बुधवार, 13 जनवरी 2016

श्रीरामेश्वरम्-स्थापनाके समय वहाँ श्रीसीताजी कैसे आयीं? (जानें-)

                      ।।श्रीहरि:।।

प्रश्न-

श्रीरामेश्वरम्-स्थापनाके समय वहाँ श्रीसीताजी कैसे आयीं?

उत्तर-

श्री रामचरितमानस में लिखा है कि भगवान श्री रामचन्द्रजीने सागरपर सेतू बँधवाया और भगवान श्री रामेश्वरम् (शिवलिङ्ग)की स्थापना की।

फिर लंका जाकर,रावणको मारकर पुष्पकविमान द्वारा अयोध्या पधारे।

आकाशमार्गसे चलते-चलते श्री रामचन्द्रजी ने सीताजीको रणभूमि दिखाते हुए सेतुबन्ध रामेश्वरम् के दर्शन भी करवाये,जिसका संकेत वाल्मीकि रामायणमें भी है।

लंकासे लौटते समय श्री रामजीने रामेश्वरम् में दो शिवलिंगोंकी स्थापना करवायी थीं।

श्री हुमामानजी महाराज काशीजी जाकर दो शिवलिंग लाये थे;परन्तु मूहूर्तका समय न निकल जाय- इस कारण श्री रामजीने श्रीसीताजीके हाथोंसे बनाया हुआ बालूरेतका शिवलिंग स्थापित कर दिया।

जब श्रीहनुमानजी महाराज काशीजीसे शिवलिंग लेकर लौटे तो देखा कि शिवलिंग की स्थापना पहले ही हो चूकी है,तब वो बोले कि अब मैं इन शिवलिंगोंका क्या करूँ,(आपने तो पहले ही बालुकामय शिवलिंग की स्थापना करवादी)।

मैं तो आपकी आज्ञासे ही काशीजी जाकर और तपस्या करके तथा शिवजीके कृपा करनेपर ये शिवलिंग लाया हूँ - एक तो आपके लिये और दूसरा अपने-स्वयं पूजा करनेके लिये।

तब श्री रामजी ने कहा कि यह  रेतसे बना हुआ-बालुकामय शिवलिंग आप हटादें,तो उसकी जगह आपके द्वारा लाया गया शिवलिंग स्थापित कर देंगे।

तब हनुमानजी ने उसको हटानेकी कोशीश की;लेकिन हटा नहीं सके।

हनुमानजी महाराजने अपनी शक्तिशालिनी पूँछ लपेटकर उस पूँछसे शिवलिंगको बाँधा और उससे खींच कर हटाना चाहा तो भी (आदिशक्ति सीताजीके कर-कमलों द्वारा स्थापित) वो शिवलिंग हटा नहीं सके, उलटे हनुमानजी की पूँछ टूट गई और वो गिर गये,तथा मूर्छित हो गये।

तब श्रीरामजीने (लक्ष्मण-मूर्छाके अवसरके समान) बङा विलाप किया।

मूर्छा दूर होनेपर हनुमानजी महाराज के द्वारा लाया गया शिवलिंग अलगसे स्थापित किया गया,जिसका नाम है-हनुमदीश्वर।

रामेश्वरम् के दर्शन कर लेने पर भी जबतक हनुमदीश्वरके दर्शन न किये जायँ तबतक रामेश्वरम्-दर्शनका फल नहीं मिलता।  ...

पूरी कथा पढनी हो तो कृपया आनन्द रामायण और पद्मपुराण में पढें।

ऐसा एक चित्र भी प्रचलित है जिसमें शिवलिंग के पासमें राम-लक्ष्मणके सहित सीताजी भी मौजूद है।

इस प्रसंगको लेकर (और चित्र को देखकर) लगता है कि किसीने कल्पना करली कि यहाँ सीताजी कहाँसे आ गई? उनको तो रावण ले गया था।अभी तो रामजी लंकामें पहुँचे ही नहीं।सीताजी कैसे आयी?

तब अनुमान लगा लिया गया कि उनको लंकासे यहाँ रावण लेकर आया है।

बहुतसे लोगों को तो यह भी पता नहीं है कि श्री रामचन्द्रजीने सीतासहित लंकासे लौटते समय भी शिवलिंग की स्थापना की थी।

इसलिये (चित्रमें सीताजीको राम-लक्ष्मणके साथमें देखकर) उस कल्पित-कथाको ही सही मानकर समाधान कर लेते हैं।

उनको समझना चाहिये कि यह प्रसंग लंकासे लौटते वक्तका है,लंका जाते समयका नहीं।

(इस कल्पनामें रावणको भी महिमान्वित करते हुए पण्डित बताया गया है।

परन्तु यह शिष्टजनानुमोदित नहीं है और न ही रामायण और रामजीके स्वभावके अनुकूल है।

चाहे कोई कवि भी कल्पना करके क्यों न लिखदें; परन्तु इसको सही नहीं माना जा सकता।

बात वही सही मानी जायेगी जो आर्षग्रंथोंमें कही गयी हो और जिनका सन्त-महात्माओंने अनुमोदन किया हो)।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने कल्याण के दो विशेषांक निकाले हैं-भगवत्कृपा-अंक और हनुमान-अंक।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने (विशेषतासे) दो वर्ष कल्याणके सम्पादन का काम किया था।

उस समय भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दारके नामानुसार  हनुमान-अंक और सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाके नामानुसार भगवत्कृपा-अंक निकाला था।

(जय दयालमें)'दया' शब्द का अर्थ होता है 'कृपा' और उस कृपाके अनुसार नाम रखा गया 'भगवत्कृपा-अंक'।

ये दोनों ग्रंथ गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुए हैं।

हनुमान-अंक में हनुमानजी महाराज का चरित्र विस्तारसे वर्णित है।उसमें और भी कई बातें हैं।जिज्ञासु को एक बार जरूर देखना चाहिये।

http://dungrdasram.blogspot.com/

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