(भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ-
जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश|
तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
सोमवार, 2 सितंबर 2013
भगवत्कृपा
शनिवार, 31 अगस्त 2013
पता-(सत्संग,गीता आदिका)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग,गीता आदिका पता
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग ( SATSANG GITA AADI -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ )और गीता-पाठ,गीता-गान(सामूहिक आवृत्ति),गीता-माधुर्य(उन्हीकी आवाजमें),गीता-व्याख्या(करीब पैंतीस दिनोंका सेट),कल्याणके तीन सुगम मार्ग[नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा व्याख्या],नानीबाईका माहेरा,भजन,कीर्तन,पाँच श्लोक(गीता ४/६-१०),गीता 'साधक-संजीवनी' तथा नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग(-श्रध्देय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
71दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट),मानसमें नाम-वन्दना आदि आप यहाँके इस पतेसे प्राप्त करें- http://db.tt/v4XtLpAr
शुक्रवार, 30 अगस्त 2013
तीन प्रकारके मनुष्य
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः|
विघ्नैःपुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति||
(मुद्राराक्षस २/१७)
'नीच मनुष्य विघ्नोंके डरसे कार्यका आरम्भ ही नहीं करते हैं|मध्यम श्रेणीके मनुष्य कार्यका आरम्भ तो कर देते हैं,पर विघ्न आनेपर उसे छोड़ देते हैं|परन्तु उत्तम गुणोंवाले मनुष्य बार-बार विघ्न आनेपर भी अपना (प्ररम्भ किया हुआ) कार्य छोड़ते नहीं|'
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे
दृढता
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्षमीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् |
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ||
(भर्तृहरिनीतिशतक)
'नीति-निपुण लोग निन्दा करें अथवा स्तुति(प्रशंसा),लक्षमी रहे अथवा जहाँ चाहे चली जाय और मृत्यु आज ही हो जाय अथवा युगान्तरमें,अपने उध्देश्यपर दृढ रहनेवाले धीर पुरुष न्यायपथसे एक पग भी पीछे नहीं हटते|'
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे
बुधवार, 28 अगस्त 2013
पता-नानीबाईका माहेरा (गायक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)|
।।श्रीहरि:।।
नानीबाईका माहेरा।
गायक-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।
कभी-कभी श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भक्त नरसिंह(नरसीजी) मेहताका माहेरा सुनाते थे,जिसको लोग बड़े राजी होकर सुनते थे।
वो बड़ा रोचक,हास्यप्रद तथा भक्तिमय होता था।
यह काव्य मारवाड़ी भाषामें होते हुए भी अन्य भाषावालोंको भी बड़ा प्रिय है।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज इसको गाकर सुनाते और फिर हिन्दीभाषामें अर्थ भी बताते थे तथा साथ-साथ सत्संग भी कराते थे।
इस प्रकार वो बड़ा कीमती,रहस्यमय,आनन्ददायक,प्रेरणाप्रद और समझनेमें बड़ा सुगम था।
वो प्रोग्राम चार,पाँच या छः दिन तक चलता था।
यह रिकोर्डिंग छः दिनोंवाली है(जो कोलकातामें हुई थी)।
सुगमताके लिये इसकी अड़ताळीस फाइलें बनाई है और उनके नाम भी हिन्दीमें लिख दिये गये हैं।
इसमें साफ आवाजवाली सामग्रीका उपयोग किया गया है।
इसका नाम रखा है -'
"1@NANIBAIKA MAHERA -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAAHARAJ@"
इसको यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/mgMy966T
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
बुधवार, 14 अगस्त 2013
गीता-माधुर्य(की रिकोर्डिंगका पता-)[लेखक और स्वर (बोलनेवाले)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज]।
इसका नाम है-'गीता-माधुर्य।
गीता-माधुर्य (की रिकोर्डिंग) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/ylSe6rQi
http://www.swamiramsukhdasji.org/
पाँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण-एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज…
।।श्रीहरिः।।
पाँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण-
एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज एकान्त में अकेले ही विराजमान थे|
ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|
मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?
(ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|
फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये।
(बहुत पहले कि बात है कि एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से एक हैड मास्टर ने पूछा कि मनुष्य को कम- से कम क्या कर लेना चाहिये?
इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज ने बताया कि मनुष्य को कर तो लेना चाहिये अपना कल्याण। तत्त्वज्ञान। भगवान् का परम प्रेम प्राप्त कर लेना चाहिये। परन्तु इतना न हो सके तो कम- से कम इतना तो कर ही लेना चाहिये कि मनुष्य जन्म से नीचा न चला जाय (मनुष्य जन्म से नीचे न गिर जाय)।
अर्थात् इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति न कर सके तो मरने के बाद वापस मनुष्य जन्म मिल जाय। पशु-पक्षी,कीट-पतंग आदि नीच योनियों में न जाना पङे। इतना तो कर ही लेना चाहिये।
(तब उन्होंने पूछा कि) इसका क्या उपाय है (कि वापस मनुष्य जन्म ही मिल जाय)?
इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज बोले कि गीता याद (कण्ठस्थ) करलें। गीता पाठ करें । क्योंकि-
गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां व्रजेत् ।।१६।।
गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् ।
(वराह पुराण, गीता माहात्म्य)
अर्थात्, गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है, तो] मरनेपर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है)। 19930714_0518_Parlok Ki Chinta Kare Swabhav Sudhar ( परलोक की चिंता करे स्वभाव सुधार, यह प्रवचन सुनें) अस्तु।
(इसलिये हमलोगों को चाहिये कि गीताजी याद करलें और गीताजी का पाठ करें )।
[ पूरी गीता का तो कहना ही क्या, गीताजी के तो एक अध्याय का भी बङा माहात्म्य है। एक श्लोक या आधे श्लोक अथवा चौथाई श्लोक (एक चरण) का भी बङा माहात्म्य है।
इसलिये हमलोगों को चाहिये कि कम-से कम गीता जी के पाँच श्लोकों का तो पाठ कर ही लें ]।
अब गीताजीके कौन-कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|
फिर अन्दरसे बाहर, सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा) के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ (करना) शुरु करवा दिया||
(यह पाठ रोजाना सत्संग- प्रवचनसे पहले होता था|)
पाँच श्लोक आदिका पाठ उन महापुरुषों('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज') की ही आवाजके साथ- साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।
( श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लोक-कल्याण- हित शुरु करवाये हुए गीताजी(४/६-१०) के पाँच श्लोकोंका उन्हीकी आवाजमें पाठ यहाँसे प्राप्त करें- https://db.tt/moa8XQh7 )
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-
● गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक ●
(गीता ४/६-१०)-
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
और फिर भगवन्नाम संकीर्तन|
तत्पश्चात श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका संत्संग (होता था) ||
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पता-
सत्संग- संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/