बुधवार, 1 जनवरी 2014

■□मंगलाचरण□■ (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ॥श्रीहरिः॥

                ■□मंगलाचरण□■

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

यह मंगलाचरण
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज

सत्संग-प्रवचन से पहले
(सत्संग के प्रारम्भ में)
किया करते थे--

पराकृतनमद्बन्धं
परं ब्रह्म नराकृति।
सौन्दर्यसार सर्वस्वं
वन्दे नन्दात्मजं महः॥

प्रपन्नपारिजाताय
तोत्त्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय
गीतामृत दुहे नमः॥

वसुदेवसुतं देवं
कंस चाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परंकिमपि तत्त्वमहं न जाने॥

हरिओम नमोऽस्तु परमात्मने नमः,
श्रीगोविन्दाय नमो नमः,
श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः,
महात्मभ्यो नमः,
सर्वेभ्यो नमो नमः,

नारायण नारायण
नारायण नारायण

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दौ सार बातें-दूसरोंका हित करना और परमात्माको याद करना|

दौ सार बातें-
…तो मनुष्यपना दौ बातसे ही होता है-
एक(१) तो दूसरोंका हित करे|
एक(२) परमात्माको याद करे ||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके १९९३१०२२/५.१८/ बजेके प्रवचनसे

रविवार, 29 दिसंबर 2013

सूक्तियाँ (संख्यामें) १-१०

                         ||श्री हरिः||      
    
                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)
सूक्ति-०१.
[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |

सूक्ति-०२.
बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

सूक्ति-५.
मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव|

सूक्ति-६.
घंट्याळी घोड़ घणाँ आहू घणा असवार|
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ||
झूँतड़ा(मकान).

सूक्ति-७.
गारबदेसर गाँवमें सब बाताँरो सुख|
ऊठ सँवारे देखिये मुरलीधरको मुख||
सूक्ति-८.
आयो दरशण आपरै परा उतारण पाप|
लारे लिगतर लै गयो मुरलीधर माँ बाप!||
लिगतर(जूते).

सूक्ति-९.
कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणने दोष|
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस||
सूक्ति-१०.
आप कमाया कामड़ा दीजै किणने दोष|
खोजेजीरी पालड़ी काँदे लीन्ही खोस||

सूक्ति-४. खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर| लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

भावार्थ-
अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी लहर(हवा) तो ठण्डी आती है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है),लकड़ियों पर लापसी है(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू) लापसीकी तरह मालुम होते हैं ,पीलवाण पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है ),
परन्तु पानी खारा जहर(की तरह) है

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

सूक्तियाँ-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ,कहावतें आदि

सूक्ति-३.घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग| साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-०२.बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

अर्थ-
समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|
भावार्थ-
समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीस करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|
इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|