शनिवार, 23 जुलाई 2016

भगवान को भक्त प्यारा क्यों लगता है? (श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                         ।।श्रीहरि:।।

भगवान को भक्त प्यारा क्यों लगता है?

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

...
(मीराँबाई) ठाकुरजी के आगे गूँघरू बाँध करके नाचती है,नृत्य करती है वहाँ, भगवान को रिझाती है और भगवान् (!)  महाराज! मस्त हो जाते हैं मीराँबाई को, नाचना देख करके।

उसके हृदय में प्रेम था।भक्त  हुए भगवान के नाते-भक्ति के नाते भगवान को प्यारा लगता है कोई कैसा ही क्यों न हो। जिनके हृदय में प्रेम है वह(वो) भगवान को प्यारे लगते हैं।
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श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
19930704_0800_Bhakti Ki Mahima  वाले प्रवचन का अंश।

http://dungrdasram.blogspot.com/

बुधवार, 13 जुलाई 2016

सच्ची और पक्की बात-(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

तिहत्तर पुस्तकें (लेखक - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।


                        ।।श्रीहरि।।

तिहत्तर पुस्तकें 

(लेखक - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी साधक-संजीवनी, साधन-सुधा-सिन्धु (इसमें करीब तैंतालीस पुस्तकोंका संग्रह है) गीता-दर्पण, गीता-माधुर्य आदि तिहत्तर  पुस्तकें पढनेके लिये कृपया इस पते (ठिकाने) पर जायें और पढ़ें -

 http://swamiramsukhdasji.org/swamijibooks/pustak/pustak1/html/picture/list.htm 


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बुधवार, 6 जुलाई 2016

गीता का शुद्ध उच्चारण करके पढ़नेकी सुगमता।

                        ।।श्रीहरि:।।


गीता का ‘शुद्ध उच्चारण करके’ पढ़नेकी सुगमता

    एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से किसीने पूछा कि गीताजी के सिर्फ हिन्दी अर्थका पाठ ही करलें क्या? क्योंकि है तो वो गीताजी के संस्कृत श्लोकोंका बी अर्थ।

इसलिए संस्कृत न पढ़कर सिर्फ़ हिन्दी अर्थ का पाठ करलें तो एक ही बात होगी क्या?

    जवाब में श्री स्वामीजी महाराज बोले कि-

    नहीं, संस्कृत श्लोकोंका पाठ भी करना चाहिए (क्योंकि ये श्लोक) भगवान की वाणी है।

(कई लोग गीताजी इसलिए नहीं पढ़ते कि संस्कृत श्लोकोंका उच्चारण शुद्ध नहीं होगा तो दोष लग जायेगा। हमको ठीकसे संस्कृत तो आती नहीं है और पढ़ते समय अगर अशुद्ध उच्चारण हो गया तो दोष लग जायेगा; पर बात ऐसी नहीं है। कृपया इस रहस्य को ठीकसे समझलें)।

    गीता पढ़ने वालेकी नियत तो शुद्ध पढ़नेकी है; पर पढ़ते समय अगर अशुद्ध उच्चारण हो जाता है तो दोष नहीं लगता; क्योंकि भगवान नीयत देखते हैं।

    बालक जब पढ़ाई शुरु करता है तो शुरुआत में अशुद्ध बोलता है, अशुद्ध पढ़ता है; पर उसकी नीयत शुद्ध है।

    अगर नीयत शुद्ध है, ईमानदारी से पढ़ना चाहता है तो अध्यापक नाराज नहीं होता; प्रत्युत उसकी नीयत देख कर प्रसन्न हो जाता है। ऐसे भगवान भी हमारी गीता पढ़नेकी नीयत शुद्ध देखकर प्रसन्न होते हैं।

 [ इसको ठीक तरह से समझनेके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका यह प्रवचन सुनें- 19930620_0830_Prapti Ki Sugamta ]

     इस प्रवचनमें श्री महाराजजीने गीता पढ़नेके लिये फरमाया है। (प्रेमपूर्वक गीताजी पढ़ें। अशुद्ध उच्चारण होगा तो दोष लग जायेगा– ऐसे डरें नहीं)। इसके समर्थनमें श्री स्वामीजी महाराजने यह कथा सुनायी है–

    एक भक्त ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करते हुए 'नमस्तस्यै' 'नमस्तस्यै' के स्थान पर ‘नमस्तस्मै' 'नमस्तस्मै' का उच्चारण करने लग गया था।

    यह देखकर किन्ही जानकार पण्डितजीने उनको समझाया कि (संस्कृत भाषा के अनुसार 'नमस्तस्मै' तो पुरुष के लिये बोला जाता है और 'नमस्तस्यै' स्त्री के लिये बोला जाता है) दुर्गा स्त्री है (इसलिए तुम यहाँ 'नमस्तस्यै' बोला करो)।

    तब वो 'नमस्तस्यै' बोलनेका प्रयास करने लगा; परन्तु बार बार ('नमस्तस्यै' के स्थान पर) 'नमस्तस्मै' का ही उच्चारण होने लग जाता था(यह उनके लिये एक झंझट हो गया)। रात्रि (स्वप्न) में माताजीने दर्शन दिये और (शुद्ध उच्चारण के लिये कहने वालेकी) छाती पर चढ़कर दुर्गाने धमकाया कि तू मेरेको स्त्री समझता है? मैं न स्त्री हूँ और न परुष हूँ। मेरी तो जो उपासना करे, वो मैं हूँ (जो भक्त मेरे जिस स्त्री या पुरुष रूपकी उपासना करता है उसके लिये मैं वही हूँ)।

    उस भक्त का 'नमस्तस्मै' उच्चारण मुझे प्रिय लगता है। तब उन्होंने माताजी से क्षमा माँगी कि माँ! अब ऐसा नहीं करुँगा।

मन्दो वदति विष्णाय धीरो वदति विष्णवे। 

उभयोश्च फलं तुल्यं भावग्राही जनार्दन:।।

    {कम जानकार ‘विष्णाय नमः' (अशुद्ध) कहता है और अधिक जानकार ‘विष्णवे नमः' (शुद्ध) कहता है। परन्तु दोनोंका फल बराबर है; क्योंकि भगवान् भाव ग्रहण करते हैं}

     इसका तात्पर्य यह नहीं है कि अशुद्ध बोलो। अपनी समझसे शुद्ध बोलो। अशुद्ध मत बोलो। शुद्ध सीखलो।

    अपनी दृष्टि से बढ़िया से बढ़िया, शुद्ध से शुद्ध उच्चारण करो, गफलत मत रखो, प्रमाद मत करो।

कह, आवे नहीं तो? (कह, शुद्ध उच्चारण आये नहीं तो? कह,) वो लागू होता ही नहीं (शक्ति से अधिक की जिम्मेवारी ही नहीं है)। बालककी तोतली वाणी माँ बापको जैसी प्यारी लगती है, वैसी पण्डितजीकी शुद्ध उच्चारण वाली (वाणी) प्यारी नहीं लगती।

(ऐसे जो गीताजी पढ़ता है तो अशुद्ध बोलनेपर भी भगवानको वो गीता प्यारी लगती है। प्रेम हो तो शुद्ध बोलनेवालेसे भी अशुद्ध बोलने वाला ज्यादा प्यारा लगता है)।

    इसपर चैतन्य महाप्रभुके समय वाले उस भक्तकी कथा बतायी जो गीताजी ठीकसे पढ़ नहीं पाता था, पर उसको लगता था कि अर्जुन और श्री कृष्ण भगवान सामने बातचीत कर रहे हैं आदि।

    {इसलिए प्रेमसे गीताजी पढ़ें। डरें नहीं कि अशुद्ध उच्चारण हो जायेगा तो दोष लग जायेगा, दोष नहीं लगेगा। भगवान राजी होंगे। आप प्रेमसे जैसी भी गीताजी पढोगे वो भगवानको प्रिय लगेगी।

    संस्कृत श्लोक पढ़नेमें कठिनाई होती हो तो धीरे-धीरे पढ़लें। पहले हिन्दी अर्थ पढ़ें और फिर उस अर्थ को ध्यान में रखते हुए उसी श्लोक को पढ़ें और समझें। एक-एक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ पढ़कर समझें। एक-एक शब्दों के अलगसे अर्थ साधक-संजीवनी में लिखे हुए हैं, वहाँ पढ़कर समझ सकते हैं।

    श्लोक का पदच्छेद और अन्वय की सुगमता के लिये पदच्छेद वाली गीता पढ़ सकते हैं।

    गीताजी के श्लोकों का सही उच्चारण सीखनेके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा गाया हुआ गीतापाठ का ओडियो रिकार्ड सुनें और उसके साथ-साथ संस्कृत श्लोक पढ़ें।

वो इस पते पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं –

1. db.tt/umrsxMnU

2. db.tt/L5hJrHtt

    गीताजी का रहस्य समझनेके लिये और गीताजीमें प्रेम होनेके लिये कृपया गीता साधक-संजीवनी का समझ-समझकर अध्ययन करें}। 

गीता का शुद्ध उच्चारण करके पढ़नेकी सुगमता।“. Bit.ly/ShuddhUccharan 

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रविवार, 8 मई 2016

@सत्संग-सामग्री@(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

                          ।।श्रीहरिः।।

@सत्संग-सामग्री@

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (सन् 1990 से 2005 तकके बारह हजार छःह सौ तिरानबे) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और

इससे पहलेके(सन् 1975 से 1989 तकके) भी कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है।

[ ऐसे पुराने प्रवचन और भी इकट्ठे किये जा रहे हैं,जिसके अभीतक सौ-सौ प्रवचनोंके छः(600) प्रवचन-समूह (शतक) बन चूके हैं और सातवाँ शतक चल रहा है,जिसमें 15 प्रवचनोंका संग्रह  हो चूका है तथा और भी प्रयास चल रहा है ] ।

इन (सन् 1975 से 2005 तकके) हजारों सत्संग-प्रवचनोंमेंसे  कई प्रवचनोंके साथ तो उनके विषय (प्रवचनों​के नाम) भी लिखे हुए हैं जिससे हम अपनी रुचिके अनुसार मनचाहा प्रवचन खोजकर सुन सकते हैं।

जैसे,हमारे मनमें आया कि मनकी हलचल कैसे मिटे? तो हम कम्प्यूटर या मोबाइल में खोज (सर्च) की जगह 'मन' शब्द लिखकर खोजेंगे तो इन हजारों प्रवचनोंमेंसे जो-जो मन-सम्बन्धी प्रवचन हैं वो सब (229 प्रवचन) इकट्ठे होकर हमारे सामने आ जायेंगे और उनमेंसे हम अपनी पसन्दका प्रवचन सुनेंगे तो विशेष लाभ होगा।

[जब भूख लगी हो और उस समय अगर  मनचाहा भोजन मिल जाय तो विशेष लाभ होता है।

इसी प्रकार जब हमारी जिज्ञासा हो,जाननेकी भूख हो और उस समय अगर  हम ये प्रवचन सुनें तो विशेष लाभ होगा,जीवन सुधर जायेगा,दु:ख मिट जायेगा,आनन्द हो जायेगा]।

विशेष-प्रवचन।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके विशेष कैसेटोंके ७१ सत्संग-प्रवचन चुने गये हैं।इनके नाम (विषय) भी लिखे हुए हैं और आवाज भी साफ है।

(इसमें कई प्रवचन तो ऐसे हैं कि जो दूसरी जगह उपलब्ध होना मुश्किल  है)

वो ७१ प्रवचन यहाँ(इस पते)से) प्राप्त करें- 
http://db.tt/FzrlgTKe

[इनके शिवाय सन् 1990 से पहलेके हजारों प्रवचन तो अभी ओडियो कैसेटोंमें ही पङे हुए हैं,कम्प्यूटर आदिमें आये ही नहीं है, वो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं।उनके लिये तो जोरदार लगन और मेहनत आदिकी आवश्यकता है]।

इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें कई भजन(संग्रह किये हुए 40 भजन) और कई प्रकारके कीर्तन(21 प्रकारके संकीर्तन) उपलब्ध हुए हैं।

उनके द्वारा नित्य-पाठ करनेके लिये शुरु करवाये हुए गीताजीके पाँच श्लोक भी (दो प्रकारके) उन्हीकी आवाजमें है।

उनके द्वारा गाया गया नानीबाईका मायरा(छः कैसेटोंवाला 48 विभागों (फाइलों) में है),(यह "नरसीजीका माहेरा" नामसे पाँच भागोंमें भी उपलब्ध है)।

श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्-पाठ तथा उन्हीकी आवाजमें गीता-माधुर्य है (इसका चौदहवाँ अध्याय अनुपलब्ध है और पन्द्रहवाँ अध्याय भी पूरा उपलब्ध नहीं हुआ)। (इसकी पूर्ति अन्य आवाज़ द्वारा की गई है)।

इसी प्रकार, गीता-गान

(प्रथम प्रकारका गीता-पाठ) है।

यह *सामूहिक आवृत्ति गीता-पाठ* है,
जिसमें आगे (पहले) तो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बोलते हैं और उनके पीछे दूसरे लोग दुबारा उसीको दोहराते हैं,बोलते हैं।

[जो गीताजीका शुध्द-उच्चारण सीखना चाहते हैं और गीताजी सीखना चाहते हैं  तथा गीताजीका गायन,गीत सुनना चाहते हैं , उनके लिये यह विशेष उपयोगी है।

इसकी साफ आवाजके लिये  दुबारा रिकॉर्डिंग भी की गई है]।

गीता-पाठ

(यह द्वितीय प्रकारका गीता-पाठ है)

[जो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके साथ-साथ गीता-पाठ करना चाहते हैं, उनके लिये यह विशेष उपयोगी है]।

गीता-व्याख्या।

(यह करीब पैंतीस दिनों तककी कैसेटोंका  सेट है,जो 124 फाइलोंमें विभक्त है, जिसमें व्याख्या करके  पूरी गीताजी समझायी गयी है)।

[जो गीताजीका अर्थ समझना चाहते हैं, गीताजीका रहस्य जानना चाहते हैं, उनके लिये यह विशेष उपयोगी है],

मानसमें नाम-वन्दना

{रामचरितमानसके नाम वन्दना प्रकरण (1।18-28) की जो नौ दिनोंतक व्याख्या की गई थी और जिसकी "मानसमें नाम-वन्दना" नामक पुस्तक बनी थी उसके  आठ प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे परन्तु उपलब्ध करीब आठ ही हुए)}।

"कल्याणके तीन सुगम मार्ग"।

'कल्याण के तीन सुगम मार्ग' नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा की गयी  व्याख्या   (सन् 29-1-2001 से 8-2-2001 तकके 11 प्रवचन)।

[यह एक, अद्वितीय वो पुस्तक है जिसकी व्याख्या स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने की है]।

पाँचसौ चौंसठ प्रश्नोत्तर

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजसे कई लोग तरह-तरहके प्रश्न पूछा करते थे, जिसके जवाब देकर श्री महाराजजी बङी सरलतासे उनको समझा देते थे।

प्रश्नोंके उत्तर बङे सरल और सटीक होते थे तथा सुनकर हरेकको बङा सन्तोष होता था।

ऐसे ही कुछ (564) प्रश्नोत्तर उनके प्रवचनोंमेंसे छाँटकर, उन प्रवचनोंके अंश अलगसे इकठ्टे किये  गये हैं,जो बङे कामके हैं। वो भी उपलब्ध है।

इकहत्तर(71) दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट-

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें  रोजाना प्रातः पाँच बजे नित्य-स्तुति और गीताजीके करीब दस-दस श्लोकोंका पाठ होता था तथा हरि:शरणम् 2 हरि:शरणम् 2 संकीर्तन होता था फिर श्री महाराजजी सत्संग सुनाते थे।जिस प्रकार उन दिनोंमें प्रातः 5 बजे नित्य-स्तुति,गीता-पाठ,सत्संग आदि होता था उसी प्रकारसे इकहत्तर दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका एक सेट (सत्संग-समूह) तैयार किया गया है। वो भी उपलब्ध है।

इनके सिवा उनके द्वारा बतायी गयी  अपने जीवन-सम्बन्धी कई बातें भी लिखकर संग्रहीत की गई है।

तथा उनके श्रीमुखसे सुनकर लिखी हुई अनेक सूक्तियाँ (751 कहावतें,दोहे, आदि) भी उपलब्ध है।

इस प्रकार और भी अनेक कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है।हमारेको चाहिये कि शीघ्र ही उनसे लाभ लें।

[जो कोई अपना शीघ्र और सरलता पूर्वक कल्याण चाहते हों तथा घरमें रहते हुए,सब काम-धन्धा करते हुए, सुखपूर्वक भगवत्प्राप्ति चाहते हों तो उनको चाहिये कि श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी यह सत्संग-सामग्री अवश्य अपने पासमें रखें और काममें लें ]

ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध होनी मुश्किल है।किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क (फ्री में) दी जा सकती है.

जो लेना चाहें,कृपया वो इस पते पर सम्पर्क करें-

-डुँगरदास राम, गाँव पोस्ट चाँवण्डिया, जिला नागौर, राजस्थान(भारत)।

मोबाइल नं० ये हैं- 9414722389  और ब्लाँगका नाम, पता इस प्रकार है -

सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

इनके शिवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी गीता साधक-संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु,एक संतकी वसीयत आदि करीब तीस पुस्तकें भी निःशुल्क दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट या मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं।

इस प्रकार यह शीघ्र-कल्याणकारी सामग्री हमारेको अपने पासमें रखनी चाहिये और यथाशीघ्र लाभ अवश्य लेना चाहिये।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके  लगातार सोलह वर्षोंवाले
12693 (बारह हजार छःह सौ तिरानबे) प्रवचनोंका विवरण इस प्रकार है-

सन् 1990 के 557 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1993 के 876 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1994 के 866 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1996 के 915 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2000 के 998 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2002 के 714 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2003 के 729 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2004 के 702 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2005 के 85 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

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यह "राम कथा में सत्संग" का लिंक है।
इस में राम कथा गान (डुँगरदास राम आदि के द्वारा) और श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का सत्संग है।
इस में वो सत्संग है जो श्री स्वामी जी महाराज  राम कथा के बाद में सुनाते थे।

"राम कथा में सत्संग" - https://drive.google.com/folderview?id=0B1hTIYwow9O-VUFxZ1pzMnlKUVE



श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के बहुत वर्षों के सत्संग- प्रवचनों वाले हाथ से लिखे हुए (अप्रकाशित) रजिस्टर पङे हुए हैं । वो श्री महाराज जी के रिकोर्ड किये हुए सत्संग- प्रवचनों को टेप के द्वारा सुन-सुन कर उन प्रवचनों के अनुसार लिखे गये हैं ।

श्री महाराज जी कभी-कभी लोगों को लिखने के लिये कह भी देते थे।

कभी-कभी तो ऐसा अवसर आता कि लिखने वाले उपस्थित न रहने के कारण सब प्रवचन लिखने में कठिनता होती; तो लिखवाने वालों के पूछने पर श्री महाराज जी  कह देते कि सिर्फ प्रातः पाँच बजे वाले प्रवचन ही (रोजना के) लिख लो (पर लिखो अवश्य)।

एक बार तो प्रवचन लिखने वाले एक सज्जन श्री महाराज जी से बोले कि बहुत वर्षों के लिखे हुए ढेर सारे हस्तलिखित रजिस्टर पहले के भी पङे हुए हैं। वे भी पूरे पुस्तक रूप में छपवाये नहीं जा रहे हैं। यह देखकर लिखने का उत्साह नहीं हो रहा है। इसलिये मनमें आती है कि रोजाना के सब प्रवचन लिखना बन्द कर दें और कभी-कभी कोई विशेष प्रवचन हों तो उन-उन को ही लिख लें।

ऐसा कहने पर भी श्री महाराज जी ने लिखने का काम बन्द नहीं करने दिया और लिखवाते रहे। (शायद इसलिये कि आगे जब कभी ऐसा अवसर आये तो ये प्रवचन पुस्तक रूप में छपवाये जा सके। सामग्री उपलब्ध रहेगी तभी तो छपवा सकेंगे और यदि सामग्री ही नहीं होगी तो क्या छपवायेंगे)।

जबकि बिना मन के किसी से ऐसा करवाना उनको पसन्द नहीं था, महाराज जी के लिये यह बङे संकोच की बात थी। फिर भी लोकहित के लिये वो यह सत्संग प्रवचन लिखवाने का काम करवाते रहे।

महापुरुषों ने कृपा करके जो सामग्री तैयार करवायी थी, वो सामग्री अभी तो उपलब्ध है । उनकी कोई फोटो काॅपी भी करवायी हुई नहीं है। मूल रूप में ही पङी है। अगर पाँच- दस प्रवचनों की सामग्री भी क्षतिग्रस्त हो गई तो दुबारा प्राप्त कर लेना हाथ की बात नहीं है ; क्योंकि उनकी कोई प्रतिलिपि नहीं है।

भविष्य में न जाने कैसा समय आये और यह पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाने वाला काम हो पाये या न हो पाये।

यह सामग्री ऐसे ही पङी न रह जाय। पङी- पङी सामग्री बेकार भी हो जाती है तथा पुरानी होकर नष्ट भी हो जाती है।

उनको पुस्तक या पत्रिका आदि के रूप में क्रमशः छपवाकर लोगों तक पहुँचाया जाय तो दुनियाँ की बङी भारी सेवा होगी। बङा भारी काम हो जायेगा।

यह भगवान् और महापुरुषों की भी बङी सेवा है। इस सामग्री के कुछ लेख तो पुस्तक रूप में प्रकाशित हुए थे ; लेकिन बहुत सारी सामग्री अभी-भी अप्रकाशित ही पङी है।

कई लोगों को तो इस सामग्री का पता भी नहीं है। कुछ लोगों को पता है पर वो भी मूकदर्शक-से ही बने हुए हैं। काम कुछ नहीं हो पा रहा है।

(वो लिखी हुई सामग्री पहले बीकानेर आदि में थी। अब वो गीताप्रेस गोरखपुर में है। लेकिन वहाँ भी उनका कोई काम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। सुना है कि (उनका महत्त्व न समझने के कारण ) वहाँ भी भाररूप में ही पङी है । उस सामग्री के कारण जगह रुकी हुई लगती है)। 

इसलिये हमलोगों को चाहिये कि प्रयास करके, पुस्तक आदि छपवा कर के वो सामग्री लोगों तक पहुँचायें।

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रविवार, 1 मई 2016

सत्संग-सामग्री(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

                   ।।श्रीहरिः।। 


@सत्संग-सामग्री@

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (सन् 1990 से 2005 तकके बारह हजार छःह सौ तिरानबे) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और

इससे पहलेके(सन् 1975 से 1989 तकके) भी कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है।

[ ऐसे पुराने प्रवचन और भी इकट्ठे किये जा रहे हैं,जिसके अभीतक सौ-सौ प्रवचनोंके छः(600) प्रवचन-समूह (शतक) बन चूके हैं और सातवाँ शतक चल रहा है,जिसमें 15 प्रवचनोंका संग्रह  हो चूका है तथा और भी प्रयास चल रहा है ] ।

इन (सन् 1975 से 2005 तकके) हजारों सत्संग-प्रवचनोंमेंसे  कई प्रवचनोंके साथ तो उनके विषय (प्रवचनों​के नाम) भी लिखे हुए हैं जिससे हम अपनी रुचिके अनुसार मनचाहा प्रवचन खोजकर सुन सकते हैं।

जैसे,हमारे मनमें आया कि मनकी हलचल कैसे मिटे? तो हम कम्प्यूटर या मोबाइल में खोज (सर्च) की जगह 'मन' शब्द लिखकर खोजेंगे तो इन हजारों प्रवचनोंमेंसे जो-जो मन-सम्बन्धी प्रवचन हैं वो सब (229 प्रवचन) इकट्ठे होकर हमारे सामने आ जायेंगे और उनमेंसे हम अपनी पसन्दका प्रवचन सुनेंगे तो विशेष लाभ होगा।

[जब भूख लगी हो और उस समय अगर  मनचाहा भोजन मिल जाय तो विशेष लाभ होता है।

इसी प्रकार जब हमारी जिज्ञासा हो,जाननेकी भूख हो और उस समय अगर  हम ये प्रवचन सुनें तो विशेष लाभ होगा,जीवन सुधर जायेगा,दु:ख मिट जायेगा,आनन्द हो जायेगा]।

● विशेष-प्रवचन ●।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके विशेष कैसेटोंके ७१ सत्संग-प्रवचन चुने गये हैं।इनके नाम (विषय) भी लिखे हुए हैं और आवाज भी साफ है।

(इसमें कई प्रवचन तो ऐसे हैं कि जो दूसरी जगह उपलब्ध होना मुश्किल  है)

वो ७१ प्रवचन यहाँ(इस पते)से) प्राप्त करें- 
http://db.tt/FzrlgTKe

[इनके शिवाय सन् 1990 से पहलेके हजारों प्रवचन तो अभी ओडियो कैसेटोंमें ही पङे हुए हैं,कम्प्यूटर आदिमें आये ही नहीं है, वो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं।उनके लिये तो जोरदार लगन और मेहनत आदिकी आवश्यकता है]।

इनके सिवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें कई ● भजन ● (संग्रह किये हुए 40 भजन) और कई प्रकारके ● कीर्तन ● (21 प्रकारके संकीर्तन) उपलब्ध हुए हैं।

उनके द्वारा नित्य-पाठ करनेके लिये शुरु करवाये हुए ● गीताजीके पाँच श्लोक ● भी (दो प्रकारके) उन्हीकी आवाजमें है।

उनके द्वारा गाया गया ● नानीबाईका मायरा ● (छः कैसेटोंवाला 48 विभागों (फाइलों) में है),(यह ●" नरसीजीका माहेरा "● नामसे पाँच भागोंमें भी उपलब्ध है)।

● श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ● -पाठ तथा उन्हीकी आवाजमें ● गीता-माधुर्य ● है (इसका चौदहवाँ अध्याय अनुपलब्ध है और पन्द्रहवाँ अध्याय भी पूरा उपलब्ध नहीं हुआ। इसकी पूर्ति अन्य आवाज़ द्वारा की गई है)।

इसी प्रकार, गीता-गान

(प्रथम प्रकारका गीता-पाठ) है।

यह

 ● *सामूहिक आवृत्ति गीता-पाठ* ●

 है,
जिसमें आगे (पहले) तो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बोलते हैं और उनके पीछे दूसरे लोग (दुबारा उसीको) दोहराते हैं,बोलते हैं।

[जो गीताजीका शुद्ध-उच्चारण सीखना चाहते हैं और गीताजी सीखना चाहते हैं  तथा गीताजीका गायन,गीत सुनना चाहते हैं , उनके लिये यह विशेष उपयोगी है।

इसकी साफ आवाजके लिये  दुबारा रिकॉर्डिंग भी की गई है]।

● गीता-पाठ ●।

(यह द्वितीय प्रकारका गीता-पाठ है)।

[जो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके साथ-साथ गीता-पाठ करना चाहते हैं, उनके लिये यह विशेष उपयोगी है]।

● गीता-व्याख्या ●।

(यह करीब पैंतीस दिनों तककी कैसेटोंका  सेट है,जो 124 फाइलोंमें विभक्त है, जिसमें व्याख्या करके  पूरी गीताजी समझायी गयी है)।

[जो गीताजीका अर्थ समझना चाहते हैं, गीताजीका रहस्य जानना चाहते हैं, उनके लिये यह विशेष उपयोगी है]

● मानसमें नाम-वन्दना ●

{रामचरितमानसके नाम- वन्दना प्रकरण (1।18-28) की जो नौ दिनोंतक व्याख्या की गई थी और जिसकी "मानसमें नाम-वन्दना" नामक पुस्तक बनी थी उसके  आठ प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे परन्तु उपलब्ध करीब आठ ही हुए)}।

● "कल्याणके तीन सुगम मार्ग" ●।

'कल्याण के तीन सुगम मार्ग' नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा की गयी  व्याख्या   (सन् 29-1-2001 से 8-2-2001 तकके 11 प्रवचन)।

[यह एक, अद्वितीय वो पुस्तक है जिसकी व्याख्या स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने की है]।

● पाँचसौ चौंसठ प्रश्नोत्तर ●।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजसे कई लोग तरह-तरहके प्रश्न पूछा करते थे, जिसके जवाब देकर श्री महाराजजी बङी सरलतासे उनको समझा देते थे।

प्रश्नोंके उत्तर बङे सरल और सटीक होते थे तथा सुनकर हरेकको बङा सन्तोष होता था।

ऐसे ही कुछ (564) प्रश्नोत्तर उनके प्रवचनोंमेंसे छाँटकर, उन प्रवचनोंके अंश अलगसे इकठ्टे किये  गये हैं,जो बङे कामके हैं। वो भी उपलब्ध है।

● इकहत्तर(71) दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट ●-

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें  रोजाना प्रातः पाँच बजे नित्य-स्तुति और गीताजीके करीब दस-दस श्लोकोंका पाठ होता था तथा हरि:शरणम् 2 हरि:शरणम् 2 संकीर्तन होता था फिर श्री महाराजजी सत्संग सुनाते थे।जिस प्रकार उन दिनोंमें प्रातः 5 बजे नित्य-स्तुति,गीतापाठ,सत्संग आदि होता था उसी प्रकारसे इकहत्तर दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका एक सेट (सत्संग-समूह) तैयार किया गया है। वो भी उपलब्ध है।

इनके सिवा उनके द्वारा बतायी गयी  अपने जीवन-सम्बन्धी कई ● बातें ●भी लिखकर संग्रहीत की गई है।

तथा उनके श्रीमुखसे सुनकर लिखी हुई अनेक ● सूक्तियाँ ● (751 कहावतें,दोहे, आदि) भी उपलब्ध है।

इस प्रकार और भी अनेक कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है। हमारेको चाहिये कि शीघ्र ही उनसे लाभ लें।

[जो कोई अपना शीघ्र और सरलता पूर्वक कल्याण चाहते हों तथा घरमें रहते हुए,सब काम-धन्धा करते हुए, सुखपूर्वक भगवत्प्राप्ति चाहते हों तो उनको चाहिये कि श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी यह सत्संग-सामग्री अवश्य अपने पासमें रखें और काममें लें ]

ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध होनी मुश्किल है।किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क (फ्री में) दी जा सकती है.

जो लेना चाहें,कृपया वो इस पते पर सम्पर्क करें-

-डुँगरदास राम, गाँव पोस्ट चाँवण्डिया, जिला नागौर, राजस्थान(भारत)।

मोबाइल नं० ये हैं- 9414722389  और ब्लाँगका नाम, पता इस प्रकार है -

सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

इनके शिवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी गीता साधक-संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु,एक संतकी वसीयत आदि करीब तीस पुस्तकें भी निःशुल्क दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट या मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं।

इस प्रकार यह शीघ्र-कल्याणकारी सामग्री हमारेको अपने पासमें रखनी चाहिये और यथाशीघ्र लाभ अवश्य लेना चाहिये।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके  लगातार सोलह वर्षोंवाले
12693 (बारह हजार छःह सौ तिरानबे) प्रवचनों आदि का विवरण इस प्रकार है-

सन् 1990 के 557 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1993 के 876 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1994 के 866 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1996 के 915 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2000 के 998 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2002 के 714 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2003 के 729 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2004 के 702 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2005 के 85 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

http://dungrdasram.blogspot.com/

सत्संग-सामग्री(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

                          ।।श्रीहरिः।।

सत्संग-सामग्री

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी लिखित और आडियो रिकॉर्डवाली सत्संग-सामग्री आदि)।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और

इससे पहलेके(1975 से 1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है।

( ऐसे पुराने प्रवचन और भी इकट्ठे किये जा रहे हैं,जिसके अभीतक सौ-सौ प्रवचनोंके छः(600) प्रवचन-समूह (शतक) बन चूके हैं और सातवाँ शतक चल रहा है,जिसमें 15 प्रवचनोंका संग्रह  हो चूका है तथा और भी प्रयास चल रहा है ) ।

इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके विषय भी लिखे हुए हैं।

सन 1990 से पहलेके हजारों प्रवचन तो अभी ओडियो कैसेटोंमें ही पङे हुए हैं,कम्प्यूटर आदिमें आये ही नहीं है, वो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं।उनके लिये तो जोरदार लगन और मेहनत आदिकी आवश्यकता है।

इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें कई भजन(संग्रह किये हुए 40 भजन) और कई प्रकारके कीर्तन(21 प्रकारके संकीर्तन) उपलब्ध हुए हैं।

उनके द्वारा नित्य-पाठ करनेके लिये शुरु करवाये हुए गीताजीके पाँच श्लोक भी उन्हीकी आवाजमें है।

उनके द्वारा गाया गया नानीबाईका मायरा(छः कैसेटोंवाला 48 विभागों (फाइलों)में है),

श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्-पाठ तथा उन्हीकी आवाजमें गीता-माधुर्य है (इसका 15 वाँ अध्याय पूरा उपलब्ध नहीं हुआ)।

इसी प्रकार, गीता-गान(प्रथम प्रकारका गीता-पाठ,सामूहिक गीता-पाठ, जो गीताजीका शुध्द उच्चारण सीखना चाहते हैं और गीताजी सीखना चाहते हैं  तथा गीताजीका गायन,गीत सुनना चाहते हैं , उनके लिये यह विशेष उपयोगी है।इसकी साफ आवाजके लिये  दुबारा रिकॉर्डिंग की गई है )।

गीता-पाठ(द्वितीय प्रकारका गीता-पाठ (जो श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके साथ-साथ गीता-पाठ करना चाहते हैं, उनके लिये यह विशेष उपयोगी है ),

गीता-व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तककी कैसेटोंका  सेट(124 फाइलोंमें)है, जिसमें व्याख्या करके  पूरी गीताजी समझायी गयी है),

मानसमें नाम-वन्दना {रामचरितमानसके नाम वन्दना प्रकरण (1।18-28) की जो नौ दिनोंतक व्याख्या की गई थी और जिसकी "मानसमें नाम-वन्दना" नामक पुस्तक बनी थी उसके  आठ प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे परन्तु उपलब्ध करीब आठ ही हुए)}।

"कल्याणके तीन सुगम मार्ग" नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा की गयी  व्याख्या   (सन् 29-1-2001 से 8-2-2001 तकके प्रवचन। यह वो पुस्तक है जिनकी व्याख्या स्वयं श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने की है)।

प्रश्नोत्तर (564)

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजसे कई लोग तरह-तरहके प्रश्न पूछा करते थे जिसके जवाब देकर श्री महाराजजी बङी सरलतासे उनको समझा देते थे।प्रश्नोंके उत्तर बङे सटीक होते थे और सुनकर हरेकको बङा सन्तोष होता था।ऐसे ही कुछ (564) प्रश्नोत्तर उनके प्रवचनोंमेंसे छाँटकर उन प्रवचनोंके अंश अलगसे इकठ्टे किये  गये हैं,जो बङे कामके हैं वो भी उपलब्ध है।

इकहत्तर(71) दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें  रोजाना प्रातः पाँच बजे नित्य-स्तुति और गीताजीके करीब दस-दस श्लोकोंका पाठ होता था तथा हरि:शरणम् 2 हरि:शरणम् 2 संकीर्तन होता था फिर श्री महाराजजी सत्संग सुनाते थे।जिस प्रकार उन दिनोंमें प्रातः 5 बजे नित्य-स्तुति,गीता-पाठ,सत्संग आदि होता था उसी प्रकारसे इकहत्तर दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका एक सेट (सत्संग-समूह) तैयार किया गया है, वो भी उपलब्ध है।

इनके सिवा उनके द्वारा बतायी गयी  अपने जीवन-सम्बन्धी कई बातें भी लिखकर संग्रहीत की गई है।

तथा उनके श्रीमुखसे सुनकर लिखी हुई अनेक सूक्तियाँ (751 कहावतें,दोहे, आदि) भी उपलब्ध है ।

इस प्रकार और भी अनेक कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है।हमारेको चाहिये कि शीघ्र ही उनसे लाभ लें।

ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क दी जा सकती है.

जो लेना चाहें,कृपया वो इस पते पर सम्पर्क करें-

-डुँगरदास राम, गाँव पोस्ट चाँवण्डिया, जिला नागौर, राजस्थान(भारत)।

मोबाइल नं० ये हैं- 9414722389  और ब्लाँगका नाम पता इस प्रकार है -

सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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इनके शिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी गीता साधक-संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु,एक संतकी वसीयत आदि करीब तीस पुस्तकें भी निःशुल्क दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट या मोबाइल पर भी पढ सकते हैं।

इस प्रकार यह शीघ्र-कल्याणकारी सामग्री हमारेको अपने पासमें रखनी चाहिये और यथाशीघ्र लाभ अवश्य लेना चाहिये।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके  लगातार सोलह वर्षोंवाले
12693 (बारह हजार छःह सौ तिरानबे) प्रवचनोंका विवरण इस प्रकार है-

सन् 1990 के 557 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1993 के 876 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1994 के 866 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1996 के 915 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2000 के 998 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2002 के 714 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2003 के 729 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2004 के 702 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2005 के 85 सत्संग-प्रवचन -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

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