शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

अपनी फोटोका निषेध क्यों है? (श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज अपनी फोटोका निषेध करते थे)।

                       ।।:श्रीहरि:।।

अपनी फोटोका निषेध क्यों है?

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज अपनी फोटोका निषेध करते थे)। 

आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के चित्र (चुपचाप) एक-दूसरेको देने लग गये हैं। ऐसा करना लाभदायक नहीं है।

कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके नामसे एक चित्रको एक-दूसरेके मोबाइल आदि पर भेजने लग गये हैं। जानकार लोगों का कहना है कि यह चित्र श्रीस्वामीजी महाराज का नहीं है, किसी फोटोग्राफर ने दूसरे महात्मा के चित्र को एडिट करके ऐसा बना दिया है कि वो चित्र श्रीस्वामीजी महाराज के चित्र जैसा लगे।  इसमें वो चश्मा लगाये हुए,दाहिने हाथके द्वारा पीछे सहारा लिये हुए और अपने एक (दाहिने) पैर पर दूसरा (बायाँ) पैर रखे हुए तथा घुटनेपर बायाँ हाथ धरे हुए दिखायी दे रहे हैं। उस चित्रके नीचे किसीने नाम  लिख दिया कि ये 'रामसुखदास जी महाराज' हैं।लेकिन यह अनुचित है। (वो अपने चित्र के लिये मना करते थे। ऐसे ही सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका भी अपने चित्र-प्रचार के लिए मना करते थे)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि महापुरुषोंके कहनेके अनुसार जो नहीं करता है, तो (आज्ञा न माननेसे) वो उस लाभसे वञ्चित रहता है(दण्डका भागी नहीं होता) परन्तु जिसके लिये महापुरुषोंने निषेध किया है , मना किया है , उस आज्ञाको कोई नहीं मानता है तो उसको दण्ड होता है।
( एक व्यक्ति ने किन्ही संतों के मना करने पर भी वो काम कर दिया । इस कारण उसके वंश का ही नाश हो गया)।

(ज्यादा समझनेके लिये 'एक संतकी वसीयत' नामक पुस्तक पढें और पढावें)।

कई लोगोंके मनमें रहती है कि हमने श्री स्वामीजी महाराजके दर्शन नहीं किये। अब अगर उनका चित्र भी मिल जाय तो दर्शन करलें। ऐसे लोगोंके लिये तो सत्संगियोंके भी मनमें आ जाती है कि इनको चित्रके ही दर्शन करवादें। इनकी बड़ी लगन है।लेकिन यह उचित नहीं है। अगर उचित और आवश्यक होता तो श्री स्वामीजी महाराज ऐसे लोगोंके लिये व्यवस्था कर देते। लोगोंका आग्रह होने पर भी श्री महाराजजीने चित्र-दर्शनके लिये व्यवस्था करना और करवाना तो दूरकी बात है,उन्होने ऐसी व्यवस्था करनेवालोंको भी मना कर दिया।।

महापुरुषोंके सिद्धान्त के अनुसार यह चित्र-दर्शन करवाना भी उचित नहीं है; क्योंकि अगर ऐसा उचित या आवश्यक होता तो श्री महाराजजी कमसे कम एक-दो जनोंके लिये तो यह सुविधा कर ही सकते थे । क्या उस समय ऐसे भावुकों की यह चाहना नहीं थी?

हमने तो सुना है कि जोधपुरमें किसी भावुकने श्री महाराजजीकी फोटुएँ बनवा कर कई लोगेंको दे दी। तब श्री महाराजजीने लोगोंसे वो फोटुएँ वापस मँगवायी और लोगोंने वो फोटुएँ वापस लाकर दीं। कहते हैं कि काफी फोटू वापस इकठ्टे हो गये थे। फिर उनको जलाया गया।

इसका वर्णन 'विलक्षण संत-विलक्षण वाणी' नामक पुस्तकमें भी है।इसमें महाराजजी द्वारा अपनी फोटो-प्रचारके खिलाफ लिखाये गये पत्र भी दिये हैं और क्यों महाराजजी वृन्दावनसे जोधपुर पधारे तथा लोगोंको क्या-क्या कहा-इसका भी वर्णन है।

BOOK- विलक्षण संत-विलक्षण वाणी - स्वामी रामसुखदास जी - Google समूह - https://groups.google.com/forum/m/#!msg/gitapress-literature/A7HF0iky-QU/YdG9gooWVpwJ

यह जो पता (BOOK- विलक्षण संत-विलक्षण वाणी - स्वामी रामसुखदास जी…) दिया गया है, इस पुस्तकमें 'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' का जोधपुरमें किये गये 'चित्र-प्रचारका दुख' भी बताया गया है। उसमें यह भी बताया गया है कि यह चित्र प्रचार नरकोंमें जाने का रास्ता है।

श्री महाराजजीने अपनी वसीयतमें भी चित्रका निषेध किया है।

एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे किसीने पूछा कि लोगोंको आप अपना फोटो क्यों नहीं देते हैं? कई संत तो अपनी फोटो भक्तोंको देते हैं। (और वो भक्त दर्शन, पूजन आदिके द्वारा लाभ उठाते हैं)। आप भी अगर अपनी फोटो लोगोंको दें,तो लोगोंको लाभ हो जाय।

तब श्री महाराजजी बोले कि हमलोग अगर अपनी फोटो देने लग जायेंगे तो भगवानकी फोटो बन्द हो जायेगी। (यह काम भगवद्विरोधी है)।

एक बार किसीने श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजको उनके बचपनकी फोटो दिखायी,जिसमें श्री महाराजजी अपने गुरु श्री १००८ कन्नीरामजी महाराजके पास हाथ जोड़े खड़े हैं। उस चित्रको देखकर महाराजजीने निषेध नहीं किया कि इस फोटोको मत रहने दो या लोगोंको मत दिखाओ आदि। इस घटनासे कई लोग उस चित्रके चित्रको अपने पासमें रखने लग गये और दूसरोंको भी देने लग गये कि इस चित्रके लिये श्री महाराजजीकी मनाही नहीं है। उस चित्रके लिये शायद श्री महाराजजीने इसलिये मना नहीं किया कि साथमें श्री गुरुजी हैं। इस चित्रके लिये श्री महाराजजीने न तो हाँ कहा और न ना कहा। इसलिये इस चित्रका दर्शन कोई  किसीको करवाता है अथवा कोई करने को कहता है तो घाटे-नफेकी जिम्मेदारी स्वयं उन्ही पर है

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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