॥श्रीहरिः॥
(रहस्य की बात हर एक नहीं समझता)।
भाड़ मीन झष भेक बारिज रे भेला बसै।
इशकी भँवरो एक रस की जाणै राजिया॥
अर्थात् भाड़ (बड़ी मेंढकी),मछली झख और मेंढक - ये (जल में) कमल के साथ ही बसते-रहते हैं; परन्तु हे राजिया ! एक इश्की (प्रेमी) भौंरा ही रस की (रहस्य की बात) जानता है।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की वाणी से)।
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