शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

भगवानकी विचित्र कृपा- (भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ- जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश| तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास|| -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे |

भगवानकी विचित्र कृपा-

(भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ-
जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश|
तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे |

अपमानसे उन्नति- 'जब मनुष्य गुरुजनोंके कठोर शब्दोंसे युक्त वाणी द्वारा अपमानित,तिरस्कृत किये जाते हैं,तभी वे महत्त्वको प्राप्त होते हैं,अन्यथा नहीं|जैसे,मणि भी जबतक शाणपर घिसकर उज्जवल नहीं की जाती,तबतक वह राजाओंके मुकुटमें नहीं जड़ी जाती|, श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके प्रवचनसे |

अपमानसे उन्नति-

गीर्भिगुुरूुणां परुषाक्षराभिस्तिरस्कृता यान्ति नरा महत्त्वम्|
अलब्धशाणोत्कषणान्नृपाणां न जातु मौलौ मणयो वसन्ति||
(रस गंगाधर)
'जब मनुष्य गुरुजनोंके कठोर शब्दोंसे युक्त वाणी द्वारा अपमानित,तिरस्कृत किये जाते हैं,तभी वे महत्त्वको प्राप्त होते हैं,अन्यथा नहीं|जैसे,मणि भी जबतक शाणपर घिसकर उज्जवल नहीं की जाती,तबतक वह राजाओंके मुकुटमें नहीं जड़ी जाती|,
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके प्रवचनसे |

अनुभवका उपाय-व्याकुलता- -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

अनुभवका उपाय-व्याकुलता- -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

दि.२९/५/१९९५;८.३०बजे का सत्संग
अनुभव(कि मैं शरीर नहीं हूँ) न हो जाय, तब तक मैं दूसरा काम (खाना,पीना सोना आदि)नहीं करूंगा

([तो]चट हो जायेगा)|

खाना,पीना नींद छोड़नेसे कुछ नहीं होगा; आप समझे कि नहीं?

- परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(29-5-1995-१९९५०५२९/८.३०बजे) से

एक श्वासमें सत्तर करोड़ नाम-जप कैसे हो जाता है ?

||राम||
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे किसीने (एक सफेद दाढीवाले बुजुर्गने) पूछा कि एक ही श्वासमें सत्तर(७०) करोड़ नाम-जप कैसे हो जाता है? ...कबीर एकही स्वासमें सिंवरण सित्तर किरोड़ ||
वो कौनसी विधि है?
इसका उत्तर किसी कारण वश बाकी रह गया था,वो उनकी वाणी सुनते हुए आज समझमें आया-

(प्रश्न-)   एक ही श्वासमें सत्तर करोड़ भगवन्नाम कैसे लिये जाते हैं?
(उत्तर-)  इसका रहस्य आपको श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी (दिनांक-२७-५-१९९५,१६००बजेकी) सत्संग-वाणीमें मिलेगा कि एक ही लगनसे जब रात-दिन नाम-जप किया जाता है,तो रोम-रोमसे नामका उच्चारण होने लगता है| शरीरमें साढे तीन करोड़ रोमावली(बाल) हैं,साढे तीन करोड़ रोमावलीमें एक साथ राम नामका उच्चारण होता है, कितना नाम(संख्या) होगा उनका?
(एक श्वासमें अगर बीस रामनाम लेता है तो एक श्वासमें सत्तर करोड़ हो गये)
|| सीताराम सीताराम ||

'नानीबाईका माहेरा' (गानेवाले- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ,साफ आवाज वाला ४८ फाइलोंमें )|


नानीबाईका माहेरा (गायक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)|

कभी-कभी श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भक्त नरसिंह(नरसीजी) मेहताका माहेरा सुनाते थे,जिसको लोग बड़े राजी होकर सुनते थे|वो बड़ा रोचक,हास्यप्रद तथा भक्तिमय होता था|यह काव्य मारवाड़ी भाषामें होते हुए भी अन्य भाषावालोंको भी बड़ा प्रिय है| श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज इसको गाकर सुनाते और फिर हिन्दीभाषामें अर्थ भी बताते थे तथा साथ-साथ सत्संग भी कराते थे|इस प्रकार वो बड़ा कीमती,रहस्यमय,आनन्ददायक,प्रेरणाप्रद और समझनेमें बड़ा सुगम था|वो प्रोग्राम चार,पाँच या छः दिन तक चलता था|यह रिकोर्डिंग छः दिनोंवाली है(जो कोलकातामें हुई थी)|सुगमताके लिये इसकी अड़ताळीस फाइलें बनाई है और उनके नाम भी हिन्दीमें लिख दिये गये हैं|इसमें साफ आवाजवाली सामग्रीका उपयोग किया गया है|इसका नाम रखा है -' 1@NANIBAIKA MAHERA -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAAHARAJ@'

इसको यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/mgMy966T

संतोंकी वाणीकी रक्षा करें

परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें ...
इसी प्रकार कोई भी फोल्डर,सेट या सामग्री पूरी लोड करनी चाहिये,अधूरी नहीं रखनी चाहिये;क्योंकि ऐसे अधूरी सामग्री लोड करनेसे या कोपी(प्रतिलिपी) करनेसे कभी-कभी वो अधूरी ही रह जाती है| कारण,कि एक तो ऐसी सत्संग आदिकी सामग्रीमें रुचि रखनेवाले लोग कम है और उनमें भी ऐसी जानकारीकी कमी है|
दूसरी बात,कि कई लोग लापरवाही रखनेवाले होते हैं,बेपरवाही करते हैं,अधूरीको पूरी करनेका परिश्रम नहीं करते और कई तो पूरीको भी अधूरी कर देते हैं|इससे बड़ा नुक्सान होता है,महापुरुषोंकी वाणीका सेट बिखरता है और मूल-सामग्री दुर्लभ होती चली जाती है,जिससे लोगोंके कल्याणमें बड़ी कठिनता होती है,जो कि महापुरुषोंको पसन्द नहीं है|
इसलिये महापुरुषोंकी वाणीको यथावत रखनेका प्रयास करना चाहिये,इससे लोगोंको सुगमतासे उत्तम,असली चीज मिल जायेगी और उनका सुगमता-पूर्वक तथा जल्दी कल्याण हो जायेगा||
सीताराम सीताराम ||

मैं तो मूसलसे ढोल बजाऊँ (कि कोई तो ऐसा निकले कि मुझे भगवानके अलाव कुछ नहीं चाहिये)-श्रघ्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके दिनांक-२५/८/१९९१.८|| बजेके प्रवचनका अंश .

(एक बाईने कहलाया कि मैं तो केवल एक भगवानके दर्शन चाहती हूँ,मेरेको और कुछ नहीं चाहिये |
तब श्री स्वामीजी महाराजने कहा कि पुकारो भगवानको और खुशीकी बात बताते हुए तथा अनुमोदन करते हुए यह कहावत भी बोली-)

मैं तो मूसलसे ढोल बजाऊँ
कि कोई एक प्राणी तो ऐसा निकल जाय -(कि केवल)भगवानकी (ही)इच्छा हो)|
दिनांक-२५/८/१९९१.८||
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके १९९१०८२५/८.३० बजेके सत्संगका अंश) |