।।श्रीहरि।।
क्या सुमित्रा माताके एक ही बेटा था? कह, नहीं; दो बेटे थे।
किसीने पूछा है कि रामजीने यह क्यों कहा कि सुमित्रा माताके एक ही बेटा था; क्योंकि उनके तो बेटे दो थे- लक्ष्मणजी और शत्रुघ्नजी।
उत्तरमें निवेदन है-
लक्ष्मणमूर्छाके अवसर पर रामजी विलाप करते हुए कहते हैं कि
निज जननीके एक कुमारा।
तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।
अर्थात् अपनी माँ के तुम एक ही पुत्र हो और उनके एक तुम ही प्राणोंके आधार हो।
इसके कई कारण और कई अर्थ बताये जाते हैं ।
जैसे-
1.एक अर्थात् अद्वितीय।
2.बेटा अगर भगवानका भक्त है तो वही माँ उस एक बेटेके कारण माँ है।वही बेटा बेटा है , दूसरे बेटोंकी गिनतीमें बेटोंमें नहीं है-
पुत्रवती जुबती जग सोई।
रघुबर भगत जासु सुत होई।।
नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी।
राम बिमुख सुत ते हित जानी।।
3.हे लक्ष्मण ! मेरी माँ(कौसल्या)के मैं एक ही बेटा हूँ और उसके अर्थात् मेरे एक तुम ही प्राणोंके आधार हो, आदि आदि अनेक समाधान किये जाते हैं।
परन्तु वास्तविक समाधान श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि यह भगवानकी प्रलाप लीला है-
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।
(लंकाकाण्ड 61)
प्रलाप उसको कहते हैं कि जिसमें बोलनेवाला बिना समझे ही कुछ बोल दे।
जब मनुष्य प्रेममें ज्यादा व्याकुल हो जाता है तब कुछका कुछ बोल देता है,प्रलाप करने लग जाता है।हौस(ज्ञान) भूल जाता है।
प्रलापके कारण प्रेमका भी पता चलता है।उस समय अगर (प्रलाप न होकर) हौस रहता है,बोलने आदिमें सावधानी रहती है तो प्रेममें कमी समझी जाती है और जितनी सावधानीकी भूली होती है,उतना प्रेम अधिक माना जाता है।
यहाँ रामजी भी लक्ष्मणमें प्रेम अधिक होनेसे प्रलाप करते हैं।
इस प्रसंगमें रामजीने और भी ऐसी कई बेमेल बातें कहीं है।
अगर रामजी हौसमें बोलते तो प्रेममें कमी समझी जाती।इस अवसर पर हौस भूलकर प्रलाप करना ही प्रेमकी अधिकता है।
इसलिये रामजीने यहाँ प्रलाप लीला की है।
संगति बैठानेके लिये इधर-उधरसे ज्यादा खींचतानकी जरूरत नहीं है।माता सुमित्राके बेटे दो ही थे।
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