।।श्री हरि:।।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
की मुख्य बातें -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
ये कुछ पुस्तकोंमेंसे छाँटे हुए कुछ लेख है,प्रत्येक-पुस्तकके सब लेख नहीं है।
(लोगोंको थोड़े समयमें महाराजजीकी कई बातें मिल जाय,सत्संगमें सुनानेके लिये, व्याख्यान देनेसे पहले, इस लेखको पढनेसे थोड़ी देरमें खास-खास बातें ध्यानमें आ जाय-इस उध्देश्यसे ये बातें एक जगह लिखि गई)।
'जीवनका कर्तव्य'
नामक पुस्तकमें-
1-'समयका मूल्य और सदुपयोग'
2-'सब नाम-रूपोंमें एक ही भगवान'
3-'बार-बार नहिं पाइये मनुष-जनमकी मौज'
'साधन-रहस्य' ('एकै साधै सब सधै')
नामक पुस्तकमें-
4-'सबका कल्याण कैसे हो? '
5-'अखण्ड साधन'
5-'दृढ भावसे लाभ'
6-'भगवत्प्राप्तिसे ही मानव- जीवनकी सार्थकता'
'जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग'
नामक पुस्तकमें-
7-'सभी कर्तव्य कर्मोंका नाम यज्ञ है'
8-'विषयासक्ति और भगवत्प्रीतिमें भेद'
9-'मनकी हलचलके नाशके सरल उपाय'
10-'दैवी सम्पदा एवं आसुरी सम्पदा'
11-'भगवत्प्राप्तिके लिये भविष्यकी अपेक्षा नहीं'
'सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन'
नामक पुस्तकसे-
11-'प्राप्त सामर्थ्यका सदुपयोग'
'कल्याणकारी प्रवचन' (भाग 1)
नामक पुस्तकमें-
12-'अपने अनुभवका आदर'
13-'संसारमें रहनेकी विद्या'
14-'स्वार्थरहित सेवाकी महत्ता'
15-'परमात्मा तत्काल कैसे मिलें ? '
16-'भगवत्प्राप्ति क्रियासाध्य नहीं'
17-'परमात्मप्राप्तिमें भोग और संग्रहकी इच्छा ही महान बाधक'
'तात्त्विक प्रवचन'
नामक पुस्तकमें-
18-'मुक्ति सहज है'
19-'जाग्रतमें सुषुप्ति'
20-'हमारा स्वरूप सच्चिदानन्द है'
21-'दृश्यमात्र अदृश्यमें जा रहा है'
22-'सत्य क्या है? '
23-'मैं शरीर नहीं हूँ'
24-'त्यागसे सुखकी प्राप्ति'
25-'तत्त्वप्राप्तिमें सभी योग्य हैं'
26-'सांसारिक सुख दु:खोंके कारण हैं'
27-'स्वभाव-सुधारकी आवश्यकता'
'भगवान् से अपनापन'
नामक पुस्तकमें-
28-'भगवानसे अपनान'
29-'नाम-जप और सेवासे भगवत्प्राप्ति'
'भगवन्नाम'
नामक पुस्तकमें
30-'होहि रामको नाम जपु'
'सत्संगकी विलक्षणता'
नामक पुस्तकमें-
31-'सत्संगकी आवश्यकता'
('गीता-दर्पण'
नामक पुस्तकमें- )
32-(गीतामें) 'आहार-शुध्दि'
'कर्म-रहस्य'
नामक पुस्तकमें-
33-'अपने कर्मोंके द्वारा भगवान् का पूजन'
34-'जाति जन्मसे मानी जाय या कर्मसे ? '
'वास्तविक सुख'
नामक पुस्तकमें-
35-'मनुष्य-जीवनका उध्देश्य'
36-'पारमार्थिक उन्नति धनके आधीन नहीं'
37-'गोहत्या-एक अभिशाप'
'अच्छे बनो'
नामक पुस्तकमें-
38-'प्रतिकूल परिस्थितिसे लाभ'
'भगवत्प्राप्तिकी सुगमता'
नामक पुस्तकमें-
39-'अन्त:करणकी शुध्दिका उपाय'
40-'शरणागतिकी विलक्षणता'
41-'अपनी मनचाहीका त्याग'
42-'अपने साधनको सन्देहरहित बनायें'
'स्वाधीन कैसे बनें ? '
नामक पुस्तकमें-
43-'परमात्मप्राप्तिमें मुख्य बाधा-सुखासक्ति'
'गृहस्थमें कैसे रहें?
' नामक पुस्तकमें-
44-'महापापसे बचो'
'सत्संगका प्रसाद'
नामक पुस्तकमें-
45-'मन-बुध्दि अपने नहीं'
46-'कर्म किसके लिये ? '
'सच्चा गुरु कौन ?'
नामक पुस्तकमें-
47-'कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्'
'सहज साधना'
नामक पुस्तकमें-
48-'निर्दोषताका अनुभव'
49-'अहमका नाश तथा तत्त्वका अनुभव'
50-'करण-निरपेक्ष तत्त्व'
51-'चुप-साधन'
'नित्ययोगकी प्राप्ति'
नामक पुस्तकमें-
52-'करणनिरपेक्ष परमात्मतत्त्व'
53-'सत्-असतका विवेक'
54-'प्राप्त जानकारीके सदुपयोगसे कल्याण'
55-'जीवकृत सृष्टिसे बन्धन'
56-'दु:खका कारण-संकल्प'
57-'काम-क्रोधसे छूटनेका उपाय'
58-'राग-द्वेषसे रहित स्वरूप'
'वासुदेव:सर्वम्'
नामक पुस्तकमें-
59-'प्राप्त तत्त्वका अनुभव'
60-'उध्देश्यकी महत्ता'
61-'साधक कौन है ?'
'कल्याण-पथ'
नामक पुस्तकमें-
62-'कल्याणका सुगम साधन-कर्मयोग'
63-'गीताकी अलौकिक शिक्षा'
64-'योग:कर्मसु कौशलम्'
65-'भगवान और उनकी दिव्य शक्ति'
66-'संकीर्तनकी महिमा'
67-'गीतोक्त सदाचार'
'मातृशक्तिका घोर अपमान'
नामक पुस्तकमें-
68-'ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी'
'जिन खोजा तिन पाइया'
नामक पुस्तकमें
69-'परमात्मा सगुण हैं या निर्गुण ?'
'तत्त्वज्ञान कैसे हो ?'
नामक पुस्तकमें-
70-'मुक्तिमें सबका समान अधिकार'
'भगवान और उनकी भक्ति'
नामक पुस्तकमें-
71-'सर्वश्रेष्ठ साधन'
'जित देखूँ तित तू'
नामक पुस्तकमें-
72-'करणनिरपेक्ष साधन-शरणागति'
'सब जग ईश्वररूप है'
नामक पुस्तकमें-
73-'भगवान् का आलौकिक समग्ररूप'
74-'अलौकिक साधन-भक्ति'
'साधन-सुधा-सिन्धु'
नामक पुस्तकमें-
75-'प्रतिकूलतामें विशेष भगवत्कृपा'
'साधक-संजीवनी'
नामक पुस्तकमें
76-'साधनकी दो शैलियाँ'
ये कुछ पुस्तकोंमेंसे छाँटे हुए कुछ लेख है,प्रत्येक-पुस्तकके सब लेख नहीं है।
(लोगोंको थोड़े समयमें श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी कई बातें मिल जाय,सत्संगमें सुनानेके लिये, व्याख्यान देनेसे पहले, इस लेखको पढनेसे थोड़ी देरमें खास-खास बातें ध्यानमें आ जाय-इस उध्देश्यसे ये बातें एक जगह लिखि गई)।
-डुँगरदास राम.