।।श्रीहरि:।।
केवल श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके सत्संगका ही आग्रह क्यों? कारण जानें-
जैसे श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की पुस्तकोंमें उनके ही लेख होते हैं,दूसरों के नहीं।इसी प्रकार इस(श्रीस्वामीजी महाराजके सत्संग वाले) समूहमें भी उनके ही सत्संगकी बातें होनी चाहिये,दूसरोंकी नहीं।
दूसरोंके लेख चाहे कितने ही अच्छे हों,पर श्रीस्वामीजी महाराज की पुस्तकोंमें में नहीं दिये जाते और अगर दे दिये जायँ तो फिर सत्यता नहीं रहेगी।
ऊपर नाम तो हो श्रीस्वामीजी महाराज का और भीतर सामग्री हो दूसरी,तो वहाँ सत्यता नहीं है,झूठ है और जहाँ झूठ-कपट हो, तो वहाँ धोखा होता है,वहाँ विश्वास नहीं रहता।
विश्वास वहाँ होता है, जहाँ झूठ-कपट न हो,जैसा ऊपर लिखा हो,वैसा ही भीतर मौजूद हो।यही सत्यता है।सत्यताको पसन्द करना,सत्यमें प्रेम करना ही सत्संग है।
इस समूहका उध्देश्य ही यह है कि इसमें सिर्फ श्रीस्वामीजी महाराजके सत्संगकी ही बातें हों।
मेरी सब सज्जनों से विनम्र प्रार्थना है कि इस समूहको इसके नामके अनुसार ही रहनें दें।किसी भी प्रकारकी दूसरी सामग्री न भेजें।
विनीत- डुँगरदास राम
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...महाराज ! एक श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका दि. 19990301_2230 बजेका प्रवचन भेज रहा हूँ,कृपया सुनें।
इससे यह बात समझनेमें सहायता मिलेगी कि सिर्फ श्रीस्वामीजी महाराजके प्रवचन सुननेका ही आग्रह क्यों किया जाता है।
इस प्रवचनमें साधुओंको भी चेताया है कि आप कर क्या रहे हो ! क्या करोगे रूपयोंका और भोगोंका? रुपये जैसी रद्दी चीज कोई (दूसरी) चीज नहीं है आदि आदि।
ऐसी बातें कितनेक जने कहते हैं और कितनेक जने ऐसे हैं जो करते हैं?
आजके जमानेमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज जैसे कहने और करनेवाले महापुरुष अत्यन्त दुर्लभ है।
भगवानकी बङी भारी हमलोगों पर कृपा है जो ऐसे महापुरुषोंका सत्संग हमें मिल रहा है।
अगर कोई अपना सुगमता-पूर्वक और जल्दी ही कल्याण चाहें तो यह सत्संग करें।
जो साधन सुगम हो और श्रेष्ठ हो तथा जल्दी ही कल्याण करने वाला हो,वही सबसे बढिया रहता है और ऐसे अनेक साधन श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने बताये हैं,जो उनकी वाणीमें मिलते हैं।
इसलिये हमारेको चाहिए कि विशेषतासे एक श्रीस्वामीजी महाराजकी वाणी ही सुनें।
उनकी वाणीमें सब संतोंकी वाणीका सार आ जायेगा,वेद,पुराण और सब शास्त्रोंका सार आ जायेगा,इन सबका रहस्य समझमें आ जायेगा।हमारा सुगमता-पूर्वक और जल्दी ही कल्याण हो जायेगा।
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