रविवार, 24 मई 2015

यह 'अहम'(अहंकार) जो चीज है, यह दो तरहका होता है- -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।(दि.21-9-1993/0518)।

                         ॥श्रीहरि:॥
यह 'अहम्'(अहंकार) जो चीज है, यह दो तरहका होता है-
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज। (दि.21-9-1993/0518)।

श्रोता-
'जीवन्मुक्ति' होजानेपर 'अहम्'की क्या स्थिति रहेगी?

स्वामीजी-
'अहम्' की, शरीरकी स्थिति ऐसी ही रहेगी।
'अहंकार',
देखो एक बात बतावें।
यह जीवन्मुक्त-'जीवन्मुक्ति'की (बात) पूछी ना!
(इसमें एक) बात बतावें आपको।यह 'अहम्' जो चीज है, यह दो तरहका होता है।
एक शरीरको लेकरके 'मैं हूँ'-यह 'अहम्' होता है और एक 'अहम्' है जो क्रिया करनेमें,सब काम करनेमें,वो 'समष्टि अहंकार'के साथ 'अहंकार' होता है उसका।
'व्यष्टि,शरीरधारी मैं हूँ -यह मिट जाता है और 'सामान्य अहंकार' जो 'महाभूतान्यहंकारो बुध्दिरव्यक्तमेव च।'(गीता १३।५),यह जो 'अहंकार' है,यह 'अहंकार' रहता है और एक 'व्यक्तिका (व्यक्तिगत) अहंकार' है,वो मिट जाता है।
जीवन्मुक्ति, 'मुक्ति' नाम उसीका ही है कि शरीरसे अपनी 'अहंता' मिट गईऽऽऽ॥
यह मुक्त हो गये,छूट गया।…
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के 21-9-1993.0518 बजेवाले प्रवचनसे।
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पता-
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श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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बुधवार, 20 मई 2015

परम हितैषी,भगवान अचिन्त्यरूपसे अपने भक्तकी रक्षा करते हैं।

                      ।।श्रीहरि:।।

परम हितैषी,भगवान अचिन्त्यरूपसे अपने भक्तकी रक्षा करते हैं।

आपने रघुनाथ भक्तकी कथा सुनी या पढी  होगी।यह कथा 'भक्त पञ्चरत्न' नामक पुस्तकमें है और

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' भी कहते थे।

(…कि) जब वो दौनों (पति-पत्नि) चारों ओरसे शत्रुओं द्वारा घिर गये और पत्नि डरने लगी तो रघुनाथ भक्तने उपालम्भ (ओलबा) देते हुए कहा कि प्रिये! (अपने परम हितैषी, भगवान् के मौजूद रहते हुए भी तुम) डरती हो! ? डरो मत।डरना है-यह भगवानका तिरस्कार करना है।

…और उसी समय अचिन्त्य रूपसे भगवान् ने आकर उन दौनोंकी रक्षा की।

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शुक्रवार, 8 मई 2015

(संसारकी याद) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है। (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                        ।।श्रीहरि:।।

(संसारकी याद) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है।

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

प्रश्न-
संसार की स्मृति (याद) मिटती नहीं है, क्या करें ?

(स्वामीजी -)

(संसारकी स्मृति) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है। अच्छा,
आपको स्वप्न क्या आया था,बता सकते हो? रात स्वप्न आया, परसों रातने (को) आया, वो स्वप्न बताओ; क्या आया?

  (श्रोता -
नहीं बता सकते)।

(स्वामीजी -)
क्यों?

(श्रोता -)
याद नहीं रहता है वो ।

तो उसमें बुद्धि आपकी 'है  वो' - यह (बुद्धि) है ही नहीं;जागते हुए, जगे है ही नहीं। तो स्मृति नहीं रहती। 'है' (सत्य) मानते हो तब स्मृति रहती है।
-
सुपना सा हो जावसी सुत कुटुम्ब धन धाम।
हो सचेत बलदेव नींद से जप ईश्वरका नाम॥
मनुषतन फिर फिर नहिं होई॥
ऊमर सब गफलत में खोई,
किया शुभकरम नहीं कोई ॥
...

(--श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के
दि.२८-४-१९९५ _१६०० बजे वाले सत्संग प्रवचन से)।

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सोमवार, 27 अप्रैल 2015

संसारका चिन्तन नहीं करें या भगवानका चिन्तन करें?(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                      ।।श्रीहरि:।।

संसारका चिन्तन नहीं करें या भगवानका चिन्तन करें?

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

…तो निषेधात्मक-साधन बहुत ऊँचा है…

चिन्तन भगवानका करोगे,तो संसारका चिन्तन जबरदस्ती आवेगा और संसारका चिन्तन नहीं करेंगे,तो भगवानका चिन्तन स्वत: होगा।

और कुछभी चिन्तन नहीं करोगे तो आपकी स्थिति स्वरूपमें ही होगी,और कहाँ होगी,क्यों होगी,आप जरा सोचो।

अधिक जाननेके लिये
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका 19950824.0830 बजेवाला प्रवचन सुनें)।

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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

दिनांक सहित सत्संग(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                        ॥श्रीहरि:॥

(संकलित)

प्रेम का मूल है-- अपनापन ! जिसमें हमारी प्रियता होगी, उसकी याद अपने-आप आयेगी ! अपनी स्त्री ,बेटा, बेटी इसलिये याद आते हैं कि उनमें हमारी प्रियता है, उनको हमने अपना माना है ! यदि भगवान् में प्रेम चाहते हो तो उनको अपना मान लो, फिर उनकी याद स्वतः आयेगी, करनी नहीं पड़ेगी ! आप जिसको पसन्द करोगे, उसमें मन स्वतः लगेगा ! भगवान् मेरे हैं-- इसमें जो शक्ति है, वह त्याग-तपस्या में नहीं है !(२३.६.१९९९,प्रातः ८.३०,ॠषिकेश) परम श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन से !

भगवान् को अपना माने बिना भजन करने से भजन की वैसी सिद्धि नहीं होती ! परन्तु भगवान् को अपना मान लें तो भजन किये बिना स्वाभाविक भजन की सिद्धि हो जायगी ! मैं भगवान् का हूँ --ऐसा भीतर से मान लें तो आपकी अवस्था बदल जायगी,आपका पूरा परिवर्तन हो जायगा,आपको शान्ति मिल जायगी,आपकी शंका मिट जायगी,सन्देह मिट जायगा ! 'हे नाथ ! मैं आपका हूँ ' --इतना भीतर से मान लो तो संसार का सम्बन्ध स्वतः छूट जायगा ! संसार को छोड़ने के लिए आपको प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा | (२९.२.२०००,सांय ४,अहमदाबाद) परम श्रद्धेय स्वामीश्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन से !

।।श्रीहरिः।।

हमें जो समय मिला है यह बहुत श्रेष्ठ समय है। मनुष्यशरीर को दुर्लभ बताया है। 'दुर्लभ साज सुलभ करी पावा'। अपने को सुलभता से मिला है। यह दुर्लभ साज है। बहुतसे जन्मों के अंत में यह जन्म मिलता है।  सुखके भोगनेमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिये। अवसर है। यह अवसर बार बार नहीं मिलता है। भगवत्कृपा से मिलता है। बड़ा दुर्लभ है। मिलजाने के कारण मनुष्य उसकी कीमत नहीं समझता। ऐसा कीमती समय है। तो समय खाली नहीं जाना चाहिये। हर समय भगवानके नाम को लेते रहना चाहिये। बड़ी भारी हानि है जो समय खाली चला गया। मैंने संतोंका एक पत्र पढ़ा था उसमें लिखा था, चेतावनी देते हुए अपने प्यारे सज्जन को लिखा। बहुत पुरानी बात है। कार्ड था। पैसे पैसे में कार्ड आया करता उन दिनों की बात है। उसमें लिखा था एक 'राम' इतना समय भी भगवन्नाम उच्चारण करे एक बार, इतना समय भी खाली चला गया तो उसका दुःख होना चाहिये जैसे ब्याहा हुआ बड़े से बड़ा बेटा मर जाय। उससे भी ज्यादा दुःख होना चाहिये। बेटा तो छोटा होकर भी जवान हो जायेगा, और वस्तुएँ तो फिर भी पैदा हो जायेंगी परन्तु समय पैदा नहीं होता। 'गया वक्त नहीं आवे दूजी बारी' - बार बार नहीं आता। जो समय चला गया वो तो सज्जनों चला ही गया। वो तो घाटा लग गया, लग ही गया। गिनती का समय है। कितने वर्ष जीयेंगे इसका पता नहीं और हर दम मर रहा है। आयु-रूपी खेत को काल-रूपी चिड़िया चुग रही है। खत्म हो रही है आयु। उम्र खत्म हो रही है। जितना समय जाता है वो हमारे जीवन का समय जाता है। जिसमें हम जी रहे हैं। मरते नहीं है। मौत से रक्षा करनेवाला हमारे पास समय है।

- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन 'मनुष्य-शरीर औऱ समयके सदुपयोग का महत्व'(३ फरवरी १९९१, दोपहर ३:१५ बजे) से।

।।श्रीहरिः।।

मनुष्यको तंग करने वाला, दुःख देने वाला खुदका संकल्प है। 'ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये' यह जो मनकी धारणा है इसी से ही दुःख होता है। अगर यह संकल्प छोड़ दे तो योगकी, समताकी प्राप्ति हो जायेगी।

- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन ' 19900605_0518_Dukh Ka Kaaran Sankalp' से

मूर्खसे मूर्ख मनुष्यको भी भगवत्प्राप्ति हो सकती है।
इस बातको समझनेके लिये श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका  19910916/518 बजेवाला यह प्रवचन सुनें।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
3.12.1994/900 बजेवाले प्रवचनमें ऐसी बातें आयी है-

मूकसेवा-पाप करनेवाले पर दया करे कि यह ऐसा नहीं करता तो अच्छा था,ऐसे दया करे,गुस्सा नहीं।

बैठकर आपसमें सत्संगकी चर्चा करेंगे तो सत्संगकी बात पैदा हो जायेगी,सेठजीका वरदान है,यह सेठजीका दरबार है।सेठजीने अटकल सिखादी,अब सत्संगकी चर्चा करो।ऐसा कई जगह शुरु हो गया।

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मंगलवार, 3 मार्च 2015

लोगोंसे भला कहलानेकी और भला करवानेकी चाह छौड़ें।

राम

लोगोंसे भला कहलानेकी और भला करवानेकी चाह छौड़ें।

दुनियाँ है भोळी,है भोळी।
(राम नाम लेताँ शरमावै प्रगट खैले होळी,दुनियाँ है भोळी,है भोळी।

सँतों सार ग्रहणके सीरी,संतों सार ग्रहणके सीरी।
नाना मतको देख निरन्तर देखि भई दिलगीरी।।
[6:00 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: हेली म्हारी निरभै रहीज्यो ये।
औगुणगारी दुनियाँ ज्याँनें भेद मति दीज्यो।।
हेली म्हारी निरभै रीज्यो ये।
[7:06 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: अपने रामसे लगि रहिये।
जौं कोइ बादी बाद चलावै (तो) दोय बात बाँकी सहिये।।

[7:10 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: तेरे भावै कछू करो भलौ बुरौ संसार।
नारायण तूँ बैठिकै अपनौ भवन बुहार।।
[7:17 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: रज्जब रोष न कीजिये कोई कहौ क्यूँ ही।
हँसकर उत्तर दीजिये हाँ बाबाजी यूँ ही।।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(-९)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                   ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(-९)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-९.

कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणनें दोष |
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस ||

कथा-

साठिका गाँवके एक जने(शायद माताजीके भक्त,एक चारण भाई)ने सोचा कि इस गाँवको छोड़कर ओसियाँ गाँवमें चले जायँ (जो सौ कोसकी तरह दूर था)तो ज्यादा लाभ हो जायेगा;परन्तु वहाँ जाने पर पहलेसे भी ज्यादा घाटा दीखा; तब अपनी कुमतिके कारण पछताते हुए यह बात कहीं .

(हमारेमें जब दुर्बुध्दि आयी,तब यहाँसे कूदे,इस 'साठिका' गाँवको छौड़कर 'औसियाँ' गाँव जानेका निश्चय किया।जब यहाँ आकर देखा तो ऐसा लगा कि वहाँ ही(साठिकामें ही) रहते तो ठीक था; परन्तु अब क्या हो,साठिका तो वहाँ,इतनी दूर-सौ कोस रह गया।अब किसको दोष दें! यह कर्म(प्रारब्ध) तो खुदनें ही बनाया था)।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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