाँ उचित नहीं।
इस प्रकार श्रीस्वामीजी महाराज के बारें में झूठी बातों को रोकना हमारा और आप सबका कर्तव्य है। तरह तरह की ऐसी बातें फैलने के कारण सही बातों का निर्णय करना बङा कठिन हो जाता है। अब मनुष्य क्या करे ? किनकी बातों को सही मानें?
कोई कहे कि अमुक महात्मा की बात सही मानो ; क्योंकि वो बङे जानकार हैं, कोई कहे कि ये तो श्रीस्वामीजी महाराज के पुराने सत्संगी हैं, कोई कहे कि ये तो उनके साथ में रहे हुए हैं, (इनकी बात सही है) आदि आदि।
अब ऐसी स्थिति में किनकी बात सही मानी जाय ? निर्णय करना कठिन हो जाता है।
अब ऐसी स्थिति में क्या करें लोग? किनकी बात को सही मानें?
अब ऐसी स्थिति में क्या करें लोग? किनकी बात को सही मानें?
इसका उत्तर यह है कि स्वयं श्रीस्वामीजी महाराज की बात को सही मानें; क्योंकि अपनी बात को अपने से अधिक और कौन जान सकता है। इसलिये उनके ही श्रीमुख से सुनी हुई, उनकी कुछ बातें इस पुस्तक में लिखी है जिससे बातों की सत्यता में सन्देह न रहे।
श्रीस्वामीजी महाराज से सम्बन्धित किसी विषय को लेकर कोई कुछ कहे , कोई कुछ कहे, इस प्रकार भ्रम की स्थिति हो जाय तो इस पुस्तक में लिखी बातें पढकर निर्णय करना चाहिये कि सही बात यह है। अगर पहले से ही ये बातें कोई पढकर समझ लेगा, तो तरह- तरह की बातें सुनकर उसके भ्रम पैदा ही नहीं होगा और वो दूसरों का भ्रम भी दूर कर देगा।
इस प्रकार भ्रम की, सन्देह की और गलत गलत बातें मिटाने के लिये तथा सही बातें बाताने के लिये ही यह पुस्तक लिखी गयी है। इसका नाम है- "महापुरुषोंके सत्संगकी बातें " ।
(इसमें श्री स्वामी जी महाराज के विषय में उनके द्वारा ही सुनी हुई कुछ सही बातें लिखी है। )
इसमें श्रीसेठजी और स्वामीजी महाराज के पहली बार मिलने का भी वर्णन है तथा और भी कई बातें हैं। इसको यहाँ से प्राप्त किया जा सकता है-
सत्संग-संतवाणी. श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
bit.ly/1satsang
मेरी बातों से किन्ही को कोई कष्ट पहुँचा हो तो मैं हाथ जोड़कर क्षमायाचना करता हूँ।
सत्संग-संतवाणी. श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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मेरी बातों से किन्ही को कोई कष्ट पहुँचा हो तो मैं हाथ जोड़कर क्षमायाचना करता हूँ।
विनीत - डुँगरदास राम