रविवार, 1 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(१-३)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                  ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(१-३)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

     •संग्रह-कर्ता और भावार्थ-कर्ता-
  
                          डुँगरदास राम•

                             (संशोधित)
……………………………………………………………………

सूक्ति-०१.

[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
अर्थ-

[रात्रिमें]दूसरे सोते हैं और साधू पोते हैं
भावार्थ-

रातमें दूसरे तो सोते हैं और साधू-संत,गृहस्थी संत,साधक आदि पोते हैं अर्थात् भगवद्भजन आदि करते हैं और जिससे दूसरोंका हित हो,कल्याण हो,वो उपाय करते हैं|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय,सुअवसर).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

(भजन,कीर्तन आदिके समय जब सब तरफसे निद्रा घेर लेती है,नींद प्रभाव जमा लेती है, तो शरीरके अंगोंमें बड़ी पीड़ा होने लगती है,वो रँग-रस बिगड़ जाता है।ऐसे समय पर कहा गया कि हे संतों! अब सो जाइये,इस रण्डी-नींदने रँग बिगाड़ दिया)।

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पता-
सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

सूक्तियाँ-(४-६)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                     ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(४-६)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-४.

खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

शब्दार्थ-

खारिया(राजस्थानका एक गाँव),लकड़ाँ ऊपर लापसी(पीलू-पीलवाण,'जाळ' वृक्षके फल).

भावार्थ-

अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी हवा (लहर) तो ठण्डी आती है;परन्तु पानी खारा जहर-दुखदायी है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है)।
लकड़ों-लकड़ियों पर लापसी है
(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू,इकट्ठे करनेपर) लापसीकी तरह मालुम होते हैं।पीलवाण(लता) पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा हो जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है,उसकी छायामें हवा भी ठण्डी आती है,परन्तु वहाँका पानी खारा है)|

सूक्ति-५.

मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव |

शब्दार्थ-

मकोळी(एक गाँव,जिसका पानी भयंकर-बिराइजणा है,पीनेसे ऐसी शिथिलता आ जाती है कि मृत्यू भी हो सकती है.),हाथरी होळी(अर्थात् हाथकी बात).

(कोई कवि कहते हैं कि अगर तू मरना चाहता है तो मकौळी चला जा।वहाँ मरना-भगवानसे मिलना हाथकी बात है।अगर वो पानी पायेगी नहीं तो बुखार तो पैर धौनेसे ही आ जायेगा।

सूक्ति-६.

घँट्याळी घोड़ा घणाँ आहू घणा असवार।
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ।।

(यहाँ चार गाँवोंकी विशेषता बताई गई है)

शब्दार्थ-

झूँतड़ा(मकान).

('घँट्याऴी'में घौड़े बहुत है,'आउ'गाँवमें असवार,'चाखू'में चौड़े मकान और 'पड़ियाल'में पानी खूब है)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

सूक्तियाँ-(२-३)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

:                 ।।श्रीहरि।।

सूक्तियाँ-(२-३)

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ)।

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायौड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय,सुअवसर).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

(भजन,कीर्तन आदिके समय जब सब तरफसे निद्रा घेर लेती है,नींद प्रभाव जमा लेती है, तो शरीरके अंगोंमें बड़ी पीड़ा होने लगती है,वो रँग-रस बिगड़ जाता है।ऐसे समय पर कहा गया कि हे संतों! अब सो जाइये,इस रण्डी-नींदने रँग बिगाड़ दिया)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

खारिये गाँवका खारा पानी(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)।

                     ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ)। 

सूक्ति-४.

खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

शब्दार्थ-

खारिया(राजस्थानका एक गाँव),लकड़ाँ ऊपर लापसी(पीलू-पीलवाण,'जाळ' वृक्षके फल).

भावार्थ-

अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी हवा (लहर) तो ठण्डी आती है;परन्तु पानी खारा जहर-दुखदायी है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है)।
लकड़ों-लकड़ियों पर लापसी है
(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू,इकट्ठे करनेपर) लापसीकी तरह मालुम होते हैं।पीलवाण(लता) पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा हो जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है,उसकी छायामें हवा भी ठण्डी आती है,परन्तु वहाँका पानी खारा है)|

सूक्ति-५.

मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव |

शब्दार्थ-

मकोळी(एक गाँव,जिसका पानी भयंकर-बिराइजणा है,पीनेसे ऐसी शिथिलता आ जाती है कि मृत्यू भी हो सकती है.),हाथरी होळी(अर्थात् हाथकी बात).

(कोई कवि कहते हैं कि अगर तू मरना चाहता है तो मकौळी चला जा।वहाँ मरना-भगवानसे मिलना हाथकी बात है।अगर वो पानी पायेगी नहीं तो बुखार तो पैर धौनेसे ही आ जायेगा।


सूक्ति-६.

घँट्याळी घोड़ा घणाँ आहू घणा असवार।
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ।।

(यहाँ चार गाँवोंकी विशेषता बताई गई है)

शब्दार्थ-

झूँतड़ा(मकान).


('घँट्याऴी'में घौड़े बहुत है,'आउ'गाँवमें असवार,'चाखू'में चौड़े मकान और 'पड़ियाल'में पानी खूब है)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

बेळाँरा बायौड़ा मोती नीपजे(सूक्ति-प्रकाश,श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)।

                 ।।श्रीहरि।।

बेळाँरा बायौड़ा मोती नीपजे।

(सूक्ति-प्रकाश,श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)।

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

बुधवार, 28 जनवरी 2015

[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)।

                  ।।श्रीहरि:।।

 2
 
                       ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) |

     •संग्रह-कर्ता और भावार्थ-कर्ता-
  
                          डुँगरदास राम•

……………………………………………………………………

सूक्ति-०१.

[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
अर्थ-

[रात्रिमें]दूसरे सोते हैं और साधू पोते हैं
भावार्थ-

रातमें दूसरे तो सोते हैं और साधू-संत,गृहस्थी संत,साधक आदि पोते हैं अर्थात् भगवद्भजन आदि करते हैं और जिससे दूसरोंका हित हो,कल्याण हो,वो उपाय करते हैं|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||
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पता-
सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

बुधवार, 21 जनवरी 2015

दुष्टसंग क्या है? और उसका त्याग करें,अथवा नहीं?

                     ।।श्रीहरि:।।

दुष्टसंग क्या है? और उसका  त्याग करें,अथवा नहीं?

किसीने पूछा है कि-

…राम राम । बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देहि बिधाता ।।

  महाराज जी "दुष्ट संग" का क्या मतलब समझें?
खासकर आज के आधुनिक परिवेश में । राम

[3:27 PM 21-1-2015]

जाके प्रिय न राम बैदेही ।
तजिए ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेहि ।।

विनय पत्रिका के इस पद से हम साधकों को आज के परिेवेष में क्या चेतावनी मिलती है ?

राम राम । उत्तर की प्रतीक्षा है ।

[6:54 PM 21-1-2015]

अच्छाजी।
सीताराम सीताराम

जवाब लिखा जा रहा है-

'दुष्टसंग' अर्थात् रावणके समान भगवानसे हटाकर भोग-संग्रहकी तरफ लै जानेवाला संग।

आजके परिवेशमें जिनकी प्रवृत्ति भगवानसे हटाकर संसारमें लगानेकी है,तो उसको भी हम इस गिनतीमें लै सकते हैं।

इसमें सिर्फ व्यक्ति ही नहीं;क्रिया,पदार्थ आदि भी आ जाते हैं।

अगर ऐसा परिवेश हमारे सामने है,तो 'तजिये ताहि कौटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही'।

(इनकी सेवा करें और इनसे कुछ चाहें नहीं।लेनेके लिये सम्बन्ध न रखें,देनेके लिये रखें)।

ऐसा करना अनुचित(अधर्म) नहीं है और नुक्सानदायक(दुष्परिणामवाला) भी नहीं है;क्योंकि ऐसा पहले सज्जनोंने किया है और उसका परिणाम(नतीजा) अच्छा निकला है।

जैसे-
प्रह्लादने पिताका त्याग किया।ऐसे ही विभीषणने भाईका,भरतने माताका,बलिने गुरुका और गोपियोंने पतियोंका त्याग कर दिया।

उसका परिणाम आनन्द,मंगल करनेवाला ही हुआ।।

सम्बन्ध और प्रेम रखना ही हो तो भगवानवाले सम्बन्धके कारण ही रखना चाहिये और उन्ही वस्तु,व्यक्ति आदिसे रखना चाहिये,जिनसे भगवानमें प्रेम हों,आदि आदि पूरा पद समझकर पढें।

जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही ।
तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी ।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी ।।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं ।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं ।।
तुलसी सो सब भाँति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो ।
जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो ।।

(विनय पत्रिका १७४)।

अधिक समझनेके लिये कृपया साधक-संजीवनी(लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) पढें।

(विशेष कर अठारहवें अध्यायके ५६से ६६वें श्लोक तकका प्रकरण पढें)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/