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बुधवार, 15 जुलाई 2015

( भक्तसे सब क्रियाएँ भगवान् करवाते हैं,भक्त कुछ नहीं करता-)

                        ।।श्रीहरि:।।
( भक्तसे सब क्रियाएँ भगवान् करवाते हैं,भक्त कुछ नहीं करता-)
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।
(दिनांक-19931014_0518 बजेका सत्संग)
{ श्रौता- (प्रश्न-) 
भक्तिमार्गमें साधन और सिध्दावस्थामें, भावमें भी भगवानकी सेवा इन्द्रियाँ, मन, बुध्दि आदिसे की जाती है।
(कर्म किये जाते हैं) तो फिर भक्तमें अकर्तापनवाली बात कैसे लागू होगी? अर्थात् भक्त कुछ नहीं करता है,अकर्ता है,यह बात कैसे समझी जाय?}
स्वामीजी-(उत्तर-)
नहीं, भक्तमें अकर्तापनकी बात नहीं है।
अकर्तापनकी बात वास्तवमें ज्ञानमार्गमें है।भक्तमें अकर्तापनकी बात नहीं है।
वहाँ कर्ता भगवाको मानता है भक्त।
ज्ञानमार्गमें अपनेको अकर्तापनका अनुभव करता है और भक्तिमार्गमें कर्ता भगवान् हैं,वो कर्ता नहीं है।
भगवान् करवा रहे हैं हमारेसे, भगवान् ही प्रेरणा दे रहे हैं,भगवान् शक्ति दे रहे हैं,भगवान् बुध्दि दे रहे हैं,भगवान् विचार दे रहे हैं,भगवान् ही अपनी कृपासे करवा रहे हैं।
तो वहाँ करवानेवाले भगवान कर्ता हैं,वहाँ स्वयँ कर्ता नहीं (है),
जैसे, कोई मोटरको चलावे, तो मोटर स्वयँ चलती थौड़े ही है,चलानेवाला(चालक) चलाता है।
ऐसे हमारेको भगवान् ही चला रहे हैं।
भक्तका(को) तो भगवान् पर निछरावल(न्यौछावर) होना है ना! भगवान् के अधीन होना है।
करै करावै रामजी
मैं कछु करता नाहिं।
जो मैं अपने(को) कर्ता मानूँ (तो)
बड़ी चूक मुझ माहिं।।
करेै करावै रामजी-
भगवानही करवाते हैं,मानो जो करे (जो हम करते हैं,वो हमें) भगवान् देते हैं अर्थात् हमारे द्वारा भगवान् ही करवाते हैं,हमारे द्वारा भगवान् ही करते हैं।
अपने शरीरको,अपनी इन्द्रियोंको,अपने मनको,अपनी बुद्दिको,अपने अहमको (इन सबको) भगवानके अर्पण कर देता है।
फिर भगवानकी कृपासे वो काम होता है।
तो कृपासे हो रहा है-ऐसा मानें।
तो हो रहा (है)-माननेसे करणनिरपेक्ष हो जायेगा।वो भी करणनिरपेक्ष हो जायेगा और वहाँ(जहाँ) कर्तापना ही नहीं है तो करणनिरपेक्ष, आप ही करणरहित है ही।यह बात है।
और कोई पूछनेवाले(के) कोई बात पैदा हुई हो तो भळे(और) पूछलो इमें(इसमें)………
- यह बात ठीकसे जाननेके लिये श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका 19931014_0518 बजेवाला सत्संग-प्रवचन सुनें- 
19931014_0518--भक्त अपनेको कर्ता नहीं मानता की विलक्षणता0सेठजी आदिके उदाहरण.mp3 -


इसमें और भी कई बातें बताई गई है। 
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/