@गीता-व्याख्या@ (३५ कैसेटों वाली) व्याख्या करनेवाले और सुनानेवाले- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे प्रार्थना की गयी कि गीताजीकी व्याख्या करके,अर्थ समझाकर ,विस्तारसे सत्संग-प्रवचनमें गीताजी सुनावें|तब उन्होने करीब पैंतीस दिनतक गीताजी समझाकर कहीं,जिसकी अभी(१४.८.२०१३)तक पुस्तक नहीं छपी है,उसकी रिकार्डिंग(१२४ फाइलोंमें) है|
वो गीता-व्याख्या यहाँ(इस पतेसे)से प्राप्त करें-
http://db.tt/C65YU58m
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
गुरुवार, 2 जनवरी 2014
@गीता-व्याख्या@ (३५ कैसेटों वाली) व्याख्या करनेवाले और सुनानेवाले- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज|
कामवृत्ति मिटानेके बारहसे ज्यादा उपाय-(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
।।श्रीहरि:।।
काम-क्रोध आदि दोष मिटानेके अनेक उपाय-
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
…एक तीसरा उपाय ऐसा है कि जिनके काम-क्रोध लोभ आदिक मिट गये हैं अथवा मिट रहे हैं,साधन कर रहा है,ऐसे पुरुष के पास रहनेसे बड़ा लाभ होता है, ये वृत्तियाँ शान्त होती है स्वतः ही स्वाभाविक ;वहाँ वृत्ति पैदा ही कम होती है,काम-क्रोध आदि वृत्ति पैदा ही नहीं होती;संगका बड़ा असर पड़ताहै और कामी और लोभीके पास (रहोगे)संग करो तो बड़े तेजीसे पैदा होंगे।
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके दिनांक- १९९३१०२१/५.१८/बजेवालेे सत्संगका अश) ||
यह काम-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/G7Hve1KQ
-इस प्रवचनमें श्री महाराजजीने काम वृत्ति मिटानेके एक दर्जनसे ज्यादा,बारहसे ज्यादा उपाय बताये हैं।
ये जो कामवृत्ति मिटानेके उपाय बताये गये हैं,ये क्रोधवृत्ति मिटानेके भी उपाय हैं अर्थात् इन उपायोंसे काम मिटता है और क्रोध भी मिटता है।||
क्रोध कैसे मिटे?
इसके लिये श्रध्देय स्वामीजी रामसुखदासजी महाराजने इस
(19960204/1500 बजेके) प्रवचनमें भी कई उपाय बताये हैं।वो भी सुनें।
यह क्रोध-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/DbHHBcl2 और
लोभ-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/D56GMblf ।
जो साधक अपने काम-क्रोध आदि दोष मिटाना चाहते हैं,उनके लिये ये उपाय बड़े कामके हैं।
गीताजीमें भगवान कहते हैं कि काम,क्रोध और लोभ ये-तीन नरकके दरवाजे हैं(इनके वशमें होनेवाले मनुष्य नरकोंको प्राप्त करते हैं) और इनसे छूटे हुए मनुष्य परमगतिको प्राप्त करते हैं।(गीता १६।२१,२२)।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
बुधवार, 1 जनवरी 2014
संतवाणीके काँट-छाँट,परिवर्तन करनेका अपराध न करें ,
एक बार किसी पत्रिकामें श्रीस्वामीजी(रामसुखदासजी) महाराजके लेखको कुछ संशोधन करके छापा गया।उस लेखको सुननेपर श्रीस्वामीजी महाराजको लगा कि इसमें किसीने संशोधन किया है,जिससे इसका जैसा असर होना चाहिये,वैसा असर दीख नहीं रहा है!तब श्रीस्वामीजी महाराजने एक पत्र लिखवाकर भेजा,जिसमें लिखा था कि 'आप हमारे लेखोंमें शब्दोंको बदलकर बङा भारी अनर्थ कर रहे हो;क्योंकि शब्दोंको बदलनेसे हमारे भावोंका नाश हो जाता है! इस विषयमें आपको अपने धर्मकी,अपने इष्टकी सौगन्ध है!'आदि। *
-संजीवनी-सुधासे(परम श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा रचित 'साधक-संजीवनी' पर आधारित) प्राक्कथन ix से साभार
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1.यह बात उन दिनोंकी है कि जिन दिनोंमें गीता-दर्पण (लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) का प्रकाशन ... हो रहा था (नाम लिखना बढिया नहीं रहेगा)।बादमें भी कई बार ऐसे अवसर आये हैं।
2.महापुरुषोंके शब्द बदलने नहीं चाहिये।अगर भावोंका खुलासा करना हो तो ब्रिकेट( ) या टिप्पणीमें करना चाहिये।और यह स्पष्ट होना चाहिये कि ऐसा खुलासेके लिये किया गया।राम राम सीताराम।
■□मंगलाचरण□■ (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।
॥श्रीहरिः॥
■□मंगलाचरण□■
(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।
यह मंगलाचरण
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
सत्संग-प्रवचन से पहले
(सत्संग के प्रारम्भ में)
किया करते थे--
पराकृतनमद्बन्धं
परं ब्रह्म नराकृति।
सौन्दर्यसार सर्वस्वं
वन्दे नन्दात्मजं महः॥
प्रपन्नपारिजाताय
तोत्त्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय
गीतामृत दुहे नमः॥
वसुदेवसुतं देवं
कंस चाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परंकिमपि तत्त्वमहं न जाने॥
हरिओम नमोऽस्तु परमात्मने नमः,
श्रीगोविन्दाय नमो नमः,
श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः,
महात्मभ्यो नमः,
सर्वेभ्यो नमो नमः,
नारायण नारायण
नारायण नारायण
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दौ सार बातें-दूसरोंका हित करना और परमात्माको याद करना|
दौ सार बातें-
…तो मनुष्यपना दौ बातसे ही होता है-
एक(१) तो दूसरोंका हित करे|
एक(२) परमात्माको याद करे ||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके १९९३१०२२/५.१८/ बजेके प्रवचनसे
रविवार, 29 दिसंबर 2013
सूक्तियाँ (संख्यामें) १-१०
||श्री हरिः||
÷सूक्ति-प्रकाश÷
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)
सूक्ति-०१.
[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
सूक्ति-०२.
बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|
सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||
सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||
सूक्ति-५.
मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव|
सूक्ति-६.
घंट्याळी घोड़ घणाँ आहू घणा असवार|
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ||
झूँतड़ा(मकान).
सूक्ति-७.
गारबदेसर गाँवमें सब बाताँरो सुख|
ऊठ सँवारे देखिये मुरलीधरको मुख||
सूक्ति-८.
आयो दरशण आपरै परा उतारण पाप|
लारे लिगतर लै गयो मुरलीधर माँ बाप!||
लिगतर(जूते).
सूक्ति-९.
कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणने दोष|
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस||
सूक्ति-१०.
आप कमाया कामड़ा दीजै किणने दोष|
खोजेजीरी पालड़ी काँदे लीन्ही खोस||
सूक्ति-४. खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर| लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||
सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||
भावार्थ-
अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी लहर(हवा) तो ठण्डी आती है(खारा पानी ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है),लकड़ियों पर लापसी है(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू) लापसीकी तरह मालुम होते हैं ,पीलवाण पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है ),
परन्तु पानी खारा जहर(की तरह) है