।।श्रीहरि।।
सत्यको स्वीकार करो , (आप) दुखी हो ही नहीं सकते |
(-श्रध्देय स्वीमीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
के २९/०९/१९९३/८००) बजेके सत्संग-प्रवचनसे )|
('सत्य' यह बताया कि बचपनमें जो शरीर था वैसा आज नहीं है और आज जैसा है वैसा आगे नहीं रहेगा।ऐसे ही कितनी चीजें बदल गई,चली गई।इसलिये जानेवालेको रखनेकी इच्छा न करें। भगवानको याद रखो,बदलनेवालेकी सेवा करो और चाहो मत)।
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