सन्तोंने निन्दा, चुगलीको बडा़ भारी पाप बताया है-
परम धरम श्रुति बिदित अहिंसा।
पर निन्दा सम अघ न गरीसा।।
(रामचरितमा.७/१२१)।
अघ कि पिसुनता सम कछु आना।
धरम कि दया सरिस हरिजाना।।
(रामचरितमा.७/११२) ।
कौन कुकर्म किये नहिं मैंने जौ गये भूलि सो लिये उधारे।
ऐसी खेप भरी रचि पचिकै चकित भये लखिकै बनिजारे।।
कुकर्म (पाप) उधार कैसे लिये जाते हैं?
इसका उत्तर श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया है कि जो पाप हमने किया नहीं; दूसरेने किया है।परन्तु अगर हम उनकी निन्दा करते हैं , तो यह पाप उधारा लेना हो गया।
अब हमको भी वही दण्ड मिलेगा जो पाप करनेवालेको मिलता है।
(प्रश्न -
चुगली किसको कहते हैं?
उत्तर-)
किसीके दोषको दूसरेके आगे प्रकट करके दूसरोंमें उसके प्रति दुर्भाव पैदा करना पिशुनता (चुगली) है।
(साधक-संजीवनीके १६/२ की व्याख्या)।
उसमें अपैशुनम् की व्याख्या पढें।
सीताराम