कृपया ध्यान दें।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका न कोई स्थान था, न कोई जमीन थी, न कोई आश्रम था और न ही कोई गद्दी थी तथा न कोई उत्तराधिकारी था।
उनकी लिखायी हुई पुस्तक ('एक संतकी वसीयत' प्रकाशक- गीताप्रेस गोरखपुर वाली) पृष्ठ संख्या 12 में लिखा है -
मैंने किसीभी व्यक्ति , संस्था, आश्रम आदिसे व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं जोड़ा है ।…
मेरा सदासे यह विचार रहा है कि लोग मुझमें अथवा किसी व्यक्तिविशेषमें न लग कर भगवानमें ही लगें । व्यक्तिपूजाका मैं कड़ा निषेध करता हूँ ।
मेरा कोई स्थान,मठ अथवा आश्रम नहीं है। मेरी कोई गद्दी नहीं है और न ही मैंने किसीको अपना शिष्य , प्रचारक अथवा उत्तराधिकारी बनाया है ।
... करता है, वह बड़ा पाप करता है । उसका पाप क्षमा करने योग्य नहीं है ।
…
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
पूरी पुस्तक यहाँ(इस पते)से नि:शुल्क प्राप्त करें- http://db.tt/v4XtLpAr
.
http://dungrdasram.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें