वो कौनसी विधि है?
इसका उत्तर किसी कारण वश बाकी रह गया था,वो उनकी वाणी सुनते हुए आज समझमें आया-
(एक श्वासमें अगर बीस रामनाम लेता है तो एक श्वासमें सत्तर करोड़ हो गये)
|| सीताराम सीताराम ||
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
नानीबाईका माहेरा (गायक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)|
कभी-कभी श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भक्त नरसिंह(नरसीजी) मेहताका माहेरा सुनाते थे,जिसको लोग बड़े राजी होकर सुनते थे|वो बड़ा रोचक,हास्यप्रद तथा भक्तिमय होता था|यह काव्य मारवाड़ी भाषामें होते हुए भी अन्य भाषावालोंको भी बड़ा प्रिय है| श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज इसको गाकर सुनाते और फिर हिन्दीभाषामें अर्थ भी बताते थे तथा साथ-साथ सत्संग भी कराते थे|इस प्रकार वो बड़ा कीमती,रहस्यमय,आनन्ददायक,प्रेरणाप्रद और समझनेमें बड़ा सुगम था|वो प्रोग्राम चार,पाँच या छः दिन तक चलता था|यह रिकोर्डिंग छः दिनोंवाली है(जो कोलकातामें हुई थी)|सुगमताके लिये इसकी अड़ताळीस फाइलें बनाई है और उनके नाम भी हिन्दीमें लिख दिये गये हैं|इसमें साफ आवाजवाली सामग्रीका उपयोग किया गया है|इसका नाम रखा है -' 1@NANIBAIKA MAHERA -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAAHARAJ@'
इसको यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/mgMy966T
परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें ...
इसी प्रकार कोई भी फोल्डर,सेट या सामग्री पूरी लोड करनी चाहिये,अधूरी नहीं रखनी चाहिये;क्योंकि ऐसे अधूरी सामग्री लोड करनेसे या कोपी(प्रतिलिपी) करनेसे कभी-कभी वो अधूरी ही रह जाती है| कारण,कि एक तो ऐसी सत्संग आदिकी सामग्रीमें रुचि रखनेवाले लोग कम है और उनमें भी ऐसी जानकारीकी कमी है|
दूसरी बात,कि कई लोग लापरवाही रखनेवाले होते हैं,बेपरवाही करते हैं,अधूरीको पूरी करनेका परिश्रम नहीं करते और कई तो पूरीको भी अधूरी कर देते हैं|इससे बड़ा नुक्सान होता है,महापुरुषोंकी वाणीका सेट बिखरता है और मूल-सामग्री दुर्लभ होती चली जाती है,जिससे लोगोंके कल्याणमें बड़ी कठिनता होती है,जो कि महापुरुषोंको पसन्द नहीं है|
इसलिये महापुरुषोंकी वाणीको यथावत रखनेका प्रयास करना चाहिये,इससे लोगोंको सुगमतासे उत्तम,असली चीज मिल जायेगी और उनका सुगमता-पूर्वक तथा जल्दी कल्याण हो जायेगा||
सीताराम सीताराम ||
(एक बाईने कहलाया कि मैं तो केवल एक भगवानके दर्शन चाहती हूँ,मेरेको और कुछ नहीं चाहिये |
तब श्री स्वामीजी महाराजने कहा कि पुकारो भगवानको और खुशीकी बात बताते हुए तथा अनुमोदन करते हुए यह कहावत भी बोली-)
मैं तो मूसलसे ढोल बजाऊँ
कि कोई एक प्राणी तो ऐसा निकल जाय -(कि केवल)भगवानकी (ही)इच्छा हो)|
दिनांक-२५/८/१९९१.८||
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके १९९१०८२५/८.३० बजेके सत्संगका अंश) |
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज विराजमान हो रहे थे|ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|
मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?
(ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|
फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये-
गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां वृजेत्|
गीताभ्यासःपुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम्||
(गीता महात्म्य)
अर्थात् ,गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है,तो ] मरनेपर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है|
अब गीताजीके कौन-कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|
फिर अन्दरसे बाहर सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा)के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ शुरु करवा दिया||
यह पाठ रोजाना सत्संग-प्रवचनसे पहले होता था|
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-
गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक
(गीता ४/६-१०)-
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरो$पि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
और फिर भगवन्नाम संकीर्तन|
तत्पश्चात श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका संत्संग ||
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें इन पाँच श्लोंकोका पाठ यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें-
https://db.tt/moa8XQh7
जैसे स्त्री,विवाहित होने पर, वो पतिकी बनी रहने पर ही काम करती है सब पतिका काम करती है…घरका काम करती है,पतिकी रहते हुए ही करती है सब पतिकी होकर के ही(करती है) ;ऐसा नहीं भाई ! कि कुँआरी बन गयी;पीहर जाय तो कुँवारी बन गयी-ऐसा नहीं(हो जाता).पीहरमें रहती है(तो) पतिकी होकर(रहती है),ससुरालमें रहती है (तो)पतिकी होकर,कहीं जावे मुसाफिरिमें तो पतिकी होकर के ही(पतिकी रहती हुई ही जाती है) .ऐसे भगवानके साथ सम्बन्ध अपना जोड़ लिया-भगवान मेरे हैं और मैं भगवानका हूँ-मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जो कुछ करे भगवानके लिये करे बस, कितनी मस्तीकी,कितनी आनन्द की, कितनी शान्तिकी, कितनी सुखकी, कितनी कीमती बात है ! तो सब समय हमारा सार्थक हो जाय|
मनुष्य जीवनका समय परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है और इसमें जो करते हैं वो साधन-सामग्री है,सभी साधन-सामग्री है| (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके ७-५-१९९४;५:१८ बजेके प्रवचनका अंश)|
(जैसे स्त्री जो कुछ करती है वो सब काम पतिका(उनके घरका) ही होता है,वो कभी(एक क्षण भी) कुँआँरी नहीं हो जाती;ऐसे हम भी भगवानके ही रहते हुए ही जो कुछ शुभ काम करें,तो वो सब काम भगवानके हो जायेंगे,हमारा हर काम(खाना-पीना,सोना-जागना,चलना-फिरना,रसोई बनाना,साफ-सफाई करना,व्यापार करना,शौच-स्नान,भजन-ध्यान,सत्संग आदि सब काम) साधन हो जायेगा और हम एक क्षण भी बिना भगवानके, पराये (कुँआरेकी तरह) नहीं होंगे,हरदम भगवानके ही रहेंगे;हमारा साधन निरन्तर होगा)|
कल्याण के तीन सुगम मार्ग(पुस्तक- व्याख्या)
लेखक और बोलनेवाले -व्याख्या करनेवाले-
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
(दिनांक-२००१०१२९ से २००१०२०८तकके प्रवचन)|
श्रध्देय श्री स्वामीजी महाराजकी यह (कल्याणके तीन सुगम मार्ग) वो पुस्तक है,जिनकी व्याख्या स्वयं श्री स्वामीजी महाराजने की और जिनकी रिकोर्डिंग उपलब्ध है |
उसको इस पतेसे प्राप्त करें -
https://db.tt/DT16A3QA
यह ग्रंथ गीता-प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुआ है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है-
http://www.swamiramsukhdasji.org/