बुधवार, 28 जनवरी 2015

[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)।

                  ।।श्रीहरि:।।

 2
 
                       ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) |

     •संग्रह-कर्ता और भावार्थ-कर्ता-
  
                          डुँगरदास राम•

……………………………………………………………………

सूक्ति-०१.

[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
अर्थ-

[रात्रिमें]दूसरे सोते हैं और साधू पोते हैं
भावार्थ-

रातमें दूसरे तो सोते हैं और साधू-संत,गृहस्थी संत,साधक आदि पोते हैं अर्थात् भगवद्भजन आदि करते हैं और जिससे दूसरोंका हित हो,कल्याण हो,वो उपाय करते हैं|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||
------------------------------------------------------------------------------------------------
पता-
सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें