रविवार, 11 जनवरी 2015

क्या क्रियाके द्वारा भगवत्प्राप्ति नहीं होती?-(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                     ।।श्रीहरि:।।

क्या क्रियाके द्वारा भगवत्प्राप्ति नहीं होती?

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)। 

(कई जने श्री स्वामीजी महाराज का सत्संग ध्यानसे नहीं सुनते हैं  और ठीकसे विचार भी नहीं करते हैं।

इसलिये अधूरी बात पकड़ कर कहने लग जाते हैं कि श्री स्वामीजी महाराज तो पाठ,पूजा,जप,ध्यान,दान,पुण्य आदिके लिये मना करते है। वे कहते हैं कि  क्रियाओंसे भगवत्प्राप्ति नहीं होती।

क्रिया तो जड़ है, जड़-शरीरकी सहायतासे होती है और भगवान चेतन है। जड़के द्वारा चेतनकी प्राप्ति कैसे हो सकती है। जड़ कर्मोंके  द्वारा चेतन परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो सकती,आदि आदि।। 

तो क्या क्रियाके द्वारा भगवत्प्राप्ति नहीं होती? क्या कर्मोंसे भगवान नहीं मिलते?

इस बातको समझनेनेके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका यह (दिनांक 19940512/1630 बजेका) प्रवचन सुनें-)

(किसी के द्वारा एसा प्रश्न पूछे जाने पर श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बोले-)

स्वामीजी-

नहीं,मैं येह नहीं कहता हूँ।जप,ध्यान,कीर्तन,सत्संग,स्वाध्याय- (ये) भगवानको लेकर किये जायँ,उसको मैं कर्म और क्रिया नहीं कहता हूँ। उसको उपासना(भक्ति) कहता हूँ।

संसारके दान,पुण्य,तीर्थ,व्रत आदि- इनको तो मैं क्रिया कहता हूँ और भगवानको लेकरके जो जप-ध्यान आदि किया जाता हैं,वो कर्म नहीं है,वो उपासना है। उससे परमात्माकी प्राप्ति होती है।

क्रियाओंसे भी (भगवत्प्राप्ति) होती है,निष्काम भाव हो और उध्देश्य परमात्मप्राप्ति हो,तो मात्र क्रिया परमात्मप्राप्तिकी कारण हो जायेगी।

भोजन करना भी भगवानकी प्राप्तिका कारण,झाडू देना भी भगवत्प्राप्तिका कारण,चरखा चलाना भी भगवत्प्राप्तिका कारण…

…क्रियाओंसे (भगवत्प्राप्ति) नहीं होती है,भावसे होती है। क्रियाओंके द्वारा भगवानको पकड़ले-यह बात नहीं है…भावग्राही जनार्दन।

…निरर्थक काम किया जाय,फूस,कचरा बुहार कर फेंका जाय कि इस कर्मसे भगवान राजी हों,तो भक्ति हो गई वो।निकम्मा काम बिल्कुल ही।…

भगवानका जहाँ उध्देश्य हो जाता है,वो [क्रिया] कर्म नहीं रहता है,अग्निमें रखी हुई चीज सब(सब चीजें) चमकने लगती है। चाहे वो लोहा हो और चाहे पत्थर हो और चाहे ठीकरी हो और चाहे कोयला हो-सब चमकने लग जाता हैं।

ऐसे भगवानके अर्पण करनेसे सबके-सब कर्म,कर्म नहीं रहते हैं।वो सब चमकने लग जाते हैं।

इस वास्ते ऐसा मेरा [भाव] नहीं है कि जप,ध्यान [आदि क्रिया] करनेसे भगवत्प्राप्ति नहीं होती। प्रेमसे होती है,निष्काम भावसे होती है। संसारकी कामना न हो और भगवानमें प्रेम हो,तो कुछ भी करो काम,गाळी दो भले ही भगवानको(अपनापनसे)।भगवान मिल जायेंगे अपनापनसे।

- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दिये गये (दिनांक 19940512/1630 बजेके) प्रवचनके कुछ अंश।

अधिक जाननेके लिये यह(ऊपर दिया गया) प्रवचन सुनें,या उसका यह अंश सुनें।

------------------------------------------------------------------------------------------------

पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें