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गुरुवार, 4 सितंबर 2014

संत और भगवत्कृपा।(अन्त समयमें भगवन्नाम स्मरण)।

परम पिता परमात्मा और महापुरुषोंकी अनुपम अनुकम्पासे माताजी अन्त समयमें राम राम करते हुए परमधामको प्राप्त हुए।यह बहुत ही (अनुपम) खुशीकी बात है।

भगवान और महापुरुषोंसे प्रार्थना है कि सद्गति चाहनेवाले सभीको  ऐसी गति दें।

राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान।(…मा.३/२०)
।जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं।
अन्त राम कहि आवत नाहीं।।
(मा.४/१०)।
जाकर नाम मरत मुख आवा।
अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा।।
(मा.३/३१)।
पापिउ जाकर नाम सुमिरहीं।
अति अपार भवसागर तरहीं।।
(मा.४/२९)।
राम राम कहि छाड़ेसि प्राना।
सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना।।
(मा.६/५८)।
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
य:प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय:।।
(गीता८/५)।

माताजीने उस दिन पूछा था न कि साधक-संजीवनीमें आया है कि (अन्त समयमें) जहाँ भगवानके नामका कीर्तन होता है,तो वहाँ यमदूत नहीं आ सकते और
भगवद्भक्त जब कभी शरीर छोड़ते हैं तो उनको लेनेके लिये भगवानके पार्षद आते हैं।यह कौनसी जगह आया है?

फिर वे बातें साधक-संजीवनीमें आठवें अध्यायके पाँचवें और पच्चीसवें श्लोकमें लिखी हुई मिल गयी थी।
कितनी बढिया बात है कि माताजीने उस बातको पूछकर याद किया और परम प्रभु और महापुरुषोंकी ऐसी कृपा हुई।

अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता।।
(मा.५/७)।
बिनु सतसंग बिबेक न होई।
रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।
(मा.१/३)।
गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन।
बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान।।
(मा.७/१२५)।
कहहु कवन प्रभु कै असि रीती।
सेवक पर ममता अरु प्रीति।।
जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी।
ग्यान रंक नर मंद अभागी।।
(मा.३/४५)।।

हरि:शरणम् हरि:शरणम्
हरि:शरणम् हरि:शरणम्
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद,जो अपनी परवाह न करके माताजीकी सेवा और परमसेवा की तथा हमको भी ऐसा सुअवसर प्रदान किया।हरि:शरणम्  हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्…

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/