॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
की ओरसे एक प्रार्थना
अपने निजस्वरूप प्यारे मुसलमान भाइयोंसे आदरपूर्वक प्रार्थना है कि यदि आप अपने आदरणीय
पूर्वजोंकी गलतीको स्थायी रूपसे नहीं रखना चाहते हैं तथा अपनी गलत परम्पराको मिटाना चाहते हैं तो
जिनकी जो चीज है, उनको उनकी चीज सत्कारपूर्वक समर्पण कर दें और अपनी गलत परम्पराको,
बुराईको मिटाकर सदाके लिये भला रहना स्वीकार कर लें ।
पूर्वजोंकी गलतीको स्थायी रूपसे नहीं रखना चाहते हैं तथा अपनी गलत परम्पराको मिटाना चाहते हैं तो
जिनकी जो चीज है, उनको उनकी चीज सत्कारपूर्वक समर्पण कर दें और अपनी गलत परम्पराको,
बुराईको मिटाकर सदाके लिये भला रहना स्वीकार कर लें ।
आपलोगोंने मन्दिरोंको तोड़नेकी जो गलत
परम्परा अपनायी है, इसमें आपका ज्यादा नुकसान है, हिन्दुओंका थोड़ा। यह आपके लिये बड़े
कलंकका, अपयशका काम है।
परम्परा अपनायी है, इसमें आपका ज्यादा नुकसान है, हिन्दुओंका थोड़ा। यह आपके लिये बड़े
कलंकका, अपयशका काम है।
आपके पूर्वजोंने मन्दिरोंको तोड़कर जो मस्जिदें खड़ी की हैं, वे इस
बातका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि मुसलमानोंके राज्यमें क्या हुआ ? अतः वे आपके लिये कलंककी,
अपयशकी निशानी हैं।
बातका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि मुसलमानोंके राज्यमें क्या हुआ ? अतः वे आपके लिये कलंककी,
अपयशकी निशानी हैं।
अब भी आप उसी परम्परापर चल रहे हैं तो यह उस कलंकको स्थायी रखना
है।
है।
आप विचार करें,
सभी लोगोंको अपने- अपने धर्म, सम्प्रदाय आदिका पालन करनेका अधिकार है ।
यदि हिन्दू अपने धर्मके अनुसार मन्दिरोंमें मूर्तिपूजा ( मूर्तिमें भगवान् की पूजा ) करते हैं तो इससे आपको
क्या नुकसान पहुँचाते हैं ? इसमें आपका क्या नुकसान होता है ? क्या हिन्दुओंने अपने राज्यमें मस्जिदोंको
तोड़ा है ? तलवारके जोरपर हिन्दूधर्मका प्रचार किया है ? उलटे हिन्दुओंने अपने यहाँ सभी
मतावलम्बियोंको अपने-अपने मत, सम्प्रदायका पालन करने, उसका प्रचार करनेका पूरा मौका दिया है।
सभी लोगोंको अपने- अपने धर्म, सम्प्रदाय आदिका पालन करनेका अधिकार है ।
यदि हिन्दू अपने धर्मके अनुसार मन्दिरोंमें मूर्तिपूजा ( मूर्तिमें भगवान् की पूजा ) करते हैं तो इससे आपको
क्या नुकसान पहुँचाते हैं ? इसमें आपका क्या नुकसान होता है ? क्या हिन्दुओंने अपने राज्यमें मस्जिदोंको
तोड़ा है ? तलवारके जोरपर हिन्दूधर्मका प्रचार किया है ? उलटे हिन्दुओंने अपने यहाँ सभी
मतावलम्बियोंको अपने-अपने मत, सम्प्रदायका पालन करने, उसका प्रचार करनेका पूरा मौका दिया है।
इसलिये यदि आप सुख-शान्ति चाहते हैं, लोक-परलोकमें यश चाहते हैं, अपना और दुनियाका भला
चाहते हैं तो अपने पूर्वजोंकी गलतीको न दुहरायें और गम्भीरतापूर्वक विचार करके अपने कलंकको
धो डालें।
चाहते हैं तो अपने पूर्वजोंकी गलतीको न दुहरायें और गम्भीरतापूर्वक विचार करके अपने कलंकको
धो डालें।
सरकारसे भी आदरपूर्वक प्रार्थना है कि आप थोड़े समयके अपने राज्यको रखनेके लिये ऐसा कोई
काम न करें, जिससे आपपर सदाके लिये लाञ्छन लग जाय और लोग सदा आपकी निन्दा करते रहें ।
काम न करें, जिससे आपपर सदाके लिये लाञ्छन लग जाय और लोग सदा आपकी निन्दा करते रहें ।
आज प्रत्यक्षमें राम भी नहीं हैं और रावण भी नहीं है, युधिष्ठिर भी नहीं हैं और दुर्योधन भी नहीं है; परंतु
राम और युधिष्ठिरका यश तथा रावण और दुर्योधनका अपयश अब भी कायम है। राम और युधिष्ठिर
अब भी लोगोंके हृदयमें राज्य कर रहे हैं तथा रावण और दुर्योधन तिरस्कृत हो रहे हैं।
राम और युधिष्ठिरका यश तथा रावण और दुर्योधनका अपयश अब भी कायम है। राम और युधिष्ठिर
अब भी लोगोंके हृदयमें राज्य कर रहे हैं तथा रावण और दुर्योधन तिरस्कृत हो रहे हैं।
आप ज्यादा वोट
पानेके लोभसे अन्याय करेंगे तो आपका राज्य तो सदा रहेगा नहीं, पर आपकी अपकीर्ति सदा रहेगी।
पानेके लोभसे अन्याय करेंगे तो आपका राज्य तो सदा रहेगा नहीं, पर आपकी अपकीर्ति सदा रहेगी।
यदि आप एक समुदायका अनुचित पक्ष लेंगे तो दूसरे समुदायमें स्वतः विद्रोहकी भावना पैदा होगी, जिससे
समाजमें संघर्ष होगा।
समाजमें संघर्ष होगा।
इसलिये आपको वोटोंके लिये पक्षपातपूर्ण नीति न अपनाकर सबके साथ समान
न्याय करना चाहिये और निल्लोभ तथा निर्भीक होकर सत्यका पालन करना चाहिये।
न्याय करना चाहिये और निल्लोभ तथा निर्भीक होकर सत्यका पालन करना चाहिये।
अन्तमें अपने निजस्वरूप प्यारे हिन्दू भाइयोंसे आदरपूर्वक प्रार्थना है कि यदि मुसलमान भाइयोंकी
कोई क्रिया आपको अनुचित दीखे तो उस क्रियाका विरोध तो करें, पर उनसे वैर न करें।
कोई क्रिया आपको अनुचित दीखे तो उस क्रियाका विरोध तो करें, पर उनसे वैर न करें।
गलत क्रिया
या नीतिका विरोध करना अनुचित नहीं है, पर व्यक्तिसे द्वेष करना अनुचित है। जैसे, अपने ही भाईको
संक्रामक रोग हो जाय तो उस रोगका प्रतिरोध करते हैं, भाईका नहीं। कारण कि भाई हमारा है, रोग
हमारा नहीं है। रोग आगन्तुक दोष है, इसलिये रोग द्वेष्य है, रोगी किसीके लिये भी द्वेष्य नहीं है।
या नीतिका विरोध करना अनुचित नहीं है, पर व्यक्तिसे द्वेष करना अनुचित है। जैसे, अपने ही भाईको
संक्रामक रोग हो जाय तो उस रोगका प्रतिरोध करते हैं, भाईका नहीं। कारण कि भाई हमारा है, रोग
हमारा नहीं है। रोग आगन्तुक दोष है, इसलिये रोग द्वेष्य है, रोगी किसीके लिये भी द्वेष्य नहीं है।
अतः
आप द्वेषभावको छोड़कर आपसमें एकता रखें और अपने धर्मका ठीक तरहसे पालन करें, सच्चे हृदयसे
भगवान् में लग जायेँ तो इससे आपके धर्मका ठोस प्रचार होगा और शान्तिकी स्थापना भी होगी।
आप द्वेषभावको छोड़कर आपसमें एकता रखें और अपने धर्मका ठीक तरहसे पालन करें, सच्चे हृदयसे
भगवान् में लग जायेँ तो इससे आपके धर्मका ठोस प्रचार होगा और शान्तिकी स्थापना भी होगी।
(- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
- 'कल्याण'वर्ष 67, अंक3 (मार्च 1993)।
http://dungrdasram.blogspot.com/2019/11/blog-post_10.html