बुधवार, 10 अगस्त 2016

रहस्य की बात हर एक नहीं समझता।

                     ॥श्रीहरिः॥

(रहस्य की बात हर एक नहीं समझता)।

भाड़ मीन झष भेक बारिज रे भेला बसै।
इशकी भँवरो एक रस की जाणै राजिया॥

अर्थात् भाड़ (बड़ी मेंढकी),मछली झख और मेंढक - ये (जल में) कमल के साथ ही बसते-रहते हैं; परन्तु हे राजिया ! एक इश्की (प्रेमी) भौंरा ही रस की (रहस्य की बात) जानता है।

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की वाणी से)।

http://dungrdasram.blogspot.com/

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