शनिवार, 16 अप्रैल 2016

छ:प्रकारके नौकर

                      ।।श्रीहरि।।

छःप्रकारके नौकर-

काम करनेवाले (नौकर अथवा सेवक) छः प्रकारके होते हैं -

पीर तीर चकरी पथर और फकीर अमीर |
जोय-जोय राखो पुरुष ये गुण देखि सरीर ||

१)पीर -इसे कोई काम कहें तो यह उस बातको काट देता है,

२)तीर -इसे कोई काम कहें तो तीरकी तरह भाग जाता है,फिर लौटकर नहीं आता,

३)चकरी-यहचक्रकी तरह चट काम करता है,फिर लौटकर आता है,फिर काम करता है|यह उत्तम नौकर होताहै,

४)पथर-यह पत्थरकी तरह पड़ा रहता है,कोई काम नहीं करता,

५)फकीर-यह मनमें आये तो काम करता है अथवा नहीं करता,

६)अमीर-इसे कोई काम कहें तो खुद न करके दूसरेको कह देता है|

(इसलिये मनुष्यको सेवकमें ये गुण देखकर रखना चाहिये)|

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक "अनन्तकी ओर"

(से इसका यह अर्थ लिखा गया).

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उध्देश्यकी दृढता

                       ।।श्रीहरि।।

उध्देश्यकी दृढता- 

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्षमीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्|
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ||

(भर्तृहरिनीतिशतक)

'नीति-निपुण लोग निन्दा करें अथवा स्तुति(प्रशंसा),लक्षमी रहे अथवा जहाँ चाहे चली जाय और मृत्यु आज ही हो जाय अथवा युगान्तरमें,अपने उध्देश्यपर दृढ रहनेवाले धीर पुरुष न्यायपथसे एक पग भी पीछे नहीं हटते|'

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे

तीन प्रकारके मनुष्य-(उत्तम,मध्यम और नीच)।

                       ।।श्रीहरि।।

तीन प्रकारके मनुष्य-(उत्तम,मध्यम और नीच)।

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः|
विघ्नैःपुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति||
(मुद्राराक्षस २/१७)

'नीच मनुष्य विघ्नोंके डरसे कार्यका आरम्भ ही नहीं करते हैं|मध्यम श्रेणीके मनुष्य कार्यका आरम्भ तो कर देते हैं,पर विघ्न आनेपर उसे छोड़ देते हैं|परन्तु उत्तम गुणोंवाले  मनुष्य बार-बार विघ्न आनेपर भी अपना (प्ररम्भ किया हुआ) कार्य छोड़ते नहीं|'

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे

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( निरन्तर साधन कैसे हो?- श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                         ।।श्रीहरि।।

 
( निरन्तर साधन कैसे हो?-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

विवाहिता स्त्रीकी तरह,भगवानके रहकर शुभ काम करो तो हर काम भगवानका काम(साधन) हो जायेगा,निरन्तर साधन होगा

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसखदासजी महाराजके दि.१९९४०५०७/५.१८/बजेके प्रवचनसे )-

जैसे स्त्री,विवाहित होने पर, वो पतिकी बनी रहने पर ही काम करती है सब पतिका काम करती है…घरका काम करती है,पतिकी रहते हुए ही करती है सब पतिकी होकर के ही(करती है) ;ऐसा नहीं भाई ! कि कुँआरी बन गयी;पीहर जाय तो कुँवारी बन गयी-ऐसा नहीं(हो जाता).पीहरमें रहती है(तो) पतिकी होकर(रहती है),ससुरालमें रहती है (तो)पतिकी होकर,कहीं जावे मुसाफिरिमें तो पतिकी होकर के ही(पतिकी रहती हुई ही जाती है) .

ऐसे भगवानके साथ सम्बन्ध अपना जोड़ लिया-भगवान मेरे हैं और मैं भगवानका हूँ-मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जो कुछ करे भगवानके लिये करे बस,

कितनी मस्तीकी,कितनी आनन्द की, कितनी शान्तिकी, कितनी  सुखकी, कितनी कीमती बात है !

तो सब समय हमारा सार्थक हो जाय|
मनुष्य जीवनका समय परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है और इसमें जो करते हैं वो साधन-सामग्री है,सभी साधन-सामग्री है|

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके ७-५-१९९४;५:१८ बजेके प्रवचनका अंश)|

(जैसे स्त्री जो कुछ करती है वो सब काम पतिका(उनके घरका) ही होता है,वो कभी(एक क्षण भी) कुँआँरी नहीं हो जाती;ऐसे हम भी भगवानके ही रहते हुए ही जो कुछ शुभ काम करें,तो वो सब काम भगवानके हो जायेंगे,हमारा हर काम(खाना-पीना,सोना-जागना,चलना-फिरना,रसोई बनाना,साफ-सफाई करना,व्यापार करना,शौच-स्नान,भजन-ध्यान,सत्संग आदि सब काम) साधन हो जायेगा और हम एक क्षण भी बिना भगवानके, पराये (कुँआरेकी तरह) नहीं होंगे,हरदम भगवानके ही रहेंगे;हमारा साधन निरन्तर होगा)|

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( निरन्तर साधन कैसे हो?- श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                         ।।श्रीहरि।।

  ( निरन्तर साधन कैसे हो?-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

विवाहिता स्त्रीकी तरह,भगवानके रहकर शुभ काम करो तो हर काम भगवानका काम(साधन) हो जायेगा,निरन्तर साधन होगा

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसखदासजी महाराजके दि.१९९४०५०७/५.१८/बजेके प्रवचनसे )-

जैसे स्त्री,विवाहित होने पर, वो पतिकी बनी रहने पर ही काम करती है सब पतिका काम करती है…घरका काम करती है,पतिकी रहते हुए ही करती है सब पतिकी होकर के ही(करती है) ;ऐसा नहीं भाई ! कि कुँआरी बन गयी;पीहर जाय तो कुँवारी बन गयी-ऐसा नहीं(हो जाता).पीहरमें रहती है(तो) पतिकी होकर(रहती है),ससुरालमें रहती है (तो)पतिकी होकर,कहीं जावे मुसाफिरिमें तो पतिकी होकर के ही(पतिकी रहती हुई ही जाती है) .

ऐसे भगवानके साथ सम्बन्ध अपना जोड़ लिया-भगवान मेरे हैं और मैं भगवानका हूँ-मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जो कुछ करे भगवानके लिये करे बस,

कितनी मस्तीकी,कितनी आनन्द की, कितनी शान्तिकी, कितनी  सुखकी, कितनी कीमती बात है !

तो सब समय हमारा सार्थक हो जाय|
मनुष्य जीवनका समय परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है और इसमें जो करते हैं वो साधन-सामग्री है,सभी साधन-सामग्री है|

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके ७-५-१९९४;५:१८ बजेके प्रवचनका अंश)|

(जैसे स्त्री जो कुछ करती है वो सब काम पतिका(उनके घरका) ही होता है,वो कभी(एक क्षण भी) कुँआँरी नहीं हो जाती;ऐसे हम भी भगवानके ही रहते हुए ही जो कुछ शुभ काम करें,तो वो सब काम भगवानके हो जायेंगे,हमारा हर काम(खाना-पीना,सोना-जागना,चलना-फिरना,रसोई बनाना,साफ-सफाई करना,व्यापार करना,शौच-स्नान,भजन-ध्यान,सत्संग आदि सब काम) साधन हो जायेगा और हम एक क्षण भी बिना भगवानके, पराये (कुँआरेकी तरह) नहीं होंगे,हरदम भगवानके ही रहेंगे;हमारा साधन निरन्तर होगा)|

स्मार्त और वैष्णव किसको कहते हैं?

                      ।।श्रीहरि।।

स्मार्त और वैष्णव किसको कहते हैं?

एक सज्जन पूछते हैं कि स्मार्त और वैष्णव किसको कहते हैं?

उत्तरमें निवेदन है कि-

स्मार्त एकादशी,स्मार्त जन्माष्टमी आदि वो होती है जो स्मार्त अर्थात् स्मृति आदि धर्म ग्रंथोंको माननेवालोंके अनुसार हो और वैष्णव एकादशी,वैष्णव जन्माष्टमी आदि वो होती है जो वैष्णव अर्थात् विष्णु भगवान और उनके भक्तोंको,संतोंको माननेवालोंके अनुसार हो।

( यह स्मार्त और वैष्णववाली बात श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई है)।

रमश्रद्धेय  सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज वैष्णव एकादशी,वैष्णव जन्माष्टमी आदि मानते और करते थे।

एकादशी आदि व्रतोंके माननेमें दो धर्म है-एक वैदिक धर्म और एक वैष्णव धर्म।

(एक एकादशी स्मार्तोंकी होती है और एक एकादशी वैष्णवोंकी होती है।स्मार्त वे होते हैं) जो वेद और स्मृतियोंको खास मानते हैं,वे भगवानको खास नहीं मानते।वेदोंमें,स्मृतियोंमें भगवानका नाम आता है इसलिये वे भगवाको मानते हैं (परन्तु खास वेदोंको मानते हैं) और वैष्णव वे होते हैं जो भगवानको खास मानते हैं,वे वेदोंको,पुराणोंको इतना खास नहीं मानते जितना भगवानको खास मानते हैं।

( वैष्णव और स्मार्तका रहस्य समझनेके लिये परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका यह प्रवचन 19990809/1630 सुनें)।

(पता:-
https://docs.google.com/file/d/0B3xCgsI4fuUPTENQejk2dFE2RWs/edit?usp=docslist_api)।

वेदमत,पुराणमत आदिके समान एक संत मत भी होता है,जिसको वेदोंसे भी बढकर माना गया है।

चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका ।
भए नाम जपि जीव बिसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू ।
सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥

ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें ।
द्वापर परितोषत प्रभु पूजें ॥

कलि केवल मल मूल मलीना ।
पाप पयोनिधि जन जन मीना ॥

नाम कामतरु काल कराला ।
सुमिरत समन सकल जग जाला ॥

राम नाम कलि अभिमत दाता ।
हित परलोक लोक पितु माता ॥

नहिं कलि करम न भगति बिबेकू ।
राम नाम अवलंबन एकू ॥

कालनेमि कलि कपट निधानू ।
नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥

दोहा

राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल ।

जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥२७॥

(रामचरितमा.१/२७)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

अनुभवका उपाय-व्याकुलता -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

                      ।।श्रीहरि।।

अनुभवका उपाय-व्याकुलता -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

अर्थात्  दि.२९/५/१९९५;८.३०बजे के सत्संगसे।

अनुभव(कि मैं शरीर नहीं हूँ) न हो जाय, तब तक मैं दूसरा काम (खाना,पीना सोना आदि)नहीं करूंगा

(तो अनुभव चट हो जायेगा)|

खाना,पीना नींद छोड़नेसे कुछ नहीं होगा; आप समझे कि नहीं?

- परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके 29-5-1995.0830 बजेके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

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