||श्री हरिः||
÷सूक्ति-प्रकाश÷
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) |
सूक्ति-९१.
सूँठरो गाँठियो लेर पंसारी बणग्या.
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि. 19920816/5.18 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।
(एक थोड़ीसी बात जानली और अभिमान कर लिया)
सूक्ति-९२
साध हजारी कापड़ौ रतियन मैल सुहाय।
शाकट काळी कामळी भावै तहाँ बिछाय।।
शब्दार्थ-
शाकट (संसारी ) |
सूक्ति-९३
थब्बे चढग्या |
- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि. 19900111/5.18 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।
शब्दार्थ-
थब्बा (जब कोई गेंद आदि गोळ वस्तु ढलानमें लुढकती है और ज्यों-ज्यों ज्यादा आगे बढतीहै , दौड़ती है ; तब कोई खड्डे आदिका छोटासा अवरोध आता है तो भी जोरसे कूदती हुई आगे बढती है | उसको कहते हैं कि थब्बे चढगई | ऐसे यह जीव भी संसारकी परिस्थितियोंमें दौड़ता हुआ थब्बे चढ गया ||
सूक्ति-९४.
काळजे हाथ घाल्यो है |
सूक्ति-९५.
पाणी पिवौ प्रभात दोफाराँ पाणी पवौ ।
मत करो अन्नरी बात साँझाँ ही पाणी पिवौ ।।
सूक्ति-९६.
अनुभव भगवद्भजनका भाग्यवानको होय ।
सूक्ति-९७.
सीर सगाई चाकरी राजीपैरो काम ।।
सूक्ति-९८.
घरमें ऊँदराई राजी ह्वै ज्यूँ करो ।।
सूक्ति-९९.
गाँव गिणै नहिं गहलैने,अर,गहलौ गिणै नहिं गाँवनें ।
सूक्ति-१००.
करै न अक्कल काम अधगहलाँ ढिग आपरी ।।
सूक्ति-१०१.
मूरखनें कूटणौ सोरो,पण समझावणो दोरो ।।
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