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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

क्या गलेमें कैंसर था स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके? कह,नहीं।ऊमर भरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था उनके।

                      ।।श्रीहरि:।।

क्या गलेमें कैंसर था स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके?

कह,नहीं।ऊमर भरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था उनके।

आजकल कई लोगोंमें यह बात फैली हुई है कि श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके गलेमें कैंसर था।

उसके जवाबमें निश्चयपूर्वक निवेदन है कि उनके ऊमर भरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था।

यह बात खुद श्रीस्वामीजी महाराजके सामने आई थी कि लोग ऐसा कहते हैं कि स्वामीजी महाराजके गलेमें कैंसर है।तब श्रीस्वामीजी महाराजने हँसते हुए उत्तर दिया था कि एक जगह सत्संग का प्रोग्राम होनेवाला था और वो किसी कारणसे नहीं हो पाया।तब किसीने पूछा कि यहाँ स्वामीजी महाराज आये नहीं?उनका आनेका प्रोग्राम था न?

तब किसीने जवाब दिया कि वो तो कैंसल हो गया।तो सुननेवाला बोला कि अच्छा ! कैंसर हो गया क्या? कैंसर हो गया तब कैसे आते ?

(उसने कैंसल-निरस्त की जगह कैंसर सुन लिया था)।

इस प्रकार कई लोग बिना विचारे ही, बिना हुई बातको लै दौङते हैं, जो घटना घटी ही नहीं, ऐसी-ऐसी घटनाएँ कहते-सुनते रहते हैं और वो बातें आगे चलती रहती है।सही बातका पता लगानेवाले और कहने-सुनने वाले बहुत कम लोग होते हैं।

आज ही फेसबुक पर किसीने एक अखबार की फोटो प्रकाशित की है जिसमें गलेके कैंसरकी बात कही गई है।ऐसे बिना सोचे-समझे ही लोग आगे प्रचार भी कर देते हैं।

एक घटना तो मेरे सामनेकी ही है-

(श्रीस्वामीजी महाराज जब सभामें बोलते थे तो उन प्रवचनोंकी रिकोर्डिंग होती थी।उस समय रिकोर्डिंगमें कभी-कभी गलती हो जानेके कारण आवाज साफ रिकोर्ड नहीं हो पाती थी।वैसे तो साफ आवाजमें आपके बहुत-सारे प्रवचन है,पर कभी-कभी ऐसी रिकोर्डिंग भी हो जाती थी जो साफ-साफ सुनायी नहीं देती)।

एक बार मैं श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी रिकोर्ड-वाणी(प्रवचन) लोगोंको सुना रहा था।प्रवचनकी आवाज कुछ लोगोंको साफ सुनाई नहीं दी।इसलिये समाप्ति पर उन लोगोंमेंसे किसीने पूछा कि आवाज साफ नहीं थी,इसका क्या कारण है?

उस समय मेरे जवाब देनेसे पहले ही एक भाई उठकर खङा हो गया और लोगोंकी तरफ मुँह करके उनको सुनाते हुए बोला कि सुनो-सुनो!(मेरी बात सुनो;फिर वो बोला-) स्वामीजीके गलेमें कैंसर था इसलिये आवाज साफ नहीं आती थी।

मैंने आक्रोश करते हुए उनसे पूछा कि आपको क्या पता? तब उसने जवाब दिया कि आपलोगोंसे ही सुना है?-ऋषिकेशके संतनिवासमेंसे ही किसीने ऐसा कहा था(मैं उनको जानता नहीं)।

इस प्रकार लोग सुनी-सुनाई बातें कहते-सुनते रहते हैं और आगे चलाते भी रहते हैं जो कि बिल्कुल झूठी है।

साधारण लोगोंकी तो बात ही क्या है जाने-माने डाॅक्टरलोग भी ऐसी बातें कर चूके।

श्रीस्वामीजी महाराजके सिरपर एक फौङा हो गया था और उसका इलाज कई जने नहीं कर पाये थे।उस समय भी डाॅक्टर आदि कई जनोंने उसको कैंसर कह दिया था।

फिर एक कम्पाउण्डरने साधारण इलाजसे ही उसको ठीक कर दिया(वो विधि आगे लिखी गई है)।अगर कैंसर होता तो साधारणसे इलाजसे ठीक कैसे हो जाता? परन्तु बिना सोचे-समझे ही कोई कुछका कुछ कह देते हैं।अपनेको तो चाहिए कि जो बात प्रमाणिक हो, वही मानें।

ऐसी और भी कई बातें हैं जो विस्तारभयके कारण लिखी नहीं जा रही है।
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फौङेके घावको ठीक इस प्रकार किया गया-

कम्पाउण्डरजीने पट्टी बाँधनेवाला कपङा(गौज) मँगवाया और उसके कैंचीसे छौटे-छौटे कई टुकङे करवाये।फिर वे उबाले हुए पानीमें डाल दिये गये;बादमें उनको निकालकर निचौङा गया और थोङी देर हवामें रख दिये गये।उसके बाद फौङेको धौ कर उसके ऊपरका भाग(खरूँट) हटा दिया।फिर फौङेको साफ करके ऊसपर वो गोजके टुकङे रख दिये।उस कपङेकी कतरनने फौङेके भीतरकी खराबी-दूषित पानी आदि सौखकर बाहर निकाली।फिर वो गोज हटाकर दूसरे गोज रखे गये।इस प्रकार कई बार करनेपर जब अन्दरकी खराबी बाहर आ गयी तब फौङेपर स्वच्छ गोज रखकर उसपर पट्टी बाँधदी गयी।

शामको जब पट्टी खोली गयी तो वो गौजके कपङे भीगे हुए मिले;कपङेने अन्दरकी खराबीको खींचकर सौख लिया था,इसलिये वो गीले हो गये थे।

तत्पश्चात उन सबको हटाकर नई पट्टी बाँधी गई जिस प्रकार कि सुबह बाँधी थी।

दूसरे दिन सुबह भी उसी विधिसे पट्टी की गई।

बीच-बीच में यह भी ध्यान रखा जाता था कि घावका मुँह बन्द न हो जाय।अगर कभी हो भी जाता तो उसको वापस बनाया जाता था जिससे कि दूषित पानी आदि पूरा बाहर आ जाय।

इस प्रकार सौखते-सौखते कुछ दिनोंके बाद वो गौज(कपङेकी कतरन) भीगने बन्द हो गये,फौङेके भीतरकी खराबी बाहर आ गयी तथा महीनेभर बादमें वो फौङा ठीक हो गया।उस जगह साफ नई चमङी आ गयी।

इसके बाद ऐसी ही विधि दूसरे लोगोंके घाव आदि ठीक करनेके लिये की गई और उन सबके घाव भी ठीक हुए।

इससे एक बात समझमें आयी कि ऊपरसे दवा लगानेकी अपेक्षा भीतरकी खराबी बाहर निकालना ज्यादा ठीक रहता है।

डाॅक्टर आदि कई लोगोंने ऊपरसे दवा लगा-लगा कर ही इलाज किया था भीतरसे विकृति निकालनेका ऐसा उपाय उन्होंने नहीं किया था।तभी तो उनको सफलता नहीं मिली।

(कफका इलाज इस प्रकार किया गया-)

सेवाकी कमी आदिके कारण कई बार उनके सर्दी जुकाम आदि हो जाता था जिससे गलेमें कफ आदि हो जानेसे सत्संग सुनानेमें दिक्कत आती थी।

सत्संग सुनानेमें बाधा न हो- इसके लिये कभी-कभी गलेके कपङेकी पट्टी भी लपेटी जाती थी और कफ डालनेके लिये एक दौनेमें मिट्टी भी रखी जाती थी;लेकिन इसका भी इलाज कम्पाउण्डरजीने साधारणसे उपाय द्वारा कर दिया।

वो बोले कि स्वामीजी महाराजके सामनेसे यह (कफदानी वाला) बर्तन हटाना है और उसका उपाय यह बताया कि लौटा भर पानीमें एक दो चिमटी(चुटकी) नमक डालकर उबाललो तथा चौथाई भाग जल रह जाय तब अग्निसे नीचे उतारलो।ठण्डा होनेपर इनको पिलादो।

उनके कहनेपर ऐसा ही किया गया और कुछ ही दिनोंमें उनका गला ठीक हो गया और कफ चला गया तथा मिट्टीका दौना भी हट गया।नहीं तो वर्षों तक यह कफकी समस्या बनी रही थी।

इसलिये किसीने कभी गलेकी पट्टी आदि देखकर गलतफहमीकी पुष्टि भी की होगी तो वो भी अज्ञानतासे थी।

वास्तवमें उनके न तो कभी गलेमें कैंसर हुआ था और न कभी सिरपर हुआ था।लोग झूठी-झूठी कल्पना कर लेते हैं।

बातुल भूत बिबस मतवारे।
ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे।।
जिन्ह कृत महामोह मद पाना।
तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना।।

(रामचरितमानस 1।115)

उनके साथमें रहनेवाले,सत्संग करनेवाले अनेक जने हैं,वो भी इस बातको जानते हैं।

तथा मैंने भी वर्षों तक पासमें रहकर देखा है और बहुत नजदीक से देखा है।उनके कभी कैंसर नहीं हुआ था।
जय श्री राम।।

विनीत- डुँगरदास राम

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