सोमवार, 27 अप्रैल 2015

संसारका चिन्तन नहीं करें या भगवानका चिन्तन करें?(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                      ।।श्रीहरि:।।

संसारका चिन्तन नहीं करें या भगवानका चिन्तन करें?

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

…तो निषेधात्मक-साधन बहुत ऊँचा है…

चिन्तन भगवानका करोगे,तो संसारका चिन्तन जबरदस्ती आवेगा और संसारका चिन्तन नहीं करेंगे,तो भगवानका चिन्तन स्वत: होगा।

और कुछभी चिन्तन नहीं करोगे तो आपकी स्थिति स्वरूपमें ही होगी,और कहाँ होगी,क्यों होगी,आप जरा सोचो।

अधिक जाननेके लिये
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका 19950824.0830 बजेवाला प्रवचन सुनें)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

दिनांक सहित सत्संग(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                        ॥श्रीहरि:॥

(संकलित)

प्रेम का मूल है-- अपनापन ! जिसमें हमारी प्रियता होगी, उसकी याद अपने-आप आयेगी ! अपनी स्त्री ,बेटा, बेटी इसलिये याद आते हैं कि उनमें हमारी प्रियता है, उनको हमने अपना माना है ! यदि भगवान् में प्रेम चाहते हो तो उनको अपना मान लो, फिर उनकी याद स्वतः आयेगी, करनी नहीं पड़ेगी ! आप जिसको पसन्द करोगे, उसमें मन स्वतः लगेगा ! भगवान् मेरे हैं-- इसमें जो शक्ति है, वह त्याग-तपस्या में नहीं है !(२३.६.१९९९,प्रातः ८.३०,ॠषिकेश) परम श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन से !

भगवान् को अपना माने बिना भजन करने से भजन की वैसी सिद्धि नहीं होती ! परन्तु भगवान् को अपना मान लें तो भजन किये बिना स्वाभाविक भजन की सिद्धि हो जायगी ! मैं भगवान् का हूँ --ऐसा भीतर से मान लें तो आपकी अवस्था बदल जायगी,आपका पूरा परिवर्तन हो जायगा,आपको शान्ति मिल जायगी,आपकी शंका मिट जायगी,सन्देह मिट जायगा ! 'हे नाथ ! मैं आपका हूँ ' --इतना भीतर से मान लो तो संसार का सम्बन्ध स्वतः छूट जायगा ! संसार को छोड़ने के लिए आपको प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा | (२९.२.२०००,सांय ४,अहमदाबाद) परम श्रद्धेय स्वामीश्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन से !

।।श्रीहरिः।।

हमें जो समय मिला है यह बहुत श्रेष्ठ समय है। मनुष्यशरीर को दुर्लभ बताया है। 'दुर्लभ साज सुलभ करी पावा'। अपने को सुलभता से मिला है। यह दुर्लभ साज है। बहुतसे जन्मों के अंत में यह जन्म मिलता है।  सुखके भोगनेमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिये। अवसर है। यह अवसर बार बार नहीं मिलता है। भगवत्कृपा से मिलता है। बड़ा दुर्लभ है। मिलजाने के कारण मनुष्य उसकी कीमत नहीं समझता। ऐसा कीमती समय है। तो समय खाली नहीं जाना चाहिये। हर समय भगवानके नाम को लेते रहना चाहिये। बड़ी भारी हानि है जो समय खाली चला गया। मैंने संतोंका एक पत्र पढ़ा था उसमें लिखा था, चेतावनी देते हुए अपने प्यारे सज्जन को लिखा। बहुत पुरानी बात है। कार्ड था। पैसे पैसे में कार्ड आया करता उन दिनों की बात है। उसमें लिखा था एक 'राम' इतना समय भी भगवन्नाम उच्चारण करे एक बार, इतना समय भी खाली चला गया तो उसका दुःख होना चाहिये जैसे ब्याहा हुआ बड़े से बड़ा बेटा मर जाय। उससे भी ज्यादा दुःख होना चाहिये। बेटा तो छोटा होकर भी जवान हो जायेगा, और वस्तुएँ तो फिर भी पैदा हो जायेंगी परन्तु समय पैदा नहीं होता। 'गया वक्त नहीं आवे दूजी बारी' - बार बार नहीं आता। जो समय चला गया वो तो सज्जनों चला ही गया। वो तो घाटा लग गया, लग ही गया। गिनती का समय है। कितने वर्ष जीयेंगे इसका पता नहीं और हर दम मर रहा है। आयु-रूपी खेत को काल-रूपी चिड़िया चुग रही है। खत्म हो रही है आयु। उम्र खत्म हो रही है। जितना समय जाता है वो हमारे जीवन का समय जाता है। जिसमें हम जी रहे हैं। मरते नहीं है। मौत से रक्षा करनेवाला हमारे पास समय है।

- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन 'मनुष्य-शरीर औऱ समयके सदुपयोग का महत्व'(३ फरवरी १९९१, दोपहर ३:१५ बजे) से।

।।श्रीहरिः।।

मनुष्यको तंग करने वाला, दुःख देने वाला खुदका संकल्प है। 'ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये' यह जो मनकी धारणा है इसी से ही दुःख होता है। अगर यह संकल्प छोड़ दे तो योगकी, समताकी प्राप्ति हो जायेगी।

- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन ' 19900605_0518_Dukh Ka Kaaran Sankalp' से

मूर्खसे मूर्ख मनुष्यको भी भगवत्प्राप्ति हो सकती है।
इस बातको समझनेके लिये श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका  19910916/518 बजेवाला यह प्रवचन सुनें।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
3.12.1994/900 बजेवाले प्रवचनमें ऐसी बातें आयी है-

मूकसेवा-पाप करनेवाले पर दया करे कि यह ऐसा नहीं करता तो अच्छा था,ऐसे दया करे,गुस्सा नहीं।

बैठकर आपसमें सत्संगकी चर्चा करेंगे तो सत्संगकी बात पैदा हो जायेगी,सेठजीका वरदान है,यह सेठजीका दरबार है।सेठजीने अटकल सिखादी,अब सत्संगकी चर्चा करो।ऐसा कई जगह शुरु हो गया।

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मंगलवार, 3 मार्च 2015

लोगोंसे भला कहलानेकी और भला करवानेकी चाह छौड़ें।

राम

लोगोंसे भला कहलानेकी और भला करवानेकी चाह छौड़ें।

दुनियाँ है भोळी,है भोळी।
(राम नाम लेताँ शरमावै प्रगट खैले होळी,दुनियाँ है भोळी,है भोळी।

सँतों सार ग्रहणके सीरी,संतों सार ग्रहणके सीरी।
नाना मतको देख निरन्तर देखि भई दिलगीरी।।
[6:00 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: हेली म्हारी निरभै रहीज्यो ये।
औगुणगारी दुनियाँ ज्याँनें भेद मति दीज्यो।।
हेली म्हारी निरभै रीज्यो ये।
[7:06 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: अपने रामसे लगि रहिये।
जौं कोइ बादी बाद चलावै (तो) दोय बात बाँकी सहिये।।

[7:10 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: तेरे भावै कछू करो भलौ बुरौ संसार।
नारायण तूँ बैठिकै अपनौ भवन बुहार।।
[7:17 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: रज्जब रोष न कीजिये कोई कहौ क्यूँ ही।
हँसकर उत्तर दीजिये हाँ बाबाजी यूँ ही।।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(-९)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                   ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(-९)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-९.

कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणनें दोष |
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस ||

कथा-

साठिका गाँवके एक जने(शायद माताजीके भक्त,एक चारण भाई)ने सोचा कि इस गाँवको छोड़कर ओसियाँ गाँवमें चले जायँ (जो सौ कोसकी तरह दूर था)तो ज्यादा लाभ हो जायेगा;परन्तु वहाँ जाने पर पहलेसे भी ज्यादा घाटा दीखा; तब अपनी कुमतिके कारण पछताते हुए यह बात कहीं .

(हमारेमें जब दुर्बुध्दि आयी,तब यहाँसे कूदे,इस 'साठिका' गाँवको छौड़कर 'औसियाँ' गाँव जानेका निश्चय किया।जब यहाँ आकर देखा तो ऐसा लगा कि वहाँ ही(साठिकामें ही) रहते तो ठीक था; परन्तु अब क्या हो,साठिका तो वहाँ,इतनी दूर-सौ कोस रह गया।अब किसको दोष दें! यह कर्म(प्रारब्ध) तो खुदनें ही बनाया था)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
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रविवार, 8 फ़रवरी 2015

भगवानसे अरदास-(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                      ।।श्रीहरि:।।

भगवानसे अरदास-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे की गयी भगवानसे प्रार्थना(तारीख-23.11.1993/1800 बजेवाली) इस प्रवचन(19990123/1300) में जोड़ी गई है।वो अलगसे भी है, पर फाइल बड़ी है।

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प्रभुसे प्रार्थना।(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                     ।।श्रीहरि:।।

प्रभुसे प्रार्थना।

(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
                                
  हे नाथ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे प्यारे लगें।केवल यही मेरी माँग है और कोई माँग नहीं। 
    हे नाथ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरक में डाल दें, सुख चाहूँ तो अनन्त दुःखों में डाल दें, पर आप मुझे प्यारे लगें। 
    हे नाथ! आपके बिना मैं रह न सकूँ, ऐसी व्याकुलता आप दे दें। 
    हे नाथ! आप मेरे हृदय में ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीति के बिना मैं जी न सकूँ। 
    हे नाथ! आपके बिना मेरा कौन है? मैं किससे कहूँ और कौन सुने?
    हे मेरे शरण्य! मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं। 
    मैं भूला हुआ कइयों को अपना मानता रहा। उनसे धोखा खाया, फिर भी धोखा खा सकता हूँ, आप बचायें!

    हे मेरे प्यारे! हे अनाथनाथ! हे अशरणशरण! हे पतितपावन! हे दीनबन्धो! हे अरक्षितरक्षक! हे आर्तत्राणपरायण! हे निराधार के आधार! हे अकारणकरुणावरुणालय! 
हे साधनहीन के एकमात्र साधन! हे असहाय के सहायक! क्या आप मेरे को जानते नहीं,मैं कैसा भड़्गप्रतिज्ञ(-भग्नप्रतिज्ञ),कैसा कृतघ्न,कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी,कैसा अकरण-करणपरायण हूँ। अनन्त दुःखों के कारणस्वरूप भोगों को भोगकर-जानकार भी आसक्त रहनेवाला,अहित को हितकर माननेवाला, बार-बार ठोकरें खाकर भी नहीं चेतनेवाला,आपसे विमुख होकर बार-बार दुःख पानेवाला, चेतकर भी न चेतनेवाला, जानकर भी न जाननेवाला मेरे सिवाय आपको ऐसा कौन मिलेगा?

    प्रभो! त्राहि माम्! त्राहि माम्!! पाहि माम्! पाहि माम्!! हे प्रभो! हे 
विभो! मैं आँख पसारकर देखता हूँ तो मन-बुद्धि-प्राण-इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे नहीं हैं, फिर वस्तु-व्यक्ति आदि मेरे कैसे हो सकते हैं! ऐसा मैं जानता हूँ, कहता हूँ, पर वास्तविकता से नहीं मानता। मेरी यह दशा क्या आपसे किञ्चिन्मात्र भी कभी छिपी है? फिर हे प्यारे! क्या कहूँ! हे नाथ! हे नाथ!! हे मेरे नाथ!!! हे दीनबन्धो! हे प्रभो! आप अपनी तरफ से शरण में ले लें।
बस, केवल आप प्यारे लगें। 

(-परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

(श्रीपञ्चरत्नगीता, पृष्ठ १७९-१८१ से)।

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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

फेसबुकके सदस्योंसे नम्र निवेदन

                      ।।श्रीहरि:।।

फेसबुकके सदस्योंसे नम्र निवेदन-

फेसबुकके सभी सदस्योंसे विनम्र प्रार्थना है कि इसमें गन्दी,अश्लील सामग्री न भेजें।न ऐसी सामग्री साझा करें और न टैग करें।अगर कोई ऐसा करता है तो समझा-बुझाकर रोकें कि इस धार्मक-समुदायमें ऐसी सामग्री भेजते हो,तुम्हें शर्म आनी चाहिये।इसमें कई आदरणीय,पूज्य साधू-संत और माताएँ,बहनें हैं,कई परोपकारी सज्जन हैं।उन सबके सामने आप ऐसी सामग्री लाते हो! तुम्हें विचार होना चाहिये आदि आदि।फिर भी अगर वो न मानें तो तिरस्कार न करके उसको अपनी मित्रसूचीसे हटादें,जिससे कि उनकी वो सामग्री इस समुदायमें न दीखे।इस समुदायकी मर्यादा बनाये रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।यह गड़बड़ आज कलमें ही ज्यादा होने लगी है।कृपया,इस पर ध्यान दें,नहीं तो हो सकता है कि अच्छे-अच्छे लोग इसको छौड़कर अलग हो जायँ।अगर ऐसा हुआ तो यह समुदाय आदरणीय न रहकर, ऐक गन्दा समुदाय बनकर रह जायेगा और इससे समाजकी बड़ी हानि होगी,उससे बड़ा भारी नुक्सान होगा।इसलिये पहले ही चेत जाना अच्छा है।आप सबका भला हो-इसी आशाके साथ आप सबका हितैषी…।

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