सोमवार, 23 जून 2014

                          ÷सूक्ति-प्रकाश÷(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) |


                       ||श्री हरिः||          


                          ÷सूक्ति-प्रकाश÷



(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) |

सूक्ति-९१.

सूँठरो गाँठियो लेर पंसारी बणग्या.

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि. 19920816/5.18 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।

(एक थोड़ीसी बात जानली और अभिमान कर लिया)

सूक्ति-९२

साध हजारी कापड़ौ रतियन मैल सुहाय।
शाकट काळी कामळी भावै तहाँ बिछाय।।
शब्दार्थ-
शाकट (संसारी ) |

सूक्ति-९३

थब्बे चढग्या |

- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.  19900111/5.18 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।

शब्दार्थ-
थब्बा (जब कोई गेंद आदि गोळ वस्तु ढलानमें लुढकती है और ज्यों-ज्यों ज्यादा आगे  बढतीहै , दौड़ती है ; तब कोई खड्डे आदिका छोटासा अवरोध आता है तो भी जोरसे कूदती हुई आगे बढती है | उसको कहते हैं कि थब्बे चढगई | ऐसे यह जीव भी संसारकी परिस्थितियोंमें दौड़ता हुआ थब्बे चढ गया ||

सूक्ति-९४.

काळजे  हाथ घाल्यो है |

सूक्ति-९५.

पाणी पिवौ प्रभात दोफाराँ पाणी पवौ ।
मत करो अन्नरी बात साँझाँ ही पाणी पिवौ ।।

सूक्ति-९६.

अनुभव भगवद्भजनका भाग्यवानको होय ।

सूक्ति-९७.

सीर सगाई चाकरी राजीपैरो काम ।।

सूक्ति-९८.

घरमें ऊँदराई राजी ह्वै ज्यूँ करो ।।

सूक्ति-९९.

गाँव गिणै नहिं गहलैने,अर,गहलौ गिणै नहिं गाँवनें ।

सूक्ति-१००.

करै न अक्कल काम अधगहलाँ ढिग आपरी ।।

सूक्ति-१०१.

मूरखनें कूटणौ सोरो,पण समझावणो दोरो ।।

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