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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

आत्महत्या का कारण और निवारण


                     ।।श्रीहरिः।।

आत्महत्या का कारण और निवारण

एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का बीकानेर धोरे पर सत्संग का प्रोग्राम था। उस समय एक सत्संगी सज्जन आये और उन्होंने पूछा कि आत्महत्या (खुदकुशी) करके मरने वाले के लिये क्या करना चाहिये? (उन सज्जन के निकट- सम्बन्धी ने आत्महत्या कर ली थी)।

तब श्रीस्वामीजी महाराज ने धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु- दोनों ग्रंथ मँगवाये कि इसके लिये शास्त्र क्या कहते हैं? 

उनमें लिखा था कि

आत्महत्या करने वाले के लिये कुछ न करे। अगर कोई करता है तो दोष लगता है, उसको प्रायश्चित्त करना चाहिये।

इसी प्रकार श्रीस्वामीजी महाराज के मन में एक बार करुणा सहित विचार आने लगे कि बेचारा मनुष्य आत्महत्या से कैसे बच सकता है ! जब उसकी बुद्धि ही खराब हो जाय तो वो क्या करे!, कैसे बचे? शरीर का संचालन तो बुद्धि ही करती है न! जब इञ्जन ही खराब हो जाय तब गाङी क्या करे? उस समय वो मरने को ही ठीक समझने लगता है, उसकी बुद्धि ही वैसी हो जाती है। कैसे बचे!

फिर श्रीस्वामीजी महाराज ने आत्महत्या से बचने का उपाय बताया कि मनुष्य अगर रोजना भगवान् का चरणामृत ले, तो बच सकता है। उसकी बुद्धि ठीक हो सकती है। चरणामृत के प्रभाव से मनुष्य आत्महत्या के समय, मरने के लिये आगे नहीं बढ़ेगा और बच जायेगा।



क्योंकि चरणामृत के मन्त्र में आया है कि यह अकालमृत्यु को हरनेवाला है, टालनेवाला है। जैसे-

अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।

विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।

अर्थात् अकालमृत्यु हरनेवाले और सब प्रकार के रोगों का विनाश करने वाले भगवान् के चरणों का जल पीकर मनुष्य पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता। 

अकालमृत्यु आत्महत्या को कहते हैं। क्योंकि आत्महत्या करने वाला मनुष्य अपनी उम्र के रहते- रहते, बिना मौत आये ही, बिना काल आये ही मरता है। इसलिये यह अकालमृत्यु है।



कोई छोटी अवस्था वाला मनुष्य एक्सिडेंट आदि दुर्घटना में मर जाता है या कोई उसको मार देता है तो वो अकालमृत्यु नहीं है। उसका तो काल आ गया था, उम्र पूरी हो गयी थी। तभी वो मरा है। बिना काल आये न तो कोई मर सकता है और न कोई किसी को मार सकता है। इसलिये यह आकस्मिकमृत्यु है, अकालमृत्यु नहीं। अकालमृत्यु तो वो होती है जो काल (मृत्यु का समय) तो आया ही नहीं और मर गया।

मौत आये बिना कोई दूसरा तो नहीं मार सकता; परन्तु मनुष्य अगर स्वयं मरना चाहे तो मर सकता है, आत्महत्या कर सकता है; बिना मौत आये ही, अकालमौत मर सकता है। मनुष्य को स्वतन्त्रता मिली हुई है। दूसरी योनियों में तो पहले किये हुए कर्म का फल ही भोगा जाता है, नया कर्म करने का अधिकार नहीं; परन्तु मनुष्य योनि में नया कर्म करने का अधिकार है, मनुष्य मौत आये बिना ही आत्महत्या का नया पापकर्म कर सकता है।

रोजाना भगवान् का चरणामृत लेने वाला आत्महत्या से बच सकता है।

गंगाजल भी भगवान् का चरणामृत है।

 आत्महत्या एक मनुष्य को मार देने के समान बङा भारी पाप है। भगवान् फिर उसको मनुष्यजन्म नहीं देते। नहीं देने में भगवान् का भाव यह है कि अभी जो मनुष्यजन्म हमने तुमको दिया , वो तो तुम्हारे पसन्द नहीं आया, तुमने नष्ट कर दिया। अब दुबारा मनुष्यजन्म क्यों दें!  

 फिर बाकी बची हुई उम्र भले ही भूत- प्रेत आदि बनकर भोगो, मनुष्यजन्म मिलना मुश्किल है। 

 पहले किये हुए पाप के कारण मनुष्य के सामने ऐसी दुःख देनेवाली परिस्थिति आती है कि वो मरने की सोचता है। उसको लगता है कि मैं मर जाऊँगा तो दुःख से छूट जाऊँगा; परन्तु ऐसा होता नहीं है और आत्महत्या करके और अधिक दुःख पाने की तैयारी लेता है।  


जिस पाप के कारण ऐसी दुखदायी परिस्थिति सामने आयी, उसका फल भुगतना तो बाकी ही रहा और आत्महत्या का नया पाप एक और कर लिया। तो इन सब का फल आगे जाकर जरूर भुगतना पड़ेगा। बिना भुगते कर्मों के फल का नाश नहीं होता, चाहे सौ करोड़ जन्म बीत जायँ, ऐसा शास्त्र कहते हैं। जैसे-


•••  पाप का फल (दण्ड) तो भोगना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में भोगना पङे या जन्मान्तर में।  

अवश्यमेव भोक्तव्यम् कृतं कर्म शुभाशुभम्। 

नाभुक्तं क्षीयते कर्म जन्म कोटिशतैरपि।। 


(- साधक- संजीवनी गीता १८|१२ की टिप्पणी से )।  

 इसलिये मनुष्य को चाहिये कि चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाय, आत्महत्या कभी भी न करे और दूसरों को भी बचावें। ये बातें दूसरों को भी बतावें। आपके प्रयास से न जाने किनकी जान बच जाय। 

जय श्रीराम।