शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

सुख चाहते हो तो भगवानको याद करो... -श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज।

                      ।।श्रीहरि:।।

सुख चाहते हो तो भगवानको याद करो...
-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज।

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सुख चाहते हो तो भगवानको याद करो,भगवानका नाम लो,भगवानमें तल्लीन होकर लग जाओ। सुख सबही-रिध्दि और सिध्दि जाके हाजर खड़ी है आगे. रिध्दि और सिध्दि आपकी गर्ज करेगी,चीजें आपकी गर्ज करैगी।आप चीजेंकी (चीजोंकी) गर्ज करते हो तो चीजें अगाड़ी भागेगी,आप दूर रहोगे,आपको मिलेगी नहीं,पूरी मिलेगी नहीं अर(और) निश्चिन्त हो जाओ और भगवान में लग जाओ तो सब-भगवान भी मिलेंगे अर संसार भी मिलेगा अर सगली चीजें मिलेगी अर सब चीज मिलेगी।मौज हो जायेगी।... -श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके दि.19980801_0518 बजेवाले प्रवचन का अंश (यथावत)।
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बुधवार, 13 जनवरी 2016

श्रीरामेश्वरम्-स्थापनाके समय वहाँ श्रीसीताजी कैसे आयीं? (जानें-)

                      ।।श्रीहरि:।।

प्रश्न-

श्रीरामेश्वरम्-स्थापनाके समय वहाँ श्रीसीताजी कैसे आयीं?

उत्तर-

श्री रामचरितमानस में लिखा है कि भगवान श्री रामचन्द्रजीने सागरपर सेतू बँधवाया और भगवान श्री रामेश्वरम् (शिवलिङ्ग)की स्थापना की।

फिर लंका जाकर,रावणको मारकर पुष्पकविमान द्वारा अयोध्या पधारे।

आकाशमार्गसे चलते-चलते श्री रामचन्द्रजी ने सीताजीको रणभूमि दिखाते हुए सेतुबन्ध रामेश्वरम् के दर्शन भी करवाये,जिसका संकेत वाल्मीकि रामायणमें भी है।

लंकासे लौटते समय श्री रामजीने रामेश्वरम् में दो शिवलिंगोंकी स्थापना करवायी थीं।

श्री हुमामानजी महाराज काशीजी जाकर दो शिवलिंग लाये थे;परन्तु मूहूर्तका समय न निकल जाय- इस कारण श्री रामजीने श्रीसीताजीके हाथोंसे बनाया हुआ बालूरेतका शिवलिंग स्थापित कर दिया।

जब श्रीहनुमानजी महाराज काशीजीसे शिवलिंग लेकर लौटे तो देखा कि शिवलिंग की स्थापना पहले ही हो चूकी है,तब वो बोले कि अब मैं इन शिवलिंगोंका क्या करूँ,(आपने तो पहले ही बालुकामय शिवलिंग की स्थापना करवादी)।

मैं तो आपकी आज्ञासे ही काशीजी जाकर और तपस्या करके तथा शिवजीके कृपा करनेपर ये शिवलिंग लाया हूँ - एक तो आपके लिये और दूसरा अपने-स्वयं पूजा करनेके लिये।

तब श्री रामजी ने कहा कि यह  रेतसे बना हुआ-बालुकामय शिवलिंग आप हटादें,तो उसकी जगह आपके द्वारा लाया गया शिवलिंग स्थापित कर देंगे।

तब हनुमानजी ने उसको हटानेकी कोशीश की;लेकिन हटा नहीं सके।

हनुमानजी महाराजने अपनी शक्तिशालिनी पूँछ लपेटकर उस पूँछसे शिवलिंगको बाँधा और उससे खींच कर हटाना चाहा तो भी (आदिशक्ति सीताजीके कर-कमलों द्वारा स्थापित) वो शिवलिंग हटा नहीं सके, उलटे हनुमानजी की पूँछ टूट गई और वो गिर गये,तथा मूर्छित हो गये।

तब श्रीरामजीने (लक्ष्मण-मूर्छाके अवसरके समान) बङा विलाप किया।

मूर्छा दूर होनेपर हनुमानजी महाराज के द्वारा लाया गया शिवलिंग अलगसे स्थापित किया गया,जिसका नाम है-हनुमदीश्वर।

रामेश्वरम् के दर्शन कर लेने पर भी जबतक हनुमदीश्वरके दर्शन न किये जायँ तबतक रामेश्वरम्-दर्शनका फल नहीं मिलता।  ...

पूरी कथा पढनी हो तो कृपया आनन्द रामायण और पद्मपुराण में पढें।

ऐसा एक चित्र भी प्रचलित है जिसमें शिवलिंग के पासमें राम-लक्ष्मणके सहित सीताजी भी मौजूद है।

इस प्रसंगको लेकर (और चित्र को देखकर) लगता है कि किसीने कल्पना करली कि यहाँ सीताजी कहाँसे आ गई? उनको तो रावण ले गया था।अभी तो रामजी लंकामें पहुँचे ही नहीं।सीताजी कैसे आयी?

तब अनुमान लगा लिया गया कि उनको लंकासे यहाँ रावण लेकर आया है।

बहुतसे लोगों को तो यह भी पता नहीं है कि श्री रामचन्द्रजीने सीतासहित लंकासे लौटते समय भी शिवलिंग की स्थापना की थी।

इसलिये (चित्रमें सीताजीको राम-लक्ष्मणके साथमें देखकर) उस कल्पित-कथाको ही सही मानकर समाधान कर लेते हैं।

उनको समझना चाहिये कि यह प्रसंग लंकासे लौटते वक्तका है,लंका जाते समयका नहीं।

(इस कल्पनामें रावणको भी महिमान्वित करते हुए पण्डित बताया गया है।

परन्तु यह शिष्टजनानुमोदित नहीं है और न ही रामायण और रामजीके स्वभावके अनुकूल है।

चाहे कोई कवि भी कल्पना करके क्यों न लिखदें; परन्तु इसको सही नहीं माना जा सकता।

बात वही सही मानी जायेगी जो आर्षग्रंथोंमें कही गयी हो और जिनका सन्त-महात्माओंने अनुमोदन किया हो)।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने कल्याण के दो विशेषांक निकाले हैं-भगवत्कृपा-अंक और हनुमान-अंक।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने (विशेषतासे) दो वर्ष कल्याणके सम्पादन का काम किया था।

उस समय भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दारके नामानुसार  हनुमान-अंक और सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाके नामानुसार भगवत्कृपा-अंक निकाला था।

(जय दयालमें)'दया' शब्द का अर्थ होता है 'कृपा' और उस कृपाके अनुसार नाम रखा गया 'भगवत्कृपा-अंक'।

ये दोनों ग्रंथ गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुए हैं।

हनुमान-अंक में हनुमानजी महाराज का चरित्र विस्तारसे वर्णित है।उसमें और भी कई बातें हैं।जिज्ञासु को एक बार जरूर देखना चाहिये।

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भजन कैसे बढे?(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरि।।

भजन कैसे बढे?

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने दि.
19980604/1600
बजेके प्रवचनमें बताया कि आप सच्चे हृदयसे भगवानके भजनमें लग जाओ तो आपके लोक-परलोक सुधर जायेंगे।आपको सुख होगा और लोगोंको भी सुख होगा।आप मुक्त हो जाओगे, आप बन्धनसे छूट जाओगे तो संत-महात्मा राजी हो जायेंगे,प्रसन्न हो जायेंगे और उन (संत-महात्माओं)की खुशी आपका भजन बढायेगी।उनकी प्रसन्नता आपका कल्याण करेगी।

इस प्रवचनमें ऐसी और भी कई बातें बताईं हैं।
जाननेके लिये कृपया यह प्रवचन सुनें।

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

भजनके लिए प्रेरणा- श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके 19980311/1600 बजेवाले प्रवचनसे।।

                      ।।श्रीहरि।।

भजनके लिए प्रेरणा

(- श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

के 19980311/1600 बजेवाले प्रवचनसे)।।

सज्जनों!मानवजीवन मिल गया है भगवानकी कृपासे,मनुष्यशरीर मिल गया,भाई हो चाहे बहन हो,अगाङी चलो फिर,पीछे पैर नहीं रखना है

(जैसे,सामनेसे तेज हवा आती है तो धूँआ पीछे आता है-लौटता है,पर अग्नि तो अगाङी ही चलती है) ।
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दावानल बन दहत तब वायु सखा बन जात।
सोई दीप कृश देखिकै बैरी होत बिख्यात।।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
19980311/1600 बजेवाले प्रवचनसे।।

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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

'संतवेषमें ज्ञानदाता'(समूह)।

                       ।।श्रीहरि।।

'संतवेषमें ज्ञानदाता'(समूह)।

इस समूहमें उन्हीके नम्बर सम्मिलित किये गये हैं जो संतवेषमें संत हैं।

जो गृहस्थवेषमें संत हैं,उनके नं.इस समूहमें सम्मिलित नहीं है('गृहस्थवेषमें ज्ञानदाता' समूह बनाना हो तो विचार किया जा सकता है)।

इस समूह('संतवेषमें ज्ञानदाता')का उध्देश्य यह है कि संत-महात्मा भी ज्ञानका आदान-प्रदान करें और एक-दूसरेको समझते रहें तथा इसमें जो सामग्री संत-महात्मा भेजें,उनमेंसे चुनकर अन्य लोगोंको भेजी जाय।

भेजी जानेवाली सामग्री में भेजनेवाले संतोंका नाम सामिल किया जा सकता है (कि यह सामग्री अमुक संत द्वारा भेजी हुई आयी है)।

मेरे पास जिन-जिन संतोंके नं.थे,उन्हीको इस समूहमें सामिल किया है।अगर किन्ही संतोंके नं.इसमें और जोङने हों तो कृपया परिचय सहित उन संतोंके नम्बर भेजनेका परिश्रम करावें।

सब संतोंको सादर प्रणाम।
सप्रेम हरिस्मरण और नमन।

डुँगरदास राम
सीताराम सीताराम

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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

डुँगरदासके ब्लॉगका पता- http://dungrdasram.blogspot.com/

डुँगरदासके ब्लॉगका पता-

■ सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं..(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                    ।।श्रीहरि।।

पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं..

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के 19971111/1630 बजेवाले प्रवचनमें आया है कि पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं और भगवानकी कृपाकी कैसी विलक्षणता है।
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