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शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

गले में कैंसर कभी हुआ ही नहीं था। (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके उम्रभरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था।)

                      ।।श्रीहरि:।।

गले में कैंसर कभी हुआ ही नहीं था।  

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके उम्रभरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था।)

   आजकल कई लोगोंमें यह बात फैली हुई है कि श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके गलेमें कैंसर था। 

   इसके जवाबमें निश्चयपूर्वक यह निवेदन है कि उनके उम्र भरमें कभी कैंसर नहीं हुआ था।

    यह बात खुद श्रीस्वामीजी महाराजके सामने भी आई थी कि लोग ऐसा कहते हैं (कि स्वामीजी महाराजके गलेमें कैंसर है)। तब श्रीस्वामीजी महाराज हँसते हुए बोले कि एक जगह सत्संग का प्रोग्राम होनेवाला था और वो किसी कारणसे नहीं हो पाया। तब किसीने पूछा कि स्वामीजी आये नहीं? उनके आनेका प्रोग्राम था न? 

   तब किसीने जवाब दिया कि वो तो कैंसल हो गया। तो सुननेवाला बोला कि अच्छा ! कैंसर हो गया क्या? कैंसर हो गया तब कैसे आते?

{उसने कैंसल (निरस्त) की जगह कैंसर सुन लिया था}।

   इस प्रकार कई लोग बिना विचारे ही, बिना हुई बातको ले दोङते हैं। जो घटना कभी घटी ही नहीं,* ऐसी-ऐसी बातें कहते-सुनते रहते हैं और वो बातें आगे चलती भी रहती है। सही बातका पता लगानेवाले और कहने-सुनने वाले बहुत कम लोग होते हैं। 

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  (टिप्पणी– * आज फेसबुक पर भी किसीने एक अखबार की फोटो प्रकाशित की है जिसमें गलेके कैंसरकी बात कही गई है। ऐसे बिना सोचे-समझे ही लोग आगे प्रचार भी कर देते हैं।

     कैंसर के भ्रमवाली एक घटना तो मेरे सामनेकी ही है–

एक बार लोगोंको मैं श्री स्वामी जी महाराज की रिकॉर्ड- वाणी (प्रवचन) सुना रहा था। प्रवचनकी आवाज कुछ लोगोंको साफ सुनाई नहीं दी। (श्रीस्वामीजी महाराज जब सभामें बोलते थे तो उन प्रवचनोंकी रिकॉर्डिंग होती थी। उस समय गलती के कारण कभी-कभी आवाज साफ रिकॉर्ड नहीं हो पाती थी। वैसे तो साफ आवाजमें उनके बहुत-सारे प्रवचन है, पर कुछ प्रवचनोंकी रिकॉर्डिंग साफ नहीं है, अस्पष्ट है)। इसलिये समाप्ति पर उन लोगोंमेंसे किसीने पूछा कि आवाज साफ नहीं थी (इसका क्या कारण है?)

   उस समय मेरे जवाब देनेसे पहले ही एक भाई उठकर खङा हो गया और लोगोंकी तरफ मुँह करके, उनको सुनाते हुए बोला कि सुनो-सुनो! (फिर वो बोला-) स्वामीजीके गलेमें कैंसर था, इसलिये आवाज साफ नहीं थी।

   मैंने आक्रोश करते हुए उनसे पूछा कि आपको क्या पता? तब उसने जवाब दिया कि आपलोगोंसे ही सुना है?– ऋषिकेशके संतनिवासमेंसे ही किसीने ऐसा कहा था(मैं उनको जानता नहीं)।} फिर मैंने कहा कि कैंसर उनके हुआ ही नहीं था। मेरे को पता है, मैं उनके साथ में रहा हुआ हूँ।

   लोगोंमें एक बात यह भी फैली हुई है कि एक डॉक्टर ने (यन्त्र के द्वारा) श्री स्वामी जी महाराज के गलेकी जाँच की, तो उसमें, डॉक्टर को ब्रह्माण्ड दिखायी दे गया। कोई कहते हैं कि डॉक्टर को वहाँ, भगवान् के दर्शन हो गये।

    कुछ लोग ऐसे भी देखने-सुनने में आये हैं कि श्री स्वामी जी महाराज के विषय में, अपने मनसे ही गढ़कर कोई बात बना देते हैं और लोगों में कह देते हैं तथा लोग उस बात को आगे चला देते हैं। कोई तो महापुरुषोंकी किसी सत्यबात को लेकर उसमें असत्य बात जोङ देते हैं, सत्यके सहारे असत्य कह देते हैं, उसमें अपनी बात भी मिला देते हैं। कोई तो श्री स्वामी जी महाराज की किसी बात या व्यवहार को लेकर उसको अपनी प्रशंसा में जोङ देते हैं। कोई अपनी हल्की सोचके के अनुसार श्री स्वामी जी महाराज और श्री सेठजी जैसे महापुरुषोंको साधारण मनुष्यकी तरह बता देते हैं, अपनी सांसारिक बुद्धि के अनुसार श्री स्वामी जी महाराज के लिये भी वैसी ही बात कह देते हैं। सोचते नहीं कि श्री स्वामी जी महाराज जैसे महापुरुषके लिये यह कैसे सम्भव है। कोई तो श्री स्वामी जी महाराज के लिये वो बात कह देते हैं जो उनके स्वभाव में ही नहीं है। उनके सिद्धान्तों की तरफ भी नहीं देखते।

    कुछ लोगों की तो ऐसी बात सामने आयी है कि श्री सेठजी और श्री स्वामी जी महाराज जैसे महापुरुषोंके लिये घटिया बात कहने में भी उनको शर्म नहीं आयी। किसीने तो श्री सेठजी के लिये घटिया और झूठी बात पुस्तक में भी लिख दी। किसीने बिल्वमङ्गलकी घटनाको श्री तुलसीदास जी महाराज की घटना बता दिया। ऐसे लोग दूसरे किसीकी की घटना को महापुरुषोंकी घटना बता देते हैं, दूसरे के व्यवहारको महापुरुषोंका व्यवहार और दूसरे की बात को महापुरुषोंकी बात बता देते हैं। झूठ साँच का भी ध्यान नहीं रखते। असत्य से भी परहेज नहीं करते। कोई तो श्री स्वामी जी महाराज की प्रशंसा करते हुए भी झूठीबात बोल देते हैं। कोई श्री स्वामी जी महाराज का नाम लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। इस प्रकार और भी कई बातें हैं, विचारवान लोग समझ सकते हैं।

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   इस प्रकार लोग सुनी-सुनाई बातें कहते-सुनते रहते हैं और आगे चलाते भी रहते हैं जो कि बिल्कुल झूठी है।

साधारण लोगोंकी तो बात ही क्या है जाने-माने उत्तराखण्ड के एक डाॅक्टर ने भी ऐसी बात कहदी। 

श्रीस्वामीजी महाराजके सिरपर एक फोङा हो गया था और उसका ईलाज कई जने नहीं कर पाये थे। उस समय भी डाॅक्टर आदि कई जनोंने उसको कैंसर कह दिया था। 

फिर एक कम्पाउण्डरने साधारण इलाजसे ही उसको ठीक कर दिया(वो विधि आगे लिखी गई है)।अगर कैंसर होता तो साधारणसे इलाजसे ठीक कैसे हो जाता? परन्तु बिना सोचे-समझे ही कोई कुछका कुछ कह देते हैं। अपनेको तो चाहिए कि जो बात प्रामाणिक हो, वही मानें। 

    लोगोंने तो ऐसी झूठी खबर भी फैलादी कि श्री स्वामी जी महाराज ने शरीर छोङ दिया। ऐसे एक बार * ही नहीं, अनेक बार हो चुका। 

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   (टिप्पणी *  एक बार की बात है कि मैं अपने गाँव जाकर आया था और श्री स्वामी जी महाराज को वहाँकी बातें सुना रहा था। श्री स्वामी जी महाराज बोले कि वहाँ और कोई नई बात हुई क्या? सुनते ही मेरेको वहाँ घटित हुई एक घटना याद आ गई। मैंने कहा– हाँ, एक नई बात हुई थी। फिर मैंने वो घटना सुनादी। श्री स्वामी जी महाराज के सामने ऐसी बातें पहले भी कई बार आती रही थी। उनके लिये वो कोई नई बात नहीं थी।

   वो घटना इस प्रकार थी— मैं गाँव में एक वृद्ध माता जी से मिलने गया। वो माताजी अन्दर से आई और घूँघट निकाल कर दूसरी तरफ मुँह किये हुए बैठ गई। वैसे तो पुरानी माताएँ लज्जाके कारण बालक को देखकर भी घूँघट निकाल लेती है, पर बालक से बात कर लेती है। श्री स्वामी जी महाराज ने भी बताया कि घूँघट निकाले हुए एक वृद्ध माताजी से मैंने कहा कि माजी! मैं तो आपके सामने पौते के समान हूँ। ऐसे ही एक बार एक वृद्ध माताजी श्री स्वामी जी महाराज से कोई बात पूछ रही थी, उनके घूँघट निकाला हुआ देखकर श्री स्वामी जी महाराज ने आदरपूर्वक मेरेको भी बताया कि देख! (माँजी के घूँघट निकाला हुआ है)। ऐसे कई माताएँ दादी, परदादी बन जानेपर भी घूँघट निकालना नहीं छोङती। यह उनके स्वभाव में होता है। हमारे यहाँ की एक यह आदरणीय रीति है, मर्यादा है। जगज्जननी सीता जी के भी घूँघट निकालनेकी बात आई है। हमारे भारतवर्ष की यह पुरातन रिवाज रही है। माताएँ लज्जाके अवसर पर तो घूँघट निकालती ही है, शोकके अवसर पर भी घूँघट निकाल लेती है। यहाँ, ये माताजी शोक का अवसर जानकर घूँघट निकाले बैठी थी।

   जब वो माताजी बोली नहीं, तब मैंने पूछा कि क्या बात है माजी! तो वो शोक जताती हुई बोली कि क्या करें, श्री स्वामी जी महाराज ने तो समाधि ले ली अर्थात् शरीर छोङ दिया। तब मेरे समझ में आया कि इनके पास कोई झूठी खबर पहुँच गई है। मैंने कहा कि (नहीं माजी! ऐसी बात नहीं है), श्री स्वामी जी महाराज ने शरीर नहीं छोङा है, मैं वहीं से आया हूँ, वे राजीखुशी हैं। तब उन माताजी ने शोक छोङा और सामान्य हुई, नहीं तो वो झूठी बात को ही सच्ची मानकर शोक पालने में लग गई थी। ऐसी और भी कई बातें हैं।

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१(सिरवाले फोङेका ईलाज इस प्रकार किया गया–)

     कम्पाउण्डरजीने पट्टी बाँधनेवाला कपङा(गोज) मँगवाया और उसके कैंचीसे छोटे-छोटे कई टुकङे करवा लिये। फिर वे उबाले हुए पानीमें डाल दिये गये; बादमें उनको निकालकर निचौङा और उनको थोङी देर हवामें रख दिया। उसके बाद फोङेको धोकर उसके ऊपरका भाग(खरूँट) हटा दिया गया। फिर फोङेको साफ करके उसपर वे कपड़ेके टुकङे रख दिये। उस कपङेकी कतरनने फोङेके भीतरकी खराबी (दूषित पानी आदि) सोखकर बाहर निकाल दी। फिर वे गोज हटाकर दूसरे गोज रखे गये। इस प्रकार कई बार करनेपर जब अन्दरकी खराबी बाहर आ गयी तब फोङेपर दूसरे स्वच्छ गोज रखकर उसपर पट्टी बाँधदी।

    शामको जब पट्टी खोली गयी तो वे कपड़ेके टुकड़े भीगे हुए मिले; उन टुकड़ोंने अन्दरकी खराबीको खींचकर सोख लिया था, इसलिये वे भीग गये थे, गीले हो गये थे।

    तत्पश्चात उन सबको हटाकर फिरसे नई पट्टी बाँधी गई जिस प्रकार कि सुबह बाँधी थी।

दूसरे दिन सुबह भी उसी विधिसे पट्टी की गई। ऐसा प्रतिदिन किया जाने लगा।

    बीच-बीच में यह भी ध्यान रखा जाता था कि घावका मुँह बन्द न हो। अगर कभी बन्द हो भी जाता तो उसको वापस खोला जाता था जिससे कि दूषित पानी आदि पूरा बाहर आ जाय।

    इस प्रकार सोखते-सोखते कुछ दिनोंके बाद वो गोज(कपङेकी कतरनें) भीगने बन्द हो गये, फोङेके भीतरकी खराबी बाहर आ गयी तथा महीनेभर बादमें वो फोङा ठीक हो गया। उस जगह साफ, नई चमङी आ गई।

    इसके बाद ऐसी ही विधि दूसरे लोगोंके घाव आदिको ठीक करनेके लिये की गई और उन सबके घाव भी ठीक हुए।

    इससे एक बात यह समझमें आयी कि ऊपरसे दवा लगानेकी अपेक्षा भीतरकी खराबी बाहर निकालना ज्यादा ठीक रहता है।

    डॉक्टर आदि कई लोगोंने ऊपरसे दवा लगा-लगा कर ही इलाज किया था, भीतरसे विकृति निकालनेका, ऐसा उपाय उन्होंने नहीं किया था। तभी तो उनको सफलता नहीं मिली।

(गलेके कफका इलाज इस प्रकार किया गया–)

    सेवाकी कमी आदि के कारण कई बार श्री स्वामी जी महाराज के सर्दी, जुकाम आदि हो जाता था, जिससे गलेमें कफ होनेके कारण लोगोंके सत्संग सुननेमें दिक्कत आती थी।

    सत्संग सुननेमें बाधा न हो– इसके लिये कभी-कभी श्री स्वामी जी महाराज के गले में कपङेकी पट्टी लपेटी जाती थी और कफ डालनेके लिये दौने आदि में मिट्टी रखी जाती थी; लेकिन इसका भी इलाज कम्पाउण्डरजीने साधारणसे उपाय द्वारा कर दिया।

    वे बोले कि स्वामीजी महाराजके सामनेसे यह (कफदानी वाला) बर्तन हटाना है और उसका उपाय यह बताया कि लोटा भर पानीमें एक दो चिमटी(चुटकी) नमक डालकर उबाल लो तथा चौथाई भाग जल रह जाय तब अग्निसे नीचे उतार लो। ठण्डा होनेपर इनको पिलादो।

    उनके कहनेपर ऐसा ही किया गया और कुछ ही दिनोंमें श्री स्वामी जी महाराज का गला ठीक हो गया और कफ चला गया तथा कफ डालनेके लिये रखा जानावाला, मिट्टीका बर्तन भी हट गया। नहीं तो वर्षोंतक यह कफवाली समस्या बनी ही रही थी।

    किसीने गलेमें लपेटी हुई उस कपड़ेकी पट्टी को देखकर कैंसर समझ लिया होगा अथवा, कैंसरवाली गलतफहमीकी पुष्टि की होगी तो वो भी बिना जाने, अज्ञानता के कारण की थी। वास्तव में, गलेमें पट्टी कैंसर के कारण नहीं लपेटी जाती थी। इस प्रकार जब कफ चला गया, तब गला ठीक हो गया और सिरवाला फोड़ा भी ठीक हो गया था। न तो कभी गलेमें कैंसर हुआ था और न सिरपर।

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   वास्तवमें उनके कैंसर न तो कभी गलेमें हुआ था और न कभी सिरपर हुआ था। किसी भी अंग में कैंसर नहीं हुआ था। 

उनके साथमें रहनेवाले, सत्संग करनेवाले अनेक जने ऐसे हैं, जो इस बातको जानते हैं।

तथा मैंने भी वर्षोंतक श्री स्वामी जी महाराज के पासमें रहकर देखा है और बहुत नजदीक से देखा है– उम्रभर में उनके किसी भी अंग में, कभी कैंसर हुआ ही नहीं था। 

लोग झूठी-झूठी कल्पना कर लेते हैं। 

बातुल भूत बिबस मतवारे। ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे।।

जिन्ह कृत महामोह मद पाना। तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना।। (रामचरितमानस 1।115)

जय श्री राम।।

विनीत- डुँगरदास राम

http://dungrdasram.blogspot.com/