शनिवार, 12 सितंबर 2015

'साधक-संजीवनी' की विषयसूची (लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                  ।।श्रीहरिः।।

{'साधक-संजीवनी'

(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)}।

                            विषय-सूची

श्लोक-संख्या           विषय            पृष्ठ-संख्या

प्राक्कथन ...................................... ढ-प

                         पहला अध्याय

१-११ पाण्डव और कौरव-सेनाके मुख्य-मुख्य महारथियोंके नामोंका वर्णन (विशेष बात ११) ........................................... १-१२

१२-१९ दोनों पक्षोंकी सेनाओंके शंखवादनका वर्णन ........................................ १३-१८

२०-२७ अर्जुनके द्वारा सेना-निरीक्षण ...१९-२४

२८-४७ अर्जुनके द्वारा कायरता, शोक और पश्चात्तापयुक्त  वचन कहना तथा सञ्जयद्वारा शोकाविष्ट अर्जुनकी अवस्थाका वर्णन ... २४-३९
(विशेष बात ३१, ३७)

पहले अध्याय पद, अक्षर और उवाच ....... ४०
पहले अध्यायमें प्रयुक्त छंद .................... ४०

                         दूसरा अध्याय

१-१० अर्जुनकी कायरताके विषयमें सञ्जयद्वारा भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके संवादका वर्णन ........................................ ४१-५२
(विशेष बात ४६)

११-३० सांख्ययोगका वर्णन .......... ५२-८७

(विशेष बात ५६, ६३; मार्मिक बात ६५, विशेष बात ६९, ६९, ७५, ७८; प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ८५)

३१-३८  क्षात्रधर्मकी दृष्टिसे युद्ध करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन ........... ८७-९३

(प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ९२)

३९-५३ कर्मयोगका वर्णन ......... ९३-११६

(समता-सम्बन्धी विशेष बात ९६; विशेष बात १००; मार्मिक बात १०४; बुद्धि और समता-सम्बन्धी विशेष बात १०८)

५४-७२ स्थितप्रज्ञके लक्षणों आदिका वर्णन ................................. ११६-१४२

(मार्मिक बात १२९; अहंता-ममतासे रहित होनेका उपाय १३७ ; विशेष बात १४०)

दूसरे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... १४२
दूसरे अध्यायमें प्रयुक्त छंद .................. १४२

                          तीसरा अध्याय

१-८ सांख्ययोग और कर्मयोगकी दृष्टिसे कर्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकताका निरूपण ..................................... १४३-१५८

(मार्मिक बात १४७, १४९; विशेष बात १५१; साधन-सम्बन्धी मार्मिक बात १५७)

९-१९ यज्ञ और सृष्टिचक्रकी परम्परा सुरक्षित रखनेके लिये कर्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकताका निरूपण ........ १५८-१८४

(मार्मिक बात १६०; कर्तव्य और अधिकार-सम्बन्धी मार्मिक बात १६४; कर्तव्य-सम्बन्धी विशेष बात १६७; मार्मिक बात १७७; विशेष बात १७८, १८१; मार्मिक बात १८४)

२०-२९ लोकसंग्रहके लिये कर्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकताका निरूपण .......१८४-२०४

(परमात्मप्राप्ति-सम्बन्धी मार्मिक बात १८५; विशेष बात १८९, १९४, १९५, १९८, १९९; गुण-कर्मविभागको तत्वसे जाननेका उपाय २०१; प्रकृति-पुरुष-सम्बन्धी मार्मिक बात २०२; विशेष बात २०३)

३०-३५ राग-द्वेषरहित होकर स्वधर्मके अनुसार कर्तव्य-कर्म करनेकी प्रेरणा ...... २०५-२२७

(अर्पण-सम्बन्धी विशेष बात २०५; कामना-सम्बन्धी विशेष बात २०६; विशेष बात २०८; राग-द्वेषपर विजय पानेके उपाय २१६; सेवा-सम्बन्धी मार्मिक बात २१९; मार्मिक बात २२४; स्वधर्म और परधर्म-सम्बन्धी मार्मिक बात २२६)

३६-४३ पापोंके कारणभूत 'काम' को मारनेकी प्रेरणा ..............................२२७-२४७

(कामना-सम्बन्धी विशेष बात २२९; विशेष बात २३२, २३५, २३८; मार्मिक बात २४३, २४५)

तीसरे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... २४७
तीसरे अध्यायमें प्रयुक्त छंद ................२४७

                           चौथा अध्याय

१-१५ कर्मयोगकी परम्परा और भगवानके जन्मों तथा कर्मोंकी दिव्यताका वर्णन ....... २५०-२८६

( विशेष बात २५२; मार्मिक बात २५७; विशेष बात २७३; अवतार-सम्बन्धी विशेष बात २६५; मार्मिक बात २७४; विशेष बात २८०)

१६-३२ कर्मोंके तत्वका और तदनुसार यज्ञोंका वर्णन .............................. २८६-३१२

( विशेष बात २८८; मार्मिक बात २८८; विशेष बात ३०२; मार्मिक बात ३०४; विशेष बात ३०९)

३३-४२ ज्ञानयोग और कर्मयोगकी प्रशंसा तथा प्रेरणा ............................ ३१२-३२८

(ज्ञान-प्राप्तिकी प्रचलित प्रक्रिया ३१३, विशेष बात ३२१, ३२३, ३२४)

चौथे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ३२८
चौथे अध्यायमें प्रयुक्त छंद ................. ३२८

                          पाँचवाँ अध्याय

१-६ सांख्ययोग तथा कर्मयोगकी एकताका प्रतिपादन और कर्मयोगकी प्रशंसा ..................................... ३२९-३४२

(मार्मिक बात ३३५; विशेष बात ३३९)

७-१२ सांख्ययोग और कर्मयोगके साधनका प्रकार ................................ ३४२-३५६

(विशेष बात ३४३, ३४८; मार्मिक बात ३५४)

१३-२६ फलसहित सांख्ययोगका विषय ...................................... ३४६-३८०

(समता-सम्बन्धी विशेष बात ३६५)

२७-२९ ध्यान और भक्तिका वर्णन ... ३८०-३८५

पाँचवे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ३८५
पाँचवे अध्यायमें प्रयुक्त छंद ................... ३८५

                        छठा अध्याय

१-६ कर्मयोगका विषय और योगारूढ़ मनुष्यके लक्षण .................................. ३८७-३९६

(विशेष बात ३८९)

५-९ आत्मोद्धारके लिये प्रेरणा और सिद्ध कर्मयोगीके लक्षण .............. ३९३-४०७

(उद्धार-सम्बन्धी विशेष बात ३९७; विशेष बात ४०५)

१०-१५ आसनकी विधि और फलसहित सगुण-साकारके ध्यानका वर्णन ....... ४०७-४१४

(विशेष बात ४०८)

१६-२३ नियमोंका और फलसहित स्वरूपके ध्यानका वर्णन ........................ ४१४-४२६

(विशेष बात ४१६, ४१८, ४२०)

२४-२८ फलसहित निर्गुण-निराकारके ध्यानका वर्णन ................................... ४२६-४३५

(ध्यान-सम्बन्धी मार्मिक बात ४२८; परमात्मामें मन लगानेकी युक्तियाँ ४३२)

२९-३२ सगुण और निर्गुणके ध्यान-योगियोंका अनुभव ............................. ४३५-४४१

३३-३६ मनके निग्रहका विषय ..... ४४१-४४७

(मार्मिक बात ४४६)

३७-४७ योगभ्रष्टकी गतिका वर्णन और भक्त-योगीकी महिमा ...................... ४४७-४६४

(विशेष बात ४४९, ४५५, ४५७; मार्मिक बात ४५९; विशेष बात ४६३)

छठे अध्यायके पद, अक्षर और उवाच .... ४६४
छठे अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ................ ४६४

                          सातवाँ अध्याय

१-७ भगवानके द्वारा समग्ररूपके वर्णनकी प्रतिज्ञा करना तथा परा-अपरा प्रकृतियोंके संयोगसे प्राणियोंकी उत्पत्ति बताकर अपनेको सबका मूल कारण बताना ..... ४६५-४८६

(विशेष बात ४६७; शरणागतिके पर्याय ५६७; ज्ञान और विज्ञान-सम्बन्धी विशेष बात ४७०; विशेष बात ४७९)

८-१२ कारणरूपसे भगवानकी विभूतियोंका वर्णन ............................ ४८६-४९६

(विशेष बात ४८९, ४९४)

१३-१९ भगवानके शरण होनेवालोंका और शरण न होनेवालोंका वर्णन ....... ४९६-५२४

(विशेष बात ५०२, ५०७; मार्मिक बात ५०८, ५१६; महात्माओंकी महिमा ५२०)

२०-२३ अन्य देवताओंकी उपासनाओंका फलसहित वर्णन .....................५२४-५३०

(विशेष बात ५२९)

२४-३० भगवानके प्रभावको न जाननेवालोंकी निन्दा और जाननेवालोंकी प्रशंसा तथा भगवानके समग्ररूपका वर्णन ............ ५३०-५५३

(विशेष बात ५३१, ५४०; भगवानके समग्ररूप-सम्बन्धी विशेष बात ५४४; अध्याय-सम्बन्धी विशेष बात ५४६)

सातवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ५५२
सातवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ........... ५५२
सातवें अध्यायका सार ............५५२-५५३

                         आठवाँ अध्याय

१-७ अर्जुनके सात प्रश्न और भगवानके द्वारा उनका उत्तर देते हुए सब समयमें अपना स्मरण करनेकी आज्ञा देना ............ ५५५-५६९

(विशेष बात ५५९; मार्मिक बात ५६३; विशेष बात ५६५; स्मरण-सम्बन्धी विशेष बात ५६८)

८-१६ सगुण-निराकार, निर्गुण-निराकार और सगुण-साकारकी उपासनाका फलसहित वर्णन .................................... ५६९-५८१

(विशेष बात ५७८, ५८०, ५८०)

१६-२२ ब्रह्मलोकतककी अवधिका और भगवानकी महत्ता तथा भक्तिका वर्णन ....................................... ५८१-५८९

(विशेष बात ५८८)

२३-२८ शुक्ल और कृष्ण-गतिका वर्णन और उसको जाननेवाले योगीकी महिमा ... ५८९-५९७

(विशेष बात ५९२)

आठवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ५९७
आठवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .................५९७

                             नवाँ अध्याय

१-६ प्रभावसहित विज्ञानका वर्णन ... ५९९-६१२

(ज्ञान और विज्ञान-सम्बन्धी विशेष बात ६००; विशेष बात ६०४; मार्मिक बात ६०९; विशेष बात ६११)

७-१० महासर्ग और महाप्रलयका वर्णन ............................. ६१२-६१८

११-१५ भगवानका तिरस्कार करनेवाले एवं आसुरी, राक्षसी और मोहिनी प्राकृतिका आश्रय लेनेवालोंका कथन तथा दैवी प्राकृतिका आश्रय लेनेवाले भक्तोंके भजनका वर्णन .................................. ६१८-६२५

१६-१९ कार्य-कारणरूपसे भगवत्स्वरूप विभूतियोंका वर्णन .................... ६२५-६३०

२०-२५ सकाम और निष्काम उपासनाका फलसहित वर्णन .................... ६३०-६३९

२६-३४ पदार्थों और क्रियाओंको भगवदर्पण करनेका फल बताकर भक्तिके अधिकारियोंका और भक्तिका वर्णन .............. ६३९-६६६

(विशेष बात ६४०, ६४२, ६४४; मार्मिक बात ६५३; विशेष बात ६४७; मार्मिक बात ६५८, ६६०; विशेष बात ६६४; सातवें और नवें अध्यायके विषयकी एकता ६६४)

नवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ६६६
नवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .................६६६
नवें अध्यायका सार .........................६६६

                          दसवाँ अध्याय

१-७ भगवानकी विभूति और योगक कथन तथा उनको जाननेकी महिमा ...... ६६९-६८०

(विशेष बात ६७५, ६७८)

८-११ फलसहित भगवद्भक्ति और भगवत्कृपाका प्रभाव ............................ ६८०-६८७

(विशेष बात ६८१, ६८६)

१२-१८ अर्जुनके द्वारा भगवानकी स्तुति और योग तथा विभूतियोंको कहनेके लिये प्रार्थना ................................... ६८८-६९४

१९-४२ भगवानके द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगका वर्णन ............ ६९४-७१८

(विशेष बात ७११, ७१५)

दसवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच .... ७२८
दसवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ................. ७२८

                         ग्यारहवाँ अध्याय

१-८ विराटरूप दिखानेके लिये अर्जुनकी प्रार्थना और भगवानके द्वारा अर्जुनको दिव्यचक्षु प्रदान करना ...................... ७१९-७२८

(विशेष बात ७२३, ७२७)

९-१४ सञ्जयद्वारा धृतराष्ट्रके प्रति विराट-रूपका वर्णन ................ ७२८-७३२

१५-३१ अर्जुनके द्वारा विराटरूपको देखना और उसकी स्तुति करना ........... ७३२-७४७

(विशेष बात ७३२; ७३८)

३२-३५ भगवानके द्वारा अपने अत्युग्र विराटरूपका परिचय और युद्धकी आज्ञा ................................... ७४७-७५२

(विशेष बात ७५१)

३६-४६ अर्जुनके द्वारा विराटरूप भगवानकी स्तुति-प्रार्थना ........................ ७५२-७६४

(ग्यारहवें अध्यायमें ग्यारह रसोंका वर्णन ७६१, विशेष बात ७६२)

४७-५० भगवानके द्वारा विराटरूपके दर्शनकी दुर्लभता बताना और भयभीत अर्जुनको आश्वासन देना ........................ ७६४-७७१

(विशेष बात ७६५; सञ्जय और अर्जुनकी दिव्यदृष्टि कबतक रही? ७६८)

५१-५५ भगवानके द्वारा चतुर्भुजरूपकी महत्ता और उसके दर्शनका उपाय बताना ..................................... ७७१-७७८

(विशेष बात ७७६, ७७७)

ग्यारहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ...७७८
ग्यारहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ........... ७७८

                         बारहवाँ अध्याय

१-१२ सगुण और निर्गुण-उपासकोंकी श्रेष्ठताका निर्णय और भगवत्प्राप्तिके चार साधनोंका वर्णन ........................... ७७९-८१२

(विशेष बात ७८७; विशेष बात - सगुण-उपासनाकी सुगमताएँ और निर्गुण-उपासनाकी कठिनताएँ ७९२; विशेष बात ७९९; भगवत्प्राप्ति-सम्बन्धी विशेष बात ८०१; कर्मफल-त्याग-सम्बन्धी विशेष बात ८०९; साधन-सम्बन्धी विशेष बात ८११)

१३-२० सिद्ध-भक्तों उन्तालीस लक्षणोंका वर्णन ............................ ८१२-८२९

(मार्मिक बात ८२७ ; प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ८२८)

बारहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ८३३
बारहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .......... ८३३

                         तेरहवाँ अध्याय

१-१८ क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ (जीवात्मा), ज्ञान और ज्ञेय (परमात्मा) का भक्ति-सहित विवेचन .............................. ८६५-८६८

(मार्मिक बात ८६७ ; विशेष बात ८४४, ८४५, ८४८, ८४६)

१९-३४ ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुषका विवेचन ................................. ८६८-८९०

(मार्मिक बात ८८०)

तेरहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ८९०
तेरहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .................८९०

                          चौदहवाँ अध्याय

१-४ ज्ञानकी महिमा और प्रकृति-पुरुषसे जगतकी उत्पत्ति ................... ८९१-८९५

५-१८ सत्व, रज और तम - इन तीनों गुणोंका विवेचन ..........................८९५-८१५

(विशेष बात ८९६, ९०२; मार्मिक बात ९०७; विशेष बात ९१२, ९१४)

१९-२७ भगवत्प्राप्तिका उपाय एवं गुणातीत पुरुषके लक्षण ................... ९१५-९२६

(विशेष बात ९१९)

चौदहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ७७८
चौदहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .............७७८

                         पन्द्रहवाँ अध्याय

१-६ संसार-वृक्षका तथा उसका छेदन करके भगवानके शरण होनेका और भगवद्धामका वर्णन ......................... ९२७-९४७

(विशेष बात ९३५; वैराग्य सम्बन्धी विशेष बात ९३६; संसारसे सम्बन्ध-विच्छेदके कुछ सुगम उपाय ९३७; विशेष बात ९४३, ९४४)

७-११ जीवात्माका स्वरूप तथा उसे जाननेवाले और न जाननेवालेका वर्णन ..... ९४८-९६६

(विशेष बात ९५०, ९५७, ९५८; मार्मिक बात ९६०, ९६३)

१२-१५ भगवानके प्रभावका वर्णन ............................ ९६६-९७५

(परमात्मप्राप्ति-सम्बन्धी विशेष बात ९७१; प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात ९७३; मार्मिक बात ९७५)

१६-२० क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तमका वर्णन तथा अध्यायका उपसंहार ......... ९७५-९८५

(मार्मिक बात ९७८; विशेष बात ९८०)

पंद्रहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ... ९८५
पंद्रहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द .......... ९८५
पंद्रहवें अध्यायका सार ............. ९८५-९८६

                          सोलहवाँ अध्याय

१-५ फलसहित दैवी और आसुरी सम्पत्तिका वर्णन ................... ९८७-१०१०

(मार्मिक बात १००४, १००६)

६-८ सत्कर्मोंसे विमुख हुए आसुरी-सम्पत्तिवाले मनुष्योंकी मान्यताओंका कथन ............................... १०११-१०१७

(विशेष बात १०१५)

९-१६ आसुरी-सम्पत्तिवाले मनुष्योंके दुराचारों और मनोरथोंका फलसहित वर्णन ................................... १०१७-१०२५

१७-२० आसुरी-सम्पत्तिके मूलभूत दोष - काम, क्रोध और लोभसे रहित होकर शास्त्रविधिके अनुसार कर्म करनेकी प्रेरणा ..... १०३१-१०३६

सोलहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच .............................. १०३६
सोलहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ......... १०३६

                          सत्रहवाँ अध्याय

१-६ तीन प्रकारकी श्रद्धाका और आसुर निश्चयवाले मनुष्योंका वर्णन ..... १०३७-१०४५

(मार्मिक बात १०४०; विशेष बात १०४५)

७-१० सात्विक, राजस और तामस आहारिकी रूचिका वर्णन ......................१०४५-१०५१

(प्रकरण-सम्बन्धी विशेष बात १०४९; भोजनके लिये आवश्यक विचार १०५०)

११-२२ यज्ञ, तप और दानके तीन-तीन भेदोंका वर्णन .......................... १०५२-१०६८

(सात्विकताका तात्पर्य १०५२; मनकी प्रसन्नता प्राप्त करनेके उपाय १०५९; दान-सम्बन्धी विशेष बात १०६७; कर्मफल-सम्बन्धी विशेष बात १०६७)

२३-२८ 'ॐ तत्सत्' के प्रयोगकी व्याख्या और असत्-कर्मका वर्णन ............१०६९-१०७५

सत्रहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ................................ १०७५
सत्रहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ............. १०७५

                         अठारहवाँ अध्याय

१-१२ संन्यास और त्यागके विषयमें मतान्तर और कर्मयोगका वर्णन ..... १०७७-११०८

(मार्मिक बात १०९२; कर्म-सम्बन्धी विशेष बात १०९५)

१३-४० सांख्ययोगका वर्णन .... ११०८-११४७

(मार्मिक बात १११९; विशेष बात ११२८, ११३६, ११४३, ११४४)

४१-४८ कर्मयोगका भक्तिसहित वर्णन ............................ ११४७-११६८

(विशेष बात ११४८; गोरक्षा-सम्बन्धी विशेष बात ११५२; स्वाभाविक-कर्मोंका तात्पर्य ११५४; जाति जन्मसे मानी जाय या कर्मसे ११५४; विशेष बात ११६०, ११६३, ११६६)

४९-५५ सांख्ययोगका वर्णन ...... ११६९-११७८

(विशेष बात ११७६)

५६-६६ भगवद्भक्तिका वर्णन .... ११७८-१२१९

(प्रेम-सम्बन्धी विशेष बात ११८२; विशेष बात ११८६, ११८९, ११९२; शरणागति-सम्बन्धी विशेष बात १२०४; शरणागतिका रहस्य १२१२)

६७-७८ श्रीमद्भगवद्गीताकी महिमा ................................... १२१९-१२३९
(मार्मिक बात १२३१)

अठारहवें अध्यायके पद, अक्षर और उवाच ............................... १२३९
अठारहवें अध्यायमें प्रयुक्त छन्द ............................... १२३९
आरती ...................................... १२४०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें