शनिवार, 26 जुलाई 2014

(★-: मेरे विचार :-★श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                            ॥श्रीहरि:॥

★-: मेरे विचार :-★

( श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) ।

१. वर्तमान समय की आवश्यकताओंको देखते हुए मैं अपने कुछ विचार प्रकट कर रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि अगर कोई व्यक्ति मेरे नामसे इन विचारों, सिद्धान्तोंके विरुद्ध आचरण करता हुआ दिखे तो उसको ऐसा करनेसे यथाशक्ति रोकनेकी चेष्टा की जाय ।

२. मेरे दीक्षागुरुका शरीर शान्त होनेके बाद जब वि० सं० १९८७ में मैंने उनकी बरसी कर ली, तब ऐसा पक्का विचार कर लिया कि अब एक तत्त्वप्राप्तिके सिवाय कुछ नहीं करना है । किसीसे कुछ माँगना नहीं है । रुपयोंको अपने पास न रखना है, न छूना है । अपनी ओरसे कहीं जाना नहीं है, जिसको गरज होगी, वह ले जायगा । इसके बाद मैं गीताप्रेसके संस्थापक सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके सम्पर्कमें आया । वे मेरी दृष्टिमें भगवत्प्राप्त महापुरुष थे । मेरे जीवन पर उनका विशेष प्रभाव पड़ा ।

३. मैंने किसी भी व्यक्ति, संस्था, आश्रम आदिसे व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । यदि किसी हेतुसे सम्बन्ध जोड़ा भी हो, तो वह तात्कालिक था, सदाके लिये नहीं । मैं सदा तत्त्व का अनुयायी रहा हूँ, व्यक्तिका नहीं ।

४. मेरा सदासे यह विचार रहा है कि लोग मुझमें अथवा किसी व्यक्तिविशेषमें न लगकर भगवानमें ही लगें । व्यक्तिपूजाका मैं कड़ा निषेध करता हूँ ।

५. मेरा कोई स्थान, मठ अथवा आश्रम नहीं है । मेरी कोई गद्दी नहीं है और न ही मैंने किसीको अपना शिष्य प्रचारक अथवा उत्तराधिकारी बनाया है । मेरे बाद मेरी पुस्तकें (और रिकार्ड की हुई वाणी) ही साधकोंका मार्ग-दर्शन करेंगी । गीताप्रेसकी पुस्तकोंका प्रचार, गोरक्षा तथा सत्संगका मैं सदैव समर्थक रहा हूँ ।

६. मैं अपना चित्र खींचने, चरण-स्पर्श करने,जय-जयकार करने,माला पहनाने आदिका कड़ा निषेध करता हूँ ।

७. मैं प्रसाद या भेंटरूपसे किसीको माला, दुपट्टा, वस्त्र, कम्बल आदि प्रदान नहीं करता । मैं खुद भिक्षासे ही शरीर-निर्वाह करता हूँ ।

८. सत्संग-कार्यक्रमके लिये रुपये (चन्दा) इकट्ठा करनेका मैं विरोध करता हूँ ।

९. मैं किसीको भी आशीर्वाद/शाप या वरदान नहीं देता और न ही अपनेको इसके योग्य समझता हूँ ।

१०. मैं अपने दर्शनकी अपेक्षा गंगाजी, सूर्य अथवा भगवद्विग्रहके दर्शनको ही अधिक महत्त्व देता हूँ ।

११. रुपये और स्त्री -- इन दोके स्पर्श को मैंने सर्वथा त्याग किया है ।

१२. जिस पत्र-पत्रिका अथवा स्मारिकामें विज्ञापन छपते हों, उनमें मैं अपना लेख प्रकाशित करने का निषेध करता हूँ । इसी तरह अपनी दूकान, व्यापार आदिके प्रचारके लिये प्रकाशित की जानेवाली सामग्री (कैलेण्डर आदि) में भी मेरा नाम छापनेका मैं निषेध करता हूँ । गीताप्रेसकी पुस्तकोंके प्रचारके सन्दर्भमें यह नियम लागू नहीं है ।

१३. मैंने सत्संग (प्रवचन) में ऐसी मर्यादा रखी है कि पुरुष और स्त्रियाँ अलग-अलग बैठें । मेरे आगे थोड़ी दूरतक केवल पुरुष बैठें । पुरुषोंकी व्यवस्था पुरुष और स्त्रियोंकी व्यवस्था स्त्रियाँ ही करें । किसी बातका समर्थन करने अथवा भगवानकी जय बोलनेके समय केवल पुरुष ही अपने हाथ ऊँचे करें, स्त्रियाँ नहीं ।

१४. कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग - तीनोंमें मैं भक्तियोगको सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ और परमप्रेमकी प्राप्तिमें ही मानवजीवनकी पूर्णता मानता हूँ ।

१५. जो वक्ता अपनेको मेरा अनुयायी अथवा कृपापात्र बताकर लोगों से मान-बड़ाई करवाता है, रुपये लेता है, स्त्रियोंसे सम्पर्क रखता है, भेंट लेता है अथवा वस्तुएँ माँगता है, उसको ठग समझना चाहिये । जो मेरे नामसे रुपये इकट्ठा करता है, वह बड़ा पाप करता है । उसका पाप क्षमा करने योग्य नहीं है ।

----श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ।

ये (मेरे विचार) ''एक संतकी वसीयत'' (प्रकाशक-गीताप्रेस गोरखपुर) नामक पुस्तक (पृष्ठ १२,१३ ) में भी छपे हुए  हैं।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

 

पता-(चतुर्दश मन्त्रका)

                   ।।श्रीहरि:।।

चतुर्दश मन्त्र-

(श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज)।

द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र-

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

{राम(१) राम(२) राम(३) राम(४) राम(५) राम(६) राम(७) ।
राम(८) राम(९) राम(१०) राम(११) राम(१२) राम(१३) राम(१४) ।।}

संकीर्तनमें मन कैसे लगे?

इसके लिये श्री स्वामीजी महाराजने यह तरकीब (अटकऴ) बतायी है कि भगवानके गुण और लीलायुक्त नाम जोड़-जोड़कर इस चतुर्दश मन्त्रका कीर्तन करें।

जैसे -

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

आप ही हो एक(१) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सदा(२) ही हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्वसमर्थ(३) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

परम सर्वज्ञ(४) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्वसुहृद(५) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सभीके(६) हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्व व्यापक(७) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

परम दयालु प्रभु(८) राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

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श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा (भगवानमें श्रध्दा विश्वास होनेके लिये) बताये गये भगवानके सात*  प्रभावशाली विशेष नाम---

जब साधक यह स्वीकार करता है कि परमात्मा अद्वितीय है, सदा है, सर्वसमर्थ है, सर्वज्ञ है, सर्वसुहृद है,   सभीका है और सब जगह है, तब उसकी परमात्मापर स्वत: श्रध्दा जाग्रत हो जाती है।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लिखित 'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'नामक पुस्तक (पृष्ठ संख्या ३०) से।

[ऊपर इन नामोंके साथ कीर्तन करनेका प्रकार बताया  गया है]

पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

क्रोध कैसे मिटे?

क्रोध कैसे मिटे?

इसके लिये श्रध्देय स्वामीजी रामसुखदासजी महाराजका यह
(19960204/1500 बजेका)  प्रवचन सुनें।
सीताराम

शनिवार, 19 जुलाई 2014

चतुर्दश मन्त्र- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र- राम राम राम राम राम राम राम । राम राम राम राम राम राम राम ।।

                           ।।श्रीहरि।।

 
चतुर्दश मन्त्र-

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्री 
रामसुखदासजी महाराज)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र-

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

{राम(१) राम(२) राम(३) राम(४) राम(५) राम(६) राम(७) ।
राम(८) राम(९) राम(१०) राम(११) राम(१२) राम(१३) राम(१४) }।।

संकीर्तनमें मन कैसे लगे?

इसके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने यह  अटकऴ (युक्ति) बतायी है कि भगवानके गुण और लीलायुक्त नाम जोड़-जोड़कर इस चतुर्दश मन्त्रका कीर्तन करें।

जैसे -

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

आप ही हो एक(१) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सदा(२) ही हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्वसमर्थ(३) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

परम सर्वज्ञ(४) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्वसुहृद(५) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सभीके(६) हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्व व्यापक(७) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

परम दयालु प्रभु(८) राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

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श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा (भगवानमें श्रद्धा विश्वास होनेके लिये) बताये गये भगवानके सात*  प्रभावशाली विशेष नाम---

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि)

जब साधक यह स्वीकार करता है कि परमात्मा अद्वितीय है, सदा है, सर्वसमर्थ है, सर्वज्ञ है, सर्वसुहृद है, सभीका है और सब जगह है, तब उसकी परमात्मापर स्वत: श्रद्धा जाग्रत हो जाती है। 

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लिखित 'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'नामक पुस्तक (पृष्ठ संख्या ३०) से। 

(ऊपर वाला चतुर्दस नाम-संकीर्तन भी इन्ही नामों के साथ कराया गया है। इसलिये यह विशेष प्रभावशाली है)। 

{जैसे, षोडस- मन्त्र 
(हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।) 
में सोलह बार भगवान् का नाम आने के कारण वो षोडस-मन्त्र कहलाता है। ऐसे इस चतुर्दस- मन्त्र (राम राम राम राम राम राम राम।
राम राम राम राम राम राम राम।।) में चौदह बार भगवान् का नाम आने के कारण यह चतुर्दश-मन्त्र कहा गया है}।

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*जिन दिनोंमें यह पुस्तक लिखी जा रही थी,उन दिनोंमें आठ नाम बताना चाह रहे थे; लेकिन सात ही लिखा पाये। आठवाँ नाम शायद यह था-'परम दयालु' ; क्योंकि कई बार सत्संग-प्रवचनोंमें भी यह नाम लिया करते थे कि सर्वसमर्थ, सर्वज्ञ और परम दयालु परमात्माके रहते हुए (उनके राज्य में)  कोई किसीको दु:ख दे सकता है? अर्थात् नहीं दे सकता। (इसलिये यहाँ यह आठवाँ नाम भी जोङ दिया गया है)।
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पता-
सत्संग-संतवाणी. श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज का साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें http://dungrdasram.blogspot.com/

(नं.२) चतुर्दश मन्त्र-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र- राम राम राम राम राम राम राम । राम राम राम राम राम राम राम ।।

चतुर्दश मन्त्र-

श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज

द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र-

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

{ राम(१) राम(२) राम(३) राम(४) राम(५) राम(६) राम(७) ।
राम(८) राम(९) राम(१०) राम(११) राम(१२) राम(१३) राम(१४) ।। }

संकीर्तनमें मन कैसे लगे?

इसके लिये श्री महाराजजीने यह तरकीब (अटकऴ) बतायी है कि भगवानके गुण और लीलायुक्त नाम जोड़-जोड़कर इस चतुर्दश मन्त्रका कीर्तन करें।

जैसे -

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

आप ही हो एक प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सदा ही हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्वसमर्थ प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

परम सर्वज्ञ प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्वसुहृद प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सभीके हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

सर्व व्यापक प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

परम दयालु प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

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श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा (भगवानमें श्रध्दा विश्वास होनेके लिये) बताये गये भगवानके सात*  प्रभावशाली विशेष नाम---

जब साधक यह स्वीकार करता है कि परमात्मा अद्वितीय है, सदा है, सर्वसमर्थ है, सर्वज्ञ है, सर्वसुहृद है,   सभीका है और सब जगह है, तब उसकी परमात्मापर स्वत: श्रध्दा जाग्रत हो जाती है।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लिखित 'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'नामक पुस्तक (पृष्ठ संख्या ३०) से।

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सत्संग-संतवाणी. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

चुगली करना बड़ा भारी पाप है।

सन्तोंने निन्दा, चुगलीको बडा़ भारी पाप बताया है-

परम धरम श्रुति बिदित अहिंसा।
पर निन्दा सम अघ न गरीसा।।

(रामचरितमा.७/१२१)।

अघ कि पिसुनता सम कछु आना।
धरम कि दया सरिस हरिजाना।।

(रामचरितमा.७/११२) ।

कौन कुकर्म किये नहिं मैंने जौ गये भूलि सो लिये उधारे।
ऐसी खेप भरी रचि पचिकै चकित भये लखिकै बनिजारे।।

कुकर्म (पाप) उधार कैसे लिये जाते हैं?

इसका उत्तर श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया है कि जो पाप हमने किया नहीं; दूसरेने किया है।परन्तु अगर हम उनकी निन्दा करते हैं , तो यह पाप उधारा लेना हो गया।
अब हमको भी वही दण्ड मिलेगा जो पाप करनेवालेको मिलता है।

(प्रश्न -
चुगली किसको कहते हैं?

उत्तर-)

किसीके दोषको दूसरेके आगे प्रकट करके दूसरोंमें उसके प्रति दुर्भाव पैदा करना पिशुनता (चुगली) है।

(साधक-संजीवनीके १६/२ की व्याख्या)।

उसमें अपैशुनम् की व्याख्या पढें।
सीताराम