19990118/518:-
देखो ! एक बात बतावें।
एक होता है आदमीके साथमें गुण और एक होती है दशा ।
ये क्रोध है काम है,लोभ है - ये दशा है।
दशा आती और जाती रहती है और स्वयं है ज्योंका (त्यों) रहता है, वेमें ( स्वयंमें) फर्क नहीं पड़ता।
ये दशा है।तो दशा बदलती है। (परन्तु हम नहीं बदलते)। ………दशा होती है वो दूजी (दूसरी) चीज होती है।आने-जाने वाली है वो दशा हुई और रहनेवाला स्वयं मालिक होता है।तो हम हैं स्वयं मालिक ।
(दशाएँ आती और जाती है, हम आते जाते नहीं हैं ।दशाएँ अलग है और हम अलग हैं,दशाएँ-काम,क्रोध,लोभ,मोह आदि हमारा स्वरूप नहीं है, हमारी चीज नहीं है;इनको अपना स्वरूप नहीं समझना चाहिये)।
ये हमारेमें नहीं है।
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दि.199900118/5.18 बजेके सत्संगसे।
(काम) है,क्रोध है- दशा है स्वयम् नहीं है।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दि.199900118/5.18 बजेके सत्संगसे।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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