शनिवार, 8 अगस्त 2015

क्या सूतकमें गीता-पाठ कर सकते हैं? कह,हाँ,कर सकते हैं।देखिये,गीताजीके ११वें अध्यायका महात्म्य।

                                         ।।श्रीहरि:।।


क्या सूतकमें गीता-पाठ कर सकते हैं? कह,हाँ,कर सकते हैं।देखिये,गीताजीके ११वें अध्यायका महात्म्य।

सूतकमें गीता-पाठ वर्जित नहीं है,।

देखिये,गीताजीके ११वें अध्यायका महात्म्य।

आज(8/8/2015) को आवश्यकता महसूस होते ही गीता खोली और खोलते ही यह मिला।

इससे पहले भी कई बार खोज की थी,लेकिन मिला आज ही(हो सकता है कि उस समय इतनी लगन न रही हो अथवा,आवश्यकता महसूस न हुई हो)।


आज ही किसी व्यथावाली घटनाकी खबर आयी कि मरे हुए(शव) को गीता-पाठ क्यों सुनाया?यह काम गलत हुआ  है इससे हानि(नुक्सान) हो सकती है।

वहाँसे समाचार आया कि कोई प्रमाण हो तो बताइये(क्या मरने पर गीता सुनायी जा सकती है? अगर नहीं? तो) हमनेतो सुनादी।अब किसी दूसरे कारणसे भी कोई नुक्सान हो गया तो कलँक हमारे ऊपर आयेगा।

इसके बाद मनमें आया कि ऐसे लोगोंके लिये कोई प्रमाण मिल जाय तो अच्छा होगा,आवश्यक है।

तभी गीता माताने यह कृपा की-माहात्म्यवाली गीताजीको लेकर खोलते ही ग्यारहवें अध्यायके महात्म्यवाला प्रमाण मिला।…

जय हो गीता माताकी।दयासुधा बरसावनि मातु कृपा कीजे(कीन्ही)।…


{श्री मद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायके महात्म्यमें बताया गया है कि एक ग्रामपाल(मुखिये) के बेटेको एक राक्षस खा गया।तब उसने एक ब्राह्मणसे जिलानेकी प्रार्थना की।


 ग्रामपालकी प्रार्थना सुनकर उस ब्राह्मण देवताने (गीताजीके ग्यारहवें अध्यायका पाठ किया और उस)गीताजीके ग्यारहवें अध्यायसे जल अभिमन्त्रित करके उस जलको राक्षसके मस्तकपर डाल दिया।


गीताजीके ग्यारहवें अध्यायके प्रभावसे वह राक्षस शापमुक्त होकर भगवानके धाममें चला गया और उस ग्रामपालका मरा हुआ पुत्रभी चतुर्भुजरूप होकर भगवद्धाममें चला गया तथा जितने लोगोंको पहले वो राक्षस खा चूका था,वो सब भी चतुर्भुजरूप होकर तथा विमानपर बैठकर उनके साथ ही भगवानके धाममें चले गये।



यह सब गीताजीके ग्यारहवें अध्यायके पाठके प्रभावसे हुआ।


इससे सिध्द होता है कि गीताजीका पाठ कभी भी किया जा सकता है।


चाहे सूतक ही क्यों न लगा हो,सूतकमें भी गीतापाठ किया जा सकता है।


जब उस ग्रामपालके पुत्रको राक्षस खा गया था, तो उस समय सूतक लगा हुआ था,रातमें राक्षसने उसको खा लिया था और रात बीतनेके बाद उसने गीतापाठ करके जिलानेके लिये प्रार्थना की थी  और तभी (सूतकमें ही) ब्राह्मणने (गीतापाठ करके) गीतापाठके प्रभावसे उन सबका भला किया था।


इसलिये गीतापाठके लिये सूवा-सूतक बाधक नहीं है।


कोई मरणासन्न हो तब तो गीतापाठ सुनाना ही चाहिये,पर कोई मर गया हो तो भी गीतापाठ करना चाहिये।


जिस प्रकार भगवानका नाम किसी भी अवस्थामें मना नहीं है,चाहे कोई शुध्द अवस्थामें हो या अशुध्द अवस्थामें हो,भगवानका नाम हर अवस्थामें लिया जा सकता है और लेना चाहिये।भगवानके नाम लेनेमें कोई मनाही नहीं है।


परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि अगर यह धारणा बनाली कि अशुध्द अवस्थामें भगवानका नाम नहीं लेना है, तो गजब हो जायेगा; क्योंकि मरनेवाले प्राय: अशुध्द अवस्थामें ही मरते हैं और उस समय अगर यह धारणा रही कि अशुध्द अवस्थामें भगवानका नाम नहीं लेना है और वो भगवानका नहीं लेगा तो मुक्तिसे वंचित रह जायेगा।मुक्ति नहीं होगी।


इसलिये भगवानके नाममें यह धारणा न बनायें। 


चाहे कोई शुध्द हो या अशुध्द हो,भगवानका नाम हर अवस्थामें लिया जा सकता है और लेना चाहिये।सूवा-सूतकमें भी भगवानका नाम लेना चाहिये}।


इस प्रकार यह बात सिध्द हुई कि सूतकमें भी गीतापाठ किया जा सकता है।घरके ठाकुरजीकी पूजा सूतकमें भी की जा सकती है।


अधिक जाननेके लिये नीचे लिखे पतेवाला लेख पढें।


पता-


सूवा-सूतकमें भगवानकी पूजा करें अथवा नहीं? 


श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया है कि करें (बिना प्राण-प्रतिष्ठावाली मूर्तिकी करें)। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/08/blog-post_17.html



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पता-

सत्संग-संतवाणी. 

श्रध्देय स्वामीजी श्री 

रामसुखदासजी महाराजका 

साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। 

http://dungrdasram.blogspot.com/


सूतकमें वर्जित कर्म।(गरुडपुराण,सारोध्दार,१३वाँ अध्यायके पृष्ठकी फोटो)।

बुधवार, 15 जुलाई 2015

( भक्तसे सब क्रियाएँ भगवान् करवाते हैं,भक्त कुछ नहीं करता-)

                        ।।श्रीहरि:।।
( भक्तसे सब क्रियाएँ भगवान् करवाते हैं,भक्त कुछ नहीं करता-)
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।
(दिनांक-19931014_0518 बजेका सत्संग)
{ श्रौता- (प्रश्न-) 
भक्तिमार्गमें साधन और सिध्दावस्थामें, भावमें भी भगवानकी सेवा इन्द्रियाँ, मन, बुध्दि आदिसे की जाती है।
(कर्म किये जाते हैं) तो फिर भक्तमें अकर्तापनवाली बात कैसे लागू होगी? अर्थात् भक्त कुछ नहीं करता है,अकर्ता है,यह बात कैसे समझी जाय?}
स्वामीजी-(उत्तर-)
नहीं, भक्तमें अकर्तापनकी बात नहीं है।
अकर्तापनकी बात वास्तवमें ज्ञानमार्गमें है।भक्तमें अकर्तापनकी बात नहीं है।
वहाँ कर्ता भगवाको मानता है भक्त।
ज्ञानमार्गमें अपनेको अकर्तापनका अनुभव करता है और भक्तिमार्गमें कर्ता भगवान् हैं,वो कर्ता नहीं है।
भगवान् करवा रहे हैं हमारेसे, भगवान् ही प्रेरणा दे रहे हैं,भगवान् शक्ति दे रहे हैं,भगवान् बुध्दि दे रहे हैं,भगवान् विचार दे रहे हैं,भगवान् ही अपनी कृपासे करवा रहे हैं।
तो वहाँ करवानेवाले भगवान कर्ता हैं,वहाँ स्वयँ कर्ता नहीं (है),
जैसे, कोई मोटरको चलावे, तो मोटर स्वयँ चलती थौड़े ही है,चलानेवाला(चालक) चलाता है।
ऐसे हमारेको भगवान् ही चला रहे हैं।
भक्तका(को) तो भगवान् पर निछरावल(न्यौछावर) होना है ना! भगवान् के अधीन होना है।
करै करावै रामजी
मैं कछु करता नाहिं।
जो मैं अपने(को) कर्ता मानूँ (तो)
बड़ी चूक मुझ माहिं।।
करेै करावै रामजी-
भगवानही करवाते हैं,मानो जो करे (जो हम करते हैं,वो हमें) भगवान् देते हैं अर्थात् हमारे द्वारा भगवान् ही करवाते हैं,हमारे द्वारा भगवान् ही करते हैं।
अपने शरीरको,अपनी इन्द्रियोंको,अपने मनको,अपनी बुद्दिको,अपने अहमको (इन सबको) भगवानके अर्पण कर देता है।
फिर भगवानकी कृपासे वो काम होता है।
तो कृपासे हो रहा है-ऐसा मानें।
तो हो रहा (है)-माननेसे करणनिरपेक्ष हो जायेगा।वो भी करणनिरपेक्ष हो जायेगा और वहाँ(जहाँ) कर्तापना ही नहीं है तो करणनिरपेक्ष, आप ही करणरहित है ही।यह बात है।
और कोई पूछनेवाले(के) कोई बात पैदा हुई हो तो भळे(और) पूछलो इमें(इसमें)………
- यह बात ठीकसे जाननेके लिये श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका 19931014_0518 बजेवाला सत्संग-प्रवचन सुनें- 
19931014_0518--भक्त अपनेको कर्ता नहीं मानता की विलक्षणता0सेठजी आदिके उदाहरण.mp3 -


इसमें और भी कई बातें बताई गई है। 
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रविवार, 12 जुलाई 2015

सात बार सीता और कुन्तीमाताका नित्यप्रति नाम लेनेसे कन्याएँ श्रेष्ठ बन जातीहै।

                   ।।श्रीहरि।।

सात बार सीता और कुन्तीमाताका नित्यप्रति नाम लेनेसे कन्याएँ श्रेष्ठ बन जाती हैं।

छौटी बच्चियों और लङकियोंके लिये

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज

बताते थे कि छौटी बच्चियाँ अगर नित्यप्रति सात बार सीताजीका नाम
(1.सीतामाता 2.सीतामाता 3.सीतामाता 4.सीतामाता 5.सीतामाता 6.सीतामाता 7.सीतामाता)
लेवे (जपे)

और सात बार ही

कुन्तीमाताका नाम लेवे

(1.कुन्तीमाता 2.कुन्तीमाता 3.कुन्तीमाता 4.कुन्तीमाता 5.कुन्तीमाता 6.कुन्तीमाता 7.कुन्तीमाता
जपे)

तो वो बङी श्रेष्ठ बन जायेंगी,बङी पतिव्रता बन जायेंगी।

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शनिवार, 11 जुलाई 2015

क्या सुहागन स्त्रियोंको व्रत-उपवास नहीं करने चाहिये?

                   ।।श्रीहरि।।

क्या सुहागन स्त्रियोंको व्रत-उपवास नहीं करने चाहिये? 

एक बहन श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
दिनांक 13-12-1995/,830 बजेका सत्संग पढकर पूछतीं है कि क्या स्त्रीको व्रत नहीं करना चाहिए?

उसके उत्तरमें निवेदन है -

शास्त्रका कहना है कि

पत्यौ जीवति या तु स्त्री उपवासं व्रतं चरेत् ।
आयुष्यं हरते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति ।।

(अर्थ-)

जो स्त्री पति के जीवित रहते उपवास- व्रत का आचरण करती है वह पति की आयु क्षीण करती है और अन्त में नरक में पड़ती है।

(गीताप्रेस के संस्थापक - श्रध्देय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा लिखित
तत्त्व चिन्तामणि, भाग 3,
नारीधर्म, पृष्ठ 291 से)।

इस शास्त्र वचनकी बात सुनकर जब कोई बहन पूछती थीं तो

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते थे कि
सुहागके व्रत (करवाचौथ आदि) कर सकती हैं (इसके लिये मनाही नहीं है)।

कोई पूछतीं कि एकादशी व्रत भी नहीं करना चाहिए क्या? 

तो उत्तर देते कि

एकादशी (आदि) व्रत करना हो तो पतिसे आज्ञा लेकर कर सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें-

http://dungrdasram.blogspot.in/2016/08/blog-post_13.html?m=1 

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गुरुवार, 2 जुलाई 2015

रामकथा,(विलोमसे)कृष्णकथा

रामकथा,(विलोमसे)कृष्णकथा

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये
वासे ॥ १॥
विलोमम्
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी
भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
साकेताख्या
ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशा
रावा ॥ २॥
विलोमम्
वाराशावासाग्र्या
साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता
दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥
२॥
कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिक
ा ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥
विलोमम्
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका
॥ ३॥
रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥
विलोमम्
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥
यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये
सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता
त्रातम् ॥ ५॥
विलोमम्
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं
ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो
योधेगायन् ॥ ५॥
मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥
विलोमम्
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥
रामनामा सदा खेदभावे दया-
वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-
मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥
विलोमम्
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-
सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवा
यादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥
सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥
विलोमम्
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥
८॥
सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥
विलोमम्
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥
तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥
विलोमम्
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥
वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥
११॥
विलोमम्
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥
यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा
॥ १२॥
विलोमम्
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा

वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥
रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥
विलोमम्
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥
यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥
विलोमम्
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥
दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥
विलोमम्
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥
१५॥
सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥
१६॥
विलोमम्
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥
सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥
१७॥
विलोमम्
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥
तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥
विलोमम्
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥
गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥
विलोमम्
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥
हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥
विलोमम्
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥
ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।
हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥
२१॥
विलोमम्
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥
भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥
२२॥
विलोमम्
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥
हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥
विलोमम्
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥
भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥
विलोमम्
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥
हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥
विलोमम्
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥
सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥
विलोमम्
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥
२६॥
वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥
विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥
हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥
विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥
नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥
विलोमम्
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥
२९॥
साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥
विलोमम्
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥
३०॥
॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं
श्री राघव यादवीयं समाप्तम् ॥