इसका नाम है-'गीता-माधुर्य।
गीता-माधुर्य (की रिकोर्डिंग) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/ylSe6rQi
http://www.swamiramsukhdasji.org/
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
।।श्रीहरिः।।
पाँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण-
एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज एकान्त में अकेले ही विराजमान थे|
ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|
मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?
(ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|
फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये।
(बहुत पहले कि बात है कि एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से एक हैड मास्टर ने पूछा कि मनुष्य को कम- से कम क्या कर लेना चाहिये?
इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज ने बताया कि मनुष्य को कर तो लेना चाहिये अपना कल्याण। तत्त्वज्ञान। भगवान् का परम प्रेम प्राप्त कर लेना चाहिये। परन्तु इतना न हो सके तो कम- से कम इतना तो कर ही लेना चाहिये कि मनुष्य जन्म से नीचा न चला जाय (मनुष्य जन्म से नीचे न गिर जाय)।
अर्थात् इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति न कर सके तो मरने के बाद वापस मनुष्य जन्म मिल जाय। पशु-पक्षी,कीट-पतंग आदि नीच योनियों में न जाना पङे। इतना तो कर ही लेना चाहिये।
(तब उन्होंने पूछा कि) इसका क्या उपाय है (कि वापस मनुष्य जन्म ही मिल जाय)?
इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज बोले कि गीता याद (कण्ठस्थ) करलें। गीता पाठ करें । क्योंकि-
गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां व्रजेत् ।।१६।।
गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् ।
(वराह पुराण, गीता माहात्म्य)
अर्थात्, गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है, तो] मरनेपर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है)। 19930714_0518_Parlok Ki Chinta Kare Swabhav Sudhar ( परलोक की चिंता करे स्वभाव सुधार, यह प्रवचन सुनें) अस्तु।
(इसलिये हमलोगों को चाहिये कि गीताजी याद करलें और गीताजी का पाठ करें )।
[ पूरी गीता का तो कहना ही क्या, गीताजी के तो एक अध्याय का भी बङा माहात्म्य है। एक श्लोक या आधे श्लोक अथवा चौथाई श्लोक (एक चरण) का भी बङा माहात्म्य है।
इसलिये हमलोगों को चाहिये कि कम-से कम गीता जी के पाँच श्लोकों का तो पाठ कर ही लें ]।
अब गीताजीके कौन-कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|
फिर अन्दरसे बाहर, सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा) के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ (करना) शुरु करवा दिया||
(यह पाठ रोजाना सत्संग- प्रवचनसे पहले होता था|)
पाँच श्लोक आदिका पाठ उन महापुरुषों('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज') की ही आवाजके साथ- साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।
( श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लोक-कल्याण- हित शुरु करवाये हुए गीताजी(४/६-१०) के पाँच श्लोकोंका उन्हीकी आवाजमें पाठ यहाँसे प्राप्त करें- https://db.tt/moa8XQh7 )
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-
● गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक ●
(गीता ४/६-१०)-
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
और फिर भगवन्नाम संकीर्तन|
तत्पश्चात श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका संत्संग (होता था) ||
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पता-
सत्संग- संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/
दूसरा गीता-पाठ-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके
रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) है।
महापुरुषोंकी वाणीके साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीताका प्रचार करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है (गीता 18.68,69)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।जैसे,सौ लेग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके सौ पाठ
करनेका लाभ ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।....
दूसरा गीता-पाठ यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें - http://db.tt/L5hJrHtt
।।श्रीहरि:।।
@गीता-व्याख्या@
व्याख्याता-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे प्रार्थना की गयी कि सत्संग-प्रवचनोंमें गीताजीकी व्याख्या करके समझावें।गीताजीका अर्थ करके,अर्थ समझाकर,विस्तारसे सत्संगमें सुनावें।
तब उन्होने करीब पैंतीस दिनतक गीताजी समझाकर कही,जिसकी अभी(१४.८.२०१३)तक पुस्तक नहीं छपी है।
यह गीता-व्याख्या गीता"साधक-संजीवनी" ग्रंथ लिखनेके बाद की गयी है।
(इसलिये यह मानकर संतोष नहीं कर लेना चाहिये कि इसकी पूरी बातें सधक-संजीवनीमें तो आ ही गयीं,प्रत्यूत इस पूरी व्याख्याको सुनना चाहिये)।
उसकी रिकोर्डिंग(१२४ फाइलोंमें) है।
वो गीता-व्याख्या यहाँ(इस पतेसे)से प्राप्त करें-
http://db.tt/C65YU58m
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज विराजमान हो रहे थे|ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|
मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?
(ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|
फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये-गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां वृजेत्|
गीताभ्यासःपुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम्||(गीता महात्म्य)
अर्थात् गीता-पाठ करनेवाला [मुक्ति होनेसे पहले] मरनेपर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्ति पा जाता है|
अब गीताजीके कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|
फिर अन्दरसे बाहर सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा)के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ शुरु करवा दिया||
यह पाठ सत्संग-प्रवचनसे पहले होता था|
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पता-सत्संग-संतवाणी. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-
गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक
(गीता ४/६-१०)-
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरो$पि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||
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पता-सत्संग-संतवाणी. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/