गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

'संतवेषमें ज्ञानदाता'(समूह)।

                       ।।श्रीहरि।।

'संतवेषमें ज्ञानदाता'(समूह)।

इस समूहमें उन्हीके नम्बर सम्मिलित किये गये हैं जो संतवेषमें संत हैं।

जो गृहस्थवेषमें संत हैं,उनके नं.इस समूहमें सम्मिलित नहीं है('गृहस्थवेषमें ज्ञानदाता' समूह बनाना हो तो विचार किया जा सकता है)।

इस समूह('संतवेषमें ज्ञानदाता')का उध्देश्य यह है कि संत-महात्मा भी ज्ञानका आदान-प्रदान करें और एक-दूसरेको समझते रहें तथा इसमें जो सामग्री संत-महात्मा भेजें,उनमेंसे चुनकर अन्य लोगोंको भेजी जाय।

भेजी जानेवाली सामग्री में भेजनेवाले संतोंका नाम सामिल किया जा सकता है (कि यह सामग्री अमुक संत द्वारा भेजी हुई आयी है)।

मेरे पास जिन-जिन संतोंके नं.थे,उन्हीको इस समूहमें सामिल किया है।अगर किन्ही संतोंके नं.इसमें और जोङने हों तो कृपया परिचय सहित उन संतोंके नम्बर भेजनेका परिश्रम करावें।

सब संतोंको सादर प्रणाम।
सप्रेम हरिस्मरण और नमन।

डुँगरदास राम
सीताराम सीताराम

http://dungrdasram.blogspot.com/

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

डुँगरदासके ब्लॉगका पता- http://dungrdasram.blogspot.com/

डुँगरदासके ब्लॉगका पता-

■ सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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या

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पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं..(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                    ।।श्रीहरि।।

पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं..

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के 19971111/1630 बजेवाले प्रवचनमें आया है कि पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं और भगवानकी कृपाकी कैसी विलक्षणता है।
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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

दिनांक वाले सत्संग-प्रवचन - श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।


दिनांकवाले सत्संग-प्रवचन। -

(श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज)।

साधक-संजीवनी गीतामें किसी मतका खण्डन नहीं किया है-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

दि.19950917/830 बजेके प्रवचनमें श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि
मैंने गीताकी टीका(साधक-संजीवनी)में किसी मतका खण्डन नहीं किया है।मैंने यह ध्यान रखा है।खण्डन करना न मेरा उध्देश्य है और न मैं खण्डन करना ठीक समझता हूँ। गीताके मूलमें भी यही शैली है(गीता18।2-5)।

साधक-संजीवनी गीतामें किसी मतका खण्डन नहीं किया है- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                    ।।श्रीहरि:।।

साधक-संजीवनी गीतामें किसी मतका खण्डन नहीं किया है- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

दि.19950917/830 बजेके प्रवचनमें श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि
मैंने गीताकी टीका(साधक-संजीवनी)में किसी मतका खण्डन नहीं किया है।मैंने यह ध्यान रखा है।खण्डन करना न मेरा उध्देश्य है और न मैं खण्डन करना ठीक समझता हूँ। गीताके मूलमें भी यही शैली है(गीता18।2-5)।

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गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

दो प्रकारकी अयोध्या-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                     ॥श्रीहरि:॥

दो प्रकारकी अयोध्या-

(एक तो अवतारके समयवाली और दूसरी,रामायणपाठ तथा सत्संग-समारोह-स्वरूप वाली)।

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

{कौसल्यादि मातु सब धाई।
निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई॥

जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ
चरन बन परबस गई।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन
हुँकार करि धावत भईं॥

[रामचरितमा.७।६]।

जैसे,कुछदिनों पहले ही ब्यायी हुई गऊ अपने बछड़ेको घरपर ही छोड़कर चरनेके लिये परवशतासे वनमें गयी हों और सूर्यास्तके समय थनोंसे दूध बहाती हुई हुँकार करके नगरकी तरफ दौड़ी हों;ऐसे कौसल्या आदि सब माताएँ (जब रामजी वनसे लौटकर वापस आये,तब वो रामजीसे मिलनेके लिये) दौड़ीं।

यहाँ(अयोध्यामें) बछड़ा वनमें गया है,रामजी वनमें गये हैं,माताएँ वनमें नहीं गई हैं।तो यह विपरीत उदाहरण क्यों दिया यहाँ?

यह इसलिये दिया कि जहाँ रामजी है,वहीं अयोध्या है,बाकी तो सब जंगल है, वन है।माताएँ घरपर थीं तो भी मानो जंगलमें ही थीं; क्योंकि अयोध्या तो रामजीके साथमें थीं।}।

…(सतीजी-पार्वतीजीकी तरह) नारदजीके सन्देह हो गया,ब्रह्माजीके सन्देह हो गया… इन्द्रके सन्देह हो गया।येह सन्देह हुआ है भगवानके चरित्रसे(चरित्र देखनेसे) और भगवानकी कथा(सुनने)से(सन्देह) दूर हुआ।

तो रामचन्द्रजी महाराजके समय(जो) अयोध्या है,उसकी अपेक्षा यह(सत्संग-समारोह-स्वरूप) अयोध्या तेज हो गयी,जब रामायणकी कथा हुई है यहाँ।

रामजीके चरित्रसे तो मोह हो जाता है अर(और) रामचरित्रकी कथासे मोह दूर हो जाता है।

आप ख्याल किया कि नहीं आपने!?
तो यह अयोध्या कम नहीं है येह!

अब जो रामजीका राज्याभिषेक होता है! तो यह अजोध्या है।

हरेक भाई-बहनसे कहना है कि आपलोग सब-हम आप, अजोध्यामें हैं,रामजीके राजगद्दीका उत्सव देखते हैं और अजोध्या*में हैं(तालियोंकी आवाजें)।रामजीसे बढकर रामजीकी कथा है।

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
19951003/1700 बजेवाले प्रवचनका अंश (यथावत)… ।


अपने यहाँ कथा हुई है रामजीका पाठ हुआ है…

(तो यह रामजीसे बढकर है,उस अयोध्यासे यह रामायण-पाठ तथा सत्संग-स्वरूपवाली अयोध्या बढकर है,तथा आप और हम सब उस अयोध्यामें रामजीके राज्याभिषेकका उत्सव देख रहे हैं।हम सब अयोध्यामें हैं।)

…तो कैसी मौजकी बात है।…

(*जोधपुरमें जो नौ दिनोंका सामूहिक रामायण-पाठ हुआ और उसमें 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' पधारे,उस 'सत्संग-समारोह'को ही यहाँ 'अयोध्या' कहा गया है)।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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रविवार, 6 दिसंबर 2015

भरत-चरत्रसे भक्तिका उपदेस(अयोध्याकाण्ड २०६ से आगे)।

                        ॥श्रीहरि:॥

भरत-चरत्रसे भक्तिका उपदेस(अयोध्याकाण्ड २०६ से आगे)।

भरद्वाज मुनि द्वारा भरतजीको कहे जानेके भाव-

सांसारिक भोग पदार्थ न्यायपूर्वक प्राप्त हुए हों और उनको स्वीकार करनेपर परमात्माको भी संतोष होता हो तो उसको स्वीकार करनेपर कोई दोष नहीं है,अच्छा है,लेकिन उनका त्याग करके कोई परमात्माकी तरफ चलता है तो यह और भी बहुत बढिया है,भगवानके भक्तको तो ऐसा ही करना चाहिये।

जो भगवानकी पूर्ण भक्ति प्राप्त करना चाहते हों,उनके लिये भरतजीका यह चरित्र उपदेश है,आदर्श है,रास्ता बतानेवाला है।

भगवानकी परा भक्ति कैसे प्राप्त हो,भक्तिके रास्ते कैसे चलना चाहिये-इसका श्रीभरतजीने श्रीगणेश कर दिया,चलना सिखाना शुरु कर दिया।अब भगवानके भक्तोंको चाहिये कि भरपेट यह अमृत पीलें।

भरतजीकी तरह न्यायपूर्वक प्राप्त भोग पदार्थोंका त्याग करके भगवानकी तरफ चलना चाहिये,भगवानकी भक्ति करनी चाहिये।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
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