मंगलवार, 16 अगस्त 2016

संतोंकी वाणीसे कल्याण।(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

।।श्रीहरिः।। 

संतोंकी वाणीसे कल्याण ।

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

जैसे हनुमानजी महाराजकी कोई प्रशंसा करे (कि). हनुमानजी देवता है। तो देवता मानना हनुमानजीकी निन्दा है (प्रशंसा नहीं,
क्योंकि) हनुमानजी भगवानके भक्त हैं। तो भक्तोंका दर्जा देवताओंसे भी ऊँचा होता है .ऐसे संतोंका दर्जा कवियोंसे ऊँचा होता है ।

कविकी कवितासे कल्याण नहीं होता। संतोंके बचनोंसे और उनकी बाणीसे कल्याण होता है ,उध्दार होता है । लोक परलोक- सब सुधरते हैं।

ऐसे गोस्वामीजी महाराज की कविता बहुत विलक्षण है। तो इनमें संतकी बाणी है और कविताकी ट्टाष्टिसे भी बडी ऊँची कविता है ।

कविता ही नहीं है। जैसे, श्रुति और स्मति कहते हैं । बेदों(वेदों) की बाणी (वाणी है) वो श्रुति कहलाती है (और)  ऋषियोँकी वाणी है वो स्मृति (कहलाती) है।...

. . .ऐसे श्रुतिकी तरह कवि लोग कहते हैं और लोगोंमें स्मृतिकी तरह उनकी बाणीका आदर है। ऐसे श्री गोस्वामीजी महाराज हुए हैं।
(उनकी वाणीसे कल्याण होता है)  ...

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के  19930725_0800_Tulsidasji Ki Vaani Ki Vilakshanta R...
नामवाले प्रवचनका अंश)।

(आनन्दकानने ह्यस्मिन् ...  काशीको  आनन्दवन कहते है. . .)।

अधिक जाननेके लिये कृपया पूरा प्रवचन सुनें।

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शनिवार, 13 अगस्त 2016

सुहागिन स्त्री को एकादशी व्रत करना चाहिये या नहीं ? कह, करना चाहिये।

                         ॥श्रीहरिः॥

सुहागिन स्त्री को एकादशी व्रत करना चाहिये या नहीं ?  कह, करना चाहिये।   

एक बहन श्रद्धेय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके

दिनांक 13-12-1995/,0830 बजेका सत्संग पढकर पूछतीं है कि क्या स्त्रीको व्रत नहीं करना चाहिए?

उसके उत्तरमें निवेदन इस प्रकार है -

शास्त्रका कहना है कि

पत्यौ जीवति या तु स्त्री उपवासं व्रतं चरेत् ।
आयुष्यं हरते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति ।।

(अर्थ-)

जो स्त्री पति के जीवित रहते उपवास- व्रत का आचरण करती है वह पति की आयु क्षीण करती है और अन्त में नरक में पड़ती है।

(गीताप्रेस के संस्थापक - श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा लिखित 
तत्त्व चिन्तामणि, भाग 3, 
नारीधर्म, पृष्ठ 291 से)।

पत्यौ जिवति या योषिदुपवासव्रतं चरेत् ।
आयुः सा हरते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति ॥

विष्णुस्मृति 25 ।

(इस भाव के वचन पाराशर स्मृति 4/17; अत्रि संहिता 136; शिवपुराण,रुद्र.पार्वती.54/29,44; और स्कन्दपुराण ब्रह्म. धर्मा. 7/37; काशी उ.  82/139; में भी आये हैं। "क्या करें क्या न करें " नामक पुस्तक से)। 

इस शास्त्र वचनकी बात सुनकर जब कोई बहन पूछती थीं तो

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते थे कि सुहागिन स्त्री 
सुहागके व्रत (करवा चौथ आदि) कर सकती हैं (इसके लिये मनाही नहीं है)।

कोई पूछतीं कि एकादशी व्रत भी नहीं करना चाहिए क्या?

तब उत्तर देते थे कि

एकादशी (आदि) व्रत करना हो तो पतिसे आज्ञा लेकर कर सकती है।

कुछ और उपयोगी बातें ये हैं- 

प्याज और लहसुन का तो कई जने सेवन नहीं करते,पर कई लोग गाजरका भक्षण कर लेते हैं।

लेकिन यह भी ठीक नहीं है; क्योंकि 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' (बिना एकादशी के भी) गाजर खाने का निषेध करते थे।

श्री सेठजी एकादशीके दिन साबूदाना खानेका भी निषेध करते थे कि इसमें चावलका अंश मिलाया हुआ होता है।

(आजकल साबूदाने भी नकली आने लग गये )।

एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है ; क्योंकि ब्रह्महत्या आदि बड़े-बड़े पाप एकादशी के दिन चावलों में निवास करते हैं, चावलों में रहते हैं । ऐसा ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है।

जो एकादशी के दिन व्रत नहीं रखते,अन्न खाते हैं, उनके लिये भी एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है।

स्मृति आदि ग्रंथों को मुख्य मानने वाले स्मार्त एकादशी व्रत करते हैं और भगवानको,(तथा वैष्णवों, संन्तो-भक्तों को) मुख्य मानने वाले वैष्णव एकादशी व्रत करते हैं ।

एकादशी चाहे वैष्णव हो अथवा स्मार्त हो; चावल खाने का निषेध दोनों में है। वैष्णव एकादशी व्रत करनेवालों को भी चाहिये कि वैष्णव एकादशी के दिन तो चावल खाना छोङे ही, स्मार्त एकादशी के दिन भी चावल न खायें। 

परम श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज वैष्णव एकादशी व्रत,वैष्णव जन्माष्टमी व्रत आदि ही करते थे और मानते थे ।

एकादशी आदि व्रतोंके माननेमें दो धर्म है-

एक वैदिक धर्म और एक वैष्णव धर्म।

(एक एकादशी स्मार्तोंकी होती है और एक एकादशी वैष्णवोंकी होती है।

स्मार्त वे होते हैं) जो वेद और स्मृतियोंको खास मानते हैं,वे भगवानको खास नहीं मानते।

वेदोंमें,स्मृतियोंमें भगवानका नाम आता है इसलिये वे भगवानको मानते हैं (परन्तु खास वेदोंको मानते हैं) और

वैष्णव वे होते हैं जो भगवानको खास मानते हैं, वे वेदोंको,पुराणोंको इतना खास नहीं मानते जितना भगवानको खास मानते हैं।

( वैष्णव और स्मार्तका रहस्य परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ने 19990809/1630 बजे वाले प्रवचन में भी बताया है ।

कृपया  वो प्रवचन इस पते पर जाकर  सुनें -)

(पता:- 
https://docs.google.com/file/d/0B3xCgsI4fuUPTENQejk2dFE2RWs/edit?usp=docslist_api )।

 http://goo.gl/eeqKqL 

वेदमत,पुराणमत आदिके समान एक संत मत भी है,(जिसको वेदोंसे भी बढकर माना गया है)।

...
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका । 
भए नाम जपि जीव बिसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू । 
सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥

(रामचरितमा.1/27)।
...

एकादशीको हल्दीका प्रयोग नहीं करना चाहिये; क्योंकि हल्दीकी गिनती अन्नमें आयी है (हल्दीको अन्न माना गया है)।

साँभरके नमक का प्रयोग भी एकादशी आदि व्रतोमें नहीं करना चाहिये ; क्योंकि साँभर झील (जिसमें नमक बनता है,उस) में कोई जानवर गिर जाता है,मर जाता है तो वो भी नमकके साथ नमक बन जाता है (इसलिये यह नमक अशुद्ध माना गया है)।

सैंधा नमक काममें लेना ठीक रहता है। सैंधा नमक पत्थरसे बनता है,इसलिये अशुद्ध​ नहीं माना गया।

एकादशीके अलावा भी फूलगोभी नहीं खानी चाहिये। फूलगोभी में जन्तु बहुत होते हैं और इसको निषिद्ध भी माना गया है।

[बैंगन भी नहीं खाने चाहिये। शास्त्र का कहना है कि जो बैंगन खाता है,भगवान उससे दूर रहते हैं]।

उड़द और मसूरकी दाळ भी वर्जित है। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' बताते हैं कि नमक जल है (नमक को जल माना गया है और जल के छूत लगती है)। जिस वस्तु में नमक और जल का प्रयोग हुआ हो,ऐसी कोई भी वस्तु बाजार से न लें; क्योंकि इनके छूत लगती है।

(अस्पृश्यके स्पर्श हो गया तो स्पर्श दोष लगता है।

इसके अलावा पता नहीं कि वो खाद्य पदार्थ किस घरका बना हुआ है और किसने, कैसे बनाया है)।

हींग भी काममें न लें; क्योंकि वो चमड़ेमें  डपट करके, बन्द करके रखी जाती है,नहीं तो उसकी सुगन्धी चली जाय अथवा  कम हो जाय ।

हींगकी जगह हींगड़ा काममें लाया जा सकता है।

सोने चाँदी के वर्क लगी हुई मिठाई नहीं खानी चाहिये; क्योकि ये (वर्क गाय या) बैलकी आँतमें रखकर बनाये जाते हैं। बैलकी आँतमें छोटासा सोने या चाँदीका टुकड़ा रखकर, उसको हथौड़ेसे पीट-पीटकर फैलाया जाता है और इस प्रकार ये सोने तथा चाँदीके वर्क बनते हैं।

इसलिये न तो वर्क लगी हुई मिठाई काम में लावें,न खावें और न मिठाईके वर्क लगावें।

इस के सिवाय अपना कल्याण चाहने वालों को (बिना एकादशी के भी) मांस,मदिरा तथा और भी अभक्ष्य खान-पान आदि नहीं करने चाहिये, इनसे बचना चाहिये और लोगों को भी ये बातें बताकर बचाना चाहिये ।

लाखकी चूड़ियाँ काममें न लावें; क्योंकि लाखमें लाखों (अनगिनत) जीवोंकी हत्या होती है।

मदिरामें भी असंख्य जीवोंकी हत्या होती है। मदिरा बनाते समय पहले उसमें सड़न पैदा की जाती है,जो असंख्य जीवोंका समुदाय होता है। फिर उसको भभके से, गर्म करके उसका अर्क (रस) निकाला जाता है। उसको मदिरा कहते हैं। इसकी गिनती चार महापापों (ब्रह्महत्या, सुरापान,सुवर्ण या रत्नोंकी चोरी और गुरुपत्निगमन) में आयी है। 

तीन वर्ष तक कोई महापापीके साथमें रह जाय,तो (पाप न करने पर भी) उसको भी वही दण्ड होता है जो महापापीको होता है।

जिस घर में एक स्त्री के भी अगर गर्भपात करवाया हुआ हो तो उस घर का अन्न खाने योग्य नहीं होता (और उस घर का जल भी पीने योग्य नहीं होता)। 

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज उस घर का अन्न नहीं खाते थे (उस घर की भिक्षा का अन्न लेना छोड़ दिया था)। गर्भपात ब्रह्महत्या से भी दूना पाप है। 

अधिक जानने के लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की पुस्तक - "पहापाप से बचो" पढ़ें।

गर्भपात का प्रायश्चित्त- 

अगर कोई गर्भपात का पाप मिटाना चाहें तो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने उसका यह उपाय (प्रायश्चित्त) बताया है -

बारह महीनों तक रोजाना (प्रतिदिन) भगवान् के सवा लाख नाम का जप करें। 

(ये जप बिना नागा किये रोजाना करने चाहिये। षोडस मन्त्र या चतुर्दश मन्त्र से जप जल्दी और सुगमतापूर्वक हो सकते हैं)। 

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बुधवार, 10 अगस्त 2016

रहस्य की बात हर एक नहीं समझता।

                     ॥श्रीहरिः॥

(रहस्य की बात हर एक नहीं समझता)।

भाड़ मीन झष भेक बारिज रे भेला बसै।
इशकी भँवरो एक रस की जाणै राजिया॥

अर्थात् भाड़ (बड़ी मेंढकी),मछली झख और मेंढक - ये (जल में) कमल के साथ ही बसते-रहते हैं; परन्तु हे राजिया ! एक इश्की (प्रेमी) भौंरा ही रस की (रहस्य की बात) जानता है।

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की वाणी से)।

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(प्रवचन-) वास्तव में जड़ और चेतन क्या है?(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                ॥श्रीहरिः॥

(प्रवचन-)

वास्तव में जड़ और चेतन क्या है?

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)। 

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने
"19930718_0800_Uddeshya Chetan Ka Ho" नाम वाले प्रवचन में बताया कि 

(दुनियाँ में  साधारण लोग) जानते हैं- (कि) चेतन किसका नाम है ? 

कह, जिसमें क्रिया होती है वो चेतन और क्रिया नहीं होती है वो जड़।

यह बहुत स्थूल बुद्धि है।
- हम बोलते हैं, चलते हैं, ऐसा करते हैं (- ये) चेतन हैं और पत्थर है क,ये लकड़ी है - ये जड़ है।

तो येह जड़ चेतन की परिभाषा नहीं है।

जड़ नाम उसका है (जो) ना अपने को जानता है (और) ना दूजे को(दूसरेको) जानता है, जानना है ही नहीं उसमें; जाननापन नहीं है - वो जड़ होता है। जिसमें जाननापन होता है - वो चेतन होता है।

अगर क्रिया को चेतन माना जाय! तो इंजन है,मोटर है, साइकिल है- ये भी चेतन है फिर।

इंजन चलता है,बोलता भी-सीटी देता है और बोलता भी है और (उसमें)  धीमे और तेजी की क्रिया भी होती है।

तो फिर ये भी चेतन होना (होने) चाहिये। पर ये चेतन नहीं है। इसका ड्राइवर चेतन है। उस चेतन के संचालन से इंजन चलता है।...

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के
"19930718_0800_Uddeshya Chetan Ka Ho" नाम वाले प्रवचन का अंश)।

{ चेतन - परमात्मा की प्राप्ति के लिये जड़ से विमुख होना होगा।

लक्ष्य (ध्येय) अगर  परमात्मप्राप्ति का होगा तो जड़ भी परमात्मा की प्राप्ति करा देगा। गीता ने ऐसी विलक्षण बात कही है (8/7;2/38;)।

अगर लक्ष्य  परमात्मप्राप्ति का होगा तो युद्ध जैसी नीची क्रिया  से  भी परमात्मा की प्राप्ति हो जायेगी और लक्ष्य अगर परमात्मप्राप्ति का नहीं है (भोग और संग्रह का है) तो ऊँची से ऊँची क्रिया - गीताजी की कथा कहने से भी कल्याण नहीं होगा।

इस प्रवचन में ध्येय को भी उदाहरण देकर समझाया गया है}।

इस प्रकार इस प्रवचन में और भी कई विलक्षण बातें बतायीं गयी है। अधिक जानने के लिये कृपया यह पूरा प्रवचन सुनें। -

https://www.dropbox.com/sh/8ftmhixdqqvrar5/AABC6Ds7Q3eOg90nziTWbKYpa?dl=0 

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मंगलवार, 9 अगस्त 2016

वास्तव में जड़ और चेतन क्या है?(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                           ॥श्रीहरिः॥

वास्तव में जड़ और चेतन क्या है?

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।  

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने
"19930718_0800_Uddeshya Chetan Ka Ho" नाम वाले प्रवचन में बताया कि

(दुनियाँ में  साधारण लोग) जानते हैं- (कि) चेतन किसका नाम है ? 

कह, जिसमें क्रिया होती है वो चेतन और क्रिया नहीं होती है वो जड़।

यह बहुत स्थूल बुद्धि है।
- हम बोलते हैं, चलते हैं, ऐसा करते हैं (- ये) चेतन हैं और पत्थर है क,ये लकड़ी है - ये जड़ है।

तो येह जड़ चेतन की परिभाषा नहीं है।

जड़ नाम उसका है (जो) ना अपने को जानता है (और) ना दूजे को(दूसरेको) जानता है, जानना है ही नहीं उसमें; जाननापन नहीं है - वो जड़ होता है। जिसमें जाननापन होता है - वो चेतन होता है।

अगर क्रिया को चेतन माना जाय! तो इंजन है,मोटर है, साइकिल है- ये भी चेतन है फिर।

इंजन चलता है,बोलता भी-सीटी देता है और बोलता भी है और (उसमें)  धीमे और तेजी की क्रिया भी होती है।

तो फिर ये भी चेतन होना (होने) चाहिये। पर ये चेतन नहीं है। इसका ड्राइवर चेतन है। उस चेतन के संचालन से इंजन चलता है।...

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के
"19930718_0800_Uddeshya Chetan Ka Ho" नाम वाले प्रवचन का अंश)।

{ चेतन - परमात्मा की प्राप्ति के लिये जड़ से विमुख होना होगा।

लक्ष्य (ध्येय) अगर  परमात्मप्राप्ति का होगा तो जड़ भी परमात्मा की प्राप्ति करा देगा। गीता ने ऐसी विलक्षण बात कही है (8/7;2/38;)।

अगर लक्ष्य  परमात्मप्राप्ति का होगा तो युद्ध जैसी नीची क्रिया  से  भी परमात्मा की प्राप्ति हो जायेगी और लक्ष्य अगर परमात्मप्राप्ति का नहीं है (भोग और संग्रह का है) तो ऊँची से ऊँची क्रिया - गीताजी की कथा कहने से भी कल्याण नहीं होगा।

इस प्रवचन में ध्येय को भी उदाहरण देकर समझाया गया है}।

इस प्रकार इस प्रवचन में और भी कई विलक्षण बातें बतायीं गयी है। अधिक जानने के लिये कृपया यह पूरा प्रवचन सुनें। 

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रविवार, 7 अगस्त 2016

घरमें ही योगी -श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज।

                         ॥श्रीहरिः॥


घरमें ही योगी

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

गीताके अनुसार चलने वाला घरमें ही योगी हो जाता है-

जोगी ताही जानिये जो गीता ही जान।
जोगी ताहि न जानिये जो गीता ही न जान॥

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के 19930716_0800_Bhakti Ki Mahima Seva वाले प्रवचन से ॥

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गुरुवार, 4 अगस्त 2016

स्वाभाविक साधन कैसे हो? (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                     ॥श्रीहरिः॥

स्वाभाविक साधन कैसे हो?

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने 19930715_0518_Asaadhan Ka Nash वाले प्रवचन में बताया कि साधकको असाधनके त्याग की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए।

असाधन मिटे बिना साधन निरन्तर नहीं होता और निरन्तर साधन हुए बिना सिद्धि नहीं मिलती।

(आजकल लोग साधन तो करते हैं पर असाधनके त्याग की तरफ विशेष ध्यान नहीं देते।अगर ध्यान दें तो (असाधनके त्याग से) साधन स्वतः होने लग जायेगा-)

...राग है,द्वेष है - ये हमारे असाधन है ।ये असाधन दूर हो तो फेर (फिर) साधन हो जायेगा।फिर साधन स्वतः होगा- 'स्वाभाविक साधन'।

 और स्वाभाविक साधन से ही सिद्धि होती है ।और स्वाभाविक साधन असाधनके मिटनेसे होगा।

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
(के 19930715_0518_Asaadhan Ka Nash वाले प्रवचन का अंश)।

विस्तार से जानने के लिए कृपया यह प्रवचन सुनें।

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