॥श्री॥
समग्र(सम्पूर्ण) भगवान एक हैं-
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
('साधक-संजीवनी' ९।४)।
व्याख्या-- 'मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना' -- मन-बुध्दि-इन्द्रियोंसे जिसका ज्ञान होता है, वह भगवानका व्यक्तरूप है और जो मन-बुध्दि-इन्द्रियोंका विषय नहीं है अर्थात् मन आदि जिसको नहीं जान सकते,वह भगवानकी अव्यक्तरूप है। यहाँ भगवानने 'मया' पदसे व्यक्त (साकार-) स्वरूप और 'अव्यक्तमूर्तिना' पदसे अव्यक्त (निकाकार-) स्वरूप बताया है।इसका तात्पर्य है कि भगवान व्यक्तरूपसे भी हैं और अव्यक्तरूपसे भी हैं।इस प्रकार भगवानकी यहाँ व्यक्त-अव्यक्त (साकार-निराकार) कहनेकी गूढाभिसन्धि समग्ररूपसे है अर्थात् सगुण-निर्गुण,साकार-निराकार आदिका भेद तो सम्प्रदायोंको लेकर है,वास्तवमें परमात्मा एक हैं।ये सगुण-निर्गुण आदि एक ही परमात्माके अलग-अलग विशेषण हैं,अलग-अलग नाम हैं।
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सत्संग-संतवाणी. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/
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