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सोमवार, 24 अगस्त 2015

{गुरुका गुर(विद्या,रहस्य) क्या है?कि}तुम कहते हो 'मैं' 'हूँ',और 'मैं' निकालदो,'हूँ'-यह परमात्माका स्वरूप है(यह गुर बता दिया) -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                          ।।श्रीहरि:।।


गुरुका गुर क्या है?

{गुरुका गुर(विद्या,रहस्य) क्या है?

कि}
तुम कहते हो 'मैं' 'हूँ',और 'मैं' निकालदो,'हूँ'-यह परमात्माका स्वरूप है(यह गुर बता दिया)।

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज 


गुरु कुछ नहीं देता है,बड़े-बड़े महात्मा गुरु है वो कुछ नहीं देते हैं,केवल ख्याल कराते हैं-देखो,इधर देखो इधर।इतनी ही(बात है)।

देते क्या हैं वो, और देई(दी) हुई चीज कितनाक दिन ठहरेगी?।

आपके घरकी चीज है उसको बता देते हैं,यह आपके घरकी,खुदके घरकी,ख्याल कर लिया;
तो अपने स्वरूपकी प्राप्ति हो जाती है।

… (गुरु) कहते हैं हमने दिया क्या,बताओ।आप बताओ भाई!
कोई गुरुने काड र (निकाल कर) दे दी कि यह लै,यह चीज है।

गुरुने तो गुर बता दिया,बस।

तुम कहते हो (कि) 'मैं' 'हूँ',और(इसमेंसे) 'मैं' ( को) निकालदो, (तो 'हूँ' रह जायेगा,तो) 'हूँ'-यह परमात्माका स्वरूप है (यह गुर बता दिया)।

तो (परमात्माका स्वरूप) मैंने दिया (है) यह?।

मैं अरु मोर तोर तैं माया।

(रामचरितमानस,३।१५।२)।

माया है यह।मायाको छौड़ा और आप(और हम) परमात्माका स्वरूप हैं।

बहुत सुगमतासे(परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है)।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दिनांक ७/१०/१९९४.१५०० बजेके प्रवचनका अंश)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/