॥श्रीहरिः॥
दुख सहने से मुक्ति
(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।
दुख आवे, तो दुख की खोज करनी (चाहिये) कि दुख क्यों आया-हमरेको दुख क्यों हुआ? 'सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता'(अध्यात्म रामायण, लक्ष्मण गीता २।६।६)। सुख दुख देने वाला है नहीं (दूसरा कोई- ) दूजा तो है नहीं कोई। - नहिं कोई (-काहु न कोउ) सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥
(रामचरितमा.२।९२)।
सुख देने वाला (और दुख देने वाला कोई नहीं है। तो) दुख क्यों आया? तो कहीं र कहीं अपनी भूल होगी।दुसरे को मत मानो कि इसने दुःख दे दिया...
(मेरे को दुख क्यों हुआ?- इस प्रकार खोज करेंगे तो कहीं न कहीं अपनी भूल निकलेगी,अपनी भूल का पता लगेगा कि दुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है। मैं जो दुखी हुआ-यह मेरी भूल थी)।
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(कोई गाली दे, तो लो मत-बदले में गाली दो मत,सहन करलो-)
निकलत गाली एक है उथलत गाल (गाली) अनेक। और
जे गाली उथलै नहीं (तो) रहै एक की एक॥ एक ही रहेगी।
तो कितनी बढ़िया बात है। 'तांस्तितिक्षस्व' (गीता २।१४,१५; में ) भगवान कहते हैं (कि) तुम सहलो। 'आगमापायिनोऽनित्याः' ये 'मात्रास्पर्श' है आने जाने वाले अर (और) अनित्य है। इनको सहलो।
तो क्या होगा सहने से? (कह,) 'सोऽमृतत्वाय कल्पते॥' महाराज! मुक्ति हो जायेगी। अर (और) नहीं सहोगे तो दुख पाओगे अर मुक्ति भी नहीं होगी। अर सहलो तो उसमें ई (भी) खटपट नहीं होगी,कल्याण हो जायेगा।
इस वास्ते पहले अपणे (अपने) घर से ही ये शुरु करो - प्रेम करना,काम-धन्धा करना, सेवा करना - घर से शुरु करदो।
घर में माता पिता है, भाई भौजाई है, स्त्री पुत्र है - सब का पालन पोषण करो। अच्छी तरह से आदर करो। ...
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के
"19970731_2000_Aapsi Khatpat Kaise Mite" नाम वाले प्रवचन के अंश से यथावत् )।
http://dungrdasram.blogspot.com
Bahut badhiya
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