।।श्रीहरिः।।
{'साधक-संजीवनी'
(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)}।
विषय-सूची
श्लोक-संख्या विषय पृष्ठ-संख्या
प्राक्कथन ...................................... ढ-प
पहला अध्याय
१-११ पाण्डव और कौरव-सेनाके मुख्य-मुख्य महारथियोंके नामोंका वर्णन (विशेष बात ११) ........................................... १-१२
१२-१९ दोनों पक्षोंकी सेनाओंके शंखवादनका वर्णन ........................................ १३-१८
२०-२७ अर्जुनके द्वारा सेना-निरीक्षण ...१९-२४
२८-४७ अर्जुनके द्वारा कायरता, शोक और पश्चात्तापयुक्त वचन कहना तथा सञ्जयद्वारा शोकाविष्ट अर्जुनकी अवस्थाका वर्णन ... २४-३९
(विशेष बात ३१, ३७)
पहले अध्याय पद, अक्षर और उवाच ....... ४०
पहले अध्यायमें प्रयुक्त छंद .................... ४०
दूसरा अध्याय
१-१० अर्जुनकी कायरताके विषयमें सञ्जयद्वारा भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके संवादका वर्णन ........................................ ४१-५२
(विशेष बात ४६)
११-३० सांख्ययोगका वर्णन .......... ५२-८७
(विशेष बात ५६, ६३; मार्मिक बात ६५, विशेष बात ६९, ६९, ७५, ७८; प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ८५)
३१-३८ क्षात्रधर्मकी दृष्टिसे युद्ध करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन ........... ८७-९३
(प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ९२)
३९-५३ कर्मयोगका वर्णन ......... ९३-११६
(समता-सम्बन्धी विशेष बात ९६; विशेष बात १००; मार्मिक बात १०४; बुद्धि और समता-सम्बन्धी विशेष बात १०८)
५४-७२ स्थितप्रज्ञके लक्षणों आदिका वर्णन ................................. ११६-१४२
(मार्मिक बात १२९; अहंता-ममतासे रहित होनेका उपाय १३७ ; विशेष बात १४०)
दूसरे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... १४२
दूसरे अध्यायमें प्रयुक्त छंद .................. १४२
तीसरा अध्याय
१-८ सांख्ययोग और कर्मयोगकी दृष्टिसे कर्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकताका निरूपण ..................................... १४३-१५८
(मार्मिक बात १४७, १४९; विशेष बात १५१; साधन-सम्बन्धी मार्मिक बात १५७)
९-१९ यज्ञ और सृष्टिचक्रकी परम्परा सुरक्षित रखनेके लिये कर्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकताका निरूपण ........ १५८-१८४
(मार्मिक बात १६०; कर्तव्य और अधिकार-सम्बन्धी मार्मिक बात १६४; कर्तव्य-सम्बन्धी विशेष बात १६७; मार्मिक बात १७७; विशेष बात १७८, १८१; मार्मिक बात १८४)
२०-२९ लोकसंग्रहके लिये कर्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकताका निरूपण .......१८४-२०४
(परमात्मप्राप्ति-सम्बन्धी मार्मिक बात १८५; विशेष बात १८९, १९४, १९५, १९८, १९९; गुण-कर्मविभागको तत्वसे जाननेका उपाय २०१; प्रकृति-पुरुष-सम्बन्धी मार्मिक बात २०२; विशेष बात २०३)
३०-३५ राग-द्वेषरहित होकर स्वधर्मके अनुसार कर्तव्य-कर्म करनेकी प्रेरणा ...... २०५-२२७
(अर्पण-सम्बन्धी विशेष बात २०५; कामना-सम्बन्धी विशेष बात २०६; विशेष बात २०८; राग-द्वेषपर विजय पानेके उपाय २१६; सेवा-सम्बन्धी मार्मिक बात २१९; मार्मिक बात २२४; स्वधर्म और परधर्म-सम्बन्धी मार्मिक बात २२६)
३६-४३ पापोंके कारणभूत 'काम' को मारनेकी प्रेरणा ..............................२२७-२४७
(कामना-सम्बन्धी विशेष बात २२९; विशेष बात २३२, २३५, २३८; मार्मिक बात २४३, २४५)
तीसरे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... २४७
तीसरे अध्यायमें प्रयुक्त छंद ................२४७
चौथा अध्याय
१-१५ कर्मयोगकी परम्परा और भगवानके जन्मों तथा कर्मोंकी दिव्यताका वर्णन ....... २५०-२८६
( विशेष बात २५२; मार्मिक बात २५७; विशेष बात २७३; अवतार-सम्बन्धी विशेष बात २६५; मार्मिक बात २७४; विशेष बात २८०)
१६-३२ कर्मोंके तत्वका और तदनुसार यज्ञोंका वर्णन .............................. २८६-३१२
( विशेष बात २८८; मार्मिक बात २८८; विशेष बात ३०२; मार्मिक बात ३०४; विशेष बात ३०९)
३३-४२ ज्ञानयोग और कर्मयोगकी प्रशंसा तथा प्रेरणा ............................ ३१२-३२८
(ज्ञान-प्राप्तिकी प्रचलित प्रक्रिया ३१३, विशेष बात ३२१, ३२३, ३२४)
चौथे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ३२८
चौथे अध्यायमें प्रयुक्त छंद ................. ३२८
पाँचवाँ अध्याय
१-६ सांख्ययोग तथा कर्मयोगकी एकताका प्रतिपादन और कर्मयोगकी प्रशंसा ..................................... ३२९-३४२
(मार्मिक बात ३३५; विशेष बात ३३९)
७-१२ सांख्ययोग और कर्मयोगके साधनका प्रकार ................................ ३४२-३५६
(विशेष बात ३४३, ३४८; मार्मिक बात ३५४)
१३-२६ फलसहित सांख्ययोगका विषय ...................................... ३४६-३८०
(समता-सम्बन्धी विशेष बात ३६५)
२७-२९ ध्यान और भक्तिका वर्णन ... ३८०-३८५
पाँचवे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ३८५
पाँचवे अध्यायमें प्रयुक्त छंद ................... ३८५
छठा अध्याय
१-६ कर्मयोगका विषय और योगारूढ़ मनुष्यके लक्षण .................................. ३८७-३९६
(विशेष बात ३८९)
५-९ आत्मोद्धारके लिये प्रेरणा और सिद्ध कर्मयोगीके लक्षण .............. ३९३-४०७
(उद्धार-सम्बन्धी विशेष बात ३९७; विशेष बात ४०५)
१०-१५ आसनकी विधि और फलसहित सगुण-साकारके ध्यानका वर्णन ....... ४०७-४१४
(विशेष बात ४०८)
१६-२३ नियमोंका और फलसहित स्वरूपके ध्यानका वर्णन ........................ ४१४-४२६
(विशेष बात ४१६, ४१८, ४२०)
२४-२८ फलसहित निर्गुण-निराकारके ध्यानका वर्णन ................................... ४२६-४३५
(ध्यान-सम्बन्धी मार्मिक बात ४२८; परमात्मामें मन लगानेकी युक्तियाँ ४३२)
२९-३२ सगुण और निर्गुणके ध्यान-योगियोंका अनुभव ............................. ४३५-४४१
३३-३६ मनके निग्रहका विषय ..... ४४१-४४७
(मार्मिक बात ४४६)
३७-४७ योगभ्रष्टकी गतिका वर्णन और भक्त-योगीकी महिमा ...................... ४४७-४६४
(विशेष बात ४४९, ४५५, ४५७; मार्मिक बात ४५९; विशेष बात ४६३)
छठे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच .... ४६४
छठे अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ................ ४६४
सातवाँ अध्याय
१-७ भगवानके द्वारा समग्ररूपके वर्णनकी प्रतिज्ञा करना तथा परा-अपरा प्रकृतियोंके संयोगसे प्राणियोंकी उत्पत्ति बताकर अपनेको सबका मूल कारण बताना ..... ४६५-४८६
(विशेष बात ४६७; शरणागतिके पर्याय ५६७; ज्ञान और विज्ञान-सम्बन्धी विशेष बात ४७०; विशेष बात ४७९)
८-१२ कारणरूपसे भगवानकी विभूतियोंका वर्णन ............................ ४८६-४९६
(विशेष बात ४८९, ४९४)
१३-१९ भगवानके शरण होनेवालोंका और शरण न होनेवालोंका वर्णन ....... ४९६-५२४
(विशेष बात ५०२, ५०७; मार्मिक बात ५०८, ५१६; महात्माओंकी महिमा ५२०)
२०-२३ अन्य देवताओंकी उपासनाओंका फलसहित वर्णन .....................५२४-५३०
(विशेष बात ५२९)
२४-३० भगवानके प्रभावको न जाननेवालोंकी निन्दा और जाननेवालोंकी प्रशंसा तथा भगवानके समग्ररूपका वर्णन ............ ५३०-५५३
(विशेष बात ५३१, ५४०; भगवानके समग्ररूप-सम्बन्धी विशेष बात ५४४; अध्याय-सम्बन्धी विशेष बात ५४६)
सातवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ५५२
सातवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ........... ५५२
सातवें अध्यायका सार ............५५२-५५३
आठवाँ अध्याय
१-७ अर्जुनके सात प्रश्न और भगवानके द्वारा उनका उत्तर देते हुए सब समयमें अपना स्मरण करनेकी आज्ञा देना ............ ५५५-५६९
(विशेष बात ५५९; मार्मिक बात ५६३; विशेष बात ५६५; स्मरण-सम्बन्धी विशेष बात ५६८)
८-१६ सगुण-निराकार, निर्गुण-निराकार और सगुण-साकारकी उपासनाका फलसहित वर्णन .................................... ५६९-५८१
(विशेष बात ५७८, ५८०, ५८०)
१६-२२ ब्रह्मलोकतककी अवधिका और भगवानकी महत्ता तथा भक्तिका वर्णन ....................................... ५८१-५८९
(विशेष बात ५८८)
२३-२८ शुक्ल और कृष्ण-गतिका वर्णन और उसको जाननेवाले योगीकी महिमा ... ५८९-५९७
(विशेष बात ५९२)
आठवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ५९७
आठवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .................५९७
नवाँ अध्याय
१-६ प्रभावसहित विज्ञानका वर्णन ... ५९९-६१२
(ज्ञान और विज्ञान-सम्बन्धी विशेष बात ६००; विशेष बात ६०४; मार्मिक बात ६०९; विशेष बात ६११)
७-१० महासर्ग और महाप्रलयका वर्णन ............................. ६१२-६१८
११-१५ भगवानका तिरस्कार करनेवाले एवं आसुरी, राक्षसी और मोहिनी प्राकृतिका आश्रय लेनेवालोंका कथन तथा दैवी प्राकृतिका आश्रय लेनेवाले भक्तोंके भजनका वर्णन .................................. ६१८-६२५
१६-१९ कार्य-कारणरूपसे भगवत्स्वरूप विभूतियोंका वर्णन .................... ६२५-६३०
२०-२५ सकाम और निष्काम उपासनाका फलसहित वर्णन .................... ६३०-६३९
२६-३४ पदार्थों और क्रियाओंको भगवदर्पण करनेका फल बताकर भक्तिके अधिकारियोंका और भक्तिका वर्णन .............. ६३९-६६६
(विशेष बात ६४०, ६४२, ६४४; मार्मिक बात ६५३; विशेष बात ६४७; मार्मिक बात ६५८, ६६०; विशेष बात ६६४; सातवें और नवें अध्यायके विषयकी एकता ६६४)
नवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ६६६
नवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .................६६६
नवें अध्यायका सार .........................६६६
दसवाँ अध्याय
१-७ भगवानकी विभूति और योगक कथन तथा उनको जाननेकी महिमा ...... ६६९-६८०
(विशेष बात ६७५, ६७८)
८-११ फलसहित भगवद्भक्ति और भगवत्कृपाका प्रभाव ............................ ६८०-६८७
(विशेष बात ६८१, ६८६)
१२-१८ अर्जुनके द्वारा भगवानकी स्तुति और योग तथा विभूतियोंको कहनेके लिये प्रार्थना ................................... ६८८-६९४
१९-४२ भगवानके द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगका वर्णन ............ ६९४-७१८
(विशेष बात ७११, ७१५)
दसवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच .... ७२८
दसवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ................. ७२८
ग्यारहवाँ अध्याय
१-८ विराटरूप दिखानेके लिये अर्जुनकी प्रार्थना और भगवानके द्वारा अर्जुनको दिव्यचक्षु प्रदान करना ...................... ७१९-७२८
(विशेष बात ७२३, ७२७)
९-१४ सञ्जयद्वारा धृतराष्ट्रके प्रति विराट-रूपका वर्णन ................ ७२८-७३२
१५-३१ अर्जुनके द्वारा विराटरूपको देखना और उसकी स्तुति करना ........... ७३२-७४७
(विशेष बात ७३२; ७३८)
३२-३५ भगवानके द्वारा अपने अत्युग्र विराटरूपका परिचय और युद्धकी आज्ञा ................................... ७४७-७५२
(विशेष बात ७५१)
३६-४६ अर्जुनके द्वारा विराटरूप भगवानकी स्तुति-प्रार्थना ........................ ७५२-७६४
(ग्यारहवें अध्यायमें ग्यारह रसोंका वर्णन ७६१, विशेष बात ७६२)
४७-५० भगवानके द्वारा विराटरूपके दर्शनकी दुर्लभता बताना और भयभीत अर्जुनको आश्वासन देना ........................ ७६४-७७१
(विशेष बात ७६५; सञ्जय और अर्जुनकी दिव्यदृष्टि कबतक रही? ७६८)
५१-५५ भगवानके द्वारा चतुर्भुजरूपकी महत्ता और उसके दर्शनका उपाय बताना ..................................... ७७१-७७८
(विशेष बात ७७६, ७७७)
ग्यारहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ...७७८
ग्यारहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ........... ७७८
बारहवाँ अध्याय
१-१२ सगुण और निर्गुण-उपासकोंकी श्रेष्ठताका निर्णय और भगवत्प्राप्तिके चार साधनोंका वर्णन ........................... ७७९-८१२
(विशेष बात ७८७; विशेष बात - सगुण-उपासनाकी सुगमताएँ और निर्गुण-उपासनाकी कठिनताएँ ७९२; विशेष बात ७९९; भगवत्प्राप्ति-सम्बन्धी विशेष बात ८०१; कर्मफल-त्याग-सम्बन्धी विशेष बात ८०९; साधन-सम्बन्धी विशेष बात ८११)
१३-२० सिद्ध-भक्तों उन्तालीस लक्षणोंका वर्णन ............................ ८१२-८२९
(मार्मिक बात ८२७ ; प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ८२८)
बारहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ८३३
बारहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .......... ८३३
तेरहवाँ अध्याय
१-१८ क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ (जीवात्मा), ज्ञान और ज्ञेय (परमात्मा) का भक्ति-सहित विवेचन .............................. ८६५-८६८
(मार्मिक बात ८६७ ; विशेष बात ८४४, ८४५, ८४८, ८४६)
१९-३४ ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुषका विवेचन ................................. ८६८-८९०
(मार्मिक बात ८८०)
तेरहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ८९०
तेरहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .................८९०
चौदहवाँ अध्याय
१-४ ज्ञानकी महिमा और प्रकृति-पुरुषसे जगतकी उत्पत्ति ................... ८९१-८९५
५-१८ सत्व, रज और तम - इन तीनों गुणोंका विवेचन ..........................८९५-८१५
(विशेष बात ८९६, ९०२; मार्मिक बात ९०७; विशेष बात ९१२, ९१४)
१९-२७ भगवत्प्राप्तिका उपाय एवं गुणातीत पुरुषके लक्षण ................... ९१५-९२६
(विशेष बात ९१९)
चौदहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ७७८
चौदहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .............७७८
पन्द्रहवाँ अध्याय
१-६ संसार-वृक्षका तथा उसका छेदन करके भगवानके शरण होनेका और भगवद्धामका वर्णन ......................... ९२७-९४७
(विशेष बात ९३५; वैराग्य सम्बन्धी विशेष बात ९३६; संसारसे सम्बन्ध-विच्छेदके कुछ सुगम उपाय ९३७; विशेष बात ९४३, ९४४)
७-११ जीवात्माका स्वरूप तथा उसे जाननेवाले और न जाननेवालेका वर्णन ..... ९४८-९६६
(विशेष बात ९५०, ९५७, ९५८; मार्मिक बात ९६०, ९६३)
१२-१५ भगवानके प्रभावका वर्णन ............................ ९६६-९७५
(परमात्मप्राप्ति-सम्बन्धी विशेष बात ९७१; प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ९७३; मार्मिक बात ९७५)
१६-२० क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तमका वर्णन तथा अध्यायका उपसंहार ......... ९७५-९८५
(मार्मिक बात ९७८; विशेष बात ९८०)
पंद्रहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ९८५
पंद्रहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .......... ९८५
पंद्रहवें अध्यायका सार ............. ९८५-९८६
सोलहवाँ अध्याय
१-५ फलसहित दैवी और आसुरी सम्पत्तिका वर्णन ................... ९८७-१०१०
(मार्मिक बात १००४, १००६)
६-८ सत्कर्मोंसे विमुख हुए आसुरी-सम्पत्तिवाले मनुष्योंकी मान्यताओंका कथन ............................... १०११-१०१७
(विशेष बात १०१५)
९-१६ आसुरी-सम्पत्तिवाले मनुष्योंके दुराचारों और मनोरथोंका फलसहित वर्णन ................................... १०१७-१०२५
१७-२० आसुरी-सम्पत्तिके मूलभूत दोष - काम, क्रोध और लोभसे रहित होकर शास्त्रविधिके अनुसार कर्म करनेकी प्रेरणा ..... १०३१-१०३६
सोलहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच .............................. १०३६
सोलहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ......... १०३६
सत्रहवाँ अध्याय
१-६ तीन प्रकारकी श्रद्धाका और आसुर निश्चयवाले मनुष्योंका वर्णन ..... १०३७-१०४५
(मार्मिक बात १०४०; विशेष बात १०४५)
७-१० सात्विक, राजस और तामस आहारिकी रूचिका वर्णन ......................१०४५-१०५१
(प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात १०४९; भोजनके लिये आवश्यक विचार १०५०)
११-२२ यज्ञ, तप और दानके तीन-तीन भेदोंका वर्णन .......................... १०५२-१०६८
(सात्विकताका तात्पर्य १०५२; मनकी प्रसन्नता प्राप्त करनेके उपाय १०५९; दान-सम्बन्धी विशेष बात १०६७; कर्मफल-सम्बन्धी विशेष बात १०६७)
२३-२८ 'ॐ तत्सत्' के प्रयोगकी व्याख्या और असत्-कर्मका वर्णन ............१०६९-१०७५
सत्रहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ................................ १०७५
सत्रहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ............. १०७५
अठारहवाँ अध्याय
१-१२ संन्यास और त्यागके विषयमें मतान्तर और कर्मयोगका वर्णन ..... १०७७-११०८
(मार्मिक बात १०९२; कर्म-सम्बन्धी विशेष बात १०९५)
१३-४० सांख्ययोगका वर्णन .... ११०८-११४७
(मार्मिक बात १११९; विशेष बात ११२८, ११३६, ११४३, ११४४)
४१-४८ कर्मयोगका भक्तिसहित वर्णन ............................ ११४७-११६८
(विशेष बात ११४८; गोरक्षा-सम्बन्धी विशेष बात ११५२; स्वाभाविक-कर्मोंका तात्पर्य ११५४; जाति जन्मसे मानी जाय या कर्मसे ११५४; विशेष बात ११६०, ११६३, ११६६)
४९-५५ सांख्ययोगका वर्णन ...... ११६९-११७८
(विशेष बात ११७६)
५६-६६ भगवद्भक्तिका वर्णन .... ११७८-१२१९
(प्रेम-सम्बन्धी विशेष बात ११८२; विशेष बात ११८६, ११८९, ११९२; शरणागति-सम्बन्धी विशेष बात १२०४; शरणागतिका रहस्य १२१२)
६७-७८ श्रीमद्भगवद्गीताकी महिमा ................................... १२१९-१२३९
(मार्मिक बात १२३१)
अठारहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ............................... १२३९
अठारहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ............................... १२३९
आरती ...................................... १२४०
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