रविवार, 27 मई 2018

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन 

                         ।।श्रीहरिः। ।
[श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के 
अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन 
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे अन्तिम दिनोंमें यह प्रार्थना की गयी कि आपके शरीरकी अशक्त अवस्थाके कारण प्रतिदिन सत्संग-सभामें जाना कठिन पड़ता है।इसलिये आप विश्राम करावें।जब हमलोगोंको आवश्यकता मालुम पड़ेगी तब आपको हमलोग सभामें ले चलेंगे और कभी आपके मनमें सत्संगियोंको कोई बात कहनेकी आ जाय तो कृपया हमें बता देना,हमलोग आपको सभामें ले जायेंगे।
उस समय ऐसा लगा कि श्री महाराजजी ने यह प्रार्थना स्वीकार करली।
इस प्रकार जब भी परिस्थिति अनुकूल दिखायी देती तब समय-समय पर आपको सभामें ले जाया जाता था।
एक दिन (परम धाम गमन से तीन दिन पहले २९ जून २००५ को)
श्रद्धेय श्री स्वामीजी महाराजने अपनी तरफसे (अपने मनसे) फरमाया कि आज चलो अर्थात् आज सभामें चलें। सुनकर
तुरन्त तैयारी की गयी।
पहियोंवाली कुर्सी पर आपको  विराजमान करवा कर सभामें ले जाया गया और जो बातें आपके मनमें आयीं,वो सुनादी गयीं तथा वापस अपने निवास स्थान पर पधार गये।
दूसरे दिन भी सभामें पधारे और प्रवचन हुए।
इस प्रकार यह समझ में आया  कि जो अन्तिम बात सत्संगियोंको कहनी थी,वो उस (पहले) दिन कह दीं।
दूसरे दिन भी सभामें पधारे थे परन्तु दूसरों की मर्जी से पधारे थे।अपनी मर्जीसे तो जो आवश्यक लगा, वो पहले दिन कह चूके। दूसरे दिन (उन पहले दिन वाली बातों पर)प्रश्नोत्तर हुए]।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के 
अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन 
१-
              ■□मंगलाचरण□■
के बाद-
एक बात बहुत श्रेष्ठ (है )बहुत श्रेष्ठ बात, है बड़ी सुगम, बड़ी सरल । एक बात है। वो कठिन है- कोई इच्छा, किसी तरह की इच्छा मत रखो । किसी तरह की कोई भी इच्छा मत रखो। ना परमात्मा की, ना आत्मा की, ना संसार की, ना आपनी (अपनी) मुक्ति की , कल्याण की इच्छा , कुछ इच्छा, कुछ इच्छा मत रखो और चुप हो जाओ,बस। पूर्ण प्राप्त ! कुछ भी इच्छा न रख कर के चुप, शाऽऽऽऽऽन्त !! ।
क्योंकि परमात्मा सब जगह, शाऽऽऽन्त रूप से परिपूर्ण है । स्वतः, स्वाभाविक। सब ओर, सब जगह ; परिपूर्ण [है])। कुछ भी न चाहे, कोई इच्छा नहीं, कोई डर नहीं, किसी तरह की कामना न रहे। चुप हो जाय, (बऽऽस) । एकदम परमात्मा की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान है वो पूर्ण। कोई इच्छा (न रखें )। क्योंकि कोई इच्छा पूरी होती है, कोई नहीं होती। यह सब का अनुभव है । सबका यह अनुभव है क (कि) कोई इच्छा पूरी होती है, कोई इच्छा पूरी नहीं होती । यह कायदा (है) ।
पूरी...(होने पर भी) कुछ नहीं करना,अर (और) पूरी न होने पर भी कुछ नहीं करना
कुछ इच्छा नहिं रखनी, कुछ चाहना नहीं एकदम । एकदम परमात्मा की प्राप्ति । ख्याल में आयी ? कोई इच्छा नहीं, कोई चाहना नहीं। परमात्मा में स्थिति हो गई पूरी आपकी। आपसे आप स्वतः, स्थिति है। है, पहले से है। वह अनुभव हो जाएगा । कोई इच्छा नहीं, कोई चाहना नहीं, कुछ करना नहीं, कहीं जाना नहीं, कहीं आना (जाना) नहीं, कुछ अभ्यास नहीं । ...(कुछ करना नहीं)। इतनी ज(इतनी सी) बात है, इतनी बात में पूरी, पूरी हो गई । अब शंका हो तो बोलो । कोई इच्छा मत रखो। परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी; परमात्मा की प्राप्ति,एकदम। क्योंकि परमात्मा सब जगह परिपूर्ण (है) , समान रीति से, ठोस है । भूमा अचल [शाश्वत अमल] सम ठोस है तू सर्वदा। ठोस है ठोस । "है" । कुछ इच्छा मत करो, एकदम, परमात्मा की प्राप्ति । एकदम । बोलो ! शंका हो तो बोलो। कोई इच्छा (नहीं)। अपनी इच्छा से ही संसार में हैं । अपनी इच्छा छोड़ी,...(और उसमें स्थिति हुई)। पूर्ण है स्थिति, स्वतः , स्वाभाविक। और जो काम हो, उसमें तटस्थ रहो, ना राग करो, ना द्वेष करो ।
तुलसी ममता रामसों समता सब संसार ।
राग न रोष न दोष दुख दास भये भव पार।
(दोहावली 94)
एक भगवान है!! कोई इच्छा (नहीं), किसी तरह की इच्छा , कोई संसार की क, परमात्मा की क, आत्मा की क ...(किसी की) क, मुक्ति की क , 
कल्याण की क , प्रेम की क , कुछ इच्छा (नहीं) ।... (बऽऽस)। पूर्ण है प्राप्ति । क्यों(कि) परमात्मा है ।
कारण हैऽऽ (कि) एक करणा (करना,क्रिया) और एक आश्रय। एक क्रिया अर (और) एक पदार्थ । एक क्रिया है, एक पदार्थ है। ये प्रकृति है। क्रिया और पदार्थ - ये छूट जाय। कुछ नहीं करना, चुप रहना। अर (और एक) भगवान के, भगवान के शरण हो गये ... (परमात्मा के) आश्रय । कुछ नहीं। करना कुछ नहीं । परमात्मा में ही स्थित ... ( स्थित करना) नहीं, उसमें स्थिति आपकी है। है। है स्थिति , एकदम।
है एकदम परिपूर्ण ,
परमात्मा में ही स्थिति है। एकदम। 
परमात्मा सब ...(जगह) शान्त है। "है" "है" वह "है" उस "है" में स्थिति हो जाय।
"है" में स्थिति, स्वभाविक, स्वभाविक है। "है" में स्थिति, सबकी स्वाभाविक। 
कुछ भी इच्छा (और एक उनका- क्रिया और पदार्थों का
•••) आश्रय
- दो छोङने से --- ("है", परमात्मा में स्थिति हो जायेगी, जो कि पहले से ही है । अनुभव नहीं था।अब अनुभव हो गया।)। 
पद आता है न ! 
एक बालक, एक बालक खो गया। एक माँ का बालक खो गया। सुणाओ , वोऽऽ, वो पद सुणाओ। ( भजन गाने वाले बजरंगजी बोले- हाँ ) , बालक खो गया, व्याकुल हो गयी अर (और) जागर देख्या(जगकर देखा) तो , वहीं सोता है, साथ में ही। (हाँ, ठीक है, हाँ हाँ - सुनाते हैं ) बहोत (बहुत) बढ़िया पद है। कबीरजी महाराज का है... (वो पद)। (जो हुकम, कह कर , पद शुरु कर दिया गया - परम प्रभु अपने ही में पायो।••• - कबीरजी महाराज)।
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श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा दिया गया यहाँ यह अन्तिम प्रवचन दिनांक,२९ जून २००५ को सायं लगभग ४ बजे का है। इसकी रिकोर्डिंग को सुन-सुनकर उस के अनुसार ही, यथावत् लिखने की कोशिश की गयी है।  
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अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढें-
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/07/blog-post_27.html?m=1
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http://dungrdasram.blogspot.in/?m=1

बुधवार, 23 मई 2018

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।

                            ।।श्रीहरिः। ।

  श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के बहुत वर्षों के सत्संग- प्रवचनों वाले हाथ से लिखे हुए (अप्रकाशित) रजिस्टर पङे हुए हैं । वो श्री महाराज जी के रिकोर्ड किये हुए सत्संग- प्रवचनों को टेप के द्वारा सुन-सुन कर उन प्रवचनों के अनुसार लिखे गये हैं ।

श्री महाराज जी कभी-कभी लोगों को लिखने के लिये कह भी देते थे।

कभी-कभी तो ऐसा अवसर आता कि लिखने वाले उपस्थित न रहने के कारण सब प्रवचन लिखने में कठिनता होती; तो लिखवाने वालों के पूछने पर श्री महाराज जी  कह देते कि सिर्फ प्रातः पाँच बजे वाले प्रवचन ही (रोजना के) लिख लो (पर लिखो अवश्य)।

एक बार तो प्रवचन लिखने वाले एक सज्जन श्री महाराज जी से बोले कि बहुत वर्षों के लिखे हुए ढेर सारे हस्तलिखित रजिस्टर पहले के भी पङे हुए हैं। वे भी पूरे पुस्तक रूप में छपवाये नहीं जा रहे हैं। यह देखकर लिखने का उत्साह नहीं हो रहा है। इसलिये मनमें आती है कि रोजाना के सब प्रवचन लिखना बन्द कर दें और कभी-कभी कोई विशेष प्रवचन हों तो उन-उन को ही लिख लें।

ऐसा कहने पर भी श्री महाराज जी ने लिखने का काम बन्द नहीं करने दिया और लिखवाते रहे। (शायद इसलिये कि आगे जब कभी ऐसा अवसर आये तो ये प्रवचन पुस्तक रूप में छपवाये जा सके। सामग्री उपलब्ध रहेगी तभी तो छपवा सकेंगे और यदि सामग्री ही नहीं होगी तो क्या छपवायेंगे)।

जबकि बिना मन के किसी से ऐसा करवाना उनको पसन्द नहीं था, महाराज जी के लिये यह बङे संकोच की बात थी। फिर भी लोकहित के लिये वो यह सत्संग प्रवचन लिखवाने का काम करवाते रहे।

महापुरुषों ने कृपा करके जो सामग्री तैयार करवायी थी, वो सामग्री अभी तो उपलब्ध है । उनकी कोई फोटो काॅपी भी करवायी हुई नहीं है। मूल रूप में ही पङी है। अगर पाँच- दस प्रवचनों की सामग्री भी क्षतिग्रस्त हो गई तो दुबारा प्राप्त कर लेना हाथ की बात नहीं है ; क्योंकि उनकी कोई प्रतिलिपि नहीं है।

भविष्य में न जाने कैसा समय आये और यह पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाने वाला काम हो पाये या न हो पाये।

यह सामग्री ऐसे ही पङी न रह जाय। पङी- पङी सामग्री बेकार भी हो जाती है तथा पुरानी होकर नष्ट भी हो जाती है।

उनको पुस्तक या पत्रिका आदि के रूप में क्रमशः छपवाकर लोगों तक पहुँचाया जाय तो दुनियाँ की बङी भारी सेवा होगी। बङा भारी काम हो जायेगा।

यह भगवान् और महापुरुषों की भी बङी सेवा है। इस सामग्री के कुछ लेख तो पुस्तक रूप में प्रकाशित हुए थे ; लेकिन बहुत सारी सामग्री अभी-भी अप्रकाशित ही पङी है।

कई लोगों को तो इस सामग्री का पता भी नहीं है। कुछ लोगों को पता है पर वो भी मूकदर्शक-से ही बने हुए हैं। काम कुछ नहीं हो पा रहा है।

(वो लिखी हुई सामग्री पहले बीकानेर आदि में थी। अब वो गीताप्रेस गोरखपुर में है। लेकिन वहाँ भी उनका कोई काम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। सुना है कि (उनका महत्त्व न समझने के कारण ) वहाँ भी भाररूप में ही पङी है । उस सामग्री के कारण जगह रुकी हुई लगती है)। 

इसलिये हमलोगों को चाहिये कि प्रयास करके, पुस्तक आदि छपवा कर के वो सामग्री लोगों तक पहुँचायें।

http://dungrdasram.blogspot.in/?m=1

शनिवार, 12 मई 2018

"राम कथा में सत्संग" - https://drive.google.com/folderview?id=0B1hTIYwow9O-VUFxZ1pzMnlKUVE

यह "राम कथा में सत्संग" का लिंक है।
इस में राम कथा गान (डुँगरदास राम आदि के द्वारा) और श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का सत्संग है।
इस में वो सत्संग है जो श्री स्वामी जी महाराज  राम कथा के बाद में सुनाते थे।

"राम कथा में सत्संग" - https://drive.google.com/folderview?id=0B1hTIYwow9O-VUFxZ1pzMnlKUVE

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

नित्य-सत्संग का उपाय (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का सत्संग)

                               ।।श्रीहरि:।।

नित्य-सत्संग का उपाय- 

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का सत्संग, इकहत्तर दिनों वाली नित्य स्तुति, गीतापाठ,हरिःशरणम् और प्रवचन- शृंखला आदि,चारों श्रीस्वामीजी महाराज की आवाज़ में)।

जिनको रोजाना श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का प्रातः पाँच बजे वाला सत्संग चाहिये उनके लिये यह इकहत्तर दिनों वाला सेट भेजा जा रहा है। इसको अपने मोबाइल में सेव करलें। इसके द्वारा उम्रभर नित्य सत्संग किया जा सकता है। 

जो नित्य नया प्रवचन सुनना चाहते हों उनको चाहिये कि इसमें प्रवचन की जगह अपने मन पसन्द का प्रवचन लगाकर सुनलें और इस प्रकार नित्य सत्संग का आनन्द लेते रहें। 

इस (नित्य स्तुति आदि) को एक बार शुरु कर देने पर नित्य स्तुति के बाद अपने आप गीता जी के दस-दस श्लोकों का (रोजाना)  क्रमशः पाठ आ जायेगा, हरि:शरणम् हरि: शरणम्  आदि कीर्तन आ जायेगा तथा सत्संग शुरु हो जायेगा।

इसमें विलक्षणता यह है कि ये सब श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की ही आवाज़ में है इसलिये यह अत्यन्त लाभकारी है।

वो यहाँ से (इस पते पर जाकर) प्राप्त करें- 


(३) नित्य स्तुति ( प्रार्थना ), गीतापाठ और सत्संग (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध ) ।।
अबकी बार वाले सत्संग-प्रबन्ध में साफ़ आवाज़ वाला गीतापाठ, नये चुने हुए प्रवचन, उनके विषय और सूची, तथा अधिक जानकारी आदि और कुछ अधिक विशेषताएँ जोङी गई है। जिससे यह अधिक उपयोगी, रुचिकर और सुगम हो गया है। 

यह इस पते पर निःशुल्क उपलब्ध है- ( bit.ly/PRARTHANA_GEETAPATH


(१) (१)नित्य-स्तुति गीता-पाठ सत्संग- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज(७१ दिनोंकी)।
https://drive.google.com/folderview?id=1VjtgaKp9T4jAIDpy4eMsdy1C9cq38xVh

(२)इकहत्तर (71) दिनों का सत्संग समूह -
01.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@ (हरिशरणम् साफ आवाज वाली)  https://drive.google.com/folderview?id=0B0caSyar5jaDYWFUS2NiNWtvQkk 

सत्संग के और पते,ठिकाने-

 4- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

                            की
                      सत्संग-सामग्री
               ( 16 GB मेमोरी-कार्ड में ) - ]

(4-) bit.ly/1satsang और bit.ly/1casett 


(5-)
एक ही फाइल में सम्पूर्ण गीतापाठ ( विष्णुसहस्रनामसहित)
इस पते पर उपलब्ध है- bit.ly/SampoornaGitapathSRAMSUKHDASJIM, तथा यहाँ लगभग सवादो घंटे में सम्पूर्ण गीतापाठ ( द्रुतगति में ) भी उपलब्ध है। 

(6-) 

 नित्य स्तुति ( प्रार्थना ), गीतापाठ और सत्संग (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध )-bit.ly/PRARTHANA_GEETAPATH



(1-) http://db.tt/v4XtLpAr

(2-) http://www.swamiramsukhdasji.org 

(3-) http://goo.gl/28CUxw 

 
अधिक जानने के लिए कृपया यह लेख पढें-

१.नित्य-स्तुति, गीता और सत्संग (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का सेट) ।।

http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_8.html 

प्रवचनों की तारीख और नाम हटाना अपराध है

                    ।। श्रीहरि:।।

प्रवचनों की तारीख और नाम हटाना अपराध है ।

आजकल श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग- प्रवचनों पर ध्यान देना चाहिए कि उनमें से तारीख और श्री महाराज जी का नाम तो नहीं हटा दिया गया है?।
...

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इन प्रवचनों में से तारीख हटा दी गयी है और श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का नाम भी इन प्रवचनों में से हटा दिया गया है। यह किसी ने महान अपराध किया है; क्योंकि प्रवचनों के अन्दर तारीख रिकोर्ड करने की व्यवस्था स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने करवायी है।
मेरे (डुँगरदास राम के) सामने की बात है कि महाराज जी से पूछा गया कि प्रवचन की कैसेटों पर लिखी हुई तारीख कभी-कभी साफ नहीं दीखती। मिट भी जाती है। लिखने में भी भूल से दूसरी तारीख लिख दी जाती है। ऐसे में सही तारीख का पता कैसे लगे? इसके लिये क्या करें?
तब श्री महाराज जी बोले कि प्रवचन के साथ ही (भीतर) में रिकोर्ड करदो (अगर ऊपर, तारीख लिखने में भूल हो जायेगी तो भीतरवाली रिकोर्ड सुनकर पकङी जायेगी,सही तारीखका पता लग जायेगा)। तब से ऐसा किया जाने लगा। इन प्रवचनों की भीतर से तारीख हटा कर किसी ने महाराज जी की वो व्यवस्था भंग की है। जो इसको आगे बढ़ाते हैं। एक प्रकार से वो भी इस अपराध में सामिल है।

इसलिए आज से ही ऐसे प्रवचन इस ग्रुप में न भेजें।
यह ऐसे हमें स्वीकार नहीं है।
आप जो रोजाना श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम से पाँच बजे वाली सत्संग ग्रुपों में भेजते हो, भीतर से तारीख हटा देने के कारण हम उसका बहिष्कार करते हैं।  सच्चे सत्संगियों को भी हमारी यही सलाह है। 

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों साथ तारीख रहना आवश्यक है और उपयोगी भी है। जैसे, श्री स्वामीजी महाराज की कोई बात हमको बढ़िया लगी और हम उस बात को ठीक से समझने के लिये मूल प्रवचन सुनना चाहते हैं तो उस तारीख के अनुसार खोजकर वो प्रवचन सुन लेंगे,समझ लेंगे। अब अगर उस प्रवचन की तारीख ही हटा दी गयी,तो कैसे खोजेंगे और क्या सुनेंगे? कैसे समझेंगे? 


 इसलिये प्रवचनों के ऊपर लिखी गयी तारीख और भीतर रिकोर्ड की गयी तारीख- दोनों रहनें दें,हटावें नहीं। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का नाम भी उनके प्रवचनों में से हटावें नहीं, रहनें दें। दूसरों को भी यह बात समझावें। 

अधिक जानने के लिए कृपया यह लेख पढें-

लेखक का नाम हटाना या बदलना अपराध है(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है तथा उनका नाम दूसरों की बातों में जोड़ना भी अपराध है)।
http://dungrdasram.blogspot.in/2016/11/blog-post_17.html?m=1 

    *नित्य-सत्संग का उपाय-*

(जिनको रोजाना श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का प्रातः पाँच बजे वाला सत्संग चाहिये उनके लिये यह इकहत्तर दिनों वाला सेट भेजा जा रहा है। इसको अपने मोबाइल में सेव करलें। इसके द्वारा उम्रभर नित्य सत्संग किया जा सकता है। 

जो नित्य नया प्रवचन सुनना चाहते हों उनको चाहिये कि इसमें प्रवचन की जगह अपने मन पसन्द का प्रवचन लगाकर सुनलें और इस प्रकार नित्य सत्संग का आनन्द लेते रहें। 

इस (नित्य स्तुति आदि) को एक बार शुरु कर देने पर नित्य स्तुति के बाद अपने आप गीता जी के दस-दस श्लोकों का (रोजाना)  क्रमशः पाठ आ जायेगा, हरि:शरणम् हरि: शरणम्  आदि कीर्तन आ जायेगा तथा सत्संग शुरु हो जायेगा।

इसमें विलक्षणता यह है कि ये सब श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की ही आवाज़ में है जो अत्यन्त लाभकारी है।
 
अधिक जानने के लिए कृपया यह लेख पढें- 

नित्य-स्तुति (प्रार्थना) गीतापाठ और सत्संग- 

 http://dungrdasram.blogspot.com/2020/11/blog-post.html 

१.नित्य-स्तुति, गीता और सत्संग (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का सेट) ।।  

http://dungrdasram.blogspot.in/2014/12/blog-post_8.html?m=1 )।

शनिवार, 14 अक्टूबर 2017

मैं किसी व्यक्ति या सम्प्रदायका अनुयायी नहीं हूँ-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज।

                ॥श्रीहरि:॥

मैं किसी व्यक्ति या सम्प्रदायका अनुयायी नहीं हूँ - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज। 

कई लोगों को यह भ्रम है कि श्री स्वामी जी महाराज अमुक सम्प्रदाय के थे, वे अमुक महात्मा की बात मानते थे, अमुक की पुस्तकें पढ़ते थे, अमुक के अनुयायी थे, आदि आदि। 

ऐसे ही कई लोग कह देते हैं कि श्रीस्वामीजी महाराज का अमुक जगह आश्रम है,अमुक जगह उनका स्थान है, आदि आदि।

ऐसे भ्रम मिटाने के लिए कृपया श्री स्वामी जी महाराज की "रहस्यमयी वार्ता" नामक पुस्तक का यह अंश पढें-

"रहस्यमयी वार्ता" (प्रकाशक- गीता प्रकाशन, गोरखपुर) नामक पुस्तक के पृष्ठ ३२८ और ३२९ पर 'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' स्वयं बताते हैं कि -

प्रश्न- स्वामी शरणानन्दजीके सिद्धान्तसे आपका क्या मतभेद है?

स्वामीजी- गहरे सिद्धान्तोंमें मेरा कोई मतभेद नहीं है | वे भी करण निरपेक्ष शैली को मानते हैं, मैं भी। शरणानन्दजीकी वाणी में युक्तियोंकी, तर्ककी प्रधानता हैं । परन्तु मैं शास्त्रविधिको साथ में रखते हुए तर्क करता हूँ । उनके और मेरे शब्दोंमें फर्क है । वे अवधूत कोटिके महात्मा थे ; अत: उनके आचरण ठोस, आदर्श नहीं थे।

उनके और मेरे सिद्धान्तमें बड़़ा मतभेद यह है कि वे अपनी प्रणालीके सिवाय अन्य का खण्डन करते हैं। परन्तु मैं सभी प्रणालियोंका आदर करता हूँ।
उन्होनें क्रिया और पदार्थ (परिश्रम और पराश्रय ) -का सर्वथा निषेध किया हैं। परन्तु क्रिया और पदार्थका सम्बन्ध रहते हुए भी तत्त्वप्राप्ति हो सकती हैं।

'हम भगवान के अंश हैं' - यह बात शरणानन्दजीकी बातोंसे तेज है ! उनकी पुस्तकोंमें यह बात नहीं आयी!
आश्चर्यकी बात है कि 'सत्तामात्र' की बात उन्होनें कहीं नहीं कही! खास बात यह है कि हमारा स्वरूप सत्तामात्र है। उस सत्तामात्रमें ही साधकको निरन्तर रहना चाहिये।

प्रश्न - कई कहते हैं कि स्वामीजी सेठजीकी बातें मानते हैं, कई कहते हैं कि स्वामीजी शरणानन्दजी की बातें मानते हैं, आपका इस विषयमें क्या कहना है ?

स्वामीजी - मैं किसी व्यक्ति या सम्प्रदायका अनुयायी नहीं हूँ, प्रत्युत तत्त्वका अनुयायी हूँ। मुझे सेठजीसे क्या मतलब ? शरणानन्दजीसे भी क्या मतलब ? मुझे तो तत्त्वसे मतलब है ? सार को लेना है, चाहे कहींसे मिले।
शरणानन्दजी की बातोंको मैं इसलिये मानता हूँ कि वे गीताके साथ मिलती हैं, इसलिये नहीं मानता कि वे शरणानन्दजीकी हैं ! उनकी वही बात मेरेको जँचती है, जो गीताके अनुसार हो।
मेरेमें किसी व्यक्तिका, सम्प्रदायका अथवा ज्ञान- कर्म- भक्तिका आग्रह नहीं है, पर जीवके कल्याण का आग्रह है ! मैं व्यक्तिपूजा नहीं मानता। सिद्धान्तका प्रचार होना चाहिये, व्यक्तिका नहीं। व्यक्ति एकदेशीय होता है ,पर सिद्धान्त व्यापक होता है। बात वह होनी चाहिये, जो व्यक्तिवाद और सम्प्रदायवादसे रहित हो और जिससे हिंदू , मुसलमान, ईसाई आदि सभी का लाभ हो। 

अधिक जानकारी के लिए यह लेख भी पढ़ें-

श्रीस्वामीजी महाराज की पुस्तक
"एक संतकी वसीयत" (प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर) के पृष्ठ संख्या १२ पर  स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज कहते हैं कि
...

३. मैंने किसी भी व्यक्ति, संस्था, आश्रम आदिसे व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । यदि किसी हेतुसे सम्बन्ध जोड़ा भी हो, तो वह तात्कालिक था, सदाके लिये नहीं । मैं सदा तत्त्व का अनुयायी रहा हूँ, व्यक्तिका नहीं ।

४. मेरा सदासे यह विचार रहा है कि लोग मुझमें अथवा किसी व्यक्तिविशेषमें न लगकर भगवानमें ही लगें । व्यक्तिपूजाका मैं कड़ा निषेध करता हूँ ।

५. मेरा कोई स्थान, मठ अथवा आश्रम नहीं है । मेरी कोई गद्दी नहीं है और न ही मैंने किसीको अपना शिष्य प्रचारक अथवा उत्तराधिकारी बनाया है । मेरे बाद मेरी पुस्तकें ...

☆ -: मेरे विचार :-☆श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/07/blog-post_0.html?m=1

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शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

गले में कैंसर कभी हुआ ही नहीं था। (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके उम्रभरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था।)

                      ।।श्रीहरि:।।

गले में कैंसर कभी हुआ ही नहीं था।  

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके उम्रभरमें कभी कैंसर हुआ ही नहीं था।)

   आजकल कई लोगोंमें यह बात फैली हुई है कि श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके गलेमें कैंसर था। 

   इसके जवाबमें निश्चयपूर्वक यह निवेदन है कि उनके उम्र भरमें कभी कैंसर नहीं हुआ था।

    यह बात खुद श्रीस्वामीजी महाराजके सामने भी आई थी कि लोग ऐसा कहते हैं (कि स्वामीजी महाराजके गलेमें कैंसर है)। तब श्रीस्वामीजी महाराज हँसते हुए बोले कि एक जगह सत्संग का प्रोग्राम होनेवाला था और वो किसी कारणसे नहीं हो पाया। तब किसीने पूछा कि स्वामीजी आये नहीं? उनके आनेका प्रोग्राम था न? 

   तब किसीने जवाब दिया कि वो तो कैंसल हो गया। तो सुननेवाला बोला कि अच्छा ! कैंसर हो गया क्या? कैंसर हो गया तब कैसे आते?

{उसने कैंसल (निरस्त) की जगह कैंसर सुन लिया था}।

   इस प्रकार कई लोग बिना विचारे ही, बिना हुई बातको ले दोङते हैं। जो घटना कभी घटी ही नहीं,* ऐसी-ऐसी बातें कहते-सुनते रहते हैं और वो बातें आगे चलती भी रहती है। सही बातका पता लगानेवाले और कहने-सुनने वाले बहुत कम लोग होते हैं। 

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  (टिप्पणी– * आज फेसबुक पर भी किसीने एक अखबार की फोटो प्रकाशित की है जिसमें गलेके कैंसरकी बात कही गई है। ऐसे बिना सोचे-समझे ही लोग आगे प्रचार भी कर देते हैं।

     कैंसर के भ्रमवाली एक घटना तो मेरे सामनेकी ही है–

एक बार लोगोंको मैं श्री स्वामी जी महाराज की रिकॉर्ड- वाणी (प्रवचन) सुना रहा था। प्रवचनकी आवाज कुछ लोगोंको साफ सुनाई नहीं दी। (श्रीस्वामीजी महाराज जब सभामें बोलते थे तो उन प्रवचनोंकी रिकॉर्डिंग होती थी। उस समय गलती के कारण कभी-कभी आवाज साफ रिकॉर्ड नहीं हो पाती थी। वैसे तो साफ आवाजमें उनके बहुत-सारे प्रवचन है, पर कुछ प्रवचनोंकी रिकॉर्डिंग साफ नहीं है, अस्पष्ट है)। इसलिये समाप्ति पर उन लोगोंमेंसे किसीने पूछा कि आवाज साफ नहीं थी (इसका क्या कारण है?)

   उस समय मेरे जवाब देनेसे पहले ही एक भाई उठकर खङा हो गया और लोगोंकी तरफ मुँह करके, उनको सुनाते हुए बोला कि सुनो-सुनो! (फिर वो बोला-) स्वामीजीके गलेमें कैंसर था, इसलिये आवाज साफ नहीं थी।

   मैंने आक्रोश करते हुए उनसे पूछा कि आपको क्या पता? तब उसने जवाब दिया कि आपलोगोंसे ही सुना है?– ऋषिकेशके संतनिवासमेंसे ही किसीने ऐसा कहा था(मैं उनको जानता नहीं)।} फिर मैंने कहा कि कैंसर उनके हुआ ही नहीं था। मेरे को पता है, मैं उनके साथ में रहा हुआ हूँ।

   लोगोंमें एक बात यह भी फैली हुई है कि एक डॉक्टर ने (यन्त्र के द्वारा) श्री स्वामी जी महाराज के गलेकी जाँच की, तो उसमें, डॉक्टर को ब्रह्माण्ड दिखायी दे गया। कोई कहते हैं कि डॉक्टर को वहाँ, भगवान् के दर्शन हो गये।

    कुछ लोग ऐसे भी देखने-सुनने में आये हैं कि श्री स्वामी जी महाराज के विषय में, अपने मनसे ही गढ़कर कोई बात बना देते हैं और लोगों में कह देते हैं तथा लोग उस बात को आगे चला देते हैं। कोई तो महापुरुषोंकी किसी सत्यबात को लेकर उसमें असत्य बात जोङ देते हैं, सत्यके सहारे असत्य कह देते हैं, उसमें अपनी बात भी मिला देते हैं। कोई तो श्री स्वामी जी महाराज की किसी बात या व्यवहार को लेकर उसको अपनी प्रशंसा में जोङ देते हैं। कोई अपनी हल्की सोचके के अनुसार श्री स्वामी जी महाराज और श्री सेठजी जैसे महापुरुषोंको साधारण मनुष्यकी तरह बता देते हैं, अपनी सांसारिक बुद्धि के अनुसार श्री स्वामी जी महाराज के लिये भी वैसी ही बात कह देते हैं। सोचते नहीं कि श्री स्वामी जी महाराज जैसे महापुरुषके लिये यह कैसे सम्भव है। कोई तो श्री स्वामी जी महाराज के लिये वो बात कह देते हैं जो उनके स्वभाव में ही नहीं है। उनके सिद्धान्तों की तरफ भी नहीं देखते।

    कुछ लोगों की तो ऐसी बात सामने आयी है कि श्री सेठजी और श्री स्वामी जी महाराज जैसे महापुरुषोंके लिये घटिया बात कहने में भी उनको शर्म नहीं आयी। किसीने तो श्री सेठजी के लिये घटिया और झूठी बात पुस्तक में भी लिख दी। किसीने बिल्वमङ्गलकी घटनाको श्री तुलसीदास जी महाराज की घटना बता दिया। ऐसे लोग दूसरे किसीकी की घटना को महापुरुषोंकी घटना बता देते हैं, दूसरे के व्यवहारको महापुरुषोंका व्यवहार और दूसरे की बात को महापुरुषोंकी बात बता देते हैं। झूठ साँच का भी ध्यान नहीं रखते। असत्य से भी परहेज नहीं करते। कोई तो श्री स्वामी जी महाराज की प्रशंसा करते हुए भी झूठीबात बोल देते हैं। कोई श्री स्वामी जी महाराज का नाम लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। इस प्रकार और भी कई बातें हैं, विचारवान लोग समझ सकते हैं।

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   इस प्रकार लोग सुनी-सुनाई बातें कहते-सुनते रहते हैं और आगे चलाते भी रहते हैं जो कि बिल्कुल झूठी है।

साधारण लोगोंकी तो बात ही क्या है जाने-माने उत्तराखण्ड के एक डाॅक्टर ने भी ऐसी बात कहदी। 

श्रीस्वामीजी महाराजके सिरपर एक फोङा हो गया था और उसका ईलाज कई जने नहीं कर पाये थे। उस समय भी डाॅक्टर आदि कई जनोंने उसको कैंसर कह दिया था। 

फिर एक कम्पाउण्डरने साधारण इलाजसे ही उसको ठीक कर दिया(वो विधि आगे लिखी गई है)।अगर कैंसर होता तो साधारणसे इलाजसे ठीक कैसे हो जाता? परन्तु बिना सोचे-समझे ही कोई कुछका कुछ कह देते हैं। अपनेको तो चाहिए कि जो बात प्रामाणिक हो, वही मानें। 

    लोगोंने तो ऐसी झूठी खबर भी फैलादी कि श्री स्वामी जी महाराज ने शरीर छोङ दिया। ऐसे एक बार * ही नहीं, अनेक बार हो चुका। 

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   (टिप्पणी *  एक बार की बात है कि मैं अपने गाँव जाकर आया था और श्री स्वामी जी महाराज को वहाँकी बातें सुना रहा था। श्री स्वामी जी महाराज बोले कि वहाँ और कोई नई बात हुई क्या? सुनते ही मेरेको वहाँ घटित हुई एक घटना याद आ गई। मैंने कहा– हाँ, एक नई बात हुई थी। फिर मैंने वो घटना सुनादी। श्री स्वामी जी महाराज के सामने ऐसी बातें पहले भी कई बार आती रही थी। उनके लिये वो कोई नई बात नहीं थी।

   वो घटना इस प्रकार थी— मैं गाँव में एक वृद्ध माता जी से मिलने गया। वो माताजी अन्दर से आई और घूँघट निकाल कर दूसरी तरफ मुँह किये हुए बैठ गई। वैसे तो पुरानी माताएँ लज्जाके कारण बालक को देखकर भी घूँघट निकाल लेती है, पर बालक से बात कर लेती है। श्री स्वामी जी महाराज ने भी बताया कि घूँघट निकाले हुए एक वृद्ध माताजी से मैंने कहा कि माजी! मैं तो आपके सामने पौते के समान हूँ। ऐसे ही एक बार एक वृद्ध माताजी श्री स्वामी जी महाराज से कोई बात पूछ रही थी, उनके घूँघट निकाला हुआ देखकर श्री स्वामी जी महाराज ने आदरपूर्वक मेरेको भी बताया कि देख! (माँजी के घूँघट निकाला हुआ है)। ऐसे कई माताएँ दादी, परदादी बन जानेपर भी घूँघट निकालना नहीं छोङती। यह उनके स्वभाव में होता है। हमारे यहाँ की एक यह आदरणीय रीति है, मर्यादा है। जगज्जननी सीता जी के भी घूँघट निकालनेकी बात आई है। हमारे भारतवर्ष की यह पुरातन रिवाज रही है। माताएँ लज्जाके अवसर पर तो घूँघट निकालती ही है, शोकके अवसर पर भी घूँघट निकाल लेती है। यहाँ, ये माताजी शोक का अवसर जानकर घूँघट निकाले बैठी थी।

   जब वो माताजी बोली नहीं, तब मैंने पूछा कि क्या बात है माजी! तो वो शोक जताती हुई बोली कि क्या करें, श्री स्वामी जी महाराज ने तो समाधि ले ली अर्थात् शरीर छोङ दिया। तब मेरे समझ में आया कि इनके पास कोई झूठी खबर पहुँच गई है। मैंने कहा कि (नहीं माजी! ऐसी बात नहीं है), श्री स्वामी जी महाराज ने शरीर नहीं छोङा है, मैं वहीं से आया हूँ, वे राजीखुशी हैं। तब उन माताजी ने शोक छोङा और सामान्य हुई, नहीं तो वो झूठी बात को ही सच्ची मानकर शोक पालने में लग गई थी। ऐसी और भी कई बातें हैं।

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१(सिरवाले फोङेका ईलाज इस प्रकार किया गया–)

     कम्पाउण्डरजीने पट्टी बाँधनेवाला कपङा(गोज) मँगवाया और उसके कैंचीसे छोटे-छोटे कई टुकङे करवा लिये। फिर वे उबाले हुए पानीमें डाल दिये गये; बादमें उनको निकालकर निचौङा और उनको थोङी देर हवामें रख दिया। उसके बाद फोङेको धोकर उसके ऊपरका भाग(खरूँट) हटा दिया गया। फिर फोङेको साफ करके उसपर वे कपड़ेके टुकङे रख दिये। उस कपङेकी कतरनने फोङेके भीतरकी खराबी (दूषित पानी आदि) सोखकर बाहर निकाल दी। फिर वे गोज हटाकर दूसरे गोज रखे गये। इस प्रकार कई बार करनेपर जब अन्दरकी खराबी बाहर आ गयी तब फोङेपर दूसरे स्वच्छ गोज रखकर उसपर पट्टी बाँधदी।

    शामको जब पट्टी खोली गयी तो वे कपड़ेके टुकड़े भीगे हुए मिले; उन टुकड़ोंने अन्दरकी खराबीको खींचकर सोख लिया था, इसलिये वे भीग गये थे, गीले हो गये थे।

    तत्पश्चात उन सबको हटाकर फिरसे नई पट्टी बाँधी गई जिस प्रकार कि सुबह बाँधी थी।

दूसरे दिन सुबह भी उसी विधिसे पट्टी की गई। ऐसा प्रतिदिन किया जाने लगा।

    बीच-बीच में यह भी ध्यान रखा जाता था कि घावका मुँह बन्द न हो। अगर कभी बन्द हो भी जाता तो उसको वापस खोला जाता था जिससे कि दूषित पानी आदि पूरा बाहर आ जाय।

    इस प्रकार सोखते-सोखते कुछ दिनोंके बाद वो गोज(कपङेकी कतरनें) भीगने बन्द हो गये, फोङेके भीतरकी खराबी बाहर आ गयी तथा महीनेभर बादमें वो फोङा ठीक हो गया। उस जगह साफ, नई चमङी आ गई।

    इसके बाद ऐसी ही विधि दूसरे लोगोंके घाव आदिको ठीक करनेके लिये की गई और उन सबके घाव भी ठीक हुए।

    इससे एक बात यह समझमें आयी कि ऊपरसे दवा लगानेकी अपेक्षा भीतरकी खराबी बाहर निकालना ज्यादा ठीक रहता है।

    डॉक्टर आदि कई लोगोंने ऊपरसे दवा लगा-लगा कर ही इलाज किया था, भीतरसे विकृति निकालनेका, ऐसा उपाय उन्होंने नहीं किया था। तभी तो उनको सफलता नहीं मिली।

(गलेके कफका इलाज इस प्रकार किया गया–)

    सेवाकी कमी आदि के कारण कई बार श्री स्वामी जी महाराज के सर्दी, जुकाम आदि हो जाता था, जिससे गलेमें कफ होनेके कारण लोगोंके सत्संग सुननेमें दिक्कत आती थी।

    सत्संग सुननेमें बाधा न हो– इसके लिये कभी-कभी श्री स्वामी जी महाराज के गले में कपङेकी पट्टी लपेटी जाती थी और कफ डालनेके लिये दौने आदि में मिट्टी रखी जाती थी; लेकिन इसका भी इलाज कम्पाउण्डरजीने साधारणसे उपाय द्वारा कर दिया।

    वे बोले कि स्वामीजी महाराजके सामनेसे यह (कफदानी वाला) बर्तन हटाना है और उसका उपाय यह बताया कि लोटा भर पानीमें एक दो चिमटी(चुटकी) नमक डालकर उबाल लो तथा चौथाई भाग जल रह जाय तब अग्निसे नीचे उतार लो। ठण्डा होनेपर इनको पिलादो।

    उनके कहनेपर ऐसा ही किया गया और कुछ ही दिनोंमें श्री स्वामी जी महाराज का गला ठीक हो गया और कफ चला गया तथा कफ डालनेके लिये रखा जानावाला, मिट्टीका बर्तन भी हट गया। नहीं तो वर्षोंतक यह कफवाली समस्या बनी ही रही थी।

    किसीने गलेमें लपेटी हुई उस कपड़ेकी पट्टी को देखकर कैंसर समझ लिया होगा अथवा, कैंसरवाली गलतफहमीकी पुष्टि की होगी तो वो भी बिना जाने, अज्ञानता के कारण की थी। वास्तव में, गलेमें पट्टी कैंसर के कारण नहीं लपेटी जाती थी। इस प्रकार जब कफ चला गया, तब गला ठीक हो गया और सिरवाला फोड़ा भी ठीक हो गया था। न तो कभी गलेमें कैंसर हुआ था और न सिरपर।

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   वास्तवमें उनके कैंसर न तो कभी गलेमें हुआ था और न कभी सिरपर हुआ था। किसी भी अंग में कैंसर नहीं हुआ था। 

उनके साथमें रहनेवाले, सत्संग करनेवाले अनेक जने ऐसे हैं, जो इस बातको जानते हैं।

तथा मैंने भी वर्षोंतक श्री स्वामी जी महाराज के पासमें रहकर देखा है और बहुत नजदीक से देखा है– उम्रभर में उनके किसी भी अंग में, कभी कैंसर हुआ ही नहीं था। 

लोग झूठी-झूठी कल्पना कर लेते हैं। 

बातुल भूत बिबस मतवारे। ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे।।

जिन्ह कृत महामोह मद पाना। तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना।। (रामचरितमानस 1।115)

जय श्री राम।।

विनीत- डुँगरदास राम

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